G News 24 : "उतना ही लो थाली में,व्यर्थ न जाए नाली में"

अन्न देवो भव संकल्प अभियान...

"उतना ही लो थाली में,व्यर्थ न जाए नाली में"

भारत सहित पूरे विश्व में हमारे ही करोड़ों बंधु भगिनी बच्चे परिपूर्ण भोजन के अभाव में भयंकर कुपोषण से त्रस्त हैं। उन्हें एक समय का भोजन भी ठीक से नहीं मिल पाता है। ऐसी स्थिति में जहां हमारी सनातन संस्कृति हमें अन्न देवो भव का पाठ पढ़ाती है वहां हम समाज के प्रति उत्तरदायित्व हीन होकर भोजन व्यर्थ फेंककर अन्न देवता के अपमान के भागीदार क्यों बन रहे हैं । 

समाज और मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निर्वहन करते हुए  स्वयं और पूरे परिबार को अन्न देवो भव अभियान में जुड़कर थाली में अन्न का एक कण भी  व्यर्थ न छोड़ने का संकल्प  लेकर संस्कृति संम्वर्धन के इस दिव्य अभियान में सहभागिता कीजिए। 

जब आप अपने खुद के पैसों से पानीपुरी तक खाते हो, तो प्लेट के पानी की आखरी बूंद  भी पी जाते हो,मूँगफली खाने के बाद छिलके मे आखरी दाना तक ढूढ़ते हैं। तो फ़िर किसी के विवाह में भोजन करते हैं, तो अन्न जूठा क्यों छोड़ते हैं ? तब क्या हम मां अन्नपूर्णा का अनादर नहीं कर रहे हैं ?

एक पिता अपनी बेटी की शादी में अपने जीवन भर  की पूंजी लगाकर आपके लिये अच्छे व स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करता है। इस तरह भोजन को बर्बाद करके एक पिता के मेहनत की पूँजी का अपमान ना करें।



G News 24 : भाई-बहन,ननद-भाभी,ससुर-बहू और पूर्व पति-पत्नी तक एक दूसरे के विरुद्ध मैदान में हैं !

 चुनावी जंग में कई सीटें ऐसी,जहां सियासी लड़ाई है परिवार के सदस्यों के बीच !

भाई-बहन,ननद-भाभी,ससुर-बहू और पूर्व पति-पत्नी तक एक दूसरे के विरुद्ध मैदान में हैं !

देश में इस वक्त चुनाव की सरगर्मी है। देशभर में 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में लोकसभा के चुनाव होने हैं। पहले और दूसरे चरण के नामांकन की प्रक्रिया समाप्त हो गई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होगा। वहीं दूसरे चरण में 13 राज्यों की 89 सीटों के लिए 26 अप्रैल को लोग वोट करेंगे।

दो चरणों की नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के साथ 191 सीटों के मुकाबलों की तस्वीर साफ हो चुकी है। कई सीटों पर चेहरों ने सियासी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। कई जगह पर परिवार के सदस्य ही आमने-सामने हैं। आइये जानते हैं ऐसी कितनी सीटें हैं जहां परिवार के सदस्यों के बीच लड़ाई है? ये उम्मीदवार किन दलों से हैं? इन सीटों पर पिछली बार किसे जीत मिली थी?

भाभी-ननद हुईं आमने-सामने 

महाराष्ट्र की बारामती सीट पर रिश्ते में ननद भौजाई का राजनीतिक मुकाबला दिलचस्प हो चुका है। यहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-अजित पवार खेमा) ने सुनेत्रा पवार को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उम्मीदवार बनाया है। सुनेत्रा महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार की पत्नी हैं। वहीं सुनेत्रा के खिलाफ उनकी ननद सुप्रिया सुले चुनाव मैदान में हैं। सुप्रिया शरद पवार की बेटी हैं। बारामती लोकसभा क्षेत्र की मौजूदा सांसद एनसीपी (शरद चंद्र पवार) की सुप्रिया सुले हैं। 2019 में सुप्रिया ने भाजपा के कंचन राहुल कूल को हराया था। 

पूर्व पति-पत्नी एक दूसरे के खिलाफ उतरे 

पश्चिम बंगाल की बिष्णुपुर सीट पर पूर्व पति-पत्नी के बीच सियासी मुकाबला है। बिष्णुपुर में वर्तमान भाजपा सांसद सौमित्र खान फिर से मैदान में हैं। तृणमूल कांग्रेस ने यहीं पर उनकी पूर्व पत्नी सुजाता मंडल को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में सौमित्र खान ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार श्यामल संत्रा को शिकस्त दी थी। 

चौटाला परिवार के सदस्य चुनाव मैदान में 

हरियाणा की हिसार सीट पर मुकाबला चौटाला परिवार के बीच होने की उम्मीद है। भाजपा ने यहां ओपी चौटाला के बेटे रणजीत चौटाला को मैदान में उतारा है। रणजीत निर्दलीय विधायक और हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें हिसार सीट से मैदान में उतार दिया गया है।

वहीं इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने सुनैना चौटाला को मैदान में उतारा है। सुनैना इनेलो की महिला विंग की प्रधान महासचिव हैं। रणजीत चौटाला सुनैना चौटाला के रिश्ते में चाचा सुसर हैं।

जेजेपी यानी जननायक जनता पार्टी भी हिसार सीट से ओम प्रकाश चौटाला की एक और बहू नैना चौटाला को मैदान में उतारने की तैयारी में है। पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की मां नैना बाढड़ा चौटाला सीट से विधायक हैं। 

2019 में भी इस सीट से चौटाला परिवार के दुष्यंत चौटाला जजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। हालांकि, इस चुनाव में जीत भाजपा के उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह को मिली थी। बृजेंद्र हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और पार्टी के उम्मीदवार भी हैं।

भाई-बहन की सियासी टक्कर 

आंध्र प्रदेश की कडप्पा लोकसभा सीट पर भी परिवार वालों के बीच भिड़ंत होनी है। कांग्रेस ने वाईएस शर्मिला को अपने पारिवारिक गढ़ कडप्पा सीट से उम्मीदवार बनाया है। शर्मिला आंध्र प्रदेश कांग्रेस इकाई की प्रमुख हैं। वह कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी प्रमुख वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं। इस चुनाव में शर्मिला अपने चचेरे भाई वाईएस अविनाश रेड्डी से मुकाबला करेंगी। अविनाश रेड्डी को वाईएसआर कांग्रेस ने मैदान में उतारा है।

2019 से इस सीट पर अविनाश रेड्डी को जीत मिली थी। वाईएसआर की तरफ से उतरे अविनाश ने टीडीपी के आदि नारायणा रेड्डी को शिकस्त दी थी।

G News 24 : अपनों की नाराजगी से बीजेपी-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी हैं परेशान !

 ग्वालियर सीट पर 'अपने' ही बने बड़ी चुनौती...

अपनों की नाराजगी से बीजेपी-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी हैं परेशान !

ग्वालियर। ग्वालियर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने उम्मीदवारों मैदान में उतार दिए हैं. लेकिन, दोनों का चुनाव प्रचार अभियान वैसी गति नहीं पकड़ पा रहा है जो आम तौर पर दिखाई देता है. और इसकी वजह एक ही है, अपनों की नाराजगी ! भारतीय जनता पार्टी द्वारा मैदान में उतारे अपने प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाहा, अपने ही नेताओं को एकजुट करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं वही कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को उम्मीदवार बनाया है तो उनके खिलाफ भी विरोध के स्वर खत्म नहीं हो रहे हैं.  दोनों ही प्रत्याशी फिलहाल अपनी पार्टी के रूठे और नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं जिसके चलते प्रचार अभियान वैसी गति नहीं पकड़ पा रहा है जो आम तौर पर दिखाई देता है. यहां सात मई को मतदान होना है यानी एक महीने से कम वक्त बचा है. 

प्रत्याशी के नाम की घोषणा करने में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे पहले बाजी मार ली थी ,उसने अपने मौजूदा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का टिकट काटकर 2022 में विधानसभा का चुनाव हारे पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.पहली बार हुआ है जब भाजपा ने शहर की जगह ग्रामीण क्षेत्र के नेता को अपना प्रत्याशी बनाया है . यही नहीं अब तक सवर्ण प्रत्याशी पर दांव खेल कर लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाती रही भाजपा ने पहली बार पिछड़ा वर्ग के कुशवाहा समाज से आने वाले भारत सिंह को मैदान में उतारा है.  इसकी वजह कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा ओबीसी को लेकर उठाई जा रही बातें मानी जा रही हैं.  

पिछले  दिनों राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत ग्वालियर आए थे और उन्होंने पिछड़ी युवाओं से संवाद करके पूछा था कि उन्हें क्या मिला ?  माना जाता है कि इसी से घबराकर भाजपा ने ग्वालियर सीट पर पहली बार श्रवण की जगह पिछड़ा प्रत्याशी देने का निर्णय लिया हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि ग्वालियर क्षेत्र में कुशवाहा समाज के काफी वोटर हैं इसीलिए भाजपा ने कुशवाहा को ही टिकट देकर ओबीसी लोगों को रिझाने के लिए यह दांव खेला है.

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा क्षेत्र में से साढ़े शहरी क्षेत्र में आते हैं . ग्वलियर पूर्व , ग्वलियर दक्षिण और ग्वालियर के अलावा ग्वलियर ग्रामीण का भी आधा हिस्सा शहर से जुड़ा है.  इन क्षेत्रों में शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी की पकड़ मजबूत रही है अगर हम पिछले चार चुनाव देखें तो भाजपा की जीत की वजह शहरी क्षेत्र में मिलने वाली वोटो की बड़ी लीड ही रही है।  इसकी  इसकी एक वजह  यह भी है कि भाजपा अब तक इस सीट पर किसी शहरी सवर्ण को ही मैदान में उतरती रही है .  भाजपा ने अब तक यहां से जयभान सिंह पवैया, यशोधरा राजे सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और विवेक नारायण शेजवलकर को मैदान में उतारा.यह सभी शहरी पृष्ठभूमि के नेता हैं और सभी ने यहां जीत दर्ज की लेकिन पहली बार भाजपा ने ग्वालियर ग्रामीण से विधायक रह चुके पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बनाकर नया प्रयोग किया है.  

एक माह बीत जाने के बावजूद उनके प्रचार में वह जोश और उत्साह नजर नहीं आ रहा जैसा सदैव आता रहता था.  उन्हें शहरी नेताओं और कार्यकर्ताओं का कोई खास समर्थन नहीं मिल पा रहा है, इसकी वजह यही है कि एक तो शहरी नेता को टिकट न मिलने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह की जगह निराशा का भाव है ,वही भारत सिंह का शहरी कार्यकर्ता और नेताओं से कोई पुराना खास समन्वय भी नहीं है. फिलहाल वे अपने नेताओं के घर-घर जाकर उन्हें मनाने और पटाने में ही व्यस्त हैं हालांकि पार्टी का संगठन जिला और मंडल की बैठके कर चुका है लेकिन उसमें भी कार्यकर्ता कम संख्या में तो पहुंचे ही उनमें कोई जोश और जुनून नजर नहीं आया   इस बात को लेकर भाजपा में ग्वालियर से लेकर भोपाल तक चिंता है.

भोपाल में पार्टी में एकजुटता दिखाने के लिए फटाफट रणनीति बनाई गई और ग्वालियर में चुनाव कार्यालय के बहाने उद्घाटन के बहाने एकजुटता दिखाने का निर्णय लिया गया इसीलिए  विगत दिनों ग्वालियर में भारत सिंह का चुनाव कार्यालय का उद्घाटन बड़े भव्य समारोह के रूप में आयोजती हुआ इसमें केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ,वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा से लेकर हर छोटे बड़े नेता को मंच पर स्थान दिया गया. इसका  मकसद शहर में चल रही गुटबाजी की खबरों से परेशान और हतोत्साहित पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना था हालांकि इस आयोजन के बाद भी स्थिति में कोई खास अंतर नजर नहीं आ रहा है.

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग बड़ी संख्या में है और उनमें से कुशवाहा को छोड़कर अधिकांश जातियां कांग्रेस के समर्थन में रहती हैं.यही वजह है कि अगर इक्का - दुक्का अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस यहां से सिर्फ पिछड़ा वर्ग के ही कैंडिडेट उतारती रही है. लेकिन इस बार भाजपा ने पिछड़ा प्रत्याशी उतारा तो कांग्रेस ने भी अपनी लीक बदलते हुए सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतार दिया. कांग्रेस ने ब्राह्मण वर्ग से आने वाले प्रवीण पाठक को प्रत्याशी बनाया है. ग्वालियर सीट में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है. 

कांग्रेस  कांग्रेस नेताओं से पटरी न बैठ पाने के कारण  पाठक के लिए चुनाव प्रचार को गति देना आसान नजर नहीं आ रहा है..ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे पाठक के टिकट की चर्चा चली तो शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा ने तो हाई कमान को चिट्ठी लिखकर ही चेतावनी दे दी थी कि अगर पाठक को प्रत्याशी बनाया गया तो वह अध्यक्ष पद छोड़ देंगे. पाठक के नाम का ऐलान होने के बाद भी उन्होंने कहा कि वह अपनी बात पर अडिग हैं और चुनाव के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे.डॉक्टर शर्मा अकेले नहीं है बल्कि ज्यादातर प्रमुख नेता पाठक से नाराज हैं हालांकि नाम घोषित होने के बाद से ही प्रवीण पाठक लगातार अपने नेताओं से मिलकर उनकी नाराजी दूर करने की कोशिशें में लगे हुए हैं लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती समय की भी है क्योंकि उनका टिकट काफी विलंब से घोषित हुआ है और फिर जिले में कांग्रेस और स्वयं पाठक का भी अपना कोई खास नेटवर्क नहीं है .

G News 24 : दुनिया में अभी भी 78 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं !

100 करोड़ भोजन थाली की रोजाना हो जाती हैं बर्बाद !

दुनिया में अभी भी 78 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं !

दुनिया में कहीं भी चले जाइये, मां के हाथ का स्वाद महंगे से महंगे रेस्ट्रॉन्ट में मोटा पैसा खर्च करके भी नहीं मिल सकता. इसीलिए महिलाओं को अन्नपूर्णा भी कहा जाता है. अन्नपूर्णा यानी भोजन की देवी क्योंकि वो सिर्फ हमारा पेट नहीं भरतीं, बल्कि हमारे स्वाद और सेहत के साथ- साथ रसोई का अर्थशास्त्र भी संभालकर चलती हैं. 

शायद ही आपने कभी अपनी मां को खाना बर्बाद करते देखा होगा, अगर आपकी प्लेट में रोटी बच जाती है या आप लंच में लाई हुई सब्ज़ी लौटाकर ले जाते हैं तो घर जाकर डांट सुनने को मिलती है. धार्मिक मान्यताओं में तो खाना बर्बाद करना उसके अपमान के बराबर है. लेकिन इन सबके इतर हाल ही में खाने की बर्बादी पर यूएन की एक रिपोर्ट आई है, जिसके आंकड़े देखकर हो सकता है निवाला आपके गले में अटक जाए. 

यूएन की रिपोर्ट कहती है कि घरों में बर्बाद कर रहे सबसे ज्यादा भोजन !

आपको लगता होगा कि खाना तो होटेल और रेस्ट्रॉन्ट में बर्बाद होता है. लेकिन यूएन की रिपोर्ट कहती है कि सबसे ज़्यादा खाना हमारे घरों में बर्बाद हो रहा है. 61 प्रतिशत खाने की बर्बादी घरों में, जबकि 23 प्रतिशत खाना फूड सर्विस यानी रेस्ट्रॉन्ट में बर्बाद होता है और 13 प्रतिशत रिटेल चेन यानी सप्लाई के दौरान, स्टोरेज या दुकानों में बर्बाद होता है. 

अब अगर आप अपनी थाली में बचे रोटी के दो टुकड़े और दो चम्मच दाल को बेहद कम समझते हैं तो इन आंकड़ों को याद कर लीजिएगा...क्योंकि वही दो-तीन टुकड़े ही खाने की बर्बादी का सागर भर रहे हैं, जबकि ये खाना किसी भूखे को चैन की नींद दे सकता था. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यूएन की ही दूसरी रिपोर्ट 2023 के मुताबिक भारत में कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या 16 दशमलव 6 प्रतिशत है. यानी इतनी आबादी को भर पेट और संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा. जिनमें छोटे कद के बच्चे 31 दशमलव 7 फीसदी हैं, जबकि ज्यादा वजन वाले 2 दशमलव 8 प्रतिशत और देश में 76 प्रतिशत लोगों को सेहतमंद खाना नसीब ही नहीं होता.    

बेहद शर्मनाक हैं बर्बादी के आंकड़े

अपने घरों में ही झांक कर देखिए, कितनी बार ऐसा होता है कि बच्चों की पसंद का खाना न बनने पर वो आपसे खाना ऑनलाइन ऑर्डर करने की ज़िद करते हैं. जहां उनकी ये ज़िद पूरी होती है वहीं आपकी रसोई में बना खाना बर्बाद होता है. ये एक घर की नहीं दुनिया के हर देश और हर घर का हाल है, भोजन की बर्बादी के ये आंकड़े जितना डराने वाले हैं उतने ही शर्मनाक भी. आंकड़ों के मुताबिक 100 करोड़ थाली हर रोज़ बर्बाद, 61 प्रतिशत खाना घरों में बर्बाद और 55 किलो खाना पूरे साल में बर्बाद हो जाता है. खाने की इतनी बर्बादी अपने देश में हो रही है. घर की रसोई जहां आप खाना बर्बाद करने से बचते हैं. वहीं सबसे ज़्यादा खाना बर्बाद होता है. लेकिन एक आम घर में खाना बर्बाद होने की वजहें क्या हैं हमने महिलाओं से ये जानने की कोशिश की.

इन वजहों से होती है भोजन की बर्बादी

बचा हुआ खाना कई दिन तक फ्रिज में रखा रहता है, या फिर किसी को दे दिया जाता है. लेकिन उसकी शेल्फ लाइफ़ खत्म होने के बाद वो खाना डस्टबिन में चला जाता है. सिर्फ यही एक वजह नहीं है. कई घरों में बच्चों की ज़िद खाना बर्बाद करवाती है, ऑनलाइन ऑर्डर करते वक्त अक्सर भूख से ज़्यादा खाना ऑर्डर किया जाता है. 

खाने की वैरायटी से फ्रिज भरा होने के बाद भी बाहर खाने की प्लानिंग हो जाती है और पूरा खाना वेस्ट हो जाता है. अन्नपूर्णा कही जाने वाली हमारे घरों की महिलाएं मानती है कि खाना बर्बाद होने से सिर्फ खाना ही नहीं और भी संसाधन खराब होते हैं.

अगर आप कम खाना खा रहे हैं लेकिन सेहतमंद खाना खा रहे हैं तो आप लंबी और स्वस्थ उम्र गुज़ारेंगे लेकिन डॉक्टर्स का मानना है कि देश में लोग ज़रूरत से ज़्यादा खा रहे हैं जिसकी वजह से वो बीमार पड़ रहे हैं. और आखिर में खाना वेस्ट हो रहा है.

भारत में प्रति व्यक्ति 55 किलो भोजन हो रहा बर्बाद

यूएन की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल भारत में एक व्यक्ति औसतन 55 किलो खाना बर्बाद कर देता है. जबकि बांग्लादेश में 82 किलो, अफगानिस्तान में 127 किलो और पाकिस्तान में ये आंकड़ा 130 किलो है. दुनिया में हर इंसान औसतन 79 किलो खाना बर्बाद कर देता है. दुनिया में जितना खाना बर्बाद हो रहा है, वो कुल खेती का 30 प्रतिशत है. यानी किसानों की 30 प्रतिशत मेहनत हर साल बेकार हो जाती है.दुनिया के अमीर देश हों या ग़रीब, खाने की बर्बादी में सब तरफ एक ही हाल है. लेकिन भोजन से भरी थालियों की बर्बादी के ये आंकड़े शर्मनाक हैं. एक तरफ लोग ज़रूरत से ज्यादा खा रहे हैं और बर्बाद कर रहे हैं तो दूसरी तरफ करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी तक नहीं मिल रही.

दुनिया में 78 करोड़ लोग बिना खाए सो रहे

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की नई रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडेक्स 2024’ के मुताबिक, 2022 में 73 करोड़ लोग बिना खाए सो रहे थे . 2023 में ये आंकड़ा बढ़कर 78 करोड़ हो गया है. वहीं 2022 में भारत में प्रति व्यक्ति 50 किलो खाना बर्बाद हो रहा था लेकिन 2023 में ये आंकड़ा 55 किलो प्रति व्यक्ति पहुंच गया.

हर गुज़रते साल भूखे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है और खाने की बर्बादी भी. भारत में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें रोज तीन वक्त का भरपेट खाना नहीं मिलता. जबकि 14 करोड़ लोग रात में भूखे पेट सो रहे हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों में भारत 111वें स्थान पर है. सुपरमार्केट के दौर में जब शेल्फ एक ही चीज़ के तमाम विकल्पों से भरी हुईं हैं और लुभाने वाले ऑफ़र दिए जाते हैं, कुछ चीज़ों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी हो जाता है.

खाने को बर्बाद होने से कैसे बचाएं !

  1. - ज़रूरत से ज़्यादा सामान खरीदने से बचें, कई बार हम एक के साथ एक फ्री जैसे ऑफर्स में फंसकर ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें खरीद लेते हैं.
  2. - बाज़ार से सामान लाने से पहले लिस्ट तैयार करें, ताकि आप थैले में गैर ज़रूरी और ज़रूरत से ज़्यादा सामान न भरकर लाएं
  3. - एक्सपायरी डेट का ध्यान रखें, पैकेट पर दी गई तारीख से पहले ही उस सामान का इस्तेमाल कर लें 
  4. - थाली में उतना ही भोजन लें, जितना आप खा सकते हैं, बुफे में प्लेट को ज़्यादा भरने से बेहतर है आप भूख के हिसाब से दोबारा ले लें.
  5. - रसोई को मैनेज करें, उतना ही पकाएं जितना खाया जा सके, ताकि फ्रिज में बचा हुआ खाना जमा न करना पड़े.
  6. - भूख से थोड़ा कम खाना खाया जाए तो सेहत भी अच्छी रहेगी और खाना बर्बाद भी नहीं होगा.

अगली बार प्लेट में खाना लेने से पहले ये बात जरूर सोचिएगा

अगली बार जब आप दफ्तर से खाना बचाकर लाएं. या उसे रास्ते में डिज़्पोज़ करें या अपनी सजी हुई थाली में झूठा खाना छोड़ दें तो ये ज़रूर सोचिएगा कि जिस वक्त आप खाना बर्बाद कर रहे हैं उस वक्त देश में करोड़ों लोग भूखे सो रहे हैं.


G News 24 : अफजल गुरु की मौत की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति को पत्र लिखने वाले माता -पिता की संतान है आतिशी

 आप आदमी पार्टी की आतिशी मार्लेना की एक सच्चाई जो शायद आप नहीं जानते हैं ! 

अफजल की मौत की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति को पत्र लिखने वाले माता -पिता की संतान है आतिशी 



आप पार्टी की यह आतिशी मार्लेना, दिल्ली विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर : कामरेड विजयकुमार सिंह और कामरेड तृप्ति वाही की बेटी है। मार्लेना फैमिली की पहचान  यूनिवर्सिटी प्रोफेसर के तौर पर कम, और कट्टर कम्युनिस्ट एक्टिविस्ट तौर पर ज्यादा है। कार्ल मार्क्स और व्लादिमीर लेनिन इन दोनो के गॉडफादर हैं। इन दोनों ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी अफजल गुरु की मौत की सजा के खिलाफ भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका  पर पत्र भी लिखा था। सूत्रों के मुताबिक इनके भारत विरोधी पाकिस्तानी संगठन के एस आर गिलानी के साथ भी 'निकट' संबंध हैं। कॉमरेड विजय सिंह कम्युनिस्ट प्रचार वेबसाइट रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेसी का संपादक हैं, और 'स्टालिन सोसाइटी' का हिस्सा हैं, जिसका मिशन 20 मिलियन लोगों को मार कर पूर्व सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन की क्रांतिकारी विरासत की रक्षा करना है। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के इन दो प्रोफेसर कॉमरेड विजयकुमार सिंह और कॉमरेड तृप्ति वाही (पति-पत्नी) ने जिस बेटी को जन्म दिया उसके नाम के लिए मार्क्स से मार, और लेनिन से लेन लेकर  उसका नाम मार्लेना रखा.. मार्लेना ही केजरीवाल की प्रवक्ता आतिशी मार्लेना ! 

सिसोदिया को शराब घोटाले के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार केजरीवाल ने दिल्ली में अवैध घुसपैठ की जिम्मेदारी इसी आतिशी मार्लेना पर डाल दी है, जो रोहिंग्याओं की घुसपैठ करा रही है। इसे कम्युनिस्ट विचारधारा और  गद्दारी विरासत में मिली है। यह दिल्ली से लोकसभा चुनाव के लिए आप का टिकट पाने की भी इच्छुक हैं।  जैसा कि ‘मार्लेना' एक ईसाई नाम प्रतीत होता है, इसलिए वर्तमान में इसने अपने आपको हिंदू दिखाने के लिए,  अपने नाम को बदल कर आतिषी विजयकुमार सिंह किया हुआ है। 

G News 24 : होली पर रंगों से अब ना करें परहेज, बस अपनाएं ये आसान टिप्स अपनाकर जमकर खेलें होली

 नहीं खराब होंगे फोन और दूसरे गैजेट्स...

होली पर रंगों से अब ना करें परहेज, बस अपनाएं ये आसान टिप्स अपनाकर जमकर खेलें होली 

होली के हुड़दंग में हर कोई खूब मस्ती करता है. रंगों का त्योहार है तो रंग-बिरंगे होली कलर्स का भी जमकर लोग इस्तेमाल करते हैं. इन रंगों को रगड़-रगड़ कर चेहरे पर लगाए बिना कहां कोई मानता है. कुछ कलर्स तो इतने हार्श, केमिकल युक्त होते हैं कि नाजुक त्वचा को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार तो त्वचा छिल जाती है. ऐसे में होली खलने के बाद यदि रंगों को सही तरीके से न हटाया जाए तो त्वचा पर रैशेज, जलन, खुजली, ड्राइनेस जैसी समस्या हो जाती है. जिनकी त्वचा अधिक संवेदनशील होती है, वे हर्बल गुलाल का ही इस्तेमाल करें. यदि आप चाहते हैं कि होली के रंग आपकी त्वचा की रंगत न उड़ा दें, तो इसका खास ध्यान रखना होगा. कुछ बातों का ध्यान रख कर आप रंगों की मस्ती में पूरी तरह से डूब सकते हैं

होली के रंगों को छुड़ाने के आसान उपाय 

  • – अभिवृत एस्थेटिक्स नई दिल्ली के सीओ फाउंडर व त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. जतिन मित्तल न्यूज18 हिंदी से बात करते हुए कहा कि रंग खेलने जाने से पहले शरीर पर अच्छी तरह से ऑलिव ऑयल या नारियल का तेल लगा लें. अगर किसी व्यक्ति को तेल लगाना अच्छा नहीं लगता है, तो इसकी जगह कोई लोशन भी लगाया जा सकता है. इसके बाद जितना भी रंग लगाना चाहें, आप लगा सकते है. त्वचा पर कोई पक्का रंग नहीं चढ़ पाएगा.
  • – इतना ही नहीं, केमिकल रंगों से कभी भी होली नहीं खेलनी चाहिए. इसके लिए रंग खेलने से पहले ही आप अपने दोस्तों को भी यह बता सकते हैं कि केमिकल वाले रंग त्वचा को हानि पहुंचाते हैं.
  • – होली का कोई रंग अगर रगड़ के लगाया गया हो तो ऐसे रंग को साबुन से साफ करने की बजाय फेसवॉश से धोएं, पर धोते समय यह ध्यान रखें कि त्वचा पर लगे रंग को हरगिज रगड़ के न हटाएं. इससे त्वचा को नुकसान हो सकता है. अगर चेहरे की त्वचा पर खुजली महसूस हो रही है तो आप ग्लिसरीन और रोज वाटर को मिलाकर अपने फेस पर लगाएं. थोड़ी देर बाद अपने फेस को गुनगुने पानी से धो लें, आराम मिलेगा.
  • – इंजन ऑयल, डीजल, एसिड, ग्लास पाउडर और क्षार जैसे उद्योग रसायनों का आजकल रंग बनाने में अत्यधिक उपयोग किया जाता है, जो न केवल त्वचा को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि एक्जिमा, त्वचा का लाल पड़ना, छाले, अत्यधिक पपड़ीदार होने जैसी गंभीर चोटों का कारण भी बनते हैं. त्वचा और बालों पर इनके संभावित प्रभावों को कम करने के लिए सावधानी बरतना बहुत ज़रूरी है.
  • – शरीर के साथ-साथ नाखूनों का भी ध्यान रखना जरूरी है. नाखूनों को रंगों के प्रभाव से बचाने के लिए नाखूनों पर नेल पॉलिश लगा लेनी चाहिए. बढ़े हुए नाखूनों को काट लें. होली पर त्वचा को रंगों से बचाने के लिए पूरे बदन को ढकने वाले वस्त्र पहनने का प्रयास करें. इससे शरीर के कम भाग रंगों के प्रभाव में आएंगे.

रंग छुड़ाने में ये घरेलू उपाय भी आजमाएं

  • 1. आप होली के दिन सुबह रंग खेलने से पहले तो पूरे शरीर और बालों में सरसों तेल लगा लें. इससे आपको चिपचिपा महसूस जरूर होगा, लेकिन तेल लगने के बाद रंग अधिक नहीं चढ़ते हैं. साफ करते समय ये आसानी से छूट जाते हैं. साथ ही स्किन को भी कोई नुकसान नहीं होता है. तेल लगाने से ये स्किन पर जिद्दी दाग की तरह नहीं चिपकते हैं. आप बेसन, दूध और नींबू का पेस्ट बनाकर भी स्किन पर अप्लाई कर सकते हैं.
  • 2. नींबू का रस आएगा आपके काम. दरअसल, नींबू एक प्राकृतिक ब्लीचिंग एजेंट है, जो होली कलर्स को आसानी से छुड़ाने में बेहद कारगर साबित हो सकता है. नींबू का एक छोटा टुकड़ा ले लें. इसे हल्के हाथों से चेहरे पर रगड़ें. अब इसे ऐसे ही त्वचा पर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर हर्बल या माइल्ब साबुन से नहाकर मॉइस्चराइजर लगाएं.
  • 3. आप घरेलू उबटन भी आजमा सकते हैं. इससे त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा. बेसन में दही, हल्दी डालकर स्किन पर लगाएं. हल्के हाथों से रगड़ सकते हैं. सूख जाने पर पानी से साफ कर लें. त्वचा मुलायम और साफ नजर आएगी.
  • 4. मुल्तानी मिट्टी भी आप त्वचा को साफ करने के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं. इससे तैयार पेस्ट चेहरे पर अप्लाई करें 10 मिनट बाद पानी से चेहरा साफ कर लें.

ध्यान रखें ये बातें

  • – नेचुरल रंगों का ही उपयोग करें.
  • – होली खेलने से पहले अपने बालों में अच्छी तरह से तेल लगाएं.
  • – शरीर को ठीक से ढक कर ही होली खेलें.
  • – पूरे शरीर की त्वचा पर अच्छी क्वालिटी की क्रीम या तेल लगाएं.
  • – त्वचा पर कहीं जलन महसूस हो, तो रंग तुरंत धो डालें.

होली खेलने के लिए लोग अभी से तैयरियों में लग गए है। लेकिन होली के दिन अक्सर लोगों के अपने स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट्स के पानी और कलर से खराब होने का डर रहता है। वॉच, फोन और ईयरफोन्स ये वो गैजेट्स है जिसे ज्यादातर लोग अपने पास रखते है। आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स और ट्रिक्स बताने जा रहे हैं जिससे आप अपनी होली अच्छे से खेल सकेंगे।

वाटरप्रूफ जिप लॉक बैग्स करें यूज

जब आप होली खेलने जा रहे हो तो इस बात का ध्यान रखें कि आपको पास वाटरप्रूफ जिप लॉक बैग हो। क्योंकि होली खेलते समय अपने फोन को रंग और पानी से बचाने के लिए इसका इस्तेमाल सबसे आसान है। इसके साथ ही आप चाहें तो इस बैग में फोन को रखकर इस्तेमाल भी कर सकते है। इससे आपको टचस्क्रीन सपोर्ट भी मिलता रहेगा। इसके इस्तेमाल से आपका फोन पानी और रंगों से बचा रहेगा।

पोर्ट्स को सील करना ना भूलें

फोन ऐसी चीज है जिसमें छोटे छोटे पोर्ट्स बने रहते है। इन्हें कवर करना बहुत जरूरी है। होली खेलने से पहले अपने फोन और अन्य गैजेट्स को पानी से बचाने के लिए आप उसके ओपन पोर्ट्स जैसे USB पोर्ट, स्पीकर ग्रिल और हेडफोन जैक को सील कर सकते है। सील करने के लिए आप टेप का भी इस्तेमाल कर सकते है। ऐसा करने से फोन या फिर गैजेट्स के इंटरनल कंपोनेंट्स में पानी या गंदगी नहीं जाएगा।

स्मार्टवॉच के लिए करें ये काम

घड़ी पहनना कुछ लोगों की आदत हो जाती है। अगर आपने भी होली में स्मार्टवॉच पहना है तो उसे प्रोटेक्ट जरूर करें। वैसे तो ज्यादातर स्मार्टवॉच या फिटनेस बैंड IP68 रेटेड होते हैं। लेकिन फिर भी हमें सावधानी बरतनी चाहिए। इसके लिए आप स्मार्टवॉच या फिटनेस बैंड को प्रोटेक्ट करने के लिए रिस्टबैंड कवर का इस्तेमाल कर सकते है। अगर आपके पास रिस्टबैंड कवर नहीं है तो आप इसे किसी भी प्लास्टिक बैग में भी रख सकते है।

ईयरबड्स को रंग के दाग से बचाएं

होली के बाद उसका रंग सिर्फ आपपर ही नहीं चढ़ता है। बल्कि आपने उस समय जो गैजेट्स कैरी किया होता है उसपर भी इसका असर दिखता है। फोन के आलावा आप अपने ईयरफोन को बेभी खराब होने से बचा कर रखें। जिससे उसका रंग बेकार ना हो। इसके लिए आप ईयरफोन में ग्लिसरीन या मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल कर सकते है। इसको लगाने के बाद रंग पोंछना आसान हो जाता है।



G News 24 : करप्शन के खिलाफ लड़ने का ढोल पीटने वाले अरविंद केजरीवाल निकले करप्शन किंग !

 भ्रष्टाचार मिटे तो लोकतंत्र पर तानाशाही के दाग अच्छे हैं...

करप्शन के खिलाफ लड़ने का ढोल पीटने वाले अरविंद केजरीवाल निकले करप्शन किंग !

इंडिया अगेंस्ट करप्शन से उदित अरविंद केजरीवाल जो अन्ना आंदोलन के दौरान करप्शन के खिलाफ लड़ने का ढोल पीटकर-पीटकर नेता बने थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो निकले करप्शन किंग जो अब करप्शन के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं. समय कैसे बदलता है कि जिस कांग्रेस के करप्शन के खिलाफ लड़कर अरविंद केजरीवाल नेता बने हैं, आज वही कांग्रेस करप्शन के आरोपों पर उनके साथ खड़ी है. स्वराज से शराब तक का सफर केजरीवाल की पॉलिटिकल स्टोरी बनती दिखाई पड़ रही है. अल्कोहल वाली ड्रिंक का कॉकटेल रोजाना की पार्टियों में अगर पसंद किया जाता है तो करप्शन का कॉकटेल पॉलिटिकल पार्टियों की सबसे पहली पसंद है.

पॉलिटिकल नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार ईडी द्वारा किया जा रहा है वहीं लोकतंत्र का हत्यारा और तानाशाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया जा रहा है. जमानतें अदालतें नहीं दे रही हैं. जेल अदालत के आदेश के कारण जाना पड़ रहा है लेकिन गाली राजनीतिक विरोधियों को शायद इसलिए देना जरूरी है क्योंकि अपने वोटर्स और वर्कर्स में कंफ्यूजन पैदा करना है. 

मंथन हर व्यवस्था और अस्तित्व की सतत प्रतिक्रिया होती है. अमृत मंथन में अमृत और जहर दोनों निकलते हैं. जहर को कंठ में धारण करने वाला कोई ना हो तो जहर के डर से अमृत मंथन ही रुक जाएगा. अमृतकाल में लोकतंत्र को अमृत की दिशा में ले जाने के लिए भ्रष्टाचार से लड़ाई के समुद्र मंथन ने राजनीति की चूलें हिला दी हैं. मोदी विरोधी हर राजनीतिक दल केवल एक ही बात कर रहा है कि नरेंद्र मोदी लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. डरा हुआ तानाशाह मरा हुआ लोकतंत्र बना रहा है. विरोधी नेताओं को टारगेट किया जा रहा है. 

कोई भी दल या नेता यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि शराब घोटाले के मामले में आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह लम्बे समय से जेल में क्यों हैं? उन्हें जेल में ना तो ED ने रखा है और ना ही केंद्र की सरकार की इसमें कोई भूमिका है. इन आरोपियों को अदालतों से जमानतें नहीं मिलना क्या यह नहीं दर्शाता कि अदालतों ने सबूतों के पीछे कुछ सच्चाई झांकी है.

लोकसभा चुनाव के पहले अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर सारे नेता टाइमिंग को लेकर सवाल उठा रहे हैं. छह महीने से लगातार जब जांच एजेंसी पूछताछ के लिए अरविंद केजरीवाल को समन भेज रही थी तो क्या उन्हें पेश नहीं होना चाहिए था? चुनाव के मुहाने पर आते ही उन्होंने जिला अदालत और उच्च न्यायालय का दरवाजा क्या नहीं खटखटाया? अदालत से उन्होंने गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन का अनुरोध क्या नहीं किया? हाईकोर्ट ने तो जांच एजेंसी से सबूत देखने के बाद गिरफ्तारी से प्रोटक्शन देने से मना कर दिया. लोकसभा चुनाव के समय गिरफ्तारी की टाइमिंग तो एक तरीके से केजरीवाल ने खुद निर्मित की है. अगर समन पर पहले ही कानून का पालन कर लिया गया होता तो जो भी कार्रवाई होनी होती कई महीने पहले ही पूरी हो जाती.

भारत की राजनीति सहानुभूति पर चलती रही है. सहानुभूति के सहारे इस देश में राजनीतिक दलों ने 400 से ज्यादा लोकसभा की सीट भी जीती हैं. राजनीति की यही सोच शायद विरोधी दल के नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों में स्वयं को विक्टिम के रूप में दिखाकर चुनावी लाभ लेने की रणनीति होगी.

नरेंद्र मोदी और बीजेपी को इतना राजनीतिक नासमझ तो किसी को भी नहीं समझना चाहिए कि चुनावी मौके पर विरोधी नेताओं को सहानुभूति लेने का मौका उनके द्वारा जानबूझकर दिया जाएगा. जांच एजेंसियों को काम करने की स्वतंत्रता देना, लोकतंत्र पर लगे भ्रष्टाचार के दाग को मिटाने की गारंटी के रूप में देश देख रहा है. भ्रष्टाचार पहले भी होते थे लेकिन संविधान का संरक्षण प्राप्त करने वाले पदों पर बैठे लोग कभी यह सोचते भी नहीं थे कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा. झारखंड के मुख्यमंत्री को भी जेल जाना पड़ा है. मुख्यमंत्री की जेल जाने की परम्परा लालू यादव से शुरू हुई थी. अब तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग ही करप्शन में जेलों तक पहुंच रहे हैं.

यह केवल राजनीतिक जगत में ही हो सकता है कि लोकतंत्र के अपराधी भ्रष्टाचार के आरोपियों द्वारा दूसरे दलों से हाथ मिलाकर लोकतंत्र को ही चुनौती देना शुरू कर दें. कोई भी मुख्यमंत्री अपने राज्य में राजा जैसा व्यवहार और जीवनयापन करता है. जब उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार होना पड़ता है तो ना तो उसके समर्थक सहयोगी और ना ही परिवारजन इन परिस्थितियों की कल्पना करते हैं. 

अरविंद केजरीवाल का शराब घोटाले का मामला कई वर्षों से जांच प्रक्रिया में चल रहा है. अभी-अभी गठबंधन में आम आदमी पार्टी के राजनीतिक दोस्त बने कांग्रेस के नेताओं के पुराने वीडियो सोशल मीडिया पर चिल्ला चिल्ला कर अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचारी और शराब घोटाले में रिश्वत लेने का आरोपी बता रहे हैं. यही राजनीतिक चेहरे गिरफ्तारी के बाद चिल्ला-चिल्ला कर केजरीवाल का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे राजनीतिक चेहरों का लोकतंत्र में सक्रिय राजनीति में रहना ही लोकतंत्र की हत्या है. लोकतंत्र के भविष्य को मौत के घाट उतारना है.

अरविंद केजरीवाल दोषी या निर्दोष ना तो किसी सरकार के कारण साबित होंगे ना किसी जांच एजेंसी के पुख्ता सबूतों के बिना साबित होंगे. उन्हें तो अदालतों का सामना कर अपने को निर्दोष साबित करना होगा. जब तक वह निर्दोष साबित नहीं होते हैं, तब तक उन्हें लोकतंत्र की नैतिकता का पालन करना होगा. चुनावी राजनीति के लिए लोकतंत्र की नैतिकता को बलिदान करने वाली राजनीति को भारत शायद अब बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.

नया भारत बदल चुका है. सोने की चिड़िया भारत को लूटकर अंग्रेजों ने तो अपना पेट भरा ही था. आजादी के बाद राजनीतिक दल और नेताओं ने भी सोने की अपनी लंका बनाई है. यह लंका बहुत लंबे समय तक छिपी रही, अगर कहें तो पक्ष-विपक्ष की राजनीतिक सांठ-गाँठ से उसे दबाया और छुपाया गया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कुछ भी छिपाना संभव नहीं है.

राजनीतिक भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है. कोई राजनेता अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है, जिनके पास से करोड़ों रुपए बरामद हुए हैं वह भी अपना गुनाह स्वीकार नहीं करते. उसके लिए भी राजनीतिक आरोप लगाए जाते हैं. पूरी राजनीतिक व्यवस्था कालेधन और भ्रष्टाचार पर आधारित हो गई है. चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च सीमा के अंतर्गत एक भी विधायक या सांसद अपना चुनाव नहीं लड़ सकता. राजनीति के क्षेत्र में कालेधन का निवेश किसी की आंखों से छुपा नहीं है लेकिन एक दूसरे की पीठ सहलाते हुए भ्रष्टाचार के मामले में अब तक आंखें बंद रखी गईं.

भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चुका है. तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की कदमताल चल रही है. सरकारी सिस्टम से लीकेज की संभावनाएं अगर समाप्त कर दी जाए तो तीसरी तो क्या इससे भी आगे भारत की अर्थव्यवस्था बिना समय गवाएं खड़ी हो सकती है. भ्रष्टाचार के मामले में निर्णायक फैसलों और निर्णायक नीतियों की देश को लंबे समय से प्रतीक्षा थी. किसी भी प्रधानमंत्री को गाली तो अच्छी नहीं लगती होगी. लोकतंत्र के जहर भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए लोकतंत्र के हत्यारे, तानाशाह और ना मालूम ऐसे कितने जहर का घूँट पीने की क्षमता रखने वाला नेतृत्व ही लोकतंत्र के अमृत को सही दिशा दे सकता है.

भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को करप्शन के गठबंधन के कॉकटेल द्वारा लोकतंत्र विरोधी बताकर चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में कोई कमी नहीं रखी जायेगी. करप्शन की शराब का नशा पहले से इतना चढ़ा हुआ है कि इसे उतार कर ऐसे लोगों को जमीन पर चलने के लिए मजबूर करना इतना आसान नहीं होगा. जो नेता इसके लिए नीलकंठ बन रहा है उसमें इतनी क्षमता, नैतिकता, नियत और साहस के साथ इतना जनविश्वास तो कम से कम है कि वह बिना डरे बिना झुके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.

भारत अगर यह लड़ाई जीतेगा तो लोकतंत्र चमकेगा. लोकतंत्र की दीमक खत्म हो जाएगी. लोकतंत्र की ज्योति और उसका प्रकाश देश के हर घर तक प्रज्ज्वलित होगा. राजनीति के नए दौर को नई नजरों से देखने की जरूरत है. लोकतंत्र का इम्यून सिस्टम सुधारने की जरूरत है. इसके लिए लोकतांत्रिक तानाशाह के दाग भी भारत के लिए अच्छे ही होंगे.

G News 24 : आखिर कहां से आते हैं ऐसे लोग जो पाक और पवित्रता दोनों में अंतर नहीं कर पाते हैं !

 रमजान का पाक महीना और उसमे भी ...

आखिर कहां से आते हैं ऐसे लोग जो पाक और पवित्रता दोनों में अंतर नहीं कर पाते हैं !

जब जावेद और साजिद पड़ोसी विनोद के घर पहुंचे, तब तक इफ्तार का वक्त हो चुका था। रमजान के महीने में शाम होते ही, इफ्तार का वक्त हो गया है, ऐसा हर किसी ने कभी ना कभी सुना होगा। और मन में एक सम्मान सा भाव जाग जाता होगा, क्योंकि यह किसी की आस्था का विषय है। सम्मान नहीं जागता होगा तो कम से कम मन में उदासीनता ही रहती होगी। लेकिन घृणा भाव तो नहीं ही आता होगा। इफ्तार का वक्त हो गया है, यह बोलना ही अपने आप में एक कंपलीट कांसेप्ट है। बोलने वाले बड़ी मजबूती से बोलते हैं और समझते हैं कि वह क्या बोल रहे हैं। सुनने वाले इसे रिलिजियस प्रेक्टिस समझकर आगे बढ़ जाते हैं। सनातन में व्रत पूरा होने पर कोई फल, तुलसी पत्र अथवा गंगाजल ग्रहण करने की विधि होती है। लेकिन इस्लाम में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। इफ्तारी करनी है तो उसमें सब जायज है। 

लोगों एवं आरोपी की दादी के अनुसार बदायूं  वाले साजिद के मामले में एक एंगल जादू टोने का भी निकलकर सामने आ रहा है, जावेद  दादी के अनुसार बचपन से साजिद पर किसी जादू टोने का असर था जिसके कारण वो  बीमार रहता  था और बचपन से ही अग्रेसिव दिमाग वाला था। अब इन्ही बातों को आधार माने तो साजिद ने इसी कटटरता वाली मानसिकता  और अंधविश्वास  के कारण पड़ोसी हिंदू विनोद के दोनों बच्चों का गला रेता और उनका  रक्त पीकर इफ्तारी कर लिया। बच्चों की मां चाय बना कर लाने गई थी और जब चाय बना कर आई तो देखती है कि चाय की जगह आरोपी के मुंह से तो उसके बच्चों  का खून लगा है ! इसके अलावा दो-दो हत्यायें करने के बाद घर से निकलते वक्त हत्यारे का ये बोलना कि मैने तो अपना काम कर लिया इसकी पूरी तरह पुष्टि करता है कि जावेद किस मानसिकता वाला व्यक्ति था। 

जावेद और साजिद भी इंसान ही है। दिखने में कोई दानव नहीं लग रहा। बिल्कुल आम मानव की तरह। जैसे लोग बोलते हैं, हिंदू मुसलमान में भेद कैसा ? दोनों के शरीर में रक्त का रंग लाल ही होता है। लेकिन रक्त का रंग देखने वालों को रक्त का चरित्र नहीं दिखता है। पाक और पवित्रता दोनों में अंतर है। पवित्रता का अर्थ गंगाजल ग्रहण करना होता है, पाक वाले हिन्दुओं के रक्त पिपासु होते हैं !

इस्लाम का उदय जब हुआ था तब रमजान का ही महीना था, और जब सबसे पहला युद्ध बदर का युद्ध लड़ा गया था तब भी रमजान का ही महीना था। और मक्का के एक पूरी जनजाति को कत्लेआम के बल पर इस्लाम स्वीकार करवाया था, 624 ईस्वी में। कुछ वर्ष बाद मक्का पर कब्जा किया था, रमजान का ही पाक महीना था।

रमजान का ही महीना था जब 1946 में डायरेक्टर एक्शन किया गया। 17 वां दिन‌ चल रहा था रमजान का और कलकत्ता में इश्तिहार दिया गया- हमलोग रमजान के महीने में जिहाद शुरू करने जा रहे हैं, अल्लाह की मर्जी से हिन्दुस्तान को दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक मुल्क बनाने में कामयाब होंगे, ऐ काफिरों! अब तुम्हारा वक्त आ गया है, अब कत्लेआम होगा।

कत्लेआम का मंजर कुछ ऐसा था कि पहले 72 घंटे में 6000 हिन्दुओं के कत्ल कर दिए गये। उनके घर के स्त्रियों के साथ वस्तुओं की तरह पशुवत व्यवहार किया गया। रमजान का पाक महीना कहने के यही निहितार्थ अब तक इस्लामिक इतिहास से प्रदर्शित हुआ है। 

वैसे तो मोहम्मद साहब के बताए रास्ते पे चलना‌ ही पवित्र और पाक इस्लाम है। लेकिन कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों के लिए तो तमाम कत्लेआम वाला ही असली इस्लाम है, उनके लिए तो काफिरों का रक्त बहाना भी इस्लाम है। और ये उनके लिए बड़ा पाक काम है।

G News 24 : जनसेवा की कसमें खाते हैं पैरों गिरते हैं और जीतने के बाद इसी जन के पैसे पर एस करते हैं !

 राजनीति में कितना पैसा और पावर है यह सभी समझते हैं इसे हासिल करने लोग नेता बन जाते हैं ...

जनसेवा की कसमें खाते हैं पैरों गिरते हैं और जीतने के बाद इसी जन के पैसे पर एस करते हैं !

राजनीति में कितना पैसा और पावर है यह सभी समझते हैं। यही कारण है कि इसके लिए राजनेता चुनावों के दौरान वो सब करते हैं या पूरा करने का आश्वासन देते हैं जो वोटर इनसे कहता है। वोट पाने के लिए तो ये नेता वोटर के चरणों में भी नतमस्तक होने से परहेज नहीं करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वही नेता जिस वोटर के पैर छूता है उससे पैर छूआने का काम भी करता है। 

मेरा फिर वही सवाल है और यह सवाल किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी से नहीं बल्कि आम वोटर से है वह जिस नेता को वोट देता है और अपने मत का दान करके उसे अपने प्रतिनिधि के रूप में सदन में भेजता है। लेकिन चुनकर भेजे गए ये नेताजी अपने वादे भूल कर कमाई करने में जुट जाते हैं। ऐसे में जब ये नेता अपनी ड्यूटी ईमानदारी से नहीं करते हैं तब जनता को भी यह अधिकार होना चाहिए कि ऐसे जनप्रतिनिधियों को जिन्हें चुनकर उसने सदन में भेजा था, उन्हें  वापस रिकॉल करने का अधिकार भी उसे मिलना चाहिए। 

क्योंकि ये नेता जब जनसेवा और समाज सेवा के नाम पर चुनकर सदन में पहुंच जाते हैं तो समाज सेवा के नाम पर जिन संसाधनों  का उपयोग करते हैं। सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, इन संसाधनों में आवास,वाहन, रेल, हवाई यात्रा, वाहनों की सुविधा, सेवा-सफाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी सभी सुविधा फ्री हैं। इन सेवाओं का लाभ उठाते हैं। 

यानि कि सेवा के बदले सेवा ! तो फिर सैलरी क्यों लेते हैं? क्योंकि सेवा के बदले सैलरी नहीं मिलती है। और नेता यदि सैलरी ले रहा है तो फिर वह सेवा नहीं कर रहा, बल्कि राजनीतिक नौकरी कर रहा है क्योंकि सैलरी तो नौकरी करने पर ही मिलती है। और नौकरी करने वाला एक कर्मचारी होता है जो एक निश्चित आयु तक नौकरी कर सकता है नौकरी के पश्चात उसे केवल पेंशन मिलती है।

अन्य सुविधाएं वह अपने पैसे से जुटाता है इसी प्रकार इन नेताओं की भी रिटायरमेंट की एक समय सीमा होना चाहिए, और जब ये सक्रिय राजनीति और सदन से बाहर हो जाते हैं तब इन्हें केवल सिंगल पेंशन ही मिलनी चाहिए। इसके अलावा अगर ये सुरक्षा आवास जैसी अन्य सुविधाओं का लाभ लेते हैं तो इन सुविधाओं पर होने वाले खर्च की भरपाई भी इनसे ही की जानी चाहिए। वैसे भी अधिकतर नेता जब तक सदन के सदस्य रहते हैं उस दौरान लाखों-करोड़ों के बारे न्यारे कर लेते हैं। इसलिए इनके रिटायरमेंट के बाद इन्हें पेंशन के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की सुविधा एवं संसाधन उपलब्ध कराने का कोई औचित्य ही नहीं है।

नेताजी जिन सुविधाओं और संसाधनों का उपभोग करते हैं उस खर्च की भरपाई जनता के पैसे से ही होती है और यह पैसा जनता से टैक्स के रूप में लेकर सरकारी खजाने में जमा होता है। कई लोगों का कहना है कि टैक्स तो गिने चुने लोग देते हैं लेकिन मैं यहां स्पष्ट कर देना चाहती हूं की टैक्स देश का प्रत्येक नागरिक देता है। हां कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से टैक्स देते हैं और कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स देते हैं । देश का हर एक वह व्यक्ति जो एक माचिस की डिब्बी भी खरीदना है तो टैक्स देता है। और बीएमडब्ल्यू खरीदने वाला भी टैक्स पेयर है। इसलिए कभी किसी को ये गुरुर नहीं होना चाहिए कि फलां व्यक्ति टैक्स देता है और फलां टैक्स नहीं देता है। किसी को भी इस मामले में हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि जो सुविधा सामान्य कर्मचारियों को नहीं मिलती उनसे बढ़कर के सुविधाएं नेताजी  लेते हैं। सरकार की तरफ से बिजली, पानी,गाड़ी,बंगला यहां तक की गाड़ियों में डालने वाला पेट्रोल, रेल, हवाई जहाज की फ्री यात्रा का लाभ इन्हें क्यों मिलना चाहिए ? क्योंकि जब कोई कर्मचारी नौकरी से रिटायर्ड हो जाता है तो वह भी अपने स्वयं के खर्चे पर अपने संसाधन जुटाता है तो फिर इन राजनेताओं को इन संसाधनों को क्यों उपलब्ध कराया जाता है ? 

हजारों करोड़ का चंदा लेने वाली इन राजनीतिक पार्टियों को अपने उन नेताओं के वेतन भत्तों का खर्च स्वयं उठाना चाहिए जो जन प्रतिनिधि कहलाते हैं क्योंकि जब ये सत्ता से बाहर हो जाते हैं और जनता के लिए सरकार के बीच रहकर जब कोई काम ही नहीं करते तो फिर सरकार इनके आवास सुरक्षा आदि जैसे खर्च बहन क्यों करें। क्योंकि ये कोई समाज सेवक तो है नहीं, ये तो सरकार में रहकर नौकरी करते हैं और नौकरी के बदले लाखों रुपए सैलरी लेते हैं। जिस प्रकार एक सरकारी कर्मचारी सैलरी लेता है। यह सब बंद होना चाहिए।

जिस प्रकार कर्मचारियों के रिटायरमेंट की एक निश्चित सीमा होती है उसी प्रकार राजनेताओं के रिटायरमेंट की भी एक समय सीमा होनी चाहिए -दिव्या सिंह 

G News 24 : समय रहते जाग जा बंदे,समय का घोड़ा बिना लगाम !

 विश्वास नहीं करते हो, व्यर्थ गंँवाते मन और प्राण...

समय रहते जाग जा बंदे,समय का घोड़ा बिना लगाम !

सात मंजिला देह मिली है,

सात चक्रों से सजा मकान ।

क्यों विश्वास नहीं करते हो ,

व्यर्थ गंँवाते मन और प्राण।

                                    मूलाधार स्थान शक्ति का,

                                    कुंँडली मारे लिपटा सांँप ।

                                    ध्यान साधना से फुंँफकारे,

                                    ऊर्जा चढ़ती फिर सिरतान।

छह पंँखुड़ियां का दल पंकज,

स्वाधिष्ठान है चक्र महान।

आत्मविश्वास से भर देता,

जब जगता करता उत्थान।

                                    पीत वर्ण मणिपुर चक्र है ,

                                    जगा दे संपदा अपार ।

                                    कमल है दस पंँखुड़ी वाला ,

                                    जो है जगाता दृढ़ विश्वास।

हृदय चक्र मध्य छाती के,

प्रेम भाव बढाता जात

मन भँवरा शांत हो जाता,

प्रकृति से जुड़ जाता भाव।

                                    चक्र विशुद्धि कंठ स्थान,

                                    करे निडर निर्भय यह जान।

                                    आठों सिद्धि नवनिधियाँ,

                                    सात सुरों का उद्गम स्थान ।

मैं कौन हूं ?का उत्तर देता,

है शिव नेत्र कहे पुराण।

कुंडली, सहस्रार, सुषुम्ना,

त्रिवेणी संगम  सा स्थान।

                                    सहस्त्रार मोक्ष का मार्ग है,

                                    पूर्ण साधना परम विश्राम।

                                    परम मिलन शिव शक्ति का,

                                    परम समाधि मुक्तिधाम।

 समय रहते जाग जा बंदे,

समय का घोड़ा बिना लगाम।

अंत समय न पछतायेगा,

सात मंजिला सजा मकान।

G News 24 : AI फेक न्यूज फैलाकर आसानी से सेकेंडों में खड़ी कर सकता है हार-जीत के लिए समस्या !

 लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव निष्पक्ष करवाने में अब एक नई दिक्कत से हो सकता है सामना ...

AI फेक न्यूज फैलाकर आसानी से सेकेंडों में खड़ी कर सकता है हार-जीत के लिए समस्या !  

लोकसभा चुनाव 2024  के चुनाव प्रचार में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. नई टेक्नोलॉजी अपनाने के मामले में अभी तक भारतीय जनता पार्टी बाकी पार्टियों से आगे निकल चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी टेक्नोलॉजी के मामले में सबसे आगे हैं. बीजेपी पीएम मोदी के भाषणों को आठ अलग-अलग भाषाओं में बदलने के लिए AI का इस्तेमाल कर रही है. सोशल मीडया पर बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, ओडिया और मलयालम जैसी भाषाओं में भी पीएम मोदी का भाषाण सुना जा सकता है. दिसंबर 2023 में उत्तर प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदी भाषण का तमिल में अनुवाद करने के लिए एक खास AI टूल का इस्तेमाल किया गया था. ये टूल असली समय में काम करता है, यानी भाषण होते वक्त ही अनुवाद कर देता है.

चुनाव में AI: वोटरों को लुभाने का नया हथियार !

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसे हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहते हैं. ये एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को सोचने और समझने की क्षमता देती है. चुनाव में एआई का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.

एआई राजनीतिक दलों को वोटरों को बेहतर तरीके से समझने और उन्हें आकर्षित करने में मदद करता है. चुनाव प्रचार अभियान को ज्यादा प्रभावी और असरदार बना सकता है. वोटों की गिनती को सीधे देखने (रियल-टाइम) जैसी चीजें भी एआई की मदद से हो सकती हैं. हालांकि नुकसान ये है कि एआई का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने के लिए भी किया जा सकता है. जैसा कि फेक वीडियो बनाने वाली दीपफेक टेक्नॉलोजी से हो रहा है. 

चुनाव में AI का कहां-कहां हुआ इस्तेमाल

हाल ही में पाकिस्तान के आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने उनके नए भाषणों में उनकी आवाज की कॉपी करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया, जबकि खुद इमरान खान जेल में बंद थे. इसी साल जनवरी में बांग्लादेश के चुनाव में उल्टा हुआ. वहां विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार समर्थक लोगों ने गलत काम के लिए एआई का इस्तेमाल किया. विपक्ष को नीचा दिखाने के लिए बनावटी वीडियो (दीपफेक) बनाए.

चीन और रूस पर ये आरोप लगा है कि वो दूसरे देशों के चुनाव को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं, खासकर ताइवान में. जनवरी 2024 में ताइवान के चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर उम्मीदवार त्सई इंग-वेन के बारे में झूठे यौन आरोपों वाली एक 300 पन्नों की ई-बुक वायरल की जा रही थी.

पहले तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि आजकल सोशल मीडिया पर रिपोर्टिंग के जमाने में कोई फर्जी किताब क्यों छापेगा. फिर जल्द ही इंस्टाग्राम, यूट्यूब, टिकटॉक और दूसरे प्लेटफॉर्म पर ये देखने मिला कि AI की मदद से बनाए गए अवतार उस किताब के अलग-अलग हिस्से पढ़ रहे हैं. ताइवानी संस्था डबलथिंक लैब के प्रमुख शोधकर्ता टिम निवेन ने अपनी जांच में बताया कि ये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का काम है.

चुनाव प्रभावित कर सकता है AI

दुनियाभर के बड़े संगठन मानते हैं कि अगले दो सालों में सबसे बड़ा खतरा फेक न्यूज है जिन्हें बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये फेक न्यूज लोगों को आपस में लड़ा सकते हैं. इस टेक्नॉलजी से बड़े-बड़े लोग भी चिंतित हैं, जैसे गूगल के पूर्व CEO और OpenAI के फाउंडर. उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को रोकने के लिए काफी नहीं किया जा रहा है, जिससे आने वाले चुनाव काफी गड़बड़ हो सकते हैं.

पहले हम अखबारों और टीवी से खबरें पढ़ते-देखते थे. अब फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी चीजों पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लिया जाता है. इन पर फेक न्यूज यानी झूठी खबरें बहुत तेजी से फैलती हैं. एक सर्वे में 87 फीसदी लोगों ने माना है कि ये फेक न्यूज ही चुनाव को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं.

ये नई टेक्नॉलजी हमारी पसंद और नापसंद को समझकर ऐसी खबरें दिखा सकती है जिन्हें हम सच मान लेंगे. इसका इस्तेमाल किसी नेता की छवि खराब करने के लिए भी किया जा सकता है. उनके गलत बयान तैयार किए जा सकते हैं या उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा सकता है. 

इस टेक्नॉलजी की वजह से चार तरह की दिक्कतें ज्यादा हो गई हैं

ये फेक न्यूज सिर्फ लिखावट में ही नहीं बल्कि वीडियो और आवाज में भी हो सकती है, जिन्हें असली समझना बहुत मुश्किल है. इस टेक्नॉलजी की वजह से चार तरह की दिक्कतें ज्यादा हो गई हैं- पहले से कहीं ज्यादा फेक न्यूज फैलाई जा सकती हैं, ये फेक न्यूज इतनी अच्छी बनाई जा सकती हैं कि असली लगें, हर किसी को उनकी पसंद के मुताबिक फेक न्यूज दिखाई जा सकती हैं और ऐसे फेक वीडियो बन सकते हैं जो सच लगें, पर असल में हों ही नहीं.

चुनाव के समय जनता को लुभाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बाढ़ आ जाती है. ये एक गंभीर विषय है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की चीजों का गलत इस्तेमाल चुनाव को गलत दिशा में ले जा सकता है. चुनाव में उम्मीदवार के हार-जीत के नतीजों पर बड़ा असर पड़ सकता है. अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है, पर चिंता है कि भविष्य में AI का इस्तेमाल मतगणना में गड़बड़ी करने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निष्पक्ष चुनाव करा पाना संभव हो पाएगा ? AI के ये टूल इतने बढ़िया होते हैं कि ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि असल में ये गलत काम किसने किया. ये सबसे बड़ी चिंता है, क्योंकि एआई की वजह से सच और झूठ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है.

गूगल ने चुनाव आयोग से की पार्टनरशिप

चुनाव में लोगों को सही जानकारी मिले इसके लिए गूगल ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है. अब यूट्यूब और गूगल सर्च पर चुनाव से जुड़ी जरूरी जानकारी (जैसे- वोटर रजिस्ट्रेशन और वोट कैसे डालें) आसानी से मिल सकेगी. साथ ही गलत जानकारियों को फैलने से रोकने के लिए गूगल खास तकनीक (AI) का इस्तेमाल कर रहा है. इसके अलावा चुनाव से जुड़े विज्ञापनों को दिखाने के लिए भी गूगल सख्त नियम लागू कर रहा है.

चुनाव में फर्जी खबरें रोकेगा गूगल 

गूगल ने चुनाव में फर्जी खबरों को फैलने से रोकने के लिए एक नया दल (कोलिशन) ज्वाइन किया है. इस दल का नाम है कोएलिशन फॉर कंटेंट प्रोवीनेंस एंड ऑथेंटिसिटी (सी2पीए). इससे पहले भी गूगल ने 'गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव ट्रेनिंग नेटवर्क' और 'फैक्ट चेक एक्सप्लोरर टूल' जैसी चीजें शुरू की थीं, ताकि पत्रकार सही खबरें लोगों तक पहुंचा सकें और गलत खबरों का पर्दाफाश कर सकें. जल्द ही यूट्यूब पर वीडियो बनाने वाले लोगों को ये बताना जरूरी होगा कि उन्होंने जो वीडियो बनाया है वो असल है या नहीं. साथ ही यूजर्स को भी ये पता चलेगा कि ये असली नहीं है क्योंकि यूट्यूब खुद ही वीडियो पर लेबल लगाएगा. यानी गूगल इस बात को पक्का करना चाहता है कि चुनाव के दौरान लोगों को सिर्फ सही जानकारी मिले, न कि कोई फर्जी वीडियो या फोटो उन्हें गुमराह कर दे.

चुनाव में AI के इस्तेमाल ने दुनिया की बढ़ा दी है चिंता 

साउथ एशिया के चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल एक नया चलन है, मगर ये थोड़ा खतरनाक भी हो सकता है. पूरी दुनिया में एआई के गलत इस्तेमाल की चिंता बढ़ रही है, क्योंकि अभी तक कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बना है जो ये बताए कि एआई का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, किस सीमा तक कर सकते हैं. 2024 में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, रूस, ताइवान और साउथ अफ्रीका समेत 50 से ज्यादा देशों में चुनाव होने हैं, जिनमें करीब 400 करोड़ लोग वोट डालने के लिए तैयार हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ को भी ये चिंता है कि चुनाव में एआई का गलत इस्तेमाल हो सकता है. अमेरिका में एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि वहां के 60% टीनएजर्स (युवा) चार या उससे ज्यादा गलत खबरों को सच मान लेते हैं. वहीं, बड़ों में ये संख्या 49% है. इसका मतलब है कि युवाओं को फेक न्यूज़ और गलत जानकारियों पर जल्दी यकीन हो जाता है.

फेक खबर फैलाने वालों के खिलाफ क्या है कानून !

अभी तक भारत में कोई खास कानून नहीं है जो सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डीपफेक टेक्नोलॉजी को ध्यान में रखकर बनाया गया हो और जो सीधे ऐसे फर्जी वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को सजा दे सके. मौजूदा कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति पर तब तक कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक कि वो गलत सूचना देश की सुरक्षा, एकता या अखंडता के लिए खतरा न हो या किसी की बदनामी न करे.

अगर कोई व्यक्ति किसी नेता की नकली आवाज या वीडियो बनाकर झूठी खबर फैलाता है, तो उस पर पुराने कानून जैसे भारतीय दंड संहिता (1860) या आने वाले नए कानून भारतीय न्याय संहिता (2023), इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (2000) और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम, 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है. देश दुनिया में हर नई टेक्नॉलोजी आने पर ये सवाल हमेशा उठता है कि आखिर इसका इस्तेमाल अच्छा होगा या बुरा. कुछ लोग एआई से घबराते हैं, वहीं कुछ को लगता है ये बहुत फायदेमंद भी हो सकता है.


G News 24 : इंसान पानी की एक्सपायरी डेट समय और उपलब्धता देखकर करता है तय !

हमारी कमजोर बुद्धिके हिसाब से तय होती है पानी की समाप्ति डेट...

 इंसान पानी की एक्सपायरी डेट समय और उपलब्धता देखकर करता  है तय !

  • जहां नल में पानी हर दिन आता है। वहीं पानी हर दिन बासी हो जाता है और वहां समाप्ति तिथि 1 दिन
  • जहां 2 दिन में पानी आता है।वहां 2 दिन में पानी बासी हो जाता है। और बहा दिया जाता है।
  • जहां आठ दिन बाद पानी आता है। वहीं आठ दिन बाद पानी बासी हो जाता है।
  • शादी समारोह में अगली बिसलरी का सामना होते ही हाथ में रखी पानी की आधी बोतल खत्म हो जाती है। और उसे फेंक दिया जाता है 
  • रेगिस्तान में यात्रा करते समय अपने पास रखा पानी तब तक चलता है, जब तक पानी दिखाई न दे.
  • बांध में पानी अगले मानसून तक ताजा बरकरार रहेगा
  • यदि सूखे की स्थिति बनती है। तो यह दो से तीन साल तक ताजा पानी बना रहता है.
  • जहां 50 फीट के बोरवेल से पानी निकाला जाता है। वह जमीन के नीचे सैकड़ों साल पुराना है।
  •  यानी सैकड़ों साल पुराना पानी पीने के लिए सुरक्षित है। एक्सपायरी डेट सैकड़ों साल
  • जहां 400 से 500 फीट पर पानी के बोरवेल से पानी निकाला जाता है।वह हजारों साल तक जमीन के अंदर जमा रहता है। फिर भी चलता रहता है।
कुल मिलाकर पानी की समाप्ति हमारी कमजोर बुद्धि पर तय होती है,पानी का संयम से उपयोग करें, नहीं तो आपके विचार आपको मार डालेंगे,जल है तो कल है।

G.NEWS 24 : नेता बोलते हैं कि,हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई सफर करेगा,लेकिन वास्तविकता सभी जानते हैं !

हवाई अड्डे के उद्घाटन में झूट बोल कर लाई गई सैकड़ों हवाई चप्पल वाली सैकड़ो महिलाएं...

नेता बोलते हैं कि,हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई  सफर करेगा,लेकिन वास्तविकता सभी जानते हैं !

देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा रविवार को 15 हवाई अड्डों का उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से वर्चुअल उद्घाटन किया गया। देश के विभिन्न हिस्सों में उद्घाटन के अवसर पर इन हवाई अड्डों के उद्घाटन स्थल पर लाई गई भीड़ में अधिकतर ग्रामीण पिछड़ी बस्तियों के लोग देखने को मिले। ऐसा ही एक नजारा ग्वालियर के हवाई अड्डे के उद्घाटन अवसर पर देखने को मिला यहां ज्यादातर भीड़ महिलाओं की थी। क्षेत्रीय नेताओं द्वारा पिछड़ीं दलित बस्तियों से पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं छुटभैया नेताओं के द्वारा  इन महिलाओं को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं आदि के माध्यम से भीड़ बढ़ने के लिए स्कूली बसों में भर भर के लाया गया था। 

इन हवाई अड्डों के उद्घाटन अवसर पर कायदे से तो उन लोगों को उद्घाटन स्थलों पर पहुंचना चाहिए था, जो हवाई सेवाओं का लाभ लेते हैं, हवाई जहाज में सफर करते हैं, लेकिन इस अभिजात्य वर्ग की संख्या को देखा जाए तो तो यह संख्या उन लोगों के मुकाबले बेहद ही कम दिखाई दी, जो लोग इस आयोजन में शामिल होने पहुंचे थे। और जो लोग इस उद्घाटन समारोह में शामिल हुए उनमें ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के महिला पुरुष मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा दिखाई दिए। 

अब सोचने वाली बात ये है की पैरों में हवाई चप्पल पहनने वाली ये महिलाएं यह पुरुष आखिर हवाई अड्डे के उद्घाटन समारोह में क्यों लाए गए थे ? क्या इन्हें सिर्फ हवाई पट्टी दिखाने के लिए लाया गया था ? क्योंकि हवाई अड्डे की बिल्डिंग के अंदर तो इन्हें आज भी नहीं जाने दिया गया। आज भी इन्हें कार्यक्रम स्थल से ही वापस रवाना कर दिया गया, तो फिर इस दिन के बाद तो इन्हें हवाई अड्डा कैंपस के भीतर पैर भी नहीं रखने दिया जाएगा। क्या कभी ये हवाई जहाज का सफर कर सकेंगे ? 

वैसे कहने और सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि अब हवाई जहाज से हवाई चप्पल पहनने वाला भी सफर कर सकेगा लेकिन वास्तविकता सभी जानते हैं। कि जिसके पास अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रोजगार नहीं है, पैसा नहीं है,तो ऐसे में वह हवाई सफर कैसे करेगा ? इनका कहना है कि हवाई सफर के बारे में तो ये सोच भी नहीं सकते हैं।

इस भीड़ का हिस्सा बनने के लिए यह लोग अपनी किसी न किसी मजबूरी के चलते यहां आने पर विवस हुए, जब इनसे कार्यक्रम में आने का कारण पूछा गया तो इन्होंने बताया कि कि इन्हें बताया गया था कि यहां पर मुख्यमंत्री जी उनके खातों में पैसा डालेंगे। उन्हें विभिन्न योजनाओं का लाभ देंगे। ये अनपढ़ और सीधे-साधे, भोले-भाले लोग उन छुटभैया नेताओं की बातों में आकर के इस भीड़ का हिस्सा बन गए जो अपने नेता के लिए किसी भी तरीके से भीड़ बढ़ाने का काम करते हैं। लेकिन जब इन्हें यहां आकर के वास्तविकता पता चली तो ये महिलाएं और पुरुष इन नेताओं को गरियाते हुए देखे गए।

इस सबके बावजूद आयोजन स्थल पर मुख्य डम के अतिरिक्त अगल-बगल बनाए गए दोनों दो अन्य डोम एवं इन डोमस के बाहर लगी ज्यादातर कुर्सियां खाली ही दिखाई दी।

- दिव्या  सिंह

G.NEWS 24 : अनंत अम्बानी की विनम्रता और सनातन के प्रति आस्था का जवाब नहीं !

एक समय था जब अनन्त अंबानी का खूब मजाक उड़ाया गया था लेकिन...

अनंत अम्बानी की विनम्रता और सनातन के प्रति आस्था का जवाब नहीं !

भारत के सबसे अमीर व्यक्ति का बेटा गुजरात में सगाई कार्यक्रम में एक बुजुर्ग के हाथों से कुछ छुट्टे पैसे इतने विनम्र भाव से ले रहा था और जैसे ही उस माता ने सर पर हाथ रखे उसमें पूरा झुक गया। यह बात सामान्य नहीं है, एक इंटरव्यू में अनन्त ने सनातन जीवन को कितना मानवीय रूप में प्रस्तुत किया वह देखकर में दंग था कि आखिर दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बैठे व्यक्ति का बेटा अपनी सनातनी  जड़ों से कितनी गहराई से जुड़ा है वाकई बहुत आनंद आया यह देखकर, अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में पहुंचना यह बंदा अपने जीवन का सबसे खुश दिन बताता है, बहन को माँ समान बताता है भाई को राम सामान बताता है। 

मतलब जिस व्यक्ति का सगाई के समय सिर्फ हेल्थ इश्यू पर मजाक उड़ाया गया था वही अनन्त और उसका विवाह आज पूरे देश के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक सीख बन गया की ऊंचाई कितनी ही छूलो लेकिन अपनी सनातनी जड़ों से पैर मत उखड़ने दो। खास कर  उन लोगों के लिए तो बहुत बड़ी सीख है जो चार पैसे आते ही सनातनी तीज-त्यौहार, परंपराएं, जीवन, मंदिर, धर्म, देवता सबको मजाक समझने लगते हैं और खुद को बड़ा होशियार चंद समझने लगते हैं असल में ऐसे लोग छोटे से गड्ढे होते हैं जो एक लोटा पानी आते ही उभरा जाते हैं लेकिन जो सागर होते हैं उसमें कितना ही पानी आए जाए उसको फर्क नहीं पड़ता। 

अनन्त अंबानी जिसका लोगों ने मजाक बनाया था वह लोग स्वयं सोचे यह बंदा तो इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर भी जड़ों से कितना गहराई से जुड़ा है इसके माता-पिता मुकेश अंबानी और नीता अंबानी भी अभिनंदनीय है जिन्होंने इतनी ऊंचाइयों पर रहने के बावजूद अपने बच्चों को सनातन जड़ों से जोड़े रखा।

- दिव्या सिंह

G News 24 : सत्ता की चमक के आगे बौना साबित हो रहा है‌ कानून !

 कानून का डंडा सिर्फ सामान्यजन के लिए है,खास के लिए तो ये खिलोना है !

सत्ता की चमक के आगे बौना साबित हो रहा है‌ कानून !

कुछ वर्षो से लगातार देखने में आ रहा है कि जिनके पास पैसा है,पॉलिटिकल पॉवर है समाज में जिनकी एक पोजीशन है उनके लिए कानून और उससे जुड़ी सुरक्षा एजेंसियों की कार्यवाही किसी खेल से कम नहीं है और कार्रवाई के बाद जिस प्रकार की नौटंकी इन सुरक्षा एजेंसियों, केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ अदालतों के बीच देखने को मिलती है। वह डिजिटल और सोशल मीडिया के जमाने में किसी से छिपी नहीं है। जबकि सामान्यजन के लिए कोर्ट-कचहरी की कारवाई तय समय अंदर हर हाल में जिम्मेदार एजेंसी पूरी कर लेती है,लेकिन बात जब खास की आती है तो सब नियम कायदे धरे के धरे रह जाते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह की दोगली राजनीति के चलते सत्ता की धमक के आगे आज कानून कितना बोना साबित हो रहा है। सबके सामने हैं।

अक्सर देखने में आता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी छोटे-मोटे झगड़े या 1000-2000 हजार की रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार, एक्सीडेंट या छेड़खानी जैसे किसी मामले में नामजद मात्र हो जाए फिर देखिए एजेंसियों के कार्य करने की रफ्तार, अदालतों के फैसले देने की रफ्तार, इस रफ्तार को देखकर तो ऐसा लगता है कि देश में बस रामराज्य आ गया है तभी तो दोषियों को तुरंत सजा मिल रही है। सामान्यजन को सीधे जेल ! कारण क्योंकि वो सामान्यजन है उसके पास पैसा नहीं है, कोई उसका राजनीति आका नहीं होता है, समाज में उसकी कोई प्रतिष्ठा नहीं है यही कारण है कि वो हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट तक की बात तो वो सोच भी नहीं सकता है। उसे तो sdm कोर्ट और जिला अदालत ही सीधे जेल की हवा खिला देती है। 

लेकिन जब इसका दूसरा पहलू देखते हैं तो पता चलता है कि इन अपराधों से कई गुना  बड़े गुनाह करने वाले और राजनीतिक गलियारों में गहरी पैठ रखने वाले खास लोग, पैसे और पावर की दमपर कानून का मजाक कैसे बनाते हैं ? सुरक्षा एजेंसियों को अपने हाथों की कठपुतली की तरह यूज़ करते है। सभी जानते हैं। ये खास लोग गिरफ्तारी से बचने के लिए कैसे कानून के साथ आंख-मिचोली खेलते हैं, देश इन दिनों देख रहा है। अदालत भी इनके हाथ का खिलौना बन चुकीं  हैं। ये जेल जाने से बचने के लिए रात के 2:00 बजे 3:00 बजे जब मर्जी चाहे तब अदालतों के दरवाजे खुलवा लेते हैं। जज साहब भी रात में ही इनके वकीलों को स्टे और आदेश जारी कर देते है। जबकि आम व्यक्ति  के लिए अदालतों के दरवाजे सांय 5:00 बजे के बाद अक्सर बंद हो जाते हैं। 

ऐसा लगता है कि इन अदालतों में बैठने वाले जज ना होकर सरकारों के हाथ की कठपुतलियां बैठी है। ऐसा माहौल देखकर तो यही लगता है कि अब इन अदालतों  एवं किराने की दुकान में कोई फर्क नहीं रह गया है। जैसे कि जब हमें कुछ जरुरत का सामान चाहिए होता है तो कभी भी हम किराने वाले की दुकान का दरवाजा खटखटा देते हैं और अपनी जरुरत का सामान ले लेते हैं वैसा ही कुछ अब अदालतों देखने को मिल रहा है। जब कुछ खास लोग इन अदालतों का कभी भी दरवाजा खुलवा लेते है फिर चाहे दिन हो या रात हो। आज और वकील दुकानदार की भूमिका में दिखाई पढ़ते हैं। जो अपने खास ग्राहक को अपनी सेवा देने के लिए तत्पर दिखाई पढ़ते हैं।  सजा से बचने के लिए यह खास अपराधी पहले जिला कोर्ट जाते हैं फिर हाई कोर्ट जाते हैं और जब वहां से भी कोई  राहत नहीं मिलती तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर के अग्रिम जमानत और स्टे ले लेते हैं और फिर बड़ी शान के साथ छाती चौड़ी करके पीड़ित के सामने जाकर अपना रुतबा दिखाते हैं। 

अरविंद केजरीवाल और शाहजहां शेख आदि जैसे खास आदमी कैसे जांच एजेंसियों, सुरक्षा एजेंसियों और अदालतों का मजाक कैसे बनाते हैं यह सभी जानते हैं। किसी के 7, किसी के 8 और किसी के 9 संमन जारी हो रहे हैं। फिर भी एजेंसीज इन खास लोगों को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है। और अगर गिरफ्तार कर भी लेती है तो सजा नहीं दिलवा पा रही है। क्या यहां अदालत की तौहीन नहीं है ? यहां ये कानून का मजाक नहीं उड़ा रहे हैं ? फिर भी अदालत इन्हें सजा नहीं दे पा रही है। इसके ठीक हो उलट अगर एक सामान्य व्यक्ति अदालत में जज के सामने भूलवश कुछ बोल भी दे। या उससे अदालत का एक भी संमन चूक जाए तो इसे अदालत का अपमान मानकर जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है।  इस प्रकार की व्यवस्था,इस प्रकार का भेद-भाव, आम और खास के बीच देखने को मिल मिल रही है ! ये हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि हमारे देश में क्या अलग-अलग कानून और अदालतें हैं जो आम के लिए एक नजरिया और खास के लिए दूसरा नजरिया अपनाते हुए दिखाई देत हैं।

G News 24 : अंबानी परिवार का ये समारोह है भारतीय परंपरा और रीति रिवाजों का उत्कृष्ट प्रदर्शन !

 इस समय सभी की जुबान पर अंबानी परिवार में हो रहे सगाई समारोह की चर्चा है। 

अंबानी परिवार का ये समारोह है भारतीय परंपरा और रीति रिवाजों का उत्कृष्ट प्रदर्शन ! 

मैं जो देख रहा हूं वह भारतीय परंपरा और रीति रिवाजों का उत्कृष्ट प्रदर्शन  है यह समारोह भारतीय परंपरा और रीति रिवाजों का उत्कृष्ट प्रदर्शन है जहां विदेशों से आए मेहमान भारतीय धर्म, संस्कृति और  शलाका पुरुषों से परिचित हो रहे हैं। भारतीय परिधान खान पान और भारतीय भाव में रंगे अभारतीय लोगों का भारत के प्रति दृष्टिकोण बदलने वाला कार्यक्रम है यह विवाह। इसके माध्यम से भारतीय पारिवारिक व्यवस्था, भाई भाई के संबंध, भाई बहन में प्रेम और पिता पुत्र/माता पुत्र के भावनात्मक रिश्तों का अद्भुत रूप दुनिया देख रही है। अनंत अंबानी भारतीय परिवार के एंबेसडर बन गए हैं। 

समारोह के माध्यम से दुनिया भारत की समृद्धि देख रही है। जो लोग भारत को गरीब देश बताते थे वही आज पैसे कमाने के लिए यहां नाच रहे हैं। नए भारत की शक्ति, सामर्थ्य और आतिथ्य हमने जी ट्वेंटी सम्मेलन में देखा था यह विवाह उसी कड़ी में देखा जाना चाहिए। 

सेवा, परोपकार और अपनी माटी के बुजुर्गों को सम्मान देना यह सिद्ध करता है कि धन धर्म का एक माध्यम है, धनात धर्मः तत: सुखम को चरितार्थ करता है यह विवाह।

एक जो अति महत्वपूर्ण बात है कि पूरे कार्यक्रम के दौरान भगवान राम की जयजयकार हो रही है, राम ही भारत हैं यह संदेश पूरे विश्व में गया है।

मुकेश जी केवल धन खर्च नही कर रहे हैं बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक निवेश कर रहे हैं। जो लोग यहां के आतिथ्य से अभिभूत होकर जाएंगे तो वह भारतीय संस्कृति का कुछ हिस्सा होकर जाएंगे, यह दुगुना रिटर्न देगा।

मैं वह दिन देख रहा हूं जब दुनिया भर के लोग भारत में वेडिंग इन इंडिया के लिए आएंगे। वह दिन देख रहा हूं जब भारत के प्रति बाहर के लोगों का दृष्टिकोण आदर और श्रद्धा का होगा। भारतीय परंपरा में विवाह करना, विवाह की सफलता की गारंटी मानी जाएगी।आखिर में नीता अंबानी का यह साभार शोभन नृत्य इस मांगलिक कार्यक्रम का सार है। 

G News 24 : मोदी वो हुनरमंद हैं जो गाली को ताली में बदलने का हुनर मोदी जानते हैं !

 चुनाव से पहले विपक्ष की ये चूक भारी न पड़े !

मोदी वो हुनरमंद हैं जो गाली को ताली में बदलने का हुनर मोदी जानते हैं !

कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में जब 'चौकीदार चोर है' का नारा उछाला तो पीएम नरेंद्र मोदी ने 'मैं भी चौकीदार' कैंपेन खड़ा कर सियासी फिजा ही बदल दी. गली-गली पोस्टर लग गए. सिर पर टोपी आई जिस पर लिखा था- मैं भी चौकीदार. हर बड़ी हस्ती खुद को चौकीदार बताने लगी थी. चायवाला बनकर अगर पीएम रिक्शा, रेहड़ी-पटरी वाले तबके से जुड़ते हैं तो 'मैं भी चौकीदार' से उन्होंने एक बड़े तबके को खुद से जोड़ने की कोशिश की. वो प्रयोग सफल रहा. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस बार विपक्ष ने फिर से वही गलती कर दी है. कहते हैं इंसान अनुभव से सीखता है लेकिन कांग्रेस समेत विपक्षी दल 10 साल में भी नहीं समझ सके कि भाजपा से चुनाव में मुकाबला कैसे करना है. जी हां,

इस बार INDIA अलायंस के मंच से पटना में लालू प्रसाद यादव ने मोदी पर निजी हमले किए. जवाब में सोशल मीडिया पर #ModiKaParivar हैशटैग तूफान मचा रहा है. पीएम मोदी ने कल रैली में इसका जवाब भी दे दिया. उन्होंने कहा कि 140 करोड़ लोग ही उनका परिवार हैं. जिसका कोई नहीं है, वह भी मोदी के हैं और मोदी उनका है. पीएम ने इस मौके को अपने पक्ष में भुनाया. फिर क्या था पूरी भाजपा मैदान में आ गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू हो गए, सोशल मीडिया का रंग बदल गया. गृह मंत्री अमित शाह से लेकर सभी बड़े-छोटे नेता (मोदी का परिवार) लिख रहे हैं. 

माहौल बनाने में पीछे है कांग्रेस

एक दौर था जब नेता घर-घर जाकर वोट मांगते थे. खासतौर से 1990 के दशक में जब नेता घर पर आएं, बैठें, पानी पिएं, बतियाएं तब वोट मिलते थे. अब जनता तक अपना मैसेज पहुंचाने के कई रास्ते हो गए हैं. अब लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नेता घर-घर नहीं जाते हैं. वे इलाके में रैली कर लें या रोडशो कर लें, उसे ही बहुत मानते हैं. आजकल सोशल मीडिया, विज्ञापन, एक दूसरे दल पर अटैक जैसे कई रास्ते हैं जिससे जनता के दिल को जीतने की कोशिश होती है. इसमें सबसे बड़ा रोल नरैटिव का होता है. सरल शब्दों में कहें तो चुनाव में किसकी हवा है, यह जताने या भरोसा दिलाने की कोशिश होती है जिससे मैसेज ऐसा जाए कि फला पार्टी जीत रही है या सारा देश फला को ही वोट कर रहा है जबकि चुनाव अभी दूर होते हैं. 

मोदी का भावुक अंदाज

विपक्ष को समझना चाहिए कि भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में करिश्माई चेहरा है. उनकी नीतियों और फैसलों में खामी ढूंढकर जनता के सामने रखा जा सकता है लेकिन जब पीएम खुद को सबसे बड़ा ओबीसी नेता बता रहे हों, चुनाव करीब हो तब विपक्ष की एक गलती सारे समीकरण गड़बड़ा सकती है. अब परिवार वाले तंज पर ही देखिए कैसे पीएम ने रैली में भावुक अंदाज में देशभर के लोगों तक मैसेज पहुंचा दिया. हां, पीएम ने कहा, ‘मेरा भारत - मेरा परिवार, इन्हीं भावनाओं को लेकर मैं आपके लिए जी रहा हूं, आपके लिए जूझ रहा हूं और आपके लिए जूझता रहूंगा.' 

सपना लेकर मैंने घर छोड़ा था...

मोदी ने आगे कहा कि एक सपना लेकर बचपन में घर छोड़ा था. मैं देशवासियों के लिए जिऊंगा, ये सपना लेकर निकला था. मेरा पल-पल सिर्फ और सिर्फ आपके लिए होगा। मेरा कोई निजी सपना नहीं होगा, आपके सपने ही मेरा संकल्प होंगे. जिंदगी खपा दूंगा, आपके सपनों को पूरा करने के लिए, आपके बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए. पीएम ने अपने जीवन को ‘खुली किताब’ बताया. उन्होंने कहा कि देशवासी उन्हें अच्छी तरह जानते हैं और समझते हैं. उनके बारे में पल-पल की खबर रखते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘कभी जब मैं देर रात तक काम करता हूं और खबर बाहर निकल जाती है तो लाखों लोग मुझे लिखते हैं कि इतना काम मत करिए, कुछ आराम करिए.

अब जान लीजिए लालू ने क्या कहा था

दो दिन पहले RJD अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने पटना में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के वरिष्ठ नेताओं के सामने कटाक्ष किया, 'अगर नरेंद्र मोदी के पास अपना परिवार नहीं है तो हम क्या कर सकते हैं. वह राम मंदिर के बारे में डींगें मारते रहते हैं. वह सच्चे हिंदू भी नहीं हैं. हिंदू परंपरा में बेटे को अपने माता-पिता के निधन पर अपना सिर और दाढ़ी मुंडवानी चाहिए. जब मोदी की मां की मृत्यु हुई तो उन्होंने ऐसा नहीं किया.

प्रधानमंत्री मोदी ने लालू को तेलंगाना रैली में जवाब दिया कि अब इन्होंने 2024 के चुनाव का अपना असली घोषणा पत्र निकाला है. मैं इनके परिवारवाद पर सवाल उठाता हूं तो इन लोगों ने अब बोलना शुरू कर दिया है कि मोदी का कोई परिवार नहीं है. कल ये ऐसा भी कह सकते हैं कि तुम्हें कभी जेल की सजा नहीं हुई इसलिए तुम राजनीति में भी नहीं आ सकते.  उधर भाजपा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पीएम कभी थकते नहीं हैं. अपने परिवार के लिए काम करते हुए किसी को थकान महसूस नहीं होती है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 साल में एक दिन के लिए भी छुट्टी नहीं ली. ये सब बातें जनता में भाजपा के पक्ष में ही माहौल बनाएंगी, विपक्ष को शायद समझ नहीं आ रहा. 

कांग्रेस का जवाब

राहुल गांधी ने लिखा, ‘किसान कर्जदार, युवा बेरोजगार, मजदूर लाचार, और देश लूट रहा है मोदी का ‘असली परिवार’. उधर, पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि भाजपा सांसद अजय मिश्रा टेनी और बृजभूषण शरण सिंह प्रधानमंत्री मोदी का ‘असली परिवार’ हैं. 

खैर, भाजपा का यह कैंपेन रुकने वाला नहीं है. पार्टी इसे हर चुनाव प्रचार में शामिल करेगी. यह विपक्ष के खिलाफ निगेटिव माहौल बनाने में भाजपा का बड़ा 'हथियार' बन सकता है. देखते हैं विपक्षी दल इसकी काट ढूंढ पाते हैं या नहीं.


G News 24 : बीजेपी ने सभी को साथ लेकर चलने वाली पार्टी के रूप में दिखाने का प्रयास किया है !

पहली लिस्ट में उम्मीदवारों की घोषणा से ...

बीजेपी ने सभी को साथ लेकर चलने वाली पार्टी के रूप में दिखाने का प्रयास किया है ! 

लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी. इस पहली लिस्ट में तीन दिग्गजों समेत 195 उम्मीदवारों का नाम है. बीजेपी की उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे. गृह मंत्री अमित शाह गुजरात के गांधीनगर से फिर से उम्मीदवार हैं. वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस बार भी लखनऊ से ताल ठोकेंगे. बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट में 28 महिलाएं, 27 अनुसूचित जाति और 18 अनुसूचित जनजाति के कैंडिडेट हैं. आइए समझते हैं कि बीजेपी ने कैसे जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है.

बीजेपी की जातीय गोलबंदी

 बीजेपी ने 543 में से 195 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. ये उम्मीदवार 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेश के हैं. इन 195 उम्मीदवारों में 28 महिला उम्मीदवार हैं. लिस्ट में 50 साल उम्र वाले 47 उम्मीदवारों के नाम हैं. अनुसूचित जाति के 27 उम्मीदवार हैं. अनुसूचित जनजाति के 18 उम्मीदवार हैं. और लिस्ट में सबसे ज्यादा उम्मीदवार OBC से हैं. इनकी संख्या 57 है.

बीजेपी ने SC वोटों का भी रखा है खास ख्याल 

बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट में जाति का भी खास ख्याल रखा है. बीजेपी के अनुसूचित जाति से आने वाले उम्मीदवारों की बात करें तो उसमें कृपानाथ मल्लाह, कमलेश जांगड़े, विनोदभाई लखमाशी चावड़ा, दिनेशभाई कोडरभाई मकवाना, अजय टम्टा, भोला सिंह, ओम कुमार, सत्यपाल सिंह बघेल, सौमित्र और प्रिया साहा जैसे कई उम्मीदवारों का नाम शामिल है. जो वंचित समाज से आते हैं. बीजेपी ने उन्हें मौके दिया है कि सांसदी का चुनाव जीतें और देश की संसद में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करें.

जनजातीय वोटों पर बीजेपी की नजर

इसके अलावा, अनुसूचित जनजाति के वोटर्स के साधने के लिए बीजेपी ने महेश कश्यप, अमर सिंग टिस्सो, राधेश्याम राठिया, चिंतामणि महाराज, भोलाराज नाग, जसवंत सिंह भामोर, प्रभुभाई नागरभाई वसावा, मनोज तिग्गा, ताला मरांडी, सुनील सोरेन, गीता कोड़ा, समीर उरांव, हिमाद्री सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते, अनीता नागर सिंह चौहान, महेंद्र मालवीय और मन्नालाल रावत को टिकट दिया है. जो जीते तो अनुसूचित जनजाति के सांसद के रूप में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में करेंगे.

ओबीसी पर सबसे ज्यादा फोकस

बता दें कि बीजेपी की लिस्ट में सबसे ज्यादा ओबीसी हैं. दरअसल, ओबीसी का जनाधार भी ज्यादा है. इसी वजह से टिकट बंटवारे में ओबीसी का खास ध्यान रखा गया है. राजेश वर्मा, घनश्याम लोधी, परमेश्वर लाल सैनी, राजवीर सिंह, रेखा वर्मा, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति और राहुल लोधी को टिकट दिया है. इसके अलावा पीएम मोदी खुद भी ओबीसी वर्ग से आते हैं. ऐसे में बीजेपी ने 57 टिकट देकर ओबीसी को साधा है.

 28 महिलाओं को दिया मौका

बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 28 महिला उम्मीदवारों का नाम है. बीजेपी महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की वकालत करती रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने बांसुरी स्वराज, शोभा सुरेंद्रन, संध्या राय, लता वानखेड़े, ज्योति मिर्धा, कमलजीत सहरावत, अन्नपूर्णा देवी, हेमा मालिनी, रेखा वर्मा और प्रिया साहा आदि को टिकट दिया है. इस तरह बीजेपी ने महिला, ओबीसी, एससी और एसटी को साधने की कोशिश की है.

G News 24 : 5 G और A I के दौर में जिम्मेदार बनें रिश्तों को सभालें

 सदा सुख दुःख में भागीदार बने रहने वाले ...

5 G और A I के दौर में जिम्मेदार बनें रिश्तों को सभालें 

[1] :- मां बाप को सिर ऊंचा करके जीने दें, 

उसे  " संतान "  कहते हैं। 

[2] :- संकट में कंधे से कंधा मिलाकर चले, 

उनका नाम  " भाई " है।

[3] :- सदा सुख दुःख में भागीदार और निर्धनता, तंगी में भी साथ निभाएं ,

उसका नाम  " धर्म पत्नी " 

[4] :- कम या ज्यादा देने पर भी जो संतोषी बन कर ख़ुश हो जाएं, 

उसका नाम  " बहन , बेटी "

[5] :- चाहे जितने मतभेद हो जाए फिर भी साथ बैठकर जो विवाद को समाप्त कर दे, सुधार दे, 

उसका नाम  " कुटुम्ब "

[6] :- किसी भी तरह के संकट या दुःख में साथ निभाएं ,

उसका नाम  " सम्बन्धी और दोस्त "

[7] :- अंदर ही अंदर पांव न खींचकर बाहर के संकट में एक होकर साथ निभाएं ,

उसका नाम ही " समाज "  है।

[8] :- जो मेसेज को पढ़ कर जगत कल्याण के लिए आगे भेजे, वह व्यक्ति को, 

संसार में  " कल्याण कारक "  के नाम से जाना जाता हैं।  

भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल 71% बढ़ा

◆ 84% लोग तो सुबह उठते ही 15 मिनट के अंदर फोन चलाने लगते हैं. 

◆ BCG की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

◆ भारत में 50% लोग स्ट्रीमिंग कंटेंट देखने के लिए फोन चलाते हैं, इसमें 18-24 साल के लोग Insta Reels, You Tube Shorts देखते हैं.

◆ फोन चलाने के दौरान 55% मामलो में लोगों को पता नहीं होता कि वे किस इरादे से फोन चला रहे हैं.

◆ 50% समय लोग किसी ना किसा काम के लिए फोन चलाते हैं.

G News 24 : नेता कांग्रेस छोड़ रहे या कांग्रेस नेताओं को छोड़ रही है !

कांग्रेस  झेल रही है संतुष्टि,अंतर्कलह को सही समय पर शांत न कर पाने का खामियाज़ा ...

नेता कांग्रेस छोड़ रहे या कांग्रेस नेताओं को छोड़ रही है !

आजकल हर दूसरे दिन ख़बर आती है कि कोई पुराना कांग्रेसी पार्टी छोड़ गया. सवाल यह है कि पुराने कांग्रेसी कांग्रेस छोड़ रहे हैं या कांग्रेस उन्हें छोड़ रही है? असल में लंबे समय से कांग्रेस में HR मैनेजमेंट डिजास्टर नहीं  होने का ख़मियाजा कांग्रेस  झेल रही है. कमलनाथ का 'कमल थामना' फिलहाल टल गया है. लेकिन कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के ट्विटर, यानी X बायो में 'कांग्रेस' नहीं लौटा है. यानी मध्य प्रदेश कांग्रेस  का संकट अभी टला नहीं है. 

कमलनाथ भले न गए हों, डैमेज तो हो ही गया. कांग्रेस और कमलनाथ का वोटर लोकसभा चुनाव में जब EVM में 'हाथ' पर बटन दबाने के लिए अंगुली बढ़ाएगा, तो उसके कदम लड़खड़ाएंगे ज़रूर. कांग्रेस के छिंदवाड़ा किले में छेद हो चुका है. मिलिंद देवड़ा से लेकर अशोक चव्हाण और कमलनाथ तक एक बात जो सामने आती है, वह यह है कि कांग्रेस आलाकमान ने इन मामलों में क्राइसिस मैनेज ठीक से नहीं किया.

ऐसा नहीं है कि कमलनाथ रुक गए, तो कांग्रेस लीडरशिप ने रोका हो. ज़्यादातर जानकारों का मानना है कि मामले में BJP रुक गई. कमलनाथ के जाने की चर्चा के वक्त कांग्रेस लीडरशिप क्या कर रही थी, ज़रा इस पर गौर कीजिएगा. कांग्रेस कह रही थी कि उन्हें (कमलनाथ को) सब कुछ तो दिया. ज़रा कल्पना कीजिए - इतने कद्दावर नेता के BJP में जाने की बात हो रही है. होना यह चाहिए था कि कांग्रेस आलाकमान संकट को संभालता, लेकिन पार्टी सूत्रों के हवाले से ऐसे बयान दिलवाए जा रहे थे, जिससे रही सही उम्मीद भी चली जाए.

मिलिंद देवड़ा क्यों गए ?

मिलिंद देवड़ा को अपनी पुश्तैनी सीट दक्षिण मुंबई से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी चाहिए थी. उद्धव ठाकरे शिवसेना की तरफ से लगातार बयान आ रहे थे कि यह सीट किसी भी कीमत पर कांग्रेस को नहीं देगी. लेकिन कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने मामला सुलझाने की कोशिश नहीं की. नतीजा मिलिंद देवड़ा भी साथ छोड़ गए. उधर BJP की रणनीति देखिए. देवड़ा को राज्यसभा भेजा और वहां की लड़ाई कमज़ोर कर दी. अब उसके उम्मीदवार के कामयाब होने की उम्मीद बढ़ गई है.

अशोक चव्हाण क्यों गए ?

महाराष्ट्र के ही दूसरे कद्दावर नेता अशोक चव्हाण BJP में चले गए. साल भर पहले महाराष्ट्र कांग्रेस प्रभारी रमेश चेनीथला ने आलाकमान को एक रिपोर्ट भेजी थी कि मौजूदा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले से विधायक और कार्यकर्ता खफा हैं. सुझाव दिया कि अशोक चव्हाण को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दी जाए. लेकिन कांग्रेस आलाकमान की किचन कैबिनेट इस रिपोर्ट पर बैठी रही. खुद अशोक चव्हाण ने सोनिया गांधी से मिलकर गुहार लगाई, लेकिन बात नहीं मानी गई. राहुल गांधी ने तो मिलने का भी समय नहीं दिया. नतीजा अशोक चव्हाण BJP में चले गए. 

BJP चव्हाण को राज्यसभा भेज रही है, तो नांदेड़ की सीट पर मुकाबला कमज़ोर हो गया. और जिस सीट पर BJP हमेशा से कमज़ेर थी, वहां मज़बूत हो गई. मजेदार बात यह है कि यह सब उन पटोले के लिए किया गया, जिन्होंने राज्य में पार्टी ही नहीं, गठबंधन का भी नुकसान किया. अगर पटोले CM को बिना बताए स्पीकर पद से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनते, तो एकनाथ शिंदे को बगावत और विश्वासमत में दिक्कत होती. शिंदे गुट के ख़िलाफ़ अयोग्यता का केस स्पीकर पटोले के पास जाता. जाहिर है कि पटोले ने बिना आलाकमान की मंज़ूरी के इस्तीफ़ा नहीं दिया होगा. इसे पार्टी का दूर दृष्टिदोष नहीं तो क्या कहेंगे?

दूरदृष्टि तो छोड़िए, एक नेशनल पार्टी के कर्ताधर्ता यह तक पक्का नहीं कर पाए कि इनकम टैक्स विभाग को समय पर हिसाब-किताब दे दें. 2018-2019 में रिटर्न दाखिल में 40-45 दिन की देरी की. विभाग ने 103 करोड़ का जुर्माना लगाया. मामला चार-पांच साल खिंचा. पार्टी नियम के मुताबिक 20% पैनल्टी दे देती, तो खाता फ़्रीज़ होने की नौबत नहीं आती. लेकिन खाता सील हुआ, तो इसे लोकतंत्र पर हमला बता दिया.

कांग्रेस का कुप्रबंधन बन रहा है वजह 

कांग्रेस में कुप्रबंधन के इतने उदाहरण हैं कि यह एक केस स्टडी हो सकती है. पार्टी कैसे डुबाई जाए, इसकी केस स्टडी. चुनाव सिर पर हैं. INDI गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है. कभी केजरीवाल तलवार निकाल रहे हैं, तो कभी अखिलेश आस्तीन चढ़ा लेते हैं, लेकिन पार्टी के सबसे बड़े नेता अपनी यात्रा में मग्न हैं. क्या खरगे उनकी सहमति के बिना कोई फैसला ले सकते हैं? जवाब आपको पता है. नतीजा यह है कि केजरीवाल पंजाब और दिल्ली में अकेले लड़ने का ऐलान कर चुके. अखिलेश बिना कांग्रेस से बात किए अपने उम्मीदवार और सीटों की संख्या का ऐलान कर रहे हैं.

नीतीश ने BJP का दामन थामा !

नीतीश ने BJP का दामन थामा और कहा कि मैंने तो BJP-विरोधी पार्टियों को जोड़ने का प्रयास किया, लेकिन उधर से कुछ हुआ ही नहीं. उनका इशारा कांग्रेस की तरफ भी था. INDI गठबंधन की शुरुआती बैठकों में जाने से कांग्रेस ने आनाकानी की, ताकत न रहते हुए भी गठबंधन का अगुवा बनाए जाने की ज़िद की. खरगे गठबंधन के चेयरमैन बने, नीतीश मोदी से जा मिले.

कांग्रेस  झेल रही है संतुष्टि,अंतर्कलह को सही समय पर शांत न कर पाने का खामियाज़ा 

कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में झेल चुकी है. सुना है, लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे पर राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर रण छिड़ गया है. रण में फिर वही दोनों नेता हैं, जिनकी कलह ने विधानसभा चुनाव हराया, और यह कोई हाल फ़िलहाल नहीं हो रहा है. असम से हरियाणा तक कुप्रबंधन के उदाहरण भरे पड़े हैं. ऐसी सूरत में सवाल उठता है कि 2019 में 52 सीट पर सिमट गई कांग्रेस क्या 2024 में हाफ सेंचुरी भी लगा पाएगी? ऐसा लगता है कि BJP के 'कांग्रेस-मुक्त भारत' अभियान में कांग्रेस उसकी सहयोगी बन गई है.