G News 24 : शादी के तुरतं बाद, ज़िंदगी में ' थ्रिल ' रील ' से ज़्यादा जरूरी है ज़मीनी रियलिटी !

  एक जिद माँ-पिता, कुल-कुटुंब, परिवार, परिजनों कितनी भारी पड़ती है ! रघुवंशी परिवार से पूछिए ...

 शादी के तुरतं बाद, ज़िंदगी में ' थ्रिल ' रील ' से ज़्यादा जरूरी है ज़मीनी रियलिटी !

बेटा तेरी सांस क्यो फूल रही हैं ? माँ एकदम खड़ी चढ़ाई हैं, खतरनाक भी हैं।  तुम वहां गए ही क्यों बेटा ? माँ झरना देखने तो ऊपर से ही देख लेते न बेटा? इतने नींचे आने की जरूरत क्या थी ?  ये माने नही माँ औऱ यहां तक ले आये..!! 

यही वो आख़री बातचीत थी जो सोनम औऱ सासु माँ के बीच हुई थी, जिसने पूरे इंदौर को हिला दिया। इस वार्तालाप में राजा की ज़िद औऱ ज़िद पर दांव पर लगती ज़िंदगी की स्पष्ट आहट सुनाई देती हैं। ये आहट युवा राजा को भले ही सुनाई न दी हो लेक़िन घर के बड़े बुज़ुर्ग समझते हैं कि अनजान जगह इस तरह की हिमाक़त कितनी घातक हो सकती हैं। औऱ हुआ भी वही। घातक, मर्मान्तक व ह्रदयविदारक। आपकी एक ज़िद पीछे किस तरह दुखों का समंदर छोड़ जाती हैं, रघुवंशी परिवार औऱ इंदौर इसे देख व भोग रहा हैं। क्या इस हादसे से देश की युवा पीढ़ी कुछ सबक लेगी? 

सबक लेना होगा। हर हाल में। आख़िर जिंदगी कोई ' थ्रिल ' नहीं। न कोई 20-30 सेकंड की कोई ' रील '। ये रियल लाइफ हैं। इस रियलिटी को समझना होगा। क्या जीवन सिर्फ़ पति-पत्नी तक ही सीमित हैं? अपने ही सुख, आनंद तक सिमटा हुआ है जीवन? परिवार-परिजन इसका हिस्सा हैं कि नही? आपका जोश जुनून व हौसला कुछ भी हो लेक़िन ये तो जेहन में रखना ही होगा न कि हम हज़ारों किमी दूर एक अंजान जगह पर अकेले हैं। परिवार से दूर। तो फ़िर अपने साथ ही परिवार की चिंता क्यो नही सताती कि आपकी इस हिम्मत पर कुछ अनहोनी हो गई तो बूढ़े मा-पिता पर क्या बीतेगी? माना की शादी एक नया जीवन, नई उमंग औऱ अनंत सपने जीवित करती हैं। लेक़िन उसमे जीवन को मुक्कमल जीने की जिजीविषा भी तो होना चाहिए न? ये क्या कि कुछ ' रोमांचक ' करने व जगत को दिखाने के फेर में आप जगत से ही बिदा हो जाये? 

वैसे भी शादी के तुरंत बाद ये घर से मीलों दूर जाने की हमारी सनसकरती नही। हमारे पुरख़े तो नवब्याहता को सवा महीने तक घर से बाहर नही जाने देते थे लेक़िन आज की पीढ़ी शादी के तुरंत बाद घर से ऐसे रवाना होती है मानों जहां जन्मे, बढ़े हुए...वो शहर-घर आपका अपना नही या अपने ही घर-आंगन में खुशियों का चहकना आपको मंजूर नही? ये कैसा चलन समाज मे आया कि शादी के तुरंत बाद हम सात समंदर पार से लेकर शिलांग तक की फ़र्लांग लगा लेते हैं। ऐसी ऐसी अनजान जगह 'मुंह उठाये' चंल देते है जिनके बारे में सिर्फ सुना ही है, कुछ जाना पहचाना नही। राजा भी तो ऐसी ही जगह जा पहुँचे। सिर्फ़ सुनकर की माँ कामख्या के नज़दीक ही मेघालय हैं। ऐसे ही युवा दम्पति आजकल बाली, श्रीलंका, लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार, शिलांग, भूटान चल देते हैं। ये सब अनजान जगह है, ये जानते हुए भी जीवन की शुरुआत को ही दांव पर लगाने से नही चूक रहें। वर्तमान की पीढ़ी इतनी एडवांस हो गई कि परिवार-परिजन भी रोकने टोकने से डरते है। बेमन से ही सही, वे हा भर देते है और फ़िर हिस्से में आते है आंसू...जीवनभर के आंसू। 

 जाईये सब जगह। घूमिये औऱ जीवन के पलों को यादगार बनाइये। विवाह बाद की स्मृतियों को चिरस्थाई बनाइये । मेहंदी का रंग तो उतर जाने दीजिए। परिवार को भी आपकी खुशियों को जीने दीजिये। सिर्फ़ अपना ओर अपनी जीवन संगिनी के सुख और आनंद की ही क्यो चिंता करना? ये नई नई जगह हनीमून मनाने जाने का ' शग़ल ' व ' चलन ' आख़िर कितने घरों में मातम मनाएगा। पहलगाम हमले में पति की पार्थिव देह के पास बैठी बेटी भी तो शादी के तुरंत बाद कश्मीर हनीमून मनाने गई थी न? उसके हाथ की भी मेहंदी का रंग सुर्ख ही था, सोनम की तरह..जो अब तक लापता हैं। 

 अनजानी जगह तो कम से कम बरते सावधानी ...

 अगर जा भी रहें है तो इतनी तो सावधानी बरतें कि पहले उस इलाके के विषय मे विस्तार से जान ले। जानने के बाद भी किसी भी तरह की रिस्क न ले। ये क्या हुआ कि जिस जगह पहली बार आये, वहां भाड़े का स्कूटर ले अकेले ही घूमने चल दिये। वह भी पहाड़ो में। बारिश की भरमार वाली जगह पर। फ़िर खाई में भी नीचे उतर जाए। ये जाने बिन की नीचे वाकई है क्या? महज एक झरने को निहारने की ललक आख़िर कितनी दर्दनाक होती हैं... ये उस माँ के संवाद, बहु की बेबसी से समझी जा सकती है कि इतनी नीचे आने की क्या जरूरत थी? ऊपर से ही देख लेते? हमारे बगल में भी युवा पीढ़ी ऐसे ही चिड़िया भड़क, गीदिया खोह, तिंचाफाल, पातालपानी, आदि जगह झरने को दूर से निहारने की जगह खाई में नीचे उतर जाती हैं। अनजान जगह। फिर जो हादसे सामने आए, वे कितना डरावने थे। फ़िर भी.. !!!

Reactions

Post a Comment

0 Comments