G News 24 : गुरु वो पथ प्रदर्शक है जो शिष्य को पथ में अग्रसर होने की कामना करता है :श्री शांडिल्य जी महाराज

 गुरु पूर्णिमा के अवसर पर करुणाधाम में हुआ ओम स्नान के साथ गुरु पूजन...

गुरु वो पथ प्रदर्शक है जो शिष्य को पथ में अग्रसर होने की कामना करता है :श्री शांडिल्य जी महाराज 

भोपाल। करुणाधाम आश्रम के युवाओं द्वारा आज करुणाधाम आश्रम में गुरुदेव श्री सुदेश जी शांडिल्य महाराज के चरणों का अभिषेक किया गया. पीठाधीश्वर शांडिल्य महाराज ने जीवन में गुरु के महत्व को समझाया. शांडिल्य महाराज ने कहा कि गुरु वो पथ प्रदर्शक है जो स्वयं ठहरकर अपने शिष्य को पथ में अग्रसर होने की कामना करता है। 

साथ ही गुरुदेव ने अपने पिता श्री श्री 1008 बालगोविंद जी शांडिल्य महाराज के चरणों का अभिषेक कर युवाओं और प्रदेश की उज्जवल भविष्य की प्रार्थना की. रविवार को सुबह से महाअभिषेक एवं गुरू गीता का पाठ हुआ। ओम स्नान और गुरूदेव पादुका पूजन एवं आशीर्वचन हुए। 

सोमवार 22 जुलाई  तो सुबह 9:00 बजे से भव्य पालकी उत्सव और रात 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रख्यात गायक श्री तापस उपाध्याय द्वारा कबीर व गुरू भजन की प्रस्तुति दी जायेगी।

G News 24 : गुरु, एक ऐसा शब्द है जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है

मां से लेकर सांसारिक और आध्यात्मिक संसार में जीवन जीने का ज्ञान देने वाले सभी गुरुजनों नमन...

गुरु, एक ऐसा शब्द है जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है

आज गुरु पूर्णिमा है, जिसे व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, गुरु, एक ऐसा शब्द है जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है। गुरु वे होते हैं जो अंधकार में प्रकाश लाते हैं, अज्ञानता को दूर करते हैं और हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार हर साल के आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 

इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है। इस दिन, शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते हैं। गुरु पूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ अकादमिक गुरुओं के सम्मान में उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। आइए इस लेख में जानते हैं कि इस साल के गुरु पुर्णिमा की तिथि क्या है और साथ ही गुरु पुर्णिमा के इतिहास और महत्व के बारे में जानेंगे।

गुरु पूर्णिमा महत्व

पौराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था और उनका जन्मोत्सव गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे।

 हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास तीनों कालों के ज्ञाता थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर यह जान लिया था कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम हो जाएगी। धर्म में रुचि कम होने के कारण मनुष्य ईश्वर में विश्वास न रखने वाला, कर्तव्य से विमुख और कम आयु वाला हो जाएगा। एक बड़े और सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके बस की बात नहीं होगी। इसीलिए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया जिससे कि अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति रखने वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभ उठा सकें।

व्यास जी ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बांटने के बाद उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को दिया।

वेदों में मौजूद ज्ञान अत्यंत रहस्यमयी और मुश्किल होने के कारण ही वेद व्यास जी ने पुराणों की रचना पांचवे वेद के रूप में की, जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक किस्से-कहानियों के रूप में समझाया गया है। पुराणों का ज्ञान उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को दिया।

व्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि बल के अनुसार उन वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में बांट दिया। महर्षि व्यास ने महाभारत की रचना भी की थी। वे हमारे आदि-गुरु माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का यह प्रसिद्ध त्योहार व्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। हमें अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।

गुरु पूर्णिमा का इतिहास

मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान वेद व्यास, जिन्हें हिंदू धर्म का आदि गुरु माना जाता है, का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने महाभारत, वेदों और पुराणों सहित कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना की थी। इसके अलावा, गुरु पूर्णिमा को भगवान कृष्ण ने अपने गुरु ऋषि शांडिल्य को ज्ञान प्रदान करने के लिए चुना था। इसी दिन, भगवान बुद्ध ने भी अपने पहले पांच शिष्यों को उपदेश दिया था।

कैसे मनाया जाता है गुरु पूर्णिमा?

इस दिन, लोग अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनके चरणों में स्पर्श करते हैं, उन्हें मिठाई और फूल भेंट करते हैं, और उनका आशीर्वाद लेते हैं। गुरु मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कई जगहों पर, गुरु शिष्य परंपरा को दर्शाने वाले नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग इस दिन दान-पुण्य भी करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन जरूर करें ये काम

हर इंसान के जीवन में कोई न कोई गुरु होता है, खास बात ये है कि जो किसी को गुरु नहीं मानता है वो भी किसी न किसी से अपने जीवन में सीखता है। हम सब के जीवन में कोई न कोई हमारा आदर्श होता है। वे भी हमारे गुरु के समान होते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ गुरु और शिष्य के बीच का संबंध अच्छा होता है बल्कि दोनों को एक दूसरे के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है।

  ज्ञान और श्रद्धा का पावन पर्व गुरु पूर्णिमा का महत्व,गुरु पूर्णिमा मुहूर्त- 21 जुलाई 2024 रविवार का संपूर्ण दिन गुरु पूजन का दिन रहेगा।

 गुरु पूर्णिमा पर कैसे करें गुरु पूजन

  • 1.  इस दिन प्रातःकाल स्नान पूजा आदि नित्यकर्मों को करके उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • 2. उसके उपरांत अपने प्रथम गुरु माता- पिता से आशीर्वाद लेना चाहिए। 
  • 3. भगवान श्री हरि विष्णु व भगवान श्री व्यास जी को सुगंधित फल- फूल इत्यादि अर्पित करके उन्हें प्रणाम करना चाहिए।
  • 4. उपरांत यदि आपने गुरु दीक्षा ले रखी है तो अपने गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए और उनका पूजन करना चाहिए।
  • 5. इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर कुछ दक्षिणा यथासामर्थ्य धन के रूप में भेंट करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
  • 6. जहां से भी कुछ अच्छा सीखने को मिलता है जो हमारे ज्ञान को पुष्ट करता है, चाहे फिर वो कोई व्यक्ति हो या कोई पदार्थ या कोई अच्छा ग्रंथ, उसका हृदय से आभार मानना चाहिए।
  • 7. इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु जहां से भी आपने कुछ अच्छा सीखा है, जहां से भी अच्छे मार्गदर्शन व श्रेष्ठ संस्कार मिलते हैं वह सभी गुरु की श्रेणी में आते हैं। अतः उन सब का भी धन्यवाद करना चाहिए।
  • 8. गुरु की कृपा व्यक्ति के हृदय का अज्ञान व अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है अतः गुरु के प्रति हमेशा श्रद्धा व समर्पण भाव रखने चाहिए।
  • 9. गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है, और गुरु का आभार व्यक्त करने के लिए भी इस दिन का विशेष महत्व है। अतः इस पर्व को श्रद्धापूर्वक जरूर मनाना चाहिए।

G News 24 : सांप्रदायिक सौहार्द के लिए बिहार के इस गांव में हिंदू भी मनाते हैं मुहर्रम

 100 सालों से अपने पूर्वजों से किया वादा निभाते हुए मुहर्रम मना रहा है...

सांप्रदायिक सौहार्द के लिए बिहार के इस गांव में हिंदू भी मनाते हैं मुहर्रम

कटिहार। देशभर में 17 जुलाई, बुधवार यानी कि आज मुहर्रमका त्योहार मनाया जा रहा है. शोक का त्योहार मुहर्रम मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत ही खास होता है. ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि मुहर्रम सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिंदू भी मनाते हैं. ऐसी एक प्रथा बिहार में पिछले सौ सालों से चली आ रही है. बिहार के कटिहार का हिंदू समुदाय पिछले 100 सालों से अपने पूर्वजों से किया वादा निभाते हुए मुहर्रम मना रहा है. हसनगंज प्रखंड के महमदिया हरिपुर गांव के लोग मुहर्रम मनाकर सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी मिसाल पेश करते आ रहे है, जिसकी चर्चा बिहार में ही नहीं देशभर में हो रही है. 

कटिहार के हिंदू क्यों मना रहे मुहर्रम !

एक सदी बीत गई लेकिन महमदिया हरिपुर गांव के लोगों ने अपने पूर्वजों से किया वादा नहीं तोड़ा. यहां के हिंदू झरनी के गीत और तमाम रीत-रिवाजों के साथ पिछले 100 सालों से ज्यादा समय से मुहर्रम मना रहे हैं. खास बात ये है कि लगभग 5 किलो मीटर के क्षेत्र की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, लेकिन फिर भी हर साल मातम का त्योहार मुहर्रम यहां पूरे रीत-रिवाज के साथ मनाया जाता है. स्वर्गीय छेदी साह की मजार से जुड़ी मुहर्रम की ये कहानी बड़ी ही दिलचस्प है.

मुहर्रम मनाने के पीछे की कहानी

गांव वालों का कहना है कि यह जमीन वकाली मियां की थी. लेकिन बीमारी से उनके बेटों की मौत हो गई. इसके बाद वह इस जीमन को छोड़कर जाने लगे. लेकिन जाने से पहले उन्होंने छेदी साह को जमीन देते हुए वादा लिया की ग्रामीणों को शोक का त्योहार मुहर्रम पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाना होगा. उन्होंने भी ये वादा कर दिया. बस फिर क्या था, वो दिन और आज का दिन. पूर्वजों से किए इसी वादे को पूरा करते हुए आज भी इस गांव के हिंदू मुहर्रम मना रहे हैं. 

इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होने से भी खास है मुहर्रम का त्योहार !

इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम होता है, इसलिए भी ये महीना मुस्लिमों के लिए खास होता है. दुनियाभर में मातम का ये त्योहार मुस्लिम मनाते हैं. लेकिन बिहार में एक ऐसी जगह है, जहां हिंदू इस त्योहार को मनाते हैं. मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशूरा के रूप में मनाया जाता है. इस्मालिक कैलेंडर के हिसाब से आज आशूरा है, इसे मुहर्रम के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है. 

अंतिम पैगंबर मुहम्मद के नवासे ने अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी !

इस्लाम के मुताबिक, रमजान के बाद दूसरा पाक महीना मुहर्रम होता है. आज की के दिन इस्माल के अंतिम पैगंबर मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी. उनकी शहादत का दिन मुहर्रम महीने का 10वां दिन था. मुहर्रम को इमाम हुसैन की कुर्बानी का दिन माना जाता है. शिया मुस्लिम उनकी शहादत के शोक को मुहर्रम के तौर पर मनाते हैं. मुहर्रम के दिन शिया मुस्लिम काले रंग के कपड़े पहनते हैं और ताजिए का जुलूस निकालते हैं. लोग इस दिन खुद को घायल कर इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं. सुन्नी मुस्लिम ताजिए नहीं निकालता लेकिन वह मुहर्रम के दिन सिर्फ इबादत करता है. 

G News 24 : सावन में अचलनाथ पर शिवभक्तों की टोलियों के लिए 30 से 40 मिनिट के स्लाट निर्धारित !

  श्रावण में टोलियों के रूप में शिवभक्त बेलपत्र अर्पित कर अचलनाथ का करते हैं अभिषेक !

सावन में अचलनाथ पर शिवभक्तों की टोलियों के लिए 30 से 40 मिनिट के स्लाट निर्धारित !

ग्वालियर। श्रावण मास में शिवभक्तों की प्राचीन अचलेश्वर मंदिर पर अधिक संख्या में होने की संभावना हैं। मंदिर संचालन समिति ने श्रद्धालुओं की सुविधाएं के लिए नये सिरे से मंदिरों की व्यवस्थाओं का चाक चौबंद करना शुरू कर दिया है। श्रावण मास में टोलियों में शिवभक्त बेलपत्र अर्पित कर भगवान अचलनाथ का अभिषेक करते हैं। एक माह अभिषेक करने वाली शिवभक्तों की टोलियों के लिए 30 से 40 मिनिट के स्लाट निर्धारित किए जा रहे हैं।

सावन में केवल दो घंटे के लिए मंदिर के पट बंद होंगे। अभिषेक के साथ दर्शनार्थियों के लिए कोई परेशानी नहीं हुई। इसके लिए गर्भगृह को दो भागों में बांटा जाएगा। एक तरफ से श्रद्धालु दर्शन करेंगे। दूसरी तरफ बैठक शिवभक्त अभिषेक करेंगे। मंदिर के प्रबंधक वीरेंद्र शर्मा व पुजारी पंड़ित सुदामा ने बताया कि पूरे एक माह भगवान अचलनाथ को बेलपत्र अर्पित करने के लिए शिवभक्तों का टोलियों का समय पहले से निर्धारित किया जा रहा है।

 गुरुपूर्णिमा की रात से अभिषेक का सिलसिला शुरू हो जाएगा। प्रत्येक टोली को अभिषेक व बेलपत्र अर्पित करने के लिए 30 से 40 मिनिट का समय दिया जाएगा। रात 12 बजे से अभिषेक का सिलसिला शुरू होकर दोपहर तीन बजे तक चलेगा। दोपहर तीन से पांच बजे तक मंदिर के पट बंद रहेंगें।

श्रावण मास में होने वाले अनवरत अभिषेक से दर्शनार्थियों को काई परेशानी न हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। मंदिर के एक साइड अभिषेक करने वाले बैठेंगे। दूसरी साइड से दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए मंदिर में प्रवेश करेंगे। दोनों लोग एक दूसरे की लक्ष्मण रेखा को पार कर व्यवस्थाओं को नहीं बिगाड़ सके, इसके लिए बीच पार्टिशन लगाया जाएगा। 

मंदिर संचालन समिति की इस बार कोशिश है कि श्रवण मास में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए बाउंसर की तैनाती नहीं की जाएगी। यह व्यवस्था सेवादार संभालेंगे। सेवादारों से आधार कार्ड लेकर उनके कार्ड बनाए जायेंगें। उनके कार्ड पर ड्यूटी का समय भी तय होगा। मंदिर संचालन समिति ने जिला प्रशासन के साथ पुलिस को सूचना दे दी कि इस बार श्रावण मास पर पूर्व से अधिक भीड़ श्रद्धालुओं की रहेगी, क्योंकि मंदिर का नवनिर्माण हुआ है। नई जलहरी की प्रतिष्ठा करने के साथ शिव परिवार की पुर्न प्राण प्रतिष्ठा की गई है। इसलिए अधिक संख्या में श्रद्धालुओं के मंदिर पर आने की संभावना है। समिति ने जिला प्रशासन से भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा की व्यवस्था करने का अनुरोध किया है।

G News 24 : दिल्ली विश्वविद्यालय में LLB के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर DU में मचा बवाल !

 मनुस्मृति अक्सर चर्चा में रहती है,इसे जानने का करते हैं प्रयास ...

दिल्ली विश्वविद्यालय में LLB के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर DU में मचा बवाल !

मनुस्मृति एक बार फिर सुर्खियों में है. हालांकि इस बार मनुस्मृति की चर्चा जेएनयू के बजाए दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) में हो रही है. क्योंकि डीयू (DU) प्रशासन ने लॉ फैकिलिटी का वो प्रस्ताव खारिज कर दिया है, जिसमें कानूनी पाठ्यक्रम के तहत मनुस्मृति पढ़ाने की बात कही गई थी. इसे लेकर DU में कई दिनों से बवाल मचा था. दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एलएलबी छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी के लिए रखे जाने की खबरों के बाद कुलपति योगेश सिंह ने भी दो टूक कह दिया कि सुझाव को खारिज किया जाता है. 

मनुस्मृति पर इसलिए है विवाद !

भारत लोकतांत्रिक देश है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जिसके मन में जो कुछ आता है वो कह देता है. इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अधिकांश मामलों में किसी विषय पर स्वस्थ्य चर्चा करने के बजाए आम लोग हों या खास या फिर वैचारिक संगठन (थिंक टैंक) सभी अपनी-अपनी सुविधा और नफे-नुकसान के हिसाब से मुद्दे उठाते हैं. इसी प्रॉसेस में वो किसी चीज का विरोध करते हैं तो किसी को सर आंखों पर बिठाते हैं. ये बात कहीं और लागू होती हो या ना हो लेकिन मनुस्मृति पर जरूर लागू होती है. वहीं शिक्षण संस्थाओं में जब सेलेक्टिव इंटॉलरेंस का मामला सामने आता है तो बात और भी गंभीर हो जाता है.

इसी वजह से डीयू में मनुस्मृति पढ़ाने के सुझाव को लेकर शिक्षक मोर्चा ने भी फौरन ये फरमान सुना दिया कि छात्रों को कानून या किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति का अध्ययन कराना 'संविधान के खिलाफ' है. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पहले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी जेएनयू और हैदराबाद यूनिवर्सिटी में भी मनुस्मृति को जलाने और विरोध करने की कई घटनाएं घट चुकी हैं. कुछ समय पहले जेएनयू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने जेंडर इक्वैलिटी को लेकर प्राचीन संस्कृत पाठ मनुस्मृति की आलोचना की थी.

'जन्मना जायते शूद्र:' अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं :मनुस्मृति 

हिंदू धर्म के कई धर्मशास्त्रों में से कई कानूनी ग्रंथों और संविधानों में से एक मनुस्मृति है. इस पाठ को मानव-धर्मशास्त्र या मनु के कानून के रूप में भी जाना जाता है. मनुस्मृति हिंदू धर्म का एक प्राचीन कानूनी पाठ या 'धर्मशास्त्र' है. इसमें आर्यों के समय की सामाजिक व्यवस्था का वर्णन है. यह सदियों से हिंदू कानून का आधार रहा है और आज भी हिंदू धर्म में इसका महत्व बना हुआ है. हालांकि, मनुस्मृति में कुछ विवादास्पद विषय भी शामिल हैं, जैसे जाति व्यवस्था और महिलाओं की स्थिति जैसे विषयों पर अक्सर बहस होती रहती है.

मनुस्मृति को मनु ऋषि द्वारा लिखा गया माना जाता है, जो हिंदू धर्म में मानवजाति के प्रथम पुरुष और भगवान श्री हरि विष्णु का अवतार माने जाते हैं. इस महान ग्रंथ में कुल 12 अध्याय और 2684 श्लोक हैं. हालांकि मनुस्मृति के कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 बताई जाती है. मनुस्मृति का हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा है.

मनु कहते हैं- 'जन्मना जायते शूद्र:' अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं. बाद में योग्यता के आधार पर ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र बनता है. मनु की व्यवस्था के अनुसार कहा जाता है कि अगर ब्राह्मण की संतान यदि अयोग्य है तो वह अपनी योग्यता के अनुसार चतुर्थ श्रेणी या शूद्र बन जाती है.

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था को इस तरह कि एक वर्ग विशेष का दबदबा बना रहे !

कई इतिहासकारों और भारतीय संस्कृति और परंपरा के विरोधियों ने मनुस्मृति का विद्रूप चित्रण किया है. उनका कहना है कि इसी की थीम पर भारत में एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था तैयार की गई जो ये सुनिश्चित करती कि वर्ग विशेष का दबदबा बना रहे. कुछ लोग ही शीर्ष पर रहें. वही सारी संपत्ति के मालिक रहें और सारी शक्ति उनके आधीन हो. उन्होंने मनुष्यों को चार वर्णों में बांट दिया जिन्हें जातियां कहा जाता था. जातियों के आधार पर लोगों को उनके कर्तव्य और दायित्व सौंप दिए गए. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक कैटिगिरी बनीं. 

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इस देश में बहुत समय पहले एक उन्नत सभ्यता और संस्कृति थी, जो 3500 ईसा पूर्व, यहां तक कि 6000 या 8000 ईसा पूर्व तक की थी. उस महान सभ्यता के लोग शांतिप्रिय थे, मुख्यतः कृषि और व्यापार में व्यस्त थे. जिन्हें कुछ बाहरी लोगों ने अपना शिकार बना लिया.

बहुत से लोग मनुस्मृति का विरोध ये कहकर करते हैं कि ये किताब लोगों में भेद करती है. इसी किताब से जातियों का निर्धारण हुआ. इसी हिसाब से पूजापाठ, अध्यन और अध्यापन जैसे कार्य ब्राह्मणों के जिम्मे आए. क्षत्रियों को भूमि और लोगों की सुरक्षा का काम सौंपा गया. वहीं वैश्यों को भूमि जोतकर भोजन पैदा करना था और जानवरों और पेड़-पौधों की देखभाल करनी थी. इन्हीं लोगों को फसल यानी उपज का व्यापार भी करना होता था. वहीं शूद्रों को अन्य सेवा कार्य सौंपे गए.

श्रेष्ठता और कनिष्ठता यानी सर्वण और बहुजन का कॉन्सेप्ट आया. उस समय जो जाति का वर्गीकरण हुआ तब अलग-अलग जातियों में विवाह की अनुमति नहीं थी. न ही वे एक साथ भोजन कर सकते थे. ऐसे कई आरोप लगाकर मनुस्मृति को बिना पूरी तरह से पढ़े बगैर उस ग्रंथ को आग लगाकर फूंक दिया जाता है. 

डिस्क्लेमर: (यहां प्रकाशित की गई जानकारी धार्मिक पुस्तकों आदि एवं अन्य सूत्रों से ली गई है.)

G News 24 : कुलैथ में जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है तो कुछ समय के लिये पुरी की यात्रा रुक जाती है !

 प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ मास की शुल्क पक्ष की द्वितीय तिथि को ...

कुलैथ में जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है तो कुछ समय के लिये पुरी की यात्रा रुक जाती है 

ग्वालियर। शहर से 15 किमी दूर ग्राम कुलैथ में भी भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। यहां भी ओडिशा के जगन्नाथपुरी की तरह प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ मास की शुल्क पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा गयी है। रविवार की शाम 4 बजे सबसे पहले भगवान जगन्नाथ को चावल के घट चढ़ाये गये फिर लोगों को प्रसाद में वितरण किया गया और इसके बाद भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण पर निकले है। इस बीच भगवान के दर्शनों के लिये हजारों की संख्या में भक्त उमड़ पड़े हैं।

ऐसा कहा जाता हैं कि जब कुलैथ में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है तो उतने समय के लिये करीब 3.30 बजे पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा के पहिये थम जाते है। पुरी में यह घोषणा की जाती है कि भगवान जगन्नाथ जी कुलैथ प्रस्थान कर चुके हैं।

देवी मंदिर जनकपुरी में करेंगे रात्रि विश्राम

भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा से पहले भगवान के सामने चावल के घट चढ़ाए गए, जो चार हिस्सों में बंट गए। इसके बाद यह प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटा गया है। इसके बाद रथ यात्रा निकाली गई। एक रथ में भगवान जगन्नाथ और दूसरी पालकी में बहन सुभद्रा और बलदाऊ जी विराजे हैं। यह रथयात्रा पूरे गांव में घूमते हुए शाम 6 बजे कुलैथ में ही स्थित देवी मंदिर जनकपुरी पहुंचेगी। यहां भगवान एक रात्रि आराम करेंगे। 8 जुलाई को घट चढ़ने के बाद रथयात्रा वापस मंदिर पहुंचेगी।


G News 24 : प्रभु जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन शुभद्रा के साथ 7 दिनों तक गुंडिचा मौसी के घर भी रुकते हैं !

 जगन्नथा रथ यात्रा के तीनों रथों के नाम भी हैं अलग, और इनके सारथी भी...

प्रभु जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन शुभद्रा के साथ 7 दिनों तक गुंडिचा मौसी के घर भी रुकते हैं !

7  जुलाई रविवार से जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो गई है. यह यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित की जाती है. इसका आयोजन ओडिशा के पुरी में किया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ के साथ दो और रथ निकलते हैं जिसमें उनके भाई और बहन होते हैं. इस रथ यात्रा की शुरूआत से पहले तीनों रथों की पूजा की जाती है. इसके बाद सोने की झाड़ू के साथ मंडप और रथ के रास्ते की सफाई का जाती है. इसके अलावा और क्या कुछ खास है इस पवित्र रथ यात्रा से जुड़ा हम आपको आगे आर्टिकल में बताने वाले हैं. 

जगन्नाथ रथ यात्रा की क्या है मान्यता

इस यात्रा को लेकर मान्यता है कि इसमें शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि दुनिया भर से लोग इस यात्रा में प्रभु जगन्नाथ का आशीर्वाद लेने के लिए शामिल होते हैं. साथ ही यह भी मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कम होता है. क्योंकि जगन्नाथ रथ यात्रा में नवग्रहों की पूजा की जाती है. 

ओडिशा के पुरी से निकलने वाली प्रभु जगन्नाथ की रथ के साथ दो और रथ निकलते हैं जिसमें से एक में उनके भाई बलराम और दूसरे में बहन सुभद्रा विराजमान होती हैं. सबसे आगे भाई बलराम का रथ उसके बाद बहन सुभद्रा और फिर भगवान जगन्‍नाथ का रथ होता है. इस तरह कुल 3 देवताओं की यह यात्रा निकलती है. 

तीनों रथों के क्या हैं नाम -

भगवान जगन्नाथ का रथ -

  • - यह रथ 42.65 फीट ऊंचा होता है और इसमें 16 पहिए होते हैं,
  • - वहीं इस रथ का रंग लाल और पीला होता है. 
  • - प्रभु जगन्नाथ के सारथी दारुक हैं.

भाई बलराम का रथ -

  • - इसकी ऊंचाई 43.30 फीट होती है, जो भगवान जगन्नाथ के रथ से बड़ा होता है.
  • - इसका रंग लाल और हरा होता है जिसमें 14 पहिए लगे होते हैं. इस रथ के सारथी मातलि हैं.

 बहन सुभद्रा का रथ -

  • - इसका रंग लाल और काला होता है जिसमें 12 पहिए लगे होते हैं और इस रथ के सारथी अर्जुन हैं. 

 7 दिन तक रुकते हैं मौसी के घर

भाई बलराम और बहन के साथ जब प्रभु यात्रा पर निकलते हैं तो रास्ते में गुंडिचा मौसी के घर भी रुकते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पर तीनों भाई बहन स्वादिष्ट पकवान खाते हैं जिससे उनकी तबीयत बिगड़ जाती है. ऐसे में वो अज्ञातवास में चले जाते हैं. यहां पर पूरे 7 दिन तक रुकते हैं और स्वस्थ्य होने के बाद पुरी वापस आते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ग्वालियर न्यूज 24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


G News 24 : भक्त अब केवल पवित्र गुफा के ही कर पाएंगे दर्शन,नहीं हो पाएंगे बाबा बर्फानी के दर्शन !

  समय से पहले पिघले पिघलकर आदृश्य हुआ  शिवलिंग...

भक्त अब केवल पवित्र गुफा के ही कर पाएंगे दर्शन,नहीं हो पाएंगे बाबा बर्फानी के दर्शन !

श्रीनगर। अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है। अमरनाथ गुफा में बढ़ती गर्मी की वजह से शिवलिंग समय से पहले पिघल गया है। ऐसे में श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन नहीं कर पाएंगे। खराब मौसम के कारण आज अमरनाथ यात्रा बालटाल और पहलगाम दोनों मार्गों से स्थगित कर दी गई है। मौसम ठीक होते ही यात्रा को फिर से शुरू कर दिया जाएगा। 

इस साल कितने श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

इस साल अब तक डेढ़ लाख से ज़्यादा श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन कर चुके हैं। यात्रा 19 अगस्त तक जारी रहेगी। यात्रा के पहले सप्ताह में रिकॉर्ड 1.51 लाख यात्रियों ने दर्शन किए, लेकिन नए अमरनाथ यात्रियों को निराशा हुई क्योंकि पवित्र गुफा में बर्फ का शिवलिंग पूरी तरह पिघल गया है।

बहुत अधिक तापमान के कारण शिवलिंग पिघलने की प्रक्रिया तेज हो गई

अधिकारियों का कहना है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान बहुत अधिक तापमान के कारण पिघलने की प्रक्रिया तेज हो गई है। 2008 के बाद यह पहली बार है कि यात्रा के पहले 10 दिनों के भीतर बर्फ का शिवलिंग पूरी तरह से गायब हो गया है। इस साल यात्रा 52 दिनों की है और 29 जून से शुरू होकर 19 अगस्त को ख़त्म होगी।

G News 24 : नारायण साकार ही नहीं लंबा है भारत में ढोंगी बाबाओं का गोरखधंधा !

 नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा सहित कई ऐसे बाबा शामिल हैं इस सीरियस क्राइम लिस्ट में ...

नारायण साकार ही नहीं लंबा है भारत में ढोंगी बाबाओं का गोरखधंधा ! 

नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के आलावा कई ऐसे धर्म गुरु हैं, जिनका नाता सीरियस क्राइम से रहा है, जिसमें से अधिकतर जेल में सजा काट रहे हैं. उत्तर प्रदेश के हाथरस में नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद भगदड़ मचने से 123  लोगों की मौत हो गई. इस बाबा के अनुयायी ज्यादातर बहुत गरीब और दलित हैं.

विवादास्पद आध्यात्मिक गुरु और रेप मामले में सजा काट रहे आसाराम बापू पर कथित तौर पर राजस्थान में अपने आश्रम में 16 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने का आरोप था. इससे पहले 2008 में, दो युवा लड़के रहस्यमय उसके आश्रम से लापता हो गए थे.

चंद्रास्वामी पर सीबीआई ने 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने का मामला दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उस पर ईडी की ओर से लगाए गए जुर्माने के रूप में नौ करोड़ रुपये चुकाने के लिए कहा था. 66 वर्षीय चंद्रास्वामी की मई 2017 में दिल्ली के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई थी.

समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 72 वर्षीय स्वामी और उनका बेटा मध्य प्रदेश में ₹ 700 करोड़ की ज़मीन हड़पने के मामले में भी शामिल थे. नुमान है कि 2013 तक उन्होंने भारत और विदेशों में 400 से ज़्यादा आश्रम और 40 स्कूल स्थापित कर लिए थे.

रामपाल उर्फ स्वयंभू बाबा के खिलाफ देशद्रोह, हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा, अवैध हिरासत और अन्य कई मामले दर्ज हैं. यह बाबा गिरफ्तारी से बचता रहा, जिसका नतीजा यह हुआ कि उसके अनुयायियों ने हरियाणा के रोहतक के एक गांव में सुरक्षा बलों पर गोलियां चला दीं थी. रामपाल को 19 नवंबर 2014 को गिरफ्तार किया गया और दोषी ठहराया गया. चंद्रास्वामी पर सीबीआई ने 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने का मामला दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उस पर ईडी की ओर से लगाए गए जुर्माने के रूप में नौ करोड़ रुपये चुकाने के लिए कहा था. 66 वर्षीय चंद्रास्वामी की मई 2017 में दिल्ली के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई थी.

गुरमीत राम रहीम सिंह इन्साँ हरियाणा के सिरसा में स्थित संस्था डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख था।डेरा सच्चा सौदा की स्थापना 1968 में शाह मस्ताना जी द्वारा की गई थी। गुरमीत इस संस्था के तीसरे प्रमुख थे। इनके कार्यकाल में डेरा का अभूतपूर्व प्रचार प्रसार हुआ और इनके अनुयायियों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। गुरमीत राम रहीम सिंह के नेतृत्व में डेरा सच्चा सौदा में कई सकारात्मक कार्य किये गए, नए नए प्रयोग किए गए, वहीं वे हमेशा विवादों में भी बने रहे। विवादों की परिणति 25 अगस्त 2017 को एक यौन शोषण मामले में अदालत द्वारा इन्हें दोषी करार दिए जाने के रूप में हुई।[3] इस मामले में राम रहीम को 20 साल के सश्रम कारावास व 65 लाख रूपये जुर्माने की सजा हुई। और राम रहीम को पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति हत्या काँड में 11 जनवरी 2019 को दोषी करार दिया गया व दिनांक 17 जनवरी 2019 को सीबीआई की विशेष आदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई है।

ये लिस्ट यूं तो बहुत लंबी है ऊपर जिन बाबाओं के बारे में बताया गया उनके नाम तो आप सभी के जेहन में होंगे और नाम सामने आते ही इन सभी के कारनामे भी आपको याद आ ही गए होंगे। इसलिए किसी भी बाबा को अपना सब कुछ(भगवान्) मानने से पहले उनके बारे में ठीक से जानकारी हासिल कर लें। 

G Nedws 24 : संत प्रेमानंद ने मध्य रात्रि के बाद तड़के निकलने वाली पदयात्रा कर दी है बंद !

 हाथरस में सत्संग के दौरान हुई भगदड़ में 121 लोगों की मौत से सबक लेते हुए ...

 संत प्रेमानंद ने मध्य रात्रि के बाद तड़के निकलने वाली पदयात्रा कर दी है बंद !

मथुरा । हाथरस में सत्संग के दौरान हुई भगदड़ में 121 लोगों की मौत से सबक लेते हुए संत प्रेमानन्द ने तड़के निकलने वाली पदयात्रा बंद कर दी है। संत के दर्शन के लिये पदयात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। संत प्रेमानन्द रोज रात करीब 2:15 बजे छटीकरा मार्ग स्थित अपने आवास से पदयात्रा निकालते हुए परिक्रमा मार्ग स्थित अपने आश्रम श्रीहित राधा केली कुंज पहुंचते हैं। यहां उनके प्रवचन होते हैं।

भीड़ के मद्देनजर पदयात्रा पर रोक लगाने का फैसला लिया गया है। इस सम्बन्ध में श्रीहित राधा केली कुंज की ओर से सोशल मीडिया पेज भजन मार्ग पर अपील की गई है। जिसमें कहा गया है कि हाथरस में हुई घटना बहुत ही हृदय विदारक व दुःखद है, जिसमें हम सबकी गहन सवेदनाएं परिजनों के साथ हैं। भविष्य में ऐसी घटना ना घटे, ऐसी ठाकुर जी के चरणों में प्रार्थना है।

उपरोक्त घटना के संदर्भ में सावधानी बरतते हुए महाराजजी, जो पद यात्रा करते हुए रात्रि 2:15 बजे से श्रीहित राधा केलि कुंज जाते थे, जिसमें सब दर्शन पाते थे, वो अनिश्चित काल के लिए बंद की जाती है। कृपया कोई भी श्रद्धालु रात में रास्ते में दर्शन के लिए खड़े ना हों, ना ही रास्ते में किसी प्रकार की भीड़ लगाएं।

G News 24 : हर घटना हमें कुछ न कुछ सिखाकर जाती है उससे सीख लेना चाहिए : प्रहलाद भाई

 प्रभु उपहार भवन माधौगंज में खुशनुमा जिन्दंगी विषय पर हुआ वैश्य महा सम्मलेन...

हर घटना हमें कुछ न कुछ सिखाकर जाती है उससे सीख लेना चाहिए : प्रहलाद भाई

ग्वालियर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय प्रभु उपहार भवन माधौगंज में वैश्य महा सम्मलेन मध्य प्रदेश महिला इकाई जिला ग्वालियर के सदस्यों के लिए खुशनुमा जिन्दंगी विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से ब्रह्माकुमारीज केंद्र प्रभारी बीके आदर्श दीदी, राजयोग प्रशिक्षक बीके डॉ. गुरचरण सिंह, प्रेरक वक्ता बीके प्रहलाद भाई, वैश्य महासम्मेलन के मुकेश अग्रवाल, अनिल जैन, महेश गर्ग, राजेश जैन, ज्योति बंसल उपस्थित थीं। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। 

कार्यक्रम में प्रेरक वक्ता बीके प्रहलाद भाई ने कहा कि आज ज्यादातर यह देखने में आ रहा है कि लोग छोटी छोटी बातों में नाराज हो जाते है, तनाव में आ जाते है, गुस्सा करने लगते है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि कोई गुस्सा कर रहा है तो समझो कोई न कोई बीमारी को निमंत्रण दे रहा है। इसलिए क्रोध करने से बचना चाहिए। हर घटना हमें कुछ न कुछ सिखाकर जाती है उससे सीख लेकर आगे बढऩा चाहिए। हर व्यक्ति यहाँ पर अपना किरदार निभा रहा है, हमें उससे प्रभावित हुए बिना अपना किरदार बेहतर तरीके से निभाना चाहिए। जीवन में उतार चढाव आते है लेकिन उससे घबराना नहीं चाहिए। एक बात हमेशा याद रखो दुवाएं देनी है दुवाएं लेनी है। जिसके पास दुवाओं की पूंजी होती है, वही सबसे धनवान व्यक्ति है। और दुवाएं तो एक ऐसा खजाना है जो आपके भी काम आंएगी और दूसरों के भी। 

तत्पश्चात बीके डॉ. गुरचरण सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए सभा को संबोधित किया और कहा कि आज के समय में कोई खुश रहता है तो यह उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अनेक ऐसे कारण होते है, जिनकी बजह से हमारी ख़ुशी गुम हो जाती है। जैसे आज हर व्यक्ति आवश्यकता से अधिक मोबाईल फोन का उपयोग करता है, कई बार हम भोजन करते समय भी फोन का उपयोग करते है जबकि उस समय उसकी उतनी आवश्यकता नहीं होती। मोबाईल फोन का आवश्यकता के अनुसार ही उपयोग करना चाहिए। 

कार्यक्रम में आदर्श दीदी ने कहा कि अपने को ऊर्जा से भरपूर रखने के लिए सुबह जागते ही दिन की शुरुवात परमात्मा की याद से करना चाहिए। निराकार परमपिता परमात्मा शिव जो कि सभी के पारलौकिक पिता है। वह शांति के सागर है, प्रेम के सागर है, दिव्य बुद्धी दाता है, गुणों के भण्डार है, सबको सुख देने बाले है। उनकी याद से सर्व प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाती है। आज मनुष्य झूठे दिखाबे में तेरी-मेरी में, परचिन्तन में समय गवां रहा है यही सब दु:ख का कारण बनते है। सबके प्रति अच्छी भावना रखें। सबको सम्मान दें। इसके साथ ही दीदी ने स्वयं की वास्तविक पहचान सभी को दी तथा राजयोग ध्यान के बारे में बताते हुए उसका अभ्यास सभी को कराया।

कार्यक्रम में उपस्थित मुकेश अग्रवाल ने कहा कि संस्था में आकर सुखद अनुभूति हुई मै यहाँ पहली बार आया हूँ इससे पहले सोशल मीडिया पर दीदी को सुना। यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा यहाँ का हर वक्ता अपने आप में विशेष और प्रेरणा देंने बाला है।

अनिल जैन ने कहा कि मानव जीवन में और प्रथ्वी पर स्वर्ग देखना है तो ब्रह्माकुमारीज जैसी आध्यात्मिक जगहों पर आते रहना चाहिए। हम सोचते है कि हम जो कर रहे है वह सवसे अच्छा है लेकिन हमें सबके विचारों को सम्मान देना चाहिए। महेश गर्ग ने कहा कि अपने अन्दर पोजिटिविटी बनाकर रखनी है आज यहाँ पर हमने जो सुना सीखा उसे धारण करने का प्रयास करेंगे।

राजेश जैन ने कहा कि यहाँ आकर सुकून मिल रहा है मुझे आने से पहले यह नहीं मालूम था कि इतने अच्छे  कार्यक्रम में जा रहा हूँ। मेरा यहां आना सार्थक रहा। मेरा प्रयास रहेगा कि हम अपनी इकाई के अन्य लोगो भी यहाँ लेकर आएं। कार्यक्रम के अंत मे ज्योति बंसल ने इकाई के सभी लोगो का आभार प्रकट करते हुए अपनी शुभकामनयें रखीं।

कार्यक्रम में विवेक गुप्ता, कपिल जैन, समता जैन, साधना गुप्ता, रीता गर्ग, पिंकी बंसल, नीलम माहेश्वरी, साधना गोयल, नीलम जैन, सविता गुप्ता, रागिनी अग्रवाल, नीलम जैन आदि उपस्थित थीं।

G News 24 : ज्यादा नहाने के कारण भगवान जगन्नाथ,भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा पड़ जाते हैं बीमार !

 सहस्‍त्र धारा स्नान के बाद 14 दिनों तक उन्हें ठीक करने के लिए चलता है उपचार ...

 ज्यादा नहाने के कारण भगवान जगन्नाथ,भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा पड़ जाते हैं बीमार !

देव स्नान पूर्णिमा हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. हर वर्ष की तरह इस बार भी भक्तों का इंतजार अब खत्म होने वाला है. पुरी में होने वाले विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का सभी भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है. ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा यानी कि 22 जून के दिन भगवान जगन्नाथ को सहस्त्र धारा का स्नान कराया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा एक जगह एकत्रित होते हैं. सहस्‍त्र धारा स्नान को प्रमुख अनुष्ठानों में से एक माना गया है. यही कारण है कि इसे देव स्नान पूर्णिमा कहा गया है.

जानें देव स्नान पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता

हर साल पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को एक साथ एकत्र कर सहस्त्र धारा स्नान कराया जाता है, जिसके लिए उन्हें स्नान मंडप तक लाते हैं. इसके बाद उन्हें मंदिर के प्रांगण में मौजूद कुंए के पानी से स्नान करवाया जाता है. 108 घड़ों से स्नान करने के बाद महत्वपूर्ण अनुष्ठान भी किए जाते हैं. बता दें कि स्नान वाले जल में फूल, चंदन, केसर और कस्तूरी को मिलाया जाता है, जिसके बाद भगवान को सादा बेश बनाते हैं और दोपहर में हाथी बेश पहना कर भगवान गणेश के रूप में तैयार करते हैं.

14 दिनों तक हो जाते हैं बीमार

बता दें कि इस स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ 14 दिनों के लिए बीमार हो जाते हैं, जिसकी वजह से उनके कपाट को भी बंद कर दिया जाता है. दरअसल इतना ज्यादा नहाने के बाद वह बीमार पड़ जाते हैं. इसलिए 14 दिनों तक उन्हें ठीक करने के लिए उपचार चलता है. 15वें दिन यानि कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं, जिसे नेत्र उत्सव के नाम से जानते हैं. इसी नेत्र उत्सव के अगले दिन यानि कि आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि को शोभायात्रा जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू कर दी जाती है. जहां देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग इसे देखने के लिए आते हैं. 

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और किवदंतियों पर आधारित है.Gwalior News 24 इसकी पुष्टि नहीं करता है

G News 24 : एक ऐसा विश्व विद्यालय जहाँ पढने की फीस नहीं लगती : अम्बादास दानवे

 ब्रह्माकुमारीज का चार दिवसीय राष्ट्रीय युवा सम्मेलन एवं मैजिक ऑफ़ साइलेंस रिट्रीट शुरू ...

एक ऐसा विश्व विद्यालय जहाँ पढने की फीस नहीं लगती : अम्बादास दानवे 

राजस्थान।  ब्रह्माकुमारीज संस्थान के ज्ञान सरोवर परिसर में आयोजित मैजिक ऑफ़ साइलेंस विषय पर चार दिवसीय राष्ट्रीय युवा सम्मेलन एवं रिट्रीट का आयोजन हुआ। जिसमें महाराष्ट्र विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अम्बादास दानवे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे साथ ही विशिष्ट अतिथि के तौर पर गुजरात से एनएसएस के क्षेत्रीय निदेशक कमल कुमार कर, अंतर्राष्ट्रीय हॉकी प्लेयर प्रीतम सिवाच, पूर्व अध्यक्ष इंडियन इन्फ्लूएंसर एशोसिएशन अंकित खंडेलवाल, ज्ञान सरोवर एकेडमी की निदेशिका राजयोगिनी बीके सुदेश दीदी, सह निदेशिका बीके प्रभा दीदी, युवा प्रभाग की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा राजयोगिनी बीके चन्द्रिका दीदी, राष्ट्रीय संयोजिका बीके कृति बहन तथा कमिटी मेम्बर बीके गीता बहन, बीके जीतू भाई, बीके प्रहलाद भाई सहित अन्य लोग उपस्थित थे। आपको बता दें कि यह कार्यक्रम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्था राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित किया गया।

उद्घाटन सत्र से पूर्व एक स्वागत सत्र आयोजित हुआ जिसमें पानीपत से आयीं बीके सारिका बहन ने सभी का स्वागत अभिनन्दन किया। तत्पश्चात ज्ञानसरोवर की वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षका बीके सीमा बहन ने संस्थान का परिचय दिया तथा ग्वालियर से आये युवा प्रभाग के कार्य समिति सदस्य बीके प्रहलाद भाई ने प्रभाग द्वारा पिछले 40 वर्षो में देश भर में युवाओं के लिए की गई गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रह्माकुमारीज की यूथ विंग एक ऐसी विंग है जिसने देश भर के लाखो युवाओं को अनेकानेक अभियान, सम्मलेन एवं कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें निर्व्यसनी बनाया तथा दिव्य गुणों को जीवन में धारण करने के लिए प्रेरित किया

यूथ विंग की शुरूवात 1985 में हुई और तब से लेकर आज तक नित नए कीर्तिमान विंग ने स्थापित किए जिसका लाभ लाखो युवाओं को मिला।

राजयोगिनी बीके चंद्रिका दीदी ने युवाओं के लिए मैजिक आफ साइलेंस विषय शांति की शक्ति विश्व का परम सत्य परमपिता परमात्मा शांति में दिव्यता एवं सद्भाव कहा कि महात्मा गांधी ने गुलामी का दृश्य देखा और उनके मन में यह विचार आया कि मुझे इस गुलामी से सब को छुड़ाना है। और उस कार्य में जुट गए। आज मनुष्य अपनी ही गुलामी में जकड़ा है। 

आलस्य क्रोध, अहंकार इर्ष्या जैसे अवगुणों ने प्रभाव डाल रखा है। मानव जीवन अर्थात शरीर प्लस आत्मा हम यह भूल गए कि मैं एक दिव्य ज्योति प्रकाश हूं। इस भूल के कारण ही विकृति और फिर दुख अशांति निराशा जैसी चीजें हमारे जीवन में आने लगी। आप यहां से एक ऐसा जादूगर बनकर जाने वाले हो जो आपके जीवन की इन बुराइयों से मुक्त कर दे।  आप अपनी आत्म चेतना को जागृत करके जाएंगे ऐसा मेरा विश्वास है। किसी बात को समझने के बाद बार-बार उसका मन में स्मरण करने से हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है यहां आपको यहाँ सीखने को मिलेगा। इसके साथी ही दीदी ने सभी को राजयोग ध्यान का अभ्यास कर कर गहन शांति की अनुभूति कराई।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे महाराष्ट्र विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अम्बा दास दानवे जी ने कहा कि ब्रह्मा कुमारीज विश्व विद्यालय अन्य सभी के साथ शिक्षकों को भी शिक्षा देने का विद्यालय है यहां पर कोई फीस नहीं लगती कोई भी इस ऊंची पढ़ाई को पढ़ सकता है। उन्होंने युवा की परिभाषा देते हुए बताया कि, जो सोचा वह करना है यह युवा का लक्ष्य होना चाहिए। वायु तेज होती है, गतिमान होती है वायु और युवा परस्पर पूरक हैं युवा को वायु जैसा होना चाहिए। युवाओं को आक्सीजन देने का कार्य अर्थात दूसरो की मदद करने का कार्य करना चाहिए। युवाओं में जोश के साथ होश भी होना चाहिए। कई वार युवा जल्दबाजी में होश खो देते हैं जिसका बाद में फिर नुकसान होता है। मैजिक ऑफ़ ऑफ़ साइलेंस का असर युवाओं में देखने को मिलेगा आज तक हमने सुना मैजिक ऑफ सोशल मीडिया, मैजिक ऑफ़ पावर लेकिन यहां मैजिक आफ साइलेंस है। 

यह शांति की एक शक्ति है जिससे हर कार्य संभव है। युवाओं के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए शांति के महत्व को जानकर उसका अनुभव सभी को करना चाहिए। अन्तर्रष्ट्रीय हॉकी प्लेयर प्रीतम सिवाच ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज में आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है मैंने बहुत पहले यह सोचा था कि कभी इस तरह के आध्यात्मिक संस्थान में अवश्य जाएंगे और आज वह सुअवसर मुझे मिला। इसके लिये मै ईश्वर का धनयवाद करती हूँ। अच्छा स्पोर्ट्समैन बनने के लिए हर उस व्यक्ति को यहाँ आना चाहिए। जो खेल में एकाग्रता बढ़ाना चाहते है। राजयोगिनी बीके सुदेश दीदी ने कहा कि यहां से सभी युवा शांति का फ्लोवर बनकर जाएँ  जो दूसरों को भी हमारे जीवन से शांति की अनुभूति हो.जैसे फूल बोलता नही है लेकिन उसकी खुशबू सबको अपनी ओर आकर्षित करती है इए ही हमारा जीवन हो खिले हुए फूल की तरह जो सबको दिव्य गुणों की खुशबू दे।

उन्होंने अंग्रेजी के पीस शव्द का अर्थ बताते हुए कहा कि 

  • पी - अर्थात पॉजिटिव, प्युर और पावरफुल 
  • ई - अर्थात एक्सरसाइज. एजुकेशन और एक्सपीरियंस 
  • ए - अर्थात अप्रिशिएसन, एक्सेप्टेंस और एक्शन 
  • सी - अर्थात कूल, काम और क्लियर 
  • ई - अर्थात एवरीथिंग और एनर्जी 

वास्तव में शांति, प्रेम, पवित्रता, ख़ुशी, आनंद, ज्ञान आदि गुणों का जीवन में होना ही रियल एनर्जी है। ऐसा फ्लावर बनाकर के हमें यहां से जाना है। इस अवसर पर एन एसएस गुजरात के निदेशक कमल कुमार कर, अंकित खंडेलवाल, बीके प्रभा दीदी सहित एनी सभी ने अपनी शुभकामनाएं रखी। सम्मेलन में देश भर से 450 से अधिक युवाओं ने भाग लिया।

G News 24 : स्पीकर्स का शोर आराध्य के प्रति समर्पण नहीं बल्कि अपनी आस्था से दूसरों को प्रभावित करना है : रवि

 मनमाने तरीके से हटाए जा रहे लाउड स्पीकर : दिग्विजय सिंह 

स्पीकर्स का शोर आराध्य के प्रति समर्पण नहीं बल्कि अपनी आस्था से दूसरों को प्रभावित करना है : रवि 

मध्यप्रदेश में धार्मिक स्थलों पर नियम विरुद्ध लगाए गए लाउड स्पीकर्स को उतारने का अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखा जाना ये साफ जाहिर करता है कि राज नेता अपने राजनैतिक स्वार्थपूर्ति के लिए किसी भी अच्छी मुहिम में रोड़ा अटकाने से भी बाज नहीं आते हैं वही कार्य करने का प्रयास दिग्विजय सिंह भी इन दिनों कर रहे हैं।

अब देखा जाए तो धार्मिक स्थलों पर लाऊड स्पीकर्स की जरूरत ही क्या है ? ये शोर किसे सुनाया जाता है। क्योंकि भक्ति/उपासना/अरदास/सुमिरन या दुआ करने के लिए  किसी भी आराध्य को सच्चे और शुद्ध मन याद करना ही सही मायने में उसके प्रति भक्त/उपासक की अपने आराध्य के प्रति निष्ठा होती है। आराध्य बहरा नहीं है जो उसे गला फाड़ फाड़कर शोर मचाकर अपनी आवाज़ से ये बताने का प्रयास किया जाये कि आप उसे याद कर रहे हैं। 

वैसे भी सरकार इन दिनों राज्य के अन्य शहरों में कड़ाई से पालन करने के लिए पुलिस और प्रशासन ध्वनि विस्तारक यंत्रों को हटा रहा है। कई मंदिरों से सिर्फ आरती के समय उपयोग किए जाने वाले लाउड स्पीकरों को उतार दिया गया। कई मस्जिदों से नमाज के पहले अजान के लिए उपयोग किए जाने वाले लाउड स्पीकरों को भी उतारा  जा रहा है।

 मेरे विचार से इसमें किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब स्पीकर्स और लाइट का अविष्कार नहीं हुआ था तब भी तो आरती/अजान और अरदास होती ही थी तो अब बे -वजह इसे लेकर शोर क्यों मचाया जा रहा है। कभी-कभार इन आयोजनों में भीड़ और व्यवस्था के हिसाब से तो लाऊड स्पीकर्स का उपयोग ठीक है, लेकिन रोजाना बार बार इस प्रकार ध्वनि प्रदूषण फैलाना ठीक नहीं। इस प्रकार अपनी आस्था से दूसरों को परेशान करना कहां तक उचित है।  

लेकिन इसे लेकर दिग्विजय सिंह का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार के जारी निर्देशों का समानता से पालन नहीं हो रहा है। इसके लिए संबंधित धार्मिक स्थलों के प्रमुखों या धर्मगुरुओं से भी कोई सलाह-मशवरा नहीं किया जा रहा है। इस प्रकार धार्मिक केंद्रों द्वारा नियमों का पालन करते हुए उपयोग किए जा रहे लाउड स्पीकर्स को उतारना आम लोगों और धर्मगुरूओं की भावनाओं को आहत करता है।

दिग्विजय सिंह ने लिखा- मेरा आपसे अनुरोध है कि मध्यप्रदेश शासन ने जिस भावना से यह दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उस भावना की रक्षा करने के लिए धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर्स को नियमों के अंतर्गत उपयोग करने से रोकने वाले अधिकारियों पर नियंत्रण किया जाए। मानव स्वास्थ्य की रक्षा के साथ-साथ लोगों की आस्थाओं और सांस्कृतिक परंपराओं की भी रक्षा की जाए। आशा है आप इस मामले को व्यक्तिगत तौर पर दिखवाएंगे, और नियमों के विरुद्ध मनमाना आचरण करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर नियंत्रण करेंगे।

G News 24 : 23 जून से 05 जुलाई तक "रौरव काल" दुर्योग काल के चलते प्रकृति का प्रकोप बढ़ने की संभावना है !

 और जब 13  दिन का पक्ष हो,तो संभावना होती है भीषण संहार की... 

23 जून से 05 जुलाई तक "रौरव काल" दुर्योग काल के चलते प्रकृति का प्रकोप बढ़ने की संभावना है !

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल संवत् 2081 में बहुत समय बाद आषाढ़ कृष्ण पक्ष केवल 13 दिन का पर रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इसे दुर्योंग काल माना जा रहा है। ऐसा संयोग महाभारत काल में पड़ा था। इस साल दुर्योग काल के चलते प्रकृति का प्रकोप बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। 

 विक्रम संवत् का प्रत्येक महीना दो पखवाड़ा यानी-15-15 दिनों का होता है। इसे कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष कहा जाता है। जब किसी पक्ष में एक तिथि दो दिन पड़ती है तो यह पक्ष 16 दिनों का हो जाता है और तिथि के घटने पर 14 दिनों का होता है।

इस साल विक्रम संवत 2081 में आषाढ महीने का कृष्ण पक्ष 23 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलेगा अर्थात कृष्ण पक्ष 13 दिनों का रहेगा।अब शुक्ल पक्ष 6 जुलाई से शुरू हो रहा है जो 21जुलाई तक चलेगा। इस कृष्ण पक्ष में दो तिथियों द्वतिया और चतुर्थी का क्षय हो रहा है, इसलिए यह कृष्ण पक्ष केवल 13 दिनों का होगा। ऐसा संयोग बहुत सालों में आता है।इसे "विश्व घस्र" पक्ष कहते हैं। यह बहुत बड़ा दुर्योग है,बहुत वर्ष बाद ऐसा दुर्योग आता है। महाभारत युद्ध के पहले 13 दिन के पक्ष का दुर्योग काल आया था। उस समय बड़ी जनधन हानि हुई थी। घनघोर युद्ध था।

पक्षस्य मध्ये द्वितिथि पतेतां यदा भवेद्रौरव काल योगः। 
पक्षे विनष्टं सकलं विनष्ट मित्याहुराचार्यवराः समस्ताः
एकपक्षे_यदा_यान्ति_तिथियश्च_त्रयोदश।
त्रयस्तत्र क्षयं यान्ति वाजिनो मनुजा गज:।।
त्रयोदश दिने पक्षे तदा संहरेत जगत् ।
अपि वर्षे सहस्रेण कालयोग प्रकीर्तित:।।
द्वितियामारभ्य चतुर्दश्यन्तं तिथिद्वये ह्रासे।
त्रयोदश दिनात्मक: पक्षोऽति दोषोवतो भवति।।

अर्थात आषाढ़ कृष्ण पक्ष 13 दोनों का है यह 13 दिन का पक्ष होने से पृथ्वी पर जनहानि युद्ध की संभावना होती है जिस वर्ष 13 दिन का पक्ष होता है उसे वर्ष संपूर्ण विश्व के लिए हानिकारक होता है विशेष कर द्वितीया तिथि से लेकर चतुर्दशी तिथि पर्यंत अगर दो तिथि का क्षय हो तो विशेष रूप से संपूर्ण विश्व के लिए हानिकारक होता है यह पक्ष मंगल कार्य हेतु भी उत्तम नहीं है। यह "रौरव काल" संज्ञक दुर्योग होता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे अच्छा नहीं माना गया है। ऐसा दुर्योग होने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि, राजसत्ता का परिवर्तन, विप्लव, वर्ग भेद आदि उपद्रव होने की संभावना पूरे साल बनी रहती है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है-

                                                     त्रयोदशदिने पक्षे तदा संहरते जगत्। 

                                                      अपिवर्षसहस्रेण कालयोगःप्रकीर्तितः। 

अर्थात समस्त प्रकृति को पीड़ित करने वाला यह दुर्योग संक्रामक रोगों की भी वृद्धि कर सकता है। इस पक्ष में मांगलिक कार्य, व्रतारम्भ,उद्यापन,भूमि भवन का क्रय विक्रय,गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों का त्याग कर देना चाहिए। काल चक्र की गणना भारी,जाने मुरारी या त्रिपुरारी।।

G News 24 : गौतम बुद्ध के ये सात विचार जिन्हें अपना जीवन बना सकते हैं खुशहाल !

 वैशाख पूर्णिमा के दिन ही बिहार के बोध गया में बोधिवृक्ष के नीचे हुई थी बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति...

 गौतम बुद्ध के ये सात विचार जिन्हें अपना जीवन बना सकते हैं खुशहाल !

वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। आज गुरूवार  23 मई 2024 को वैशाख पूर्णिमा है। वैशाख पूर्णिमा को विशेष तौर पर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। बौद्ध धर्म में इस दिन का बहुत महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। साथ ही भगवान गौतम बुद्ध को सात वर्षों की कठिन तपस्या के बाद बिहार के बोध गया के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी। इसके अलावा भगवान गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण समारोह यानि उनके जीवन का अंतिम दिवस भी वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता है। तो आइए बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर जानते हैं गौतम बुद्ध के अनमोल विचार, जिन्हें अपना हर मनुष्य अपने जीवन में शांति और खुशी को बरकरार रख सकता है।

  • 1. शक खतरनाक है। शक रिश्तों में दरार डालता है और लोगों को अलग कर देता है। यह दो अच्छे दोस्तों और किसी भी अच्छे रिश्ते को बर्बाद कर सकता है।- महात्मा बुद्ध
  • 2. सदैव सच का साथ देते रहो। अच्छा सोचो और अच्छा करो। प्रेम धारा बनकर बहो- महात्मा बुद्ध
  • 3. जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से बेहतर स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो। फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी, जिसे तुमसे कोई नहीं छिप सकता।- गौतम बुद्ध
  • 4. क्रोध में हजारों गलत शब्द बोलने से अच्छा, मौन रहना है जो जीवन में शांति लाता है।- महात्मा बुद्ध
  • 5. बुराई से बुराई खत्म नहीं होती। घृणा को केवल प्रेम द्वारा समाप्त किया जा सकता है, ये एक अटूट सत्य है।- गौतम बुद्ध
  • 6. जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है स्वंय पर विजय प्राप्त करें। फिर जीत हमेशा तुम्हारी ही होगी। इसे तुमसे कोई भी कभी भी नहीं छीन सकता।
  • 7. बुद्धं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि। बुद्धं शरणं गच्छामि।

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं 

G News 24 : केदारनाथ धाम में पहली पूजा पीएम नरेंद्र मोदी के नाम से हुई !

 केदारनाथ धाम के खुले कपाट ...

केदारनाथ धाम में पहली पूजा पीएम नरेंद्र मोदी के नाम से हुई !


उत्तराखंड में बाबा केदारनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए  है, इस बीच श्री केदारनाथ धाम में दर्शन करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े हैं। महादेव के भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा है। दरअसल 10 मई को अक्षय तृतीया है। ऐसे में चार धाम यात्रा की शुरुआत कर दी गई है। इसी कड़ी में श्री केदारनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए हैं। वहीं कुछ ही वक्त में यमुनोत्री, गंगोत्री के भी कपाट खोल दिए जाएंगे। बता दें कि 12 मई को श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे।

केदारनाथ के खुले कपाट, पीएम मोदी के नाम पर हुई पहली पूजा

केदारनाथ धाम के कपाट के खुलने के बाद बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के लिए खुद पुष्कर सिंह धामी पहुंचे। सीएम धामी ने कहा, ''भक्त और तीर्थयात्री इस यात्रा का इंतजार करते रहते हैं। वह पवित्र दिन आया और द्वार खुल गए। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं। सारी व्यवस्थाएं कर ली गई हैं। मैं सभी को अपना अभिनंदन देता हूं और उन सभी का स्वागत करता हूं। यहां पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की गई। पूरे विधि-विधान के साथ दर्शन शुरू हो गए हैं। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद बाबा केदार मंदिर के पुनर्विकास का काम तीन चरणों में पूरा किया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि यह जल्द पूरा हो।'

चारधाम के लिए ऑनलाइन-ऑफलाइन कैसे कराएं रजिस्ट्रेशन

अगर आप चार धाम यात्रा पर जाने वाले हैं तो ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यम से रजिस्ट्रेशन कराना बेहद जरूरी है। अधिकारिक वेबसाइट registrationandtouristcare.uk.gov.in या ऐप touristcareuttarakhand के माध्यम से अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। टोल फ्री नंबर 0135 1364 और वाट्सऐप नंबर  91-8394833833 के जरिए भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। touristcare.uttarakhand@gmail.com पर ईमेल के जरिए या लैंडलाइन नंबर 0135-1364, 0135-2559898, 0135-2552627 पर फोन करके आप अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। अगर आपने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है तो आप ऑफलाइन भी अपना रजिस्ट्रेशन ऋषिकेश में करा सकते हैं।

G News 24 आज से 81 दिनों के लिए शादी -विवाह पर लग जाएगी रोक,23 साल बाद मई-जून में नहीं होंगे विवाह !

 शुक्र तारा अस्‍त होने के कारण ...

आज से 81 दिनों तक शादी -विवाह पर लग जाएगी रोक,23 साल बाद मई-जून में नहीं होंगे विवाह !

सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुक्र और गुरु का अच्‍छी स्थिति में होना जरूरी होता है.ज्‍योतिष में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है. शुक्र धन, विलासिता, भौतिक सुख, प्रेम-रोमांस के कारक हैं.  28 अप्रैल से शुक्र अस्‍त हो गए हैं. अस्‍त होने का मतलब है कि जब कोई ग्रह सूर्य के बेहद करीब आ जाता है तो वह अस्‍त हो जाता है. इससे उस ग्रह की स्थिति क्षीण हो जाती है और वह अशुभ प्रभाव देने लगता है. जब शुक्र या गुरु अस्‍त होते हैं तो शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. क्‍योंकि शादी-विवाह, गृह प्रवेश, जनेऊ, मुंडन, नए व्‍यापार की शुरुआत जैसे कार्य नहीं किए जाते हैं. शुक्र 29 जून तक अस्‍त रहेंगे, इस बीच गुरु भी अस्‍त होंगे. इसके चलते विवाहों पर रोक रहेगी. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए विवाह के दिन ग्रह-नक्षत्र शुभ स्थिति में होने चाहिए, इसलिए हिंदू धर्म में विवाह के लिए मुहूर्त निकाले जाते हैं. 

अस्‍त शुक्र में विवाह करना अशुभ 

यदि शुक्र उदयावस्था में नहीं हों यानी कि शुक्र अस्त हों तो उस समय में विवाह जैसे मांगलिक कार्य करने से वैवाहिक जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं. जीवन में बाधाएं आती हैं. इसलिए 28 अप्रैल से 29 जून के दौरान शुक्र अस्‍त रहने पर विवाह वर्जित रहेंगे. 

शुभ मुहूर्त में करना चाहिए विवाह

हिंदू धर्म के अनुसार शादी-विवाह हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए. ऐसा करने से सभी देवी-देवता सम्मिलित होकर अपना आशीर्वाद देते हैं. यही वजह है कि विवाह से पहले पूजा करके देवताओं का आहवान किया जाता है. 23 सालों बाद ऐसा संयोग बना है जब मई और जून महीने में शुक्र के अस्‍त रहने से विवाह नहीं हो सकेंगे. इससे पहले साल 2000 में भी ग्रह-नक्षत्रों की अशुभ स्थिति के कारण विवाह नहीं हो सके थे. 

जुलाई 2024 में विवाह मुहूर्त, आइए जानते हैं कि जुलाई में विवाह के लिए मुहूर्त क्‍या हैं. 

  • 9 जुलाई, दिन मंगलवार, विवाह मुहूर्त दोपहर 02:28 से शाम 06:56 बजे तक.
  • 11 जुलाई, दिन गुरुवार, विवाह मुहूर्त दोपहर 1 बजे से 12 जुलाई की तड़े सुबह 04:09 बजे तक.
  • 12 जुलाई, दिन शुक्रवार, विवाह मुहूर्त सुबह 05:15 से 13 जुलाई की सुबह 05:32 तक.
  • 13 जुलाई, दिन शनिवार, विवाह मुहूर्त सुबह 05:32 से दोपहर 03:05 तक.
  • 14 जुलाई, दिन रविवार, विवाह मुहूर्त दोपहर 10:06 से 15 जुलाई को सुबह 05:33 बजे तक.
  • 15 जुलाई, दिन सोमवार, विवाह मुहूर्त सुबह 05:33 से 16 जुलाई को देर रात 12:30 बजे तक.

(Disclaimer: - दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. G. NEWS 24  इसकी पुष्टि नहीं करता है। 

G News 24 : विश्व के सबसे सफल डिप्लोमेट,हनुमान जी के अवतरण दिवस की,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...

 गंभीर चिंतक, महान कूटनीतिज्ञ, महाबुद्धिशाली और महान पराक्रमी ...

विश्व के सबसे सफल डिप्लोमेट,हनुमान जी के अवतरण दिवस की,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...


पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी को प्रेम, करुणा, भक्ति, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक बताया गया हैं. जनमानस में धारणा प्रबल है कि हनुमान जी पूजा से जीवन की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं. अंजना और केसरी के पुत्र हनुमान को पवनपुत्र भी कहा जाता है. ये वायुदेव के रक्षक और सूर्य नारायण के शिष्य हैं. सूर्य देव से ही इन्हें वेदकोश, धनुर्वेद, गंधर्व विद्या, नीति, न्याय, प्रबंध और राजनीति की शिक्षा मिली.

हनुमान को क्यों कहा जाता दुनिया का सबसे सफल डिप्लोमेट !

चैत्र पूर्णिमा के दिन मंगलवार, 23 अप्रैल को हनुमान जयंती यानी हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. भगवान हनुमान रामायण के प्रचलित पात्रों में एक हैं. इन्हें कलियुग का जागृत यानी जीवित देवता कहा जाता है. इसलिए ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी आज भी धरती पर विराजमान हैं. क्योंकि इन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है. 

डिप्लोमेट यानी कूटनीतिज्ञ का काम है !

कूटनीतिज्ञ रिश्तों को बनाने और बनाए रखने के लिए चातुर्य और आपसी सम्मान का उपयोग करके बातचीत की कला और अभ्यास है. हालांकि कूटनीतिज्ञ की परिभाषा में अंतर हो सकता है. लेकिन सामान्य तौर पर कूटनीतिज्ञ बातचीत प्रणाली में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना और संघर्षों व विवादों को हल करने के उद्देश्य से किया गया संचार, बातचीत की प्रक्रिया और अभ्यास है.

हनुमान जी हैं महान कूटनीतिज्ञ !

  • भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी भगवान श्रीकृष्ण और हनुमान जी को विश्व का सबसे महान कूटनीतिज्ञ मानते हैं. इनके अनुसार, हनुमान जी तो कूटनीति को भी पार कर गए थे. 
  • वो लंका गए और वहां उन्होंने माता सीता से संपर्क किया. लंका में आग भी लगाई. एस. जयशंकर ने कूटनीतिज्ञ को परिभाषित करते हुए कहा था कि, कूटनीति के दृष्टिकोण से हमें श्रीकृष्णजी और हनुमानजी की ओर देखना चाहिए तब जाकर उनकी महानता का पता चलेगा.
  • ‘हनुमानजी को कौन सा कार्य सोंपा गया था?’, ‘वह कार्य हनुमान जी ने किस प्रकार पूरा किया?’, अपनी बुद्धीमत्ता का परिचय देते हुए वे इतने आगे निकल गए कि, उन्होंने कार्य तो पूरा किया ही, साथ ही आगे जाकर लंका भी जलाई .

हनुमान जी में थे ये कूटनीतिज्ञ गुण

  • वफादारी - सूर्य देव से वेदकोश, धनुर्वेद, गंधर्व विद्या, नीति, न्याय, प्रबंध और राजनीति की शिक्षा प्राप्त करने के बाद हनुमान किष्किंधा नरेश वानरराज सुग्रीव के दरबार के मंत्री बने. मंत्री पद में वफादारी की विशेष जरूरत होती है, जिसेस राजा और राज्य की रक्षा हो. जब सुग्रीव को वालि ने गद्दी से उतारा तो वे ऋष्यमूक पहाड़ी पर चले गए. इसके बाद हनुमान ने कठिन परिस्थिति में सुग्रीव को वालि के हमलों से बचाया.
  • जासूसी व चतुराई - सुग्रीव ने जब हनुमान को राम और लक्ष्मण के ऋष्यमूक पर्वत पर जाने का कारण पूछने के लिए भेजा तो वे अपना भेष बदलकर वहां गए. इससे हनुमानजी की जासूसी क्षमता की झलक मिलती है. हनुमान जी ने शांत, संयमित और बड़े ही चतुराई से राम-लक्ष्मण से बात कर उनकी प्रशंसा की. जब उन्होंने राम और लक्ष्मण के मन को पढ़ लिया तब जाकर उन्होंने अपनी पहचान और उद्देश्य को उजागर किया. हनुमान की बातें सुनकर रामजी ने उनकी प्रशंसा की और ऋष्यमूक जाने का कारण भी बताया. इस तरह से हनुमान जी ने अपनी कूटनीतिज्ञ कुशलता का परियच दिया.
  • इसके बाद हनुमान राम को ऋष्यमूक पहाड़ी पर सुग्रीव के गुफा ले गए और इसी स्थान पर राम और सुग्रीव मित्र व सहयोगी बने. इससे हमें यह सीख मिलती है कि भले ही दो सहयोगियों का लक्ष्य समान न हों फिर भी यह जरूरी है कि दोनों अपने-अपने लक्ष्यों को पूरा करने में एक-दूसरे की सहायता करें. जैसा कि हनुमान जी के कारण राम और सुग्रीव के बीच संभव हो पाया.

जब लंका में रामदूत बनें हनुमान

सुग्रीव और राम दोनों कुछ ही समय में हनुमान की क्षमता, कौशल और गुणों को जान चुके थे. इसलिए उन्होंने हनुमान को माता सीता की खोज के लिए दक्षिण की ओर भेजा.मार्ग में कई चुनौतियां आईं, जिसे पार करते हुए हनुमान ने यात्रा जारी रखी और लंका पहुंच गए. उन्होंने यहां सभी चीजों का बारीकी से अवलोकन किया और अशोक वाटिका के पास पहुंच गए, जहां माता सीता थीं. माता सीता से मिलकर हनुमान ने उन्हें रामजी का संदेश दिया.लंका में रावण हनुमान जी को पकड़कर उसे मृत्युदंड देना चाहता था. लेकिन विभीषण और कुंभकर्ण ने हनुमान को अन्य प्रकार से दंडित करने का सुझाव दिया. हनुमान जी ने इस अवसर का लाभ उठाया और पूरी लंका ही जला डाली.

राम दुआरे तुम रखवारे,

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।

ज्ञान और गुण के सागर में हनुमान का बहुत महत्व और प्रताप है, जो राम के मन में बसते हैं और उनके द्वार पर द्वारपाल की तरह विराजमान हैं. यानी रामजी के द्वार पर हनुमान का पहरा है. हनुमान जी वहां के रखवाले हैं. इनकी आज्ञा और अनुमति के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता है. तभी तो अपने प्रिय हनुमान के लिए, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा कांड के श्लोक में राम जी हनुमान की इस प्रकार से स्तुति करते हैं-

सचिवोऽयं कपिन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः।

तमेव काङ्क्षमंस्य ममन्तिकमुपागतः4.3.26।।

यहां वानरों के महान सरदार सुग्रीव के मंत्री हैं, जिन्हें मैं देखना चाहता हूं.

तमभ्यभाषमित्रे सौग्रीव सचिवं कपिम्।

वाक्यज्ञं मधुर्वाक्यैस्नेहयुक्तमरिन्दम।।4.3.27।।

हे सौमित्री, शत्रुओं को जीतने वाला यह वानर, सुग्रीव का मंत्री, मैत्रीपूर्ण संचार में कुशल है. उसे सौम्य और मधुर शब्दों में उत्तर दें.

नानृग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः।

नासामवेदविदुषश्च्यमेवं विभाषितुम्4.3.28।।

जब तक ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में पारंगत न हो, निश्चित रूप से किसी के लिए भी इतनी अच्छी तरह से बोलना संभव नहीं है.

नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम्।

बहु व्याहर्ताऽनेन न किञ्चिदपशब्दितम्4.3.29।।

निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि उन्होंने पूरे व्याकरण का अच्छी तरह से अध्ययन किया है, क्योंकि उनके पूरे भाषण में एक भी गलत उच्चारण नहीं है.

न मुखे उत्सवयोर्वपि ललते च भ्रुवोस्तथा।

अन्येष्वपि च गत्रेषु दोषसंविदितः क्वचित्4.3.30।।

उसके चेहरे, आंखों, माथे, भौंहों के बीच या उसके शरीर के किसी भी हिस्से में कोई दोष नहीं.

अविस्त्रमसन्दिग्धमविलम्बितमद्रुतम्।

उर्स्थं कण्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमे स्वरे4.3.31।।

उनके वाक्य बहुत विस्तृत नहीं हैं, अस्पष्ट नहीं हैं, खींचने वाले नहीं हैं, तेज़ नहीं हैं, छाती या गले में उभरे हुए हैं, मध्यम स्वर में हैं.

संस्कारक्रमसम्पन्नामद्रुतमविलम्बिताम्।

उच्चार्यति कल्याणीं वाचं हृदयहारिणीम्4.3.32।।

उनकी बातें शुभ हैं. वे परिष्कृत हैं. न तेज, न धीमी, उनकी बातें दिल को मोह लेती है.

अन्या चित्रया वाचा त्रिस्थानव्यंजनस्थया।

कस्य नाराध्यते चित्तमुद्यतासेरेरपि4.3.33।।

उनके रंगीन शब्द तीनों स्रोतों से प्रवाहित होते हैं. उनकी छाती के नीचे से, उनके गले से और उनके सिर से. यदि कोई शत्रु ही हो जिसके हाथ में तलवार हो तो भी किसका मन उनकी पूजा नहीं करेगा?

एवं विदो यस्य दूतो न भवेत्पार्थिवस्य तु।

सिद्धयन्ति हि कथं तस्य कार्याणां गतियोऽनघ4.3.34।।

हे निष्पाप, कोई राजा, चाहे वह कोई भी हो, ऐसे राजदूत के साथ अतीत में अपना लक्ष्य कैसे पूरा नहीं कर सकता?

एवं गुणगणैर्युक्ता यस्य सयुः कार्यसाधकः।

तस्य सिध्यन्ति सर्वार्थ दूतवाक्यप्रचोदिताः4.3.35।।

जिसके पास अपने दूत जैसे महान गुणों वाले महान कार्यपालक हों, वह अपने कूटनीतिक कौशल से प्रेरित होकर अपने सभी लक्ष्य पूरे कर सकता है.

हनुमान जी को अमरता के साथ इन्हें अलग-अलग देवी-देवताओं से कई वरदान मिलें। 

  • सीता से मिला वरदान - माता सीता से हनुमान जी को अमरत्व का वरदान मिला. जब माता सीता की खोज में हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे तो इन्हें माता सीता ने अमरत्व का वरदान देते हुए कहा कि वे युगों-युगों तक रामभक्तों की रक्षा करते रहेंगे.
  • सूर्य से मिला वरदान- हनुमान को सूर्यदेव से तेज का प्राप्त हुआ. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव ने हनुमानजी को अपना सौवां अंश वरदान दिया.
  • कुबेर से मिला वरदान - कुबेर देवता से ही हनुमान को गदा प्राप्त हुई है. गदा के साथ ही उन्होंने हनुमान को यह वरदान भी दिया कि, युद्ध में उन्हें कोई परास्त नहीं कर पाएगा.
  • यमराज से मिला वरदान - यमराज से हनुमान जी को यह वरदान मिला कि, वो कभी भी उनके पास नहीं जाएंगे. क्योंकि उन्हें अमरत्व का वरदान पहले ही मिला है.
  • शिव से मिला वरदान - हनुमान जी को शिव का 11वां रुद्रावतार कहा जाता है. शिव ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि, उन्हें कभी भी किसी अस्त्र से मारा नहीं जा सकेगा.
  • इंद्र से मिला वरदान - पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार हनुमान और इंद्र के बीच युद्ध हुआ. युद्ध में ही इंद्र ने हनुमान को यह वरदान दिया कि भविष्य में कभी भी उनके वज्र का प्रभाव हनुमानजी पर नहीं पड़ेगा.
  • विश्वकर्मा से मिला वरदान - भगवान विश्वकर्मा ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि, उनके द्वारा बनाए गए अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव भी हनुमान पर नहीं पड़ेगा.
  • ब्रह्मा से मिला वरदान - ब्रह्मा जी से हनुमान को दीर्घायु का वरदान मिला.

इस तरह से भगवान हनुमान को कई देवी-देवताओं से अलग-अलग वरदान प्राप्त हुए, जिससे वो पराक्रमी,अमर, बलशाली और शक्तिशाली बनें. लेकिन बलशाली होने के साथ ही हनुमान जी एक सफल कूटनीतिज्ञ भी थे. आइये जानते हैं कूटनीतिज्ञ का अर्थ 


G.NEWS 24 : जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती आज

हिंदू पंचांग के अनुसार...

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती आज

जी न्यूज़ परिवार की ओर से देशवासियों को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ... जय जिनेन्द्र 
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म उत्सव जैन अनुयायी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस बार महावीर जयंती  21 अप्रैल को मनाई जाएगी। भगवान महावीर को वर्धमान, वीर, अतिवीर और सन्मति भी कहा जाता है। इन्होंने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। जैन धर्म का समुदाय इस दिन जैन मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करते हैं वहीं इस दिन भव्य जुलूस भी निकाला जाता है।

  • भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म ईसा पूर्व 599 वर्ष माना जाता है। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्द्धमान था।
  • जैन धर्म में तीर्थंकर का अभिप्राय उन 24 दिव्य महापुरुषों से है जिन्होंने अपनी तपस्या से आत्मज्ञान को प्राप्त किया और अपनी इंद्रियों और भावनाओं पर पूरी तरह से विजय प्राप्त की।
  • अपनी तपस्या के दौरान भगवान महावीर ने दिगंबर रहना स्वीकार कर लिया, दिगंबर मुनि आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं इसलिए वस्त्र धारण नहीं करते हैं। जैन मान्यता है कि वस्त्र विकारों को ढकने के लिए होते हैं और जो विकारों से परे हैं, ऐसे मुनि को वस्त्रों की क्या जरूरत है।
  • भगवान महावीर के प्रारम्भिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में कमल के समान रहे। उसके बाद बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना में वे इतने लीन हो गए कि उनके शरीर के कपड़े गिरकर अलग होते गए। भगवान महावीर की बारह वर्ष की मौन तपस्या के बाद उन्हें 'केवलज्ञान ' प्राप्त हुआ । केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद तीस वर्ष तक महावीर ने जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की रचना की।
  • भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। उनका कहना था कि हम दूसरों के प्रति भी वही व्यवहार व विचार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हों। यही उनका ' जीयो और जीने दो ' का सिद्धांत है। उन्होंने न केवल इस जगत को मुक्ति का सन्देश दिया, अपितु  मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांत भी बताए। इन्हीं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर महावीर ' जिन ' कहलाए। जिन से ही 'जैन' बना है अर्थात जो काम, तृष्णा, इन्द्रिय व भेद जयी है वही जैन है।
  • भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया और जितेंद्र कहलाए। उन्होंने शरीर को कष्ट देने को ही हिंसा नहीं माना बल्कि मन, वचन व कर्म से भी किसी को आहत करना उनकी दृष्टि से हिंसा ही है।
  • क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्री भाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।