कथा करने का लाइसेंस किसी एक ही समाज विशेष को तो नहीं है,यदि नहीं तो...
जाति है कि कुछ बे-कूफों के दिमाग से जाती ही नहीं,कथावाचक के जो हुआ इसी व्यवस्था का दुष्परिणाम है !
इटावा में हुई इस इस अमानवीय घटना के लिए जिम्मेदार जो हैं और इस शर्मनाक कृत्य में जितने भी जाहिल गवार शामिल हैं जो इस घटना पर मजे ले रहे हैं । चाहे वह बाल काटने वाला हो, वीडियो बनाने वाला हो और या इस तमाशे को देखने वाले,जो कथावाचक पर कोमेंट्स करते हुए अपने टहाकों से इस घटना में बैकग्राउंड म्यूजिक देने काम कर रहे थे, उन सभी पर तो कार्रवाई होनी ही चाहिए इसके साथ ही...
हो सकता है कथा वाचक और उसके साथी पर आरोपियों द्वारा अपने बचाव के लिए जो आरोप लगाए जा रहे हैं वे सच भी हो, यदि इनसे कोई शिकायत थी तो पुलिस में इनकी पहले शिकायत करते अब जब खुद के खिलाफ मामला दर्ज हुआ तो झूठे बहाने बनाकर सत्ता का फायदा उठाकर उल्टा पीड़ितों पर ही मामला दर्ज करवा दिया।
पहले तो अपना जाहिलपन दिखाते हुए इन लोगों ने पीड़ितों के साथ मारपीट करके उनके ऊपर एक महिला का पेशाब छिड़ककर रूप से अपमानित किया, इतना ही नहीं इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालकर पीड़ितों का सार्वजानिक अपमान इन लोगों ने किस अधिकार के तहत किया। इसका जबाव भी कानून के पैरोकारों जरूर इनसे लेना चाहिए।
जो पंडित और पंडिताइन जो परीक्षित बने हुए थे, जिन्होंने इस कथावाचक का न सिर्फ अपमान किया बल्कि उसके साथ बेहद ही शर्मनाक दुर्व्यवहार करते हुए उसपर अपना पेशाब (मूत्र) छिड़का उसके बाल काटकर, उसके साथी की शिखा काटकर उसे भी अपमानित किया। इन पर और इनके परिवार पर इतनी कठोर कार्रवाई होना चाहिए कि इन्हें का उम्र याद रहे कि किसी के मान सम्मान के साथ खिलवाड़ करना कितना घातक होता है। इतना ही नहीं जो इस कृत्य में शामिल रहे हैं उन सभी का अन्य समाजों द्वारा सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए। जिससे कि इनको एहसास हो कि किसी के साथ गलत करने का नतीजा क्या होता है ?
इन पर शासन द्वारा की जाने वाली कठोर कार्रवाई ही समाज में यह तय करेगी कि आगे इस प्रकार की कार्रवाई करने पर क्या परिणाम भुगतने पड़ते हैं। शासन प्रशासन की तरफ से करवाई ऐसी होना चाहिए कि इन जाहिल गवारों की पुस्तें याद रखें, यह कार्यवाही एक मिसाल बनना चाहिए। जिससे कि इस प्रकार का कृत्य स्वतंत्र भारत में करने की फिर कोई हिमाकत न कर सके। एक सभ्य समाझ में तो इस प्रकार का कृत्य कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता!
आखिर इस कथा वाचक का कसूर क्या था ? क्या भागवत कथा करने का कॉपीराइट किसी एक समाज विशेष ने ले रखा है ? और यह कहां लिखा है ? और यह किसने तय किया की कथा सिर्फ एक समाज के लोग ही कर सकेंगे? क्या इस कथावाचक ने इस पंडित परिवार से कथा करने के लिए कोई जोर जबरदस्ती की थी ? इस दंपति को अगर पंडित जी से ही कथा करानी थी तो फिर इसे क्यों बुलाया गया? बुलाया तो बुलाया उसके बाद उसे बंधक बनाकर इस प्रकार से प्रताड़ित क्यों किया गया ? एक व्यक्ति को इस प्रकार सार्वजनिक तरीके से अपमानित करना और अपमानित करने के बाद उसकी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करना इनकी विक्षिप्त मानसिकता को दर्शाता है। इन पर तो आईटी एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए ?
ऐसे ही चंद लोगों की विक्षिप्त मानसिकता के कारण इस प्रकार के कृत्यों के कारण ही हिंदू समाज में फूट है। जब तक समाज में ऐसी मानसिकता के लोग रहेंगे तब तक हिंदू कभी एक नहीं हो सकता ! क्योंकि इनके दिमाग में तो वही जाति वाला गोबर भरा हुआ है, जातीय व्यवस्था इनके दिमाग में ऐसी घुसी है कि वह जाती ही नहीं है ! इनका दिमाग पूरी तरह जातिय व्यवस्था को लेकर सड़ चुका है और सड़े हुए दिमाग वाला व्यक्ति हमेशा समाज में विकृति ही उत्पन्न करता है। इसलिए इनके दिमाग का इलाज जरूरी है।
वह इलाज यदि शासन प्रशासन अपने स्तर पर ही कर दे तो ठीक है नहीं तो आज के समय में कोई किसी से काम नहीं है !!! क्योंकि जब किसी समाज में आक्रोश उत्पन्न होता है तो तबाही आना निश्चित हो जाती है। इस तबाही को हवा दे रही है कुछ सियासी पार्टियां जो चाहती हैं कि देश में एक बार फिर वही 100 साल पुरानी व्यवस्था लागू हो जिससे लोग जातियों और समाजों में बट जाएं और उनका वोट बैंक एक बार फिर से खड़ा हो जाए.... यही कारण है कि उन्होंने जातीय व्यवस्था के जिन को जाति जनगणना की मांग करके एक बार फिर से जगा दिया है।
जो बीजेपी हिंदुओं को एकजुट करने के लिए नारा देती रही, जनगणना का विरोध करती रही और देश को कहती रही "बटोगे तो काटोगे, एक रहोगे तो नेक रहोगे" जब देश में इस प्रकार के कृत्य होंगे तो फिर एक कैसे रहेंगे ?लोग क्यों नहीं बाटेंगे ? कैसे एक रहेंगे ? क्या जाति जनगणना होने के बाद समाज एक रह पाएगा ? यह बीजेपी को सोचना चाहिए ! उसने आखिरकार विपक्ष की इस मांग को क्यों माना ? इसमें कोई संशय नहीं है कोई दो राय नहीं है कि देश में होने जा रही यह जाति जनगणना समाज को एक बार फिर इस दलदल में धकेल कर सामाजिक बंटवारे का काम करेगी!
दशकों के प्रयास के बाद समाज में लोगों के बीच थोड़ी बहुत सामाजिक सामंजस्यता आई थी । इसी जाति व्यवस्था को लेकर समाज के कुछ जागरूक लोगों ने ऊंच-नीच, आगडे- पिछड़े जैसी तमाम सामाजिक बुराइयों को भुलाकर आपसी सामंजस्य बनाने का प्रयास किया, उसी का परिणाम है कि आज देश के अधिकतर शहरी क्षेत्रों में इस जातिय व्यवस्था की जंजीरों को तोड़ दिया गया है। इसके अलावा कई ग्रामीण क्षेत्र भी ऐसे हैं जहां के लोग जागरूक हैं पढ़े लिखे हैं वे जानते हैं की जाति व्यवस्था कोई स्थाई व्यवस्था नहीं थी । समाज में जाति व्यवस्था जैसी कोई चीज थी ही नहीं। समाज निरंतर रूप से चला रहे, इसके लिए कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था निश्चित की गई थी ।
इसी वर्ण व्यवस्था को आगे चलकर कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए जाति व्यवस्था का नाम दे दिया गया। ऐसा इन लोगों के द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए, समाज में विघटन पैदा करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया। इसका शिकार बने गरीब और बेरोजगार लोग। क्योंकि इनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब रही होगी, इसलिए ये लोग इन तथा कथित समाज के अगुवाओं पर ही अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए आश्रित रहना पड़ा होगा! जिसकी वजह से ये इनका विरोध भी नहीं कर पाए होंगे ! यही कारण रहा होगा कि मालिक और सेवक वाली या वर्ण व्यवस्था धीरे-धीरे जाति व्यवस्था में परिवर्तित होती चली गई।
उसके बाद तो इन तथाकथित अगुवाओं ने इस जाति व्यवस्था को अपना अधिकार मान लिया। क्योंकि उन्हें हुकुम चलाने के लिए यह गरीब लोग आसानी से उपलब्ध थे जो उनकी सेवा भी करते थे उनकी गालियां भी खाते थे । जब सब कुछ इतनी आसानी से मिल रहा हो इस व्यवस्था की वजह से तो भला कोई इसे क्यों छोड़ेगा। यही कारण है कि आजादी के आठवें दशक में भी जाति व्यवस्था अपना स्वरूप छोड़ने को तैयार नहीं है।
वर्तमान समय में भी कुछ राजनीतिक पार्टियों की शह पर समाज में कुछ विघटनकारी स्वार्थी किस्म के लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए जाति वाले जिन को फिर से जगाकर समाज में इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। यदि ऐसा है तो देश के गृह मंत्रालय और राज्यों की सभी सरकारों और मुख्यमंत्रियों (खासकर भाजपा शासित) को ऐसे लोगों के प्रति इतनी कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए, कि इस प्रकार समाज में विघटन उत्पन्न करने वाले कृत्यों को करने की फिर कोई हिमाकत न कर सके।
0 Comments