परिवहन विभाग की व्यवस्था परिवर्तन के साइड इफैक्ट्स...
"RTO बैरियर्स के तौल कांटे बंद, व्यवस्थाओं की अनदेखी चौपट होता इन्फ्रास्ट्रक्चर"और घटता राजस्व !
देश की सड़क परिवहन व्यवस्था केवल वाहन चलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा संवेदनशील ढांचा है जो प्रतिदिन करोड़ों रुपये की आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा होता है। इस व्यवस्था का एक अहम हिस्सा हैं – आरटीओ बैरियर्स और तौल कांटे (Weigh Bridges), जो न केवल ओवरलोड वाहनों पर नियंत्रण रखते हैं, बल्कि सरकार के लिए राजस्व का एक मजबूत स्त्रोत भी होते हैं।
लेकिन दुर्भाग्यवश, आज हालात यह हैं कि कई आरटीओ बैरियर्स पर स्टाफ की भारी कमी है और अधिकांश तौल कांटे बंद पड़े हैं। इसका नतीजा यह है कि देश में करोड़ों की लागत से बनाए गए ये इन्फ्रास्ट्रक्चर जंग खा रहे हैं, और साथ ही सरकार को हर दिन लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
आरटीओ बैरियर्स के बंद तौल कांटे,अव्यवस्था को खुला आमंत्रण !
बिना जांच-पड़ताल और तौल प्रक्रिया के भारी वाहन धड़ल्ले से राजमार्गों पर दौड़ रहे हैं। इससे न केवल सड़कों की उम्र घट रही है, बल्कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन भी तेजी से बढ़ा है। सड़कों पर मालवाहक वाहनों के लगता लंबे-लंबे जाम और इन ओवरलोड वाहनों से होने वाले हादसे, ब्रिजों की क्षति और पर्यावरणीय असर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
राजस्व की अनदेखी,घाटे की गहराई
प्रत्येक तौल कांटे से सरकार को प्रति दिन लाखों रुपये का राजस्व मिल सकता है। लेकिन जब ये बंद पड़े हों, तो यह पैसा न केवल सरकारी खजाने से दूर होता है, बल्कि ट्रांसपोर्ट माफिया को एक खुला मैदान मिलता है। स्टाफ की नियुक्ति और नियमित निगरानी की अनदेखी अब एक नीतिगत विफलता में तब्दील हो चुकी है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर का क्षरण, करोड़ों की पूंजी बर्बाद
सरकार द्वारा बनाए गए अत्याधुनिक डिजिटल तौल केंद्र, सीसीटीवी युक्त बैरियर्स और डेटा मॉनिटरिंग सिस्टम अब धूल फांक रहे हैं। यह केवल सरकारी लापरवाही नहीं, बल्कि जनता की गाढ़ी कमाई के अपमान जैसा है। क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि बनी चीजें केवल उद्घाटन तक ही सीमित रह जाएं?
समाधान क्या है?
- तत्काल स्टाफ की बहाली और बैरियर्स पर 24x7 निगरानी सुनिश्चित की जाए।
- डिजिटल तौल प्रणाली को पुनः सक्रिय किया जाए और उसका डेटा सीधे राज्य परिवहन मंत्रालय से जोड़ा जाए।
- प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी से तौल केंद्रों का संचालन किया जा सकता है, बशर्ते पारदर्शिता सुनिश्चित हो।
- राजस्व हानि की गणना कर संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।
आरटीओ बैरियर्स और तौल कांटे कोई मामूली व्यवस्थाएं नहीं, बल्कि भारत की सड़क अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनकी अनदेखी केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक ऐसी चूक है जो सड़क सुरक्षा, राजस्व और इन्फ्रास्ट्रक्चर – तीनों को एक साथ चकनाचूर कर रही है।
सरकार को चाहिए कि वह तुरंत एक योजना-आधारित हस्तक्षेप करे, वरना आने वाले समय में इस लापरवाही की कीमत सड़क हादसों और खजाने के खाली होने से चुकानी पड़ेगी।
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