G News 24 : उद्देश्य से भटकती न्याय की वैकल्पिक व्यवस्था लोक अदालत !

 भारत की न्याय प्रणाली का एक अभिनव प्रयोग हैं लोकदालतें ...

उद्देश्य से भटकती न्याय की वैकल्पिक व्यवस्था लोक अदालत !

लोक अदालतें भारत की न्याय प्रणाली का एक अभिनव प्रयोग हैं, जिनका उद्देश्य था आम जनता को त्वरित, सरल, सुलभ और सस्ता न्याय उपलब्ध कराना। यह व्यवस्था विशेष रूप से गरीब, अशिक्षित और कमजोर वर्गों के लिए एक राहत की किरण मानी गई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज यह व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य से भटकती प्रतीत हो रही है और इसका बड़ा कारण है चांद स्वार्थी वकीलों और लालची बाबुओं की भूमिका।

लोक अदालतों की विशेषता रही है कि यहाँ बिना शुल्क के मुकदमों का निपटारा होता है और प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है। परंतु अब यही सरलता कुछ लोगों के लिए अवसर बन चुकी है, जहाँ वे अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं। वकीलों की एक जमात ऐसे मामलों को लोक अदालतों तक खींच लाती है जहाँ समझौता संभव नहीं होता, केवल फीस वसूलने की मंशा से। वहीं दूसरी ओर, कई बाबू लोक अदालतों में लंबित मामलों को जानबूझकर उलझाते हैं, ताकि उनकी "सेवा" के एवज में कुछ "प्रोत्साहन" की गुंजाइश बनी रहे।

इस पूरी प्रक्रिया ने लोक अदालतों को एक तरह की ‘दिखावटी न्याय प्रक्रिया’ बना दिया है, जहाँ न तो न्याय की त्वरिता रही, न ही समाधान की आत्मा। ऐसे मामलों की संख्या भी बढ़ रही है, जहाँ फैसले के नाम पर केवल औपचारिकता निभाई जाती है, और असली विवाद वहीं का वहीं बना रहता है। यही कारण है कि लोगों का इन लोक अदालतों से मोह-भंग होता जा रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण है लोगों का इस अदालत से नदारद होना जिसकी गवाही ये विभिन्न विभागों के सूने पड़े काउंटर दे रहे हैं। अंदर न्यायाधीशगण लोगों और उनके वकीलों के आने का इंतजार फाइल लेकर करते रहते हैं। 

सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। लोक अदालतों की निष्पक्षता, पारदर्शिता और प्रभावशीलता को पुनः स्थापित करने के लिए कठोर निगरानी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। साथ ही, ऐसे अधिकारियों और वकीलों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए जो इस प्रणाली को कमजोर कर रहे हैं।

लोक अदालतें केवल एक न्यायिक विकल्प नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की उम्मीद हैं। यदि इन्हें ईमानदारी से लागू किया जाए, तो यह प्रणाली न्यायपालिका के बोझ को भी हल्का कर सकती है और आम नागरिक को वास्तविक न्याय दे सकती है। मगर यदि यह दिखावे तक सिमट गई, तो यह एक और खोखली व्यवस्था बनकर रह जाएगी।


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