G NEWS 24 : सस्ता, सरल और सुलभ न्याय का नया अध्याय, साबित हो रही है राष्ट्रीय लोक अदालत !

अदालत की लंबी दलीलों से मुक्ति, समय और पैसे की बर्बादी पर अंकुश...

सस्ता, सरल और सुलभ न्याय का नया अध्याय, साबित हो रही है राष्ट्रीय लोक अदालत !

“जनता की अदालत, जनता के लिए न्याय, जनता के ही हाथों में समाधान।”

न्याय के मंदिर में वर्षों तक अटकी रहने वाली फाइलें, पेशियों पर खर्च होता समय और पैसा, और अधिवक्ताओं की लगातार दलीलों से परेशान आम जनता के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत किसी राहत से कम नहीं है। यहाँ न कोई लंबा इंतजार है और न मुकदमेबाज़ी का बोझ। बल्कि समझौते के आधार पर न्याय और त्वरित समाधान की गारंटी मिलती है।

परंपरागत अदालतों में जहाँ एक केस निपटाने में सालों लग जाते हैं, वहीं लोक अदालत में कुछ ही घंटों या दिनों में समाधान संभव हो जाता है। इसमें न तो भारी कोर्ट फीस की ज़रूरत होती है और न बार-बार पेशी की। समझौते से हुआ निपटारा अंतिम और बाध्यकारी माना जाता है, यानी इसके बाद अपील की गुंजाइश नहीं रहती।

राष्ट्रीय लोक अदालत की सबसे बड़ी ताकत उसकी जनसुलभता है। यह केवल शहरों में ही नहीं, बल्कि गाँव-गाँव और पंचायत स्तर तक पहुँच कर आम जनता को न्याय से जोड़ रही है। छोटे-मोटे आपराधिक मामले, बैंक रिकवरी, बिजली-पानी के बिल, पारिवारिक विवाद और सड़क दुर्घटना मुआवज़े जैसे मामले यहाँ बिना तनाव और बिना कटुता के निपटाए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय लोक अदालत की विशेषताएँ -

  • त्वरित और किफायती न्याय
  • कोर्ट फीस और लंबी पेशियों से मुक्ति
  • समझौते से हुआ निपटारा अंतिम और बाध्यकारी
  • गाँव और पंचायत स्तर तक न्याय की पहुँच
  • लाखों मामलों का निपटारा और करोड़ों का आर्थिक बोझ कम

जहाँ अदालतों में न्याय मिलने की उम्मीद अक्सर तारीख़ों के बोझ तले दब जाती है, वहीं राष्ट्रीय लोक अदालत यह याद दिलाती है कि न्याय का असली मतलब है—त्वरित राहत, न कि पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला इंतज़ार।

यह केवल न्यायिक पहल नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति भी है। लोगों को यह समझ आ रहा है कि हर विवाद का समाधान अदालत की दीवारों के भीतर ही नहीं, बल्कि आपसी सहमति और समझदारी से भी किया जा सकता है। यही कारण है कि हर बार आयोजित होने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत में लाखों मामले निपटाए जाते हैं और करोड़ों रुपये का आर्थिक बोझ लोगों के कंधों से उतर जाता है।

आज राष्ट्रीय लोक अदालत यह साबित कर रही है कि न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं, बल्कि जनता की पहुँच तक होना चाहिए। यह पहल अदालतों के बोझ को कम करने के साथ-साथ न्यायपालिका में जनता का विश्वास और अधिक मजबूत कर रही है।

Reactions

Post a Comment

0 Comments