तालाब के सुंदरीकरण की आड़ में भ्रष्टाचार की बू...
लक्ष्मण तलैया,की खूबसूरती के नाम पर एतिहासिक विरासत से खिलवाड़ !
ग्वालियर । ग्वालियर शहर के बीचो-बीच किले की तलहटी में स्थित ऐतिहासिक लक्ष्मण तलैया जिसे लक्ष्मण तालाब के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान सुंदर रमणीय एवं धार्मिक स्थल भी है यहां इस तालाब के आसपास काफी प्राचीन मंदिर हैं जिनमे राम जानकी मंदिर, प्रसिद्ध सीढियों वाले हनुमान, श्री राधा कृष्ण मंदिर, ऐतिहासिक शिव मंदिर और बराह भगवान आदि मंदिरों के साथ-साथ बेड़ी वाली माता का मंदिर टंकी वाले हनुमान काली माता मंदिर और इसी श्रृंखला में शामिल तुलसीदास की प्रसिद्ध गुफा एवं वहां बने मंदिर मंदिर इस स्थान की महत्वता और ऐतिहासिकता को दर्शाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस समय किले का निर्माण हुआ होगा उसी समय अधिकतर मंदिरों एवं इस तालाब का निर्माण किया गया होगा।
लगभग 30 वर्ष पहले तक यहां लक्ष्मण तलैया सामान्य तालाब की तरह ही दिखता था लेकिन इसकी वास्तविक सुंदरता 20-22 साल पहले उस समय उभर कर सामने आई जब तत्कालीन पार्षद राजेंद्र जैन के द्वारा इस स्थल की साफ सफाई करवाने के बाद सौंदर्य करण का कार्य किया गया। इसके किनारे पर स्थित बुर्ज शिव मंदिर एवं यहां के घाटों पर मार्बल आदि लगाकर इसका सौंदर्य करण किया गया था। इसके बीचों बीच एक कमल पुष्प की आकृति बनवाई गई जिसमें फाउंटेन लगवाया, चारों ओर लोहे के पाइपों की रेलिंग लगवाई गई और लाइटिंग का इंतजाम किया गया, जिससे शाम के समय यह अत्यंत मनोहारी दृश्य लोगों का ध्यान वरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता था। इतना सब होने के बाद भी इसके मूल ढांचे के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया था।
इसके बाद तत्कालीन पार्षद चंदू सेन के द्वारा इस तालाब के चारों ओर फ्लड लाइट एवं 8 से 10 फीट ऊंची जाली लगवाई गई जिससे कि लोग इसमें कचरा ना डाल पाए और यह सुरक्षित रहे। कुछ सालों पहले तक यहां मूर्तियां विसर्जन की जाती रही थी लेकिन नगर निगम ने उसे भी यहां से पूरी तरह बंद करवा दिया जो की एक अच्छी पहल रही।
2025 में एक बार फिर लक्ष्मण तलैया की खूबसूरती बढ़ाने के के लिए लगभग एक करोड़ के आसपास का बजट सरकार के द्वारा पास किया गया। जिसका वकायदा टेंडर निकाला गया और कार्य प्रारंभ होने से पहले इस विकास कार्य की आधारशिला क्षेत्रीय विधायक एवं मध्य प्रदेश शासन के ऊर्जा मंत्री, वर्तमान पार्षद सुनीता अरुण कुशवाहा, तत्कालीन पार्षद चंदू सेन एवं राजेंद्र जैन अंजली राय ज्यादा आदि की मौजूदगी में रखी गईं थीं।
ठेकेदार को आधार शिला रखते वक्त ही ऊर्जा मंत्री ने स्पष्ट निर्देशित किया था कि यहां जो विकास कार्य किया जाना है उस विकास कार्य की लागत और कार्य अवधि आदि की संपूर्ण जानकारी एक वोट के माध्यम से दी जाना सुनिश्चित की जानी चाहिए, जिससे कि आमजन को भी पता रहे कि इस प्रोजेक्ट पर कितना खर्च हो रहा है और यह कब तक पूरा होगा लेकिन आज दिनांक तक यहां ऐसा कोई वोट आदि दिखाई नहीं दिया है।
अब बात करते हैं कार्य की प्रगति पर ...
परियोजना का साइन बोर्ड अभी तक क्यों नहीं लगाया गया है आखिर क्या छुपाना चाह रहे हैं जिम्मेदार !
- सबसे पहले पंप लगाकर तालाब को खाली किया गया लेकिन पूरी तरह से नहीं, आधे अधूरे तालाब को खाली करने के बाद इसकी मछलियों को अनियंत्रित शिफ्ट करने की बात कही गई। और ये मछलियां कहां सिफ्ट हुई कोई जवाब देने वाला नहीं है। शिफ्ट होने के बाद उन मछलियों का क्या हुआ कोई जानकारी नहीं है। तालाब चारों तरफ लगी गई लगी लोहे की जाली, कमल पुष्पों पर लगी मोटर आदि कहां गई. कोई जवाब देने वाला नहीं है। सबसे बड़ी बात इस परियोजना का साइन बोर्ड अभी तक क्यों नहीं लगाया गया है आखिर क्या छुपाना चाह रहे हैं जिम्मेदार...
- अभी पूरी तरह से तालाब खाली भी नहीं हुआ था, ना ही उसकी पूरी तरह सफाई हो पाई थी कि इसी बीच तालाब में जेसीबी उतारने के लिए उसके मुख्य घाट को जेसीबी से तोड़ दिया गया और आरसीसी का एक रैंप बनाकर जेसीबी को तालाब में उतार दिया गया। जबकि इससे पहले जब तत्कालीन पार्षद राजेंद्र जैन के द्वारा तालाब की सफाई कराई गई थी तो उन्होंने तालाब के अंदर लेबर को उतार कर तालाब की सफाई करवाई थी उन्होंने लक्ष्मण तलैया के मूल स्ट्रक्चर को पूरी तरह सुरक्षित रखा था। वही कर इस बार भी हो सकता था लेकिन ठेकेदार के द्वारा जल्दबाजी में जेसीबी को उतारने के लिए घाट पर लगे मजबूत मोटे लेंटरों को जेसीबी से तोड़कर समतल करते हुए तालाब के तल तक कंक्रीट का रैंप बनाकर छोड़ दिया। उसके बाद कुछ मलवा भी तालाब के अंदर से निकल गया लेकिन इसी बीच अचानक सफाई कार्य को रोककर तालाब में एक बार फिर से पानी भरा गया। ऐसा क्यों किया गया कोई बताने वाला नहीं है...
- इतना ही नहीं बिना किसी मेंटेनेंस के तालाब की दीवारों एवं आसपास के क्षेत्र को रंग रोगन करके ऐसा दिखाया गया जैसे यह कार्य अभी हाल ही में संपन्न हुआ हो। ऐसा क्यों और किसलिए किया गया। यह अपने आप में प्रश्नचिह्न खड़ा करता है ! इस प्रकार की कार्य प्रणाली कहीं ना कहीं आमजन के मन में शंका उत्पन्न करती है और उसे यह सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि तालाब के सुंदरीकरण की आड़ में भ्रष्टाचार तो नहीं हो रहा है क्योंकि इस प्रकार की कार्य प्रणाली से भ्रष्टाचार की बू आना स्वाभाविक है...
- अब एक बार फिर से तालाब को कभी-कभार मोटर चलाकर खाली करने की खानापूर्ति की जा रही है क्योंकि जब यह खबर लिखी को 15 जून लिखी जा रही है और स्थिति खबर में दर्शाई गई है वास्तविकता यही है। आने वाले 5-10 दिन में मानसून आ जाएगा और फिर से तालाब में पानी भर जाएगा । तो क्या है इस प्रोजेक्ट को लेट करने वजह ? क्या जिम्मेदार चाहते हैं कि काम पूरा न हो और तालाब एक बार फिर से भर जाए और लोग इस प्रोजेक्ट को भूल जाएं...
- यदि ऐसा नहीं है तो आमजन इसका भी जवाब चाहता है कि मानसून आने पर तालाब का सौंदरीकरण कैसे होगा? कैसे उसकी दीवारों और तल में रिपेयरिंग होगी ? कब तक होगी ? रिपेयरिंग होने के बाद क्या तलाक का वही ऐतिहासिक मूल रूप देखने को मिलेगा ? सबसे बड़ा सवाल यह कार्य कब तक पूरा होगा ? आमजन इन प्रश्नों का जवाब जानने के लिए किस से संपर्क करें ? यहां किसकी जवाबदेही बनती है, इस कार्य को पूरा करने क ? किसके सुपरविजन में यह कार्य हो रहा है ? यह सब एक साइन बोर्ड पर लिखा होना चाहिए ? विकास के नाम पर सिर्फ पानी में पैसा बहाया जा रहा है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ये ‘सुंदरीकरण’ आने वाली पीढ़ियों के लिए सिर्फ एक भ्रष्ट कथा बनकर रह जाएगा।
- लोगों के सवालों के जवाब नहीं मिले तो, उंगलियां सभी पर उठेंगी,क्योंकि इस प्रकार के सरकारी प्रोजेक्ट पर जो पैसा लगता है वह किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी का नहीं होता है वह पैसा सरकारी है जो सरकार को आमजन पर द्वारा लगाए गए टैक्स के माध्यम से मिलता है ऐसे में सरकारी धन का यूं दुरुपयोग किसी भी हाल में लोगों को बर्दाश्त नहीं होगा ! अक्सर ऐसे प्रोजेक्ट में लाखों की लागत का काम कागजों में शानदार, और ज़मीन पर (हकीकत में) शर्मनाक होते हैं ! आमजन पूछ रहे आखिर किस किस की जेब में गया लक्ष्मण तलैया के विकास पैसा...
मिलीभगत से पनपे इस भ्रष्टाचार में...
क्या ये सारा कमीशन का खेल है ? ठेकेदारों की क्या सेटिंग है ? किस समाज सेवी और जनप्रतिनिधि की इस खेल में क्या भूमिका है ? यह सब कुछ आज के वर्तमान समय में पता करना बहुत ज्यादा कठिन काम नहीं है ! काम अपनी प्रगति के साथ समय पर पूरा और ठीक से नहीं हुआ तो जल्द सामने आएंगे वे दस्तावेज, जिनसे उजागर होंगे ये नाम और डकारी गई रकम। उम्मीद है ! जिम्मेदार अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और इस प्रकार की कार्य प्रणाली पर अंकुश लगाएंगे ! इस प्रकार की कर प्रणाली से जनता में आक्रोश बढ़ता है और आप अपना विश्वास खोते हैं।
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