सरकारी सिस्टम में अब तक का ऐतिहासिक और विस्फोटक खुलासा...
MP में इतिहास का सबसे बड़ा वेतन घोटाला, 50000 अद्र्श्य कर्मचारी, हुई 280 करोड़ की लूट !
भोपाल। ट्रेजरी डिपार्टमेंट की जांच में मध्य प्रदेश के सरकारी सिस्टम में अब तक का ऐतिहासिक और विस्फोटक खुलासा हुआ है जो अगर अक्षरश सच निकाला तो यह प्रदेश में अफसरशाही की नींव हिलाकर रख देगा। सूत्रों के अनुसार जांच में सामने आया है कि एमपी में 50 हजार ऐसे कर्मचारी है जिन्हें सिस्टम में केवल नाम के लिए ही जिंदा रखा गया है लेकिन असल में उनका अस्तित्व है ही नहीं। इन अद्र्श्य (भूत) कर्मचारियों की सैलरी पिछले 6 महीने से ट्रेजरी से नहीं निकाली गई। फिर भी कर्मचारी कोड एक्टिव है। इस बडी गडबडी के चलते 280 करोड रुपए से ज्यादा के सरकारी खजाने पर सवाल खडे हो गए है।
घोटाला या कोई चोरी...
ट्रेजरी कमिश्नर की टीम ने जब विभागीय सैलरी ऑडिट शुरू किया तो सिस्टम में दर्ज हजारों कर्मचारियों के नाम सामने आ गए। ये वे कर्मचारी है जिनकी सैलरी दिसंबर 2024 से अब तक नहीं निकाली गई। यानी इन कर्मचारियों के कोड तो एक्टिव है लेकिन इनकी मृत्यु या सेवानिवृति से संबंधित जानकारी आईएफएमआईएस सिस्टम में अपडेट नहीं की गई। आईएफएमआईएस पोर्टल पर एक्जिट का प्रोसेस पूरा नहीं हुआ है फिर भी वेतन नहीं निकाला जा रहा है।
डीडीओ के दस्तावेज की पड़ताल शुरू...
मध्यप्रदेश के 6 हजार से ज्यादा डीडीओ की भूमिका अब संदिग्ध नजर आ रही है। क्योंकि डीडीओ की रिपोर्ट के आधार पर ही सैलरी जारी की जाती है। अगर इन अफसरों की मिलीभगत साबित हुई तो, पूरा का पूरा सरकारी वेतन तंत्र संदेह के घेरे में आ जाएगा। ट्रेजरी आयुक्त ने खुद इस मामले की जांच शुरू की है और सभी डीडीओ से जवाब भी मांगा है।
वित्त मंत्री ने साधी चुप्पी...
जब इस मामले को लेकर मध्य प्रदेश के वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा से सवाल पूछा गया तो मीडिया का सवाल सुनते ही वे घबरा गए और बोले जो भी प्रक्रिया होती है, नियमों के अनुसार होती है।
इस तरह किया गया खेल !
सूत्रों से पता चला कि गिरीश कुमार मिश्रा नामक हेल्पर मूल वेतन के अलावा अन्य भत्तों के रूप में 31.43 लाख महज 8 महीने में ही बांट दिए गए। अन्य भत्ते में इसे जून 2019 में 5.30 लाख रुपए, मई 2019 में 5.10 लाख, अप्रैल 2019 में 4.30 लाख रुपए, जुलाई 2019 में 4 लाख रुपए, फरवरी 2020 में 3.70 लाख रुपए, मार्च 2019 में 3.53 लाख रुपए, मार्च 2020 में 3.50 लाख रुपए और जनवरी 2020 में 2 लाख रुपए का भुगतान वेतन के अलावा कर दिया गया। इस तरह मूल वेतन के अलावा अन्य भत्तों के रूप में हेल्पर को 31.43 लाख का भुगतान किया गया। इस तरह के अन्य प्रकरण भी सामने आए हैं।
भू-अर्जन अधिकारी भी आए घेरे में
जांच के दौरान तथ्य सामने आए कि बडे पैमाने पर राशियां भू-अर्जन अधिकारियों के पदनाम से दर्शित बैंक खातों में ट्रांसफर हुई हैं। जबकि भू-अर्जन राशि रीवा के पीडी खाते में ट्रांसफर की जानी थी। भू-अर्जन अधिकारियों के पदनाम से दर्शित जो खाते संदिग्ध माने जा रहे हैं उनमें सतना के अनुविभागीय अधिकारी अमरपाटन और अनुविभागीय अधिकारी रामपुर बाघेलान के नाम के खाते हैं। इसी तरह से रीवा के अनुविभागीय अधिकारी हुजूर, अनुविभागीय अधिकारी गुढ़, रायपुर कर्चुलियान, अनुभाग मऊगंज, सिरमौर के नाम के खाते संदिग्ध हैं।
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