गरीबों को समर्पित अमीरों की पार्टी

यही हकीकत है भारतीय लोकतंत्र की...!

गरीबों को समर्पित अमीरों की पार्टी

 

लोकतंत्र में सब फलते-फूलते हैं l जो गरीबों की सुनता है ,गरीब उसकी सुनते हैं ,राजनीतिक दल 80  करोड़ गरीबों को मुफ्त में राशन देते हैं तो ये 80  करोड़ गरीब ही इन राजनीतिक दलों को हजारों करोड़ रूपये का मालिक भी बना देते हैं l जो सत्ता में होता है वो सबसे ज्यादा पाता'  है लेकिन जो सत्ता से दूर भी होता है उसकी हालत भी मरे हाथी की तरह सवा लाख से कम की नहीं होती l जी यही हकीकत है भारतीय लोकतंत्र की l यहां ' सिस्टम'  गरीब को और गरीब तथा अमीर को और अमीर बनाता है l देश के राजनीतिक दलों की स्वघोषित सम्पत्ति को उजागर करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस विषय में बड़ी मेहनत की और राजनीतिक दलों की माली हालत का विश्लेषण किया l एडीआर की रपट पर भरोसा किया जाए तो केंद्र में सत्ताधारी दल भाजपा  सभी राजनीतिक दलों में सबसे अमीर पार्टी है l 2019-20 वित्तीय वर्ष के लिए भाजपा ने 4847.78 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है l भाजपा  के बाद दूसरी सबसे अमीर राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी है जो दूसरे स्थान पर है l राजनीतिक दल भले ही आकंठ भ्र्ष्टाचार में डूबे हों फिर भी वे अपनी आमदनी के कुछ आंकड़े घोषित करते ही हैं l

इन आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 वित्तीय वर्ष के लिए एफडीआर और फिक्स्ड डिपॉजिट श्रेणी के तहत राष्ट्रीय पार्टियों में भाजपा और बसपा ने 3,253.00 करोड़ रुपये और 618.86 करोड़ रुपये घोषित किए हैं l जबकि कांग्रेस ने 240.90 करोड़ रुपये घोषित किए हैं l क्षेत्रीय दलों में, समाजवादी पार्टी द्वारा सबसे अधिक संपत्ति 563.47 करोड़ रुपये, टीआरएस ने 301.47 करोड़ रुपये और अन्नाद्रमुक ने 267.61 करोड़ रुपये की एफडीआर और फिक्स्ड डिपॉजिट श्रेणी के तहत घोषित किये हैं l राजनीतिक दलों की आमदनी के आंकड़ों को पढ़ना आम बजट से कहीं ज्यादा रोचक होता है l रोचक इसलिए क्योंकि राजनीति ही एकमात्र ऐसा व्यवसाय है जिसमें हल्दी-फिटकरी कुछ भी नहीं लगता और रंग हमेशा चोखा ही आता है l आप जानकार हैरान होंगे कि देश के  सात राष्ट्रीय और 44 क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित कुल संपत्ति 6,988.57 करोड़ रुपये और 2,129.38 करोड़ रुपये थी l सात राष्ट्रीय दलों में, सबसे अधिक संपत्ति भाजपा के पास 4847.78 करोड़ रुपये रही है जो 69.37 फीसदी है l बसपा दूसरे स्थान पर 698.33 करोड़ रुपये के साथ है और राष्ट्रीय पार्टियों में उसके पास कुल 9.99 फीसदी संपत्ति है l

सबसे पुरानी राजनीतिक दल कांग्रेस ने 2019-20 में केवल 588.16 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है जो कुल राष्ट्रीय दलों की संपत्ति का  केवल 8.42 फीसदी है l आप कल्पना कर सकते हैं कि हजारों करोड़ों में खेलने वाले राजनीतिक दल देश में चुनावों को आखिर सस्ता कैसे देने होंगे l जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है वो दल उतना ज्यादा पैसा चुनाव जीतने पर खर्च करता है l राजनीतिक दल कुछ देते भले हों लेकिन लेकर जरूर जाते हैं l इसीलिए हर कोई राजनीति की खेती करना चाहता है l राष्ट्रीय दल तो छोड़िये क्षेत्रीय राजनीतिक दल भी करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक हैं आज की तारीख में .44 क्षेत्रीय दलों में, शीर्ष 10 पार्टियों की संपत्ति कुल घोषित संपत्ति का 95.27 फीसदी है l वित्तीय वर्ष 2019-20 में, क्षेत्रीय दलों में, समाजवादी पार्टी द्वारा के पास सबसे अधिक  563.47 करोड़ रुपये की संपत्ति रही है l जबकि टीआरएस ने 301.47 करोड़ रुपये और अन्नाद्रमुक ने 267.61 करोड़ रुपये संपत्ति घोषित की है l मौजूदा परिदृश्य में राजनीति मुनाफे का कारोबार है l करोड़ों की सम्पत्ति अर्जित कर चुके राजनीतिक दलों के ऊपर थोड़ी-बहुत उधारी भी बनी ही रहती है l मिसाल के तौर पर वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सात राष्ट्रीय और 44 क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित कुल देनदारी 134.93 करोड़ रुपये है l क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने वित्त वर्ष 2019-20 में कुल 60.66 करोड़ रुपये की देनदारी घोषित की है l

क्षेत्रीय दलों ने उधार के तहत 30.29 करोड़ रुपये और अन्य देनदारियों के तहत 30.37 करोड़ रुपये की घोषणा की और वित्त वर्ष 2019-20 में, टीडीपी ने 30.342 करोड़ रुपये (50.02 प्रतिशत) की उच्चतम कुल देनदारियों की घोषणा की, इसके बाद डीएमके ने 8.05 करोड़ रुपये (13.27 प्रति) घोषित किया है l दुःख और विसंगति की बात ये है कि इस देश में जहां ' लोकतंत्र ' और ' हिंदुत्व ' हमेशा खतरे में रहता है वहां राजनीतिक दलों के लगातार मोटे होते जाने पर कोई भी ,किसी भी मंच पर बात नहीं करता l मतदाता को भी इस बात से शयद कुछ लेना-देना नहीं होता ,जबकि ये बहुत जरूरी है कि मतदाता राजनीति के इस कारोबार के बारे में जानें l आजतक देश के ईडी और उसके जैसे किसी विभाग ने देश के किसी राजनीतिक दल की आय की जांच करने के लिए छापे नहीं मारे l कभी जानने की कोशिश नहीं की ये आय आखिर होती क्या बेचकर है ? देश में मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघरों के साथ ही राजनीतिक दल ऐसे निकाय हैं जो दान के पैसे से चलते हैं l पूजाघरों में दान आदमी अपना परलोक सुधारने के लिए देता है लेकिन राजनीतिक दलों को दान देने से आखिर किसका परलोक संवरता है ? राजनीतक दलों को दान देने से परलोक नहीं लोक संवरता है l जो जितना ज्यादा दान राजनीतिक दलों को देता है वो उतना ज्यादा कमा-खा सकता है l

हाल के कोरोनाकाल के आंकड़े बताते हैं की देश में कौन से तीन घरानों की आमदनी में 60  फीसदी का इजाफा हुआ l पूजाघरों में या तो पाषाण मूर्तियां होती हैं या प्रतीक  किन्तु राजनितिक दलों के दफ्तरों में कल्की अवतार होते हैं ,तरह-तरह के रूप होते हैं उनके। जिसके ऊपर इन अवतारों की कृपा हो जाती है उसकी तरक्की ब्रुनोई के सुलतान हसनल बोल्किया की तरह होने लगती है। भारत का हर राजनेता हसनल बोल्किया होना चाहता है। कुछ ने कोशिश भी की लेकिन ईश्वर की कृपा से अभी भारत में कोई भी नेता हसनल बोल्किया की बराबरी नहीं कर पाया। हसनल बोल्किया के पास आज की तारीख में 7 हजार कारें हैं और सब कुछ सोने ही सोने का है। कुल मिलाकर परिदृश्य बहुत ही हैरान करने वाला और चिंताजनक है। लोकतंत्र को खोखला करने वाली राजनीति का शुद्धिकरण करने का संकल्प लिए बिना राजनीतिक दलों को कारोबारी घरानों में तब्दील होने से बचाया   नहीं जा सकता। राजनीतिक दल केवल सदस्य्ता से धन जुटाते तो कोई बात थी अब तो सदस्यता   से कहीं ज्यादा धन उद्योगपतियों के यहां से आता है। टिकिट बेचने से आता है। इसे फौरन रोका गया तो आम आदमी चुनावों में कदम रख ही नहीं पायेगा।

- राकेश अचल

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