भाव का भूखा मैं, भाव ही इक सार है, भाव से भजलो मुझे, उसका बेड़ा पार है…

पुष्टि भक्ति को ही भगवान कृपा करके अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं : स्वामी रामेश्वरानंद

भाव ही इक सार है,भाव से भजलो मुझे,उसका बेड़ा पार है…

 

गण में चल रही अष्ट दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस में संत महामंडलेश्वर स्वामी रामेश्वरानंद जी ने कहा भक्त भगवान से अनुग्रह करता है की प्रभु मेरी औकात से बढ़कर मुझे कुछ देना क्योंकि जरूरत से ज्यादा रोशनी भी इंसान को अंधा बना देती है। इसलिए प्रभु बस इतनी कृपा करना हर श्वास में आपका नाम स्मरण होता रहे। हमारे ह्रदय में आपकी भक्ति निरंतर होती रहे। क्योंकि भक्ति तो हम कर सकते हैं लेकिन भगवान के अनुग्रह से जो भक्ति प्रकट होती है वह पुष्टि भक्ति कहलाती है। और पुष्टि भक्ति को ही भगवान कृपा करके अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं। प्रभु के सुख का विचार करना और प्रभु की सेवा करना ही पुष्टि भक्ति है।

पुष्टि भक्ति साधन साध्य नहीं है ये तो भगवान की कृपा से ही प्राप्त होती है। और पुष्टि भक्ति मैं भाव की प्रधानता है क्यों कि परमात्मा भी तो भाव के भूखे है। भाव का भूखा मैं भाव ही इक सार है भाव से भजलो मुझे उसका बेड़ा पार है। भगवान के लिए जो भाव का प्रसाद बनाता है। वही सच्चे भक्त है वैसे तो भगवान सबके हैं सब भगवान के हैं घट घट वासी हैं कण-कण में विद्यमान हैं सर्व सुलभ है सर्व व्यापक है सर्व भूत है। लेकिन प्रभु जिस पर कृपा कर के अपनी भक्ति प्रदान करते है। उस भक्त की योगक्षेम की जिम्मेदारी भगवान स्वयं लेते हैं फिर उस भक्त की भक्ति परमात्मा स्वयं करता  हैं और परमात्मा जिसके लिए भजन करें उस भक्त का क्या कहना।

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