जलते दीए
दीप फिर जलाता है
अँधियारों को मिटाता है
पथ में पथिक न भटके
जल रास्ते का सारथी बनता है..
आतंकियों के विरोध में
अत्याचारों के प्रतिरोध में
विराम वह लगाता है
दीप फिर जलाता है..
काटे न चुभें मन में
फूल महके जीवन में
ऐसी रोशनी फैलाता है
दीप फिर जलाता है...
अपनी जग मग से
सब के जीवन में
नई लोरियाँ बन
जगमगाता है
लहर दौड़ जाती है
दीप फिर जलता है...
जीवन की पहेली पर
हाँथों की हथेली पर
भाग्य रेखा बनाता है
दीप फिर जलाता है...
मनीषा गिरी "मनमुग्ध"
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