अब ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो परिस्थिति के अनुरूप हो : रघुनंदन

नॉलेज बेस्ड सोसायटी को फिर से स्थांपत करने की आवश्यकता…

अब ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो परिस्थिति के अनुरूप हो : रघुनंदन

बदलते समय में गुणवत्तपूर्ण शिक्षा की जरूरत है। अब ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो भारतीय परिस्थिति के अनुरूप हो। देश में व्याप्त समस्याओं का समाधान करने वाले छात्रों का निर्माण करने वाली शिक्षा नीति की जरूरत है। अभी शोध छात्र समाज के साथ कनेक्ट नहीं हो पाते। अब नॉलेज बेस्ड सोसायटी को फिर से स्थांपत करने की आवश्यकता है। ये सभी बिंदु शिक्षा नीति में समाहित है। यह नीति भारत केंद्रित है और भारतीय संस्कृति, इतिहास और नैतिकता से जुड़ी हुई है। इसके लिए आदर्श शिक्षक समाज को बनाना होगा। इस शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए हम सभी को मिलकर एक दिशा में कार्य करने की जरूरत है। यह बात विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री केएन रघुनंदन ने कही।

वह जीवाजी विश्वविद्यालय और विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान मप्र के संयुक्त तत्वावधान में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में शिक्षक- शिक्षाः चुनौतियां एवं समाधान’ विषय पर  शुक्रवार को हुई एक दिवसीय क्षेत्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंनें कहा कि देश के हर नागरिक को एजुकेशन एक्टिविस्ट की तरह कार्य करना होगा, जिससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपने समग्र आयामों को पूर्ण कर सके और शिक्षा का भारतीयकरण किया जा सके। कॅरिकुलम को भारत केंद्रित बनाना होगा। जेयू के गालव सभागार में हुई संगोष्ठी में 200 से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर जेयू के कुलाधिसचिव प्रो. उमेश होलानी, कुलसचिव प्रो आनंद मिश्रा, डॉ. केशव सिंह गुर्जर, अवधेश त्यागी, विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के संस्थान के संयोजक प्रो. कृष्णकांत शर्मा,जेयू के कुलानुशासक डॉ. हरेंद्र शर्मा मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जेयू की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने की। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. चंद्रप्रताप सिकरवार और आभार प्रो. शिवकांत द्विवेदी ने व्यक्त किया। इसके अलावा यशवंत इंद्रापुरकर, डॉ. देवेंद्र गुर्जर, प्रो. राजेंद्र बांदिल, अशोक पाठक, विजय दीक्षित,  जेयू के ईसी मेंबर वीरेंद्र गुर्जर और डॉ. संगीता कटारे सहित अनिल माथुर और धीरेंद्र भदौरिया, लोकेंद्र भदौरिया, डॉ. मनोज शर्मा मौजूद रहे। कुलपति प्रो.  संगीता शुक्ला ने कहा कि यह तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पहले 1968, 1986 में दो और शिक्षा नीतियां आ चुकी हैं। हमें यह सोचना है कि एजुकेशन पॉलिसी को लाने में इतना बड़ा गैप नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमारी रिक्वायरमेंट्स बदलती रहती हैं, उन्हें अपडेट करने के लिए एजुकेशन पॉलिसी भी अपडेट होनी चाहिए। दूसरी बात कि इस पॉलिसी में आने वाली चुनौतियों, कमियों को देखकर इसके रिज्ल्ट्स का रिव्यू करके अगले पांच सालों में अगली शिक्षा नीति लाने पर भी विचार करना होगा। एक और बात इस पॉलिसी को सही तरह से क्रियान्वित करने के लिए हमारे पास वाइब्रेंट अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम होने चाहिए। 

प्रो. कृष्णकांत शर्मा ने विद्या भारती का परिचय देते हुए कहा कि विद्या भारती संपूर्ण देश में  शिक्षा देने का कार्य कर रही है। उन्होंनें कहा कि वर्तमान में 24 हजार 770 शिक्षण संस्थानों में एक लाख 47 हजार 364 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 35 लाख से अधिक छात्र शिक्षा व संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इस संस्थान का उद्देश्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले सभी संस्थानों की स्वायत्ता का ख्याल रखते हुए नई रचना का निर्माण करना करना है। इसके साथ ही प्राचीनता व नवीनता के मिश्रण से ऐसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का निर्माण हो जिससे देश में अच्छे नागरिकों का निर्माण भी इसका उद्देश्य है। 

समापन सत्र के मुख्य अतिथि नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. गोविंद शर्मा ने कहा कि यह गुणवत्ता का युग है। जब हम बाजार से कोई सामान खरीदते हैं, तो उसे भी क्वालिटी चैक करके ही खरीदते हैं। इसी तरह से शिक्षा और शिक्षक में भी बेहतर क्वालिटी का होना जरूरी है। जब शिक्षक बेहतर गुणवत्ता वाले आएंगे तो शिक्षा का स्तर अपने आप ही सुधर जाएगा। इसके लिए समय- समय पर शिक्षकों का 15 दिवसीय प्रशिक्षण होना चाहिए। इससे टीचर्स नई जानकारी से अपडेट भी होते रहेंगे और उससे छात्रों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी। समापन सत्र की अध्यक्षता विद्या भारती के क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. चंद्रदेव अष्ठाना ने की। 

इन बदलावों पर हो फोकस -

  • शिक्षकों की स्थानांतरण नीति में बदलाव लाना होगा।
  • गांवों से भी टैलेंटेंड लोगों को खोजकर उन्हें टीचर के रूप में अपॉइंट किया जाए।
  • टीचर्स एजुकेशन मल्टी डिसीप्लीनरी हो यानि कि शिक्षकों को विषय के साथ समाज की भी अच्छी नॉलेज हो। 
  • कॅरिकुलम को भारतीय परिप्रेक्ष्य में लागू करने की जरूरत है। 
  • विश्वविद्यालय और संस्थानों का डवलपमेंट प्लान बनाने की आवश्यकता है, जिसे समय- समय पर अपडेट किया जा सके। 
  • कॅरिकुलम को भारत केंद्रित बनाना होगा।

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