संगीता गुप्ता

भिड़ू सच में कोई गैम नहीं है

एक पुराने हास्य कलाकार के पुत्र कह रहे थे भिड़ू कोई गैम जरूर है ये एकदम ऐसे ही था जैसे कोई खगोलशास्त्री दूरबीन से ग्रह -नक्षत्रों को देखकर  कहे कि पिंड स्पष्ट दिख रहे हैं और सतह पानी की तरह पारदर्शी हैं पर फिर भी उसका शक्की दिमाग क्यों विश्वास करे सो वह दिमाग का मिसयूज करके कहे कि  भिड़ू कोई गेम जरूर है.... ।इधर इटालियन लेडी अलग अपना राग अलाप रही थीं कि घर से बाहर निकलो संकट का समय है। हमें लगता है उन्हें सांझे चूल्हें में ही अपनी भावी रोटियां दिख रही थीं। उधर मिल्खा सिंह की स्टैप मदर इतनी दुखी हुयीं कि माता के आंसू देखकर वे बिना सोचे -समझें घर से बाहर निकल ही पड़े जैसे किसी  युद्ध पर जा रहे हो पर विषयवस्तु स्पष्ट उन्हें भी नहीं थी.... पर उससे क्या? बड़े लोग जिस वाक्य को मुंह से बोल दे वही विषयवस्तु है बाकी सब व्यर्थ है। इधर इटालियन लेडी उनकी चाल देखकर दौड़ने के मूड में आ गयीं।इधर ऊपर से बिल्ली के भाग्य से छींका भी टूट गया और साथ में अन्य बालीवुड वाले भी आ गये क्योंकि सबके मन में एक ही बात घंटे की आवाज की तरह आवृत्ति कर रही थी कि भिड़ू कोई गैम  जरूर है....।दूसरी ओर दीदी इसी आवृत्ति के कारण बुरी तरह से कभी सड़कों पर फड़कीऔर कभी मंच पर। यह देख इटालियन लेडी  परी बनकर हवा में उड़ने लगी और गाने लगीं आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे। कुमार बाबू अलग चिल्ला रहे थे मुझे भी संज्ञान में लो क्योंकि  मैं ही लेनिन-मार्क्स का उत्तराधिकारी हूं ।ऐसा लग रहा था सांझे चूल्हें वाले कोई बड़ी क्रांति करके ही छोड़ेंगे । पर मुसीबत बड़ी विकट है क्रान्ति का कारण वर्षों से ढ़ूढ़ रहे थे मिल नहीं रहा था। क्रांति के लिए कोई बड़ा अन्याय कई दशकों तक होना आवश्यक है । 

अब अन्याय तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था और गारंटी थीकि अब होगा भी नहीं तो क्या अगला अपना कैरियर चौपट कर दे। तभी उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ कि सी ए ए को ही भींच लो और देखो आया अवसर जाने मत देना ।अब उदारीकरण के इस दौर में जब सारे देशों का व्यापार और निर्माण क्षेत्र आपस में आसानी से जुड़ा है तो अनेक वर्षों तक कोई भी बड़ा अत्याचार तो कोरपोरेट्स कर ही नहीं सकते थे पर क्रांति तो करनी थी कारण वे लेनिन -मार्क्स को पढ़कर जो आये थे।और फिर विरोध के मंच से ही तो अपनी दुकान चलनी है सो थोड़े में ज्यादा का अहसास कराओ जनता को।अकारण ही सही पर क्रान्ति कर लो आम आदमी तो मूर्ख था, मूर्ख है और मूर्ख ही रहेगा ।अंत में हो सकता है कि शहर के गुंडे आंदोलनकारी बनकर बसें जला दें और पटरी उखाड़ दे। जब ट्रेनें,बसें,आटो रिक्शे और आदमी टूटेंगे  और जलेंगे और मंदिरों में बैठा हमारा पालनहारा भी भंजित कर दिया जायेगा तभी तो सरकार को उनकी ताकत का आभास होगा ।पर एक विडंबना और है क्रान्ति में तो लोग कम कपड़ों में भूखे-प्यासे पसीने से  लस्त होकर भूख हड़ताल करते हैं और यहां तो सभी ब्रांडेड कपड़ों में मोटे-मोटे पेट लिये थे।  इधर छात्रों की बात करें तो वे सांझे चूल्हे में सभी अपने कारणों से रोटी सेंक रहे थे। कई छात्र कह रहे थे हमारी तो फीस बढ़ी थी उसी का आंदोलन कर रहे थे पर हम तो ठहरे मल्टीपर्पज जब सी ए ए हवा में लहराया तो उसे कैसे छोड़ देते? क्या है कि मल्टीवर्कर होने से बोरियत नहीं होती  मैम और हर हाथ को काम मिलता है। 

एक में ढ़पली दूसरे से ठोको ताल फिर गाओ आजादी .. है आजादी। कई लोगों को पता नहीं है की सीएबी और सी ए ए ने क्या अगला -बदली कर ली बस भिड़ू कोई गेम जरूर है वाली तर्ज थी।उधर जीन्स-जैकेट में कई किसान कह रहे थे कि भैया लहसुन बड़ों मंहगों हो गओ है हम तो तईसैं आये हैं।आगजनी जितनी तीव्र होती जा रही थी उधर ऊधमियों को लग रहा था कि वे बहुत बड़ी क्रान्ति कर रहे हैं क्योंकि भिड़ु कोई गैम जरूर है।शब्द याद आते ही हमें त्रस्त भूखे-प्यासे पढ़ाई से मरहूम बालक याद आते हैं अत:  हम तो भैया क्रान्ति उसे कहते हैं जब सिर पर छत न हो  प्लेट में नमक -रोटी हो और तन पर ढकने मात्र दो जोड़ी प्रति व्यक्ति के हिसाब से घर में कपड़े हो।

जहां मजदूरी बढ़ाने और बोनस आदि के लिये व्यक्ति अनशन या भूख हड़ताल करके स्वयं के शरीर को कष्ट देता है ।पर पहली बार हमने अनोखा आंदोलन देखा जिसमें स्वयं को कष्ट मत दो समाज को कष्ट दो और मिलकर भीड़ बनो और ट्रेन की बोगियां जलाओ ,बसें जलाओ ,रेल की पटरी उखाड़ो ,आटो जलाओ ,जन रक्षक पुलिस को पीट दो और कुछ न मिले तो मंदिरों में मूर्तियां तोड़ दो। कई बार ऐसा लगा कि संसार का सबसे बड़ा युवा वर्ग हमारे देश में है और मोबाईल लगातार हर मुश्किल की जड़ जाति प्रथा बता रहा है इसलिए युवा वर्ग का बड़ा हिस्सा भी इस बहती गंगा में हाथ धोना चाहता था वह भी इसमें शामिल हो गया था। भले ही आज जाति प्रथा से किसी कोई संकट नहीं है और पूरे देश ने आरक्षण देकर सहायक वर्ग को सहर्ष अपने हिस्से की रोटी दी है फिर भी राख के ढेर में छिपी बदले की चिंगारी उभारने और आग लगाने के लिए इन दलों को भीड़ मिल ही गयी थी l इसके अलावाअब मजदूर और पूंजीवादियों के बीच की खाई खत्म हो चुकी है पर फिर भी लोग  पुराने लेनिन और मार्क्स को पढ़ पढ़कर स्वयं को मजदूरों का मसीहा और पूंजीवादियों का दुश्मन सिद्ध करने में लगे हैं ।आज प्रत्येक मजदूर के पास इंजीनियर बनने के अवसर  हैं। आम आदमी भी अपनी पूंजी लगाकर कंपनी का सहभागी बन सकता है।सारी पृथ्वी एक खुली मार्केट है खुली प्रतियोगिता के कारण कर्मचारियों को अर्थशास्त्र के मांग और पूर्ति के नियम के आधार पर वेतन वृद्धि अन्य सुविधायें दी जा रही हैं।आज जबकि  दुनिया का मजदूर एक हो चुका है और अपने ऊंचे काम के आधार पर ऊंची कीमतें पा रहा है तब कौन सी क्रान्ति की जरूरत है पर फिर भी मन में आवृत्ति हो रही थी भिड़ू कोई गैम जरूर है। 

इतना बड़ा विरोध का एक और कारण यह भी समझ आया कि सी बी एस ई और सरकारी विद्यालयों  में नाच- गाकर बच्चों को नई -नई चीजें सिखाने की नई पद्धति चल निकली है ।अब शिक्षकों से कहा जाता है कि वे बच्चों को नृत्य- गायन और नाटकों के द्वारा विषय को आत्मसात कराएं और इस तरह से बच्चों में स्वाध्याय की आदत को विकसित नहीं होने दिया जाता।शिक्षक अध्ययन करें और उनसे गीत- नृत्य तथा  नाटक बनाकर बच्चों को विषयवस्तु सिखाएं। अब जब हमने बच्चों को अध्ययन करना सिखाया ही नहीं है तो फिर वे सी ए ए का अध्ययन क्यों करें यदि सरकार की गरज पड़ी हो तो सरकार नृत्य- गायन और नाटक के द्वारा सी ए ए को समझाये । पर एक बात अवश्य है इस बार क्रान्ति का यह स्वरूप अच्छा लगा कि एक पूरी -पूरी म्यूजिकल नाइट हो गई जिसमें नेता सिंगर कम डांसर है और सारी जनता साथ दे रही है । सर्दी का मौसम है और सभी सुंदर-सुंदर ओवरकोटों और रंगीन स्वैटरों में है और चाय के दौर पे दौर चल रहे हैं और गाने हो रहे हैं आजादी है ....आजादी।हम तो कहते हैं सुधरने-सुधारने की  कोई जरूरत नहीं है और बच्चों में स्वाध्याय की आदत  क्यों डालो सी ए ए को समझाने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए का बजट बनाओ और जनता की मेहनत की कमाई ऐसे ही पानी की तरह बहाओ ।समझाओ भी तब जब जनता  भीड़ बनकर आगजनी करेऔर कहो भिड़ू कोई गैम जरूर है तब सामने वाला मर-गिरकर, हाथ जोड़कर और हा-हा खाकर अपने-आप कहेगा भैया मुझे जला दो पर मेरे सी ए ए को मत जलाओ क्योंकि भिड़ू सच में कोई गैम नहीं है।

                                              संगीता गुप्ता


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