G News 24 :किसान अन्नदाता नहीं,सिर्फ अन्न का उत्पादनकर्ता है, इसलिए धन्यवाद का पात्र हो सकता है !

किसान अन्न उगाता जिससे उसकी सभी जरूरतें पूरी होती हैं, ये बात उसे समझनी चाहिए ...

किसान अन्नदाता नहीं,सिर्फ अन्न का उत्पादनकर्ता है, इसलिए धन्यवाद का पात्र हो सकता है !

किसान अन्न उगाता इसलिए बे-शक धन्यवाद का पात्र है लेकिन यूं देश में बबाल मचाने का अधिकारी नहीं। मेरा धन्यवाद तो टाटा, रिलायंस, इन्फोसिस, महिन्द्रा, टीवीएस जुपिटर, हाँडा एक्टिवा, बजाज, ओरियन्ट, ऊषा, क्राम्पटन, मारुति सुजुकी, हीरो, एवरेडी, ले लैन्ड, अमूल, मदर डेरी, पराग, एम डी एच मसाले, गोल्डी, बीकानेरी भुजिया, हल्दीराम आदि सहित तमाम उधोगिक एवं निर्माण इकाइयों, डॉक्टर, कारीगर, प्लमबर,मजदूर ,सेना, सभी विभागों में आदि में कार्यरत हर अधिकारी कर्मचारी,सेना,पुलिस और हर रेहड़ी ठेलेवाले को,हर उस सेवा देने वाले को जो अपने काम को पूरी निष्ठां से करते है।  जिन्होंने हमारे लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न किये जिससे हम किसानों से उनकी फसल खरीद पा रहे हैं और रोटी खा पा रहे हैं।

किसान किसी को फ्री में अन्न नहीं देता है तो फिर किस बात का अन्नदाता दाता किसी चीज का दाम नहीं मांगता है। अभी तक मुझे तो कम से कम किसी ने मुफ़्त में गेँहू की बोरियाँ नहीं भिजवाई है। काम ना होता तो मुफ़्त में किसको धन्यवाद देता भाई ! और क्यों ?

किसान कोई  अन्नदाता नहीं हो सिर्फ अन्न उत्पादक है। अन्न दाता सिर्फ एक है, वो परमात्मा और तुम कभी परमात्मा की जगह नहीं ले सकते। अगर तुम खुद को अन्न दाता कहते हो तो हम भी कर दाता है, जिसके कारण तुम्हें मुफ्त में बिजली, पानी, कर्जमाफी व सब्सिडी की सुविधाएं मिल रही हैं। 

भारतीय सरकार की मेहरबानी के कारण के चलते भारतीय किसानों के ऊपर किसी प्रकार का कोई इनकम टैक्स या सेल्स टैक्स नहीं लगता है।  उसके ऊपर से सरकार की तरफ से सरकारी पैसे के साथ किसानों को मुफ्त की सुविधाएं दी जाती हैं। जैसे मुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी, कर्ज माफी और यहां तक की नगद में सहायता राशि भी सरकार द्वारा किसानों को प्रदान की जाती है। ऐसे में किसानों को सरकार से टकराव की बजाय सरकार का एहसानमंद होना चाहिए। एक क्षेत्र के किसानों को आंदोलन के नाम पर किसी प्रकार से अपने आंदोलन की आड़ में देश के दूसरे क्षेत्र के नागरिकों को सड़के जाम करके और तोड़फोड़ करके परेशान करने का कोई अधिकार  नहीं है। 

तुमको अन्नदाता का तगमा राजनेता लगा सकते हैं जिन्हें तुष्टिकरण करके तुम्हारे वोटों का लालच हो , तो असलियत समझो और भगवान बनने की भूल मत करो ! अन्न उत्पादक का सम्मान भी तभी सम्भव होगा, जब अन्न उत्पादक समाज के दूसरे वर्गों का सम्मान करेंगा। अगर किसान सिर्फ अन्न की पैदावार करके खुद को अन्नदाता कहलाता है या अन्नदाता समझता है तो हर इंसान किसी न किसी प्रकार का दाता है। जरा आप खुद पहचानिए की आप कौन से दाता हैं। 

आंखों के डॉक्टर -चक्षु दाता, वस्त्र के निर्माता- वस्त्र दाता, शिक्षक-शिक्षा दाता, वाहन निर्माता-वाहन दाता, घर बनाने वाला मजदूर और होटल व्यवसाय व्यावसायि-आश्रय दाता, न्यायालय में वकील और जज-न्याय दाता, नके की पाइप पर का काम करने वाला -जल दाता,सुनार-आभूषण दाता,बिजली का काम करने वाले-विद्युत दाता, लोगों तक समाचार पहुंचाने वाला मीडिया- सूचना दाता आदि आदि न जाने किस किस के 140 करोड दाता  इस देश में रहते हैं। आपकी तरह ये सब तो कभी सड़क जाम करने या रेल रोकने नहीं निकल पड़ते। 

दाता तो सिर्फ ईश्वर है,  जो बिना मांगे हमें बिना किसी मूल्य लिए इतना कुछ देता है इसलिए वह दाता कहलाता है।  जिसमें पैसा लेकर वस्तु बेच दिया वह दाता कैसे हो सकता है।  बाकी नारी जो घर में सबको बिना किसी पैसा लिए खाना बनाकर खिलाती है सही मायने में अन्नदाता वही है।किसी को मेरी बात चुभ जाये या बुरी लगे तो मैं क्षमा चाहता  हूं। मुझे क्षमा करके आप क्षमा दाता तो बन ही सकते हैं। 

G News 24 : सिंधिया के बाद 'नाथ' फिर एक बार फिर से साथ-साथ या आमने - सामने !

 मध्य प्रदेश की राजनीतिक महा पलटी पटकथा में ...

सिंधिया के बाद 'नाथ' फिर एक बार फिर से साथ-साथ या आमने - सामने !

मध्य प्रदेश की सियासत में करीब चार साल बाद एक बार फिर महा पलटी की पटकथा लगभग तैयार दिख रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने बेटे के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं। अगर, ऐसा हुआ तो लोकसभा चुनाव से यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। 

ऐसा ही एक झटका 11 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को दिया था, जब वे 22 विधायकों के साथ कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हो गए। इससे कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और भाजपा एक बार फिर सत्ता में आ गई थी। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है। इससे साफ है कि अगर कमलनाथ भाजपा में शामिल होते हैं तो लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका होगा।

भाजपा में जाने के सवाल पर कमलनाथ का इनकार न इकरार

दरअसल, कमलनाथ छिंदवाड़ा का दौरा निरस्त कर अचानक दिल्ली पहुंच गए हैं। उनके साथ सांसद बेटे नकुलनाथ भी हैं। इससे उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हो गईं। हालांकि, इसे लेकर चर्चा कई दिन से चल रही थी। दिल्ली में भाजपा में जाने के सवाल पर कमलनाथ ने मीडिया से कहा कि 'जब कोई बात होगी, तब बताऊंगा। जो चल रहा है उससे एक्साइटेड नहीं हूं।' कमलनाथ ने अपने बयान में भाजपा में जाने से न तो इनकार किया और न ही इकरार। इससे सस्पेंस और गहरा गया है। 

भाजपा में शामिल होने की संभावनाओं को  मिला बल 

सूत्रों के अनुसार कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुल नाथ छिंदवाड़ा में अपने समर्थक नेताओं के साथ भाजपा में जाने को लेकर चर्चा कर चुके हैं।  छिंदवाड़ा सांसद नकुल नाथ के सोशल मीडिया अकाउंट एक्स (X) पर बायो से कांग्रेस हट गया है, कहें उन्होंने हटा दिया है। इसके अलावा दोनों नेताओं के कई समर्थक भी ऐसा कर चुके हैं। कमलनाथ लंबे समय से कांग्रेस के कार्यक्रमों में नहीं दिख रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस से राज्यसभा के उम्मीदवार अशोक सिंह के नामांकन के दौरान भी वह मौजूद नहीं थे। बीते दिनों कमलनाथ ने पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए समय भी मांगा था। 

 कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं कमलनाथ

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं, वह करीब 56 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। कमलनाथ को इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा भी कहा जाता है। वे 1980 में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने थे। वे छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद चुने गए। कमलनाथ की पत्नी अल्का नाथ भी सांसद रह चुकी हैं, वर्तमान में उनके बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा से अभी सांसद हैं। कमलनाथ कांग्रेस में कई बड़े पदों पर भी रहे हैं, वे मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष समेत अन्य पदों पर रह चुके हैं।   

 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हुए थे सिंधिया  

11 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने 22 समर्थक कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने कहा था- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझे राष्ट्रीय स्तर पर मुझे एक नया मंच दिया है। जो कांग्रेस पार्टी पहले थी, वह अब नहीं रही है। यहा वास्तविकता को नकारा जाता है, नई विचारधारा और नेतृत्व को मान्यता नहीं मिलती है। यहां रहकर जनसेवा नहीं की जा सकती।  श्री सिंधिया ने कहा था, कि मेरे अब तक के जीवन में दो तारीख अहम रही हैं। पहली 30 सितंबर 2001, इस दिन मैंने अपने पिता को खो दिया था, वो दिन मेरी जिंदगी बदलने था। दूसरी 10 मार्च 2020, जब मैंने बड़ा निर्णय कर भाजपा में आने का फैसला लिया। 

G.NEWS 24 : पंजाब के किसान बने राजनीतिक पार्टियों के हाथ का खिलौना !

आंदोलन नहीं एक राजनीतिक षड्यंत्र है...

पंजाब के किसान बने राजनीतिक पार्टियों के हाथ का खिलौना !

किसान आंदोलन का नाम सुनते ही देश और खासकर दिल्ली को एक अनजाना सा भय सताने लगता है आखिर किसी आंदोलन से भय किस बात का इसका जवाब चाहिए तो 3 साल पहले पहले के किसान आंदोलन को जरा याद कीजिए तब किसानों इन ट्रैक्टरों ने दिल्ली में कितना उत्पात मचाया था इस घटनाको देखते हुए दिल्ली वालों के बीच ऐसे आंदोलन को लेकर डर होना स्वाभाविक है। फिर आप कोई आंदोलन करने जा रहे हैं तो इतने मोडिफाइड ट्रैक्टर लेकर के आंदोलन में शामिल होने का क्या औचित्य है इससे तो यही जाहिर होता है कि आप सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रहे हैं। कानून के खिलाफ आंदोलन करने जा रहे। आंदोलन भी किस लिए कर्ज माफी, सब्सिडी, फसल मुआवजा, भैया ये सब चाहिए तो सब्सिडी क्यों ? और कर्जा लिया है तो कर्ज माफी क्यों ? कर्ज लिया है तो लौटाना ही पड़ेगा। आमजन भी तो लौटाता हैं। हर वर्ष यही होता है सरकारें बदलती है तो कर्ज माफी की मांग उठने लगती है। कृषि इतना ही घटेगा सौदा है तो फिर उसे पौधे को कर क्यों रहे हो भाई। 

किसान‌ स्वयं को आमजन से ऊपर सर्वश्रेष्ठ क्यों मानते समझता है। किसान अन्न पैदा करते हो तो उसमें उसके अकेले की नहीं तमाम लोगों की भूमिका होती है। उसमें कृषि उपकरण बनाने वाले,ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियां उसके मजदूर, खाद बनाने वाली कंपनियां उसके मजदूर,मजदूर, व्यापारी आदि। इन सब के बिना किसान का क्या वजूद है। इसलिए सबसे पहले तो किसान ये कहना बंद करें उगाते हैं तव देश खाता है। सैनिक तो कभी नहीं कहता कि हम जागते हैं तब देश होता है। नहीं वह अपने आप को कभी सर्वश्रेष्ठ मानता है। यदि आपको आंदोलन आंदोलन ही करना है तो आप अपने प्रदेश में ही कीजिए ।आपकी प्रदेश सरकार आपकी बात केंद्र सरकार तक पहुंचाएगी यही आंदोलन का एक तरीका होता है।

लेकिन नहीं ऐसा होगा नहीं क्योंकि प्रदेश सरकार को तो राजनीति करनी है। यही कारण है की भोले वाले किसानों को तमाम तरह के डर दिखा कर इस प्रकार के आंदोलनों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ये सत्ता या फिर सत्ता में बने रहने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां इन किसानों को इस तरह के आंदोलनों के लिए प्रोत्साहित करती है। और इन्हें लीड करने के लिए ऐसे लोग आगे आ जाते हैं जिन्हें आगे अपनी राजनीतिक राह बनानी है। फिर चाहे इस प्रकार के आंदोलन देश के लिए कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा करें, देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए या फिर लोगों की दैनिक दिनचर्या को प्रभावित हो इन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है।

आंदोलन में शामिल यह तथा कथित किसान नेता ऊपर से सरकार आरोप लगाते हैं कि सरकार ने हमें रोकने के लिए युद्ध जैसे हालात बना दिए हैं बॉर्डर पर किले लगा दी है कंटेनरों से रास्ता जाम कर दिया है। तो अरे भाई जब सरकार आपसे एक बार सबक ले चुकी है अपने पिछले आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को दिल्ली में के ट्रैक्टरों ने क्या किया था तो इस बार सरकार आपको क्यों ना आपको बॉर्डर पर ही रोके। क्योंकि जिस तरह से आप ट्रैक्टर लेकर के आए हैं उसे तो साफ जाहिर होता है कि आप फिर से दिल्ली को डराने के लिए आए हैं।

आप खुद को किसान कहते हैं, किसान तो पूरे देश में है तो पूरे देश का किसान आपके साथ क्यों नहीं है ? पिछले आंदोलन में भी देश का किसान आपके साथ नहीं था । और फिर जिस समय आप जिन मांगों को लेकर ये आंदोलन कर रहे हैं। इस  समय चाह कर भी सरकार आपकी मांगे पूरी नहीं कर सकती है क्योंकि संसद सत्र खत्म हो चुका है तो यह कानून कैसे बनेगा। इसलिए आप लोगों की जो मांगे हैं उन्हें लेकर एक प्रतिनिधिमंडल बना करके सरकार के साथ बैठें और अपनी मांगे उसके सामने रखें। जब नया संसद सत्र लागू होगा तब आपकी मांगे मानी जा सकती हैं। यूं राजनीतिक पार्टियों के भड़कावे में आकर के इस प्रकार के आंदोलनों से देश की अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ ना करें।

ये जितने नेता आपकी अगवाई करते हैं यह सिर्फ और सिर्फ किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक पहचान बढ़ाने के लिए आपके कंधे पर सवार होकर के नई ऊंचाइयां पाना चाहते हैं। इस समय सत्ता से बाहर तमाम पार्टियां किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहती है । चाहे फिर वह धर्म की नैया हो या किसानों के कंधे पर सवार होकर। यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक है। कभी-कभी तो यह सोचकर भी बहुत बुरा लगता है कि देश में यह किस प्रकार की राजनीति हो रही है जहां एक प्रदेश की सरकार केंद्र सरकार को लोग नहीं करती है। केंद्र सरकार प्रदेश सरकार को सहयोग नहीं करती यह क्या है। जिस तरह से आंदोलन में रोजाना मांगे बढ़ती जा रही है उससे यही साफ लगता है कि ये किसान आंदोलन है ही नहीं, यह तो एक राजनीतिक षड्यंत्र है। और फिर किसानों को बैलट या ईवीएम से क्या लेना देना । इस प्रकार की मांगे राजनीतिक लोग रखे तो समझ में आता है। किसान आंदोलन से इस प्रकार की मांगे उठाती है तो तुरंत समझ में आ जाता है कि यह आंदोलन नहीं एक राजनीतिक षड्यंत्र है।

G News 24 :9 साल में भी नहीं बन पाया ग्वालियर शहर स्मार्ट !

नगर निगम और स्मार्ट सिटी के बीच फंस गया है शहर का विकास...

9 साल में भी नहीं बन पाया ग्वालियर शहर स्मार्ट !

ग्वालियर। ग्वालियर को स्मार्ट सिटी में शामिल हुए लगभग 9 वर्ष का समय व्यतीत होने को है लेकिन अभी तक ग्वालियर स्मार्ट सिटी नहीं बन पाया है यह एक कड़वी सच्चाई है और इस सच्चाई से हर एक व्यक्ति वाकिफ है। देश का करोड़ों रुपया स्मार्ट सिटी का सुनहरा सपना दिखाकर पानी की तरह बहाया जा रहा है। लेकिन फिर भी पिछले 9 वर्षों में शहर की यातायात व्यवस्था अभी भी बे-पटरी है। 

आज भी सड़कों पर ट्रैफिक के कारण जाम है धुआं है धूल है। केई स्थान पर गैर तकनीक के सड़कों पर डिवाइडर लोगों को रॉन्ग साइड चलने पर मजबूर करते हैं क्योंकि जहां कट होना चाहिए वहां कट नहीं दिए गए जहां कट नहीं होना चाहिए वहां कट दिए गए हैं इस वजह से भी यातायात बाधित हो रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति दयनीय है। विक्रम-ऑटो चालक यात्रियों से मनमाना किराया वसूलते हैं। कोई देखने वाला नहीं है। प्रदेश की सबसे बड़ी गौशाला यहां आदर्श गौशाला होने के बावजूद सड़कों पर आवारा जानवरों का जमावड़ा है। 

अमृत योजना का घोटाला सभी के सामने है तीन मंजिल ऊपर पानी पहुंचाने की दावा करने वाली आवृत्ति योजना तीन मंजिल तो छोड़िए एक मंजिल पर भी पानी नहीं पहुंच पाई है और कहीं-कहीं तो अमृत-1 के तहत डाली गई पानी की लाइनों का मिलन में लाइन से हुआ ही नहीं है जिससे लोगों को पानी की सप्लाई भी नहीं मिल रही है। पहले का किडनी क्रियान्वन ठीक से हुआ नहीं और अब अमृत-2 ले आए। अमृतवाण की जितनी भी लाइन डाली गई जब भी उनकी टेस्टिंग होती है या पानी प्रेशर के साथ सप्लाई होता है तो उन का बूम करके फट जाना एक प्रश्न चिन्ह लगता है। इससे सड़के भी खराब हो रही है। और सरकार का पैसा भी बर्बाद जा रहा है।

स्ट्रीट लाइटों की बात की जाए तो अधिकतर समय अधिकतर क्षेत्र की लाइट खराब ही दिखाई देती हैं जब उनकी सुधरवाने की बात की जाती है तो नगर निगम और स्मार्ट सिटी एक दूसरे पर मामले को टालते हैं। स्वर्णरेखा की बात की जाए तो इसे लेकर तो हाई कोर्ट भी बहुत कुछ कह सका है कह चुका है इसलिए हम इस पर बात नहीं करेंगे।

अब बात की जाए स्मार्ट सिटी द्वारा किए गए कार्यों की तो स्मार्ट सिटी ने अभी तक जो एकमात्र कार्य किया है वह है महाराज बड़े की बिल्डिंगों का कायाकल्प और सड़क खोदकर बनाया गया फुटपाथ लेकिन इससे भी ना तो ग्वालियर की पब्लिक को ना ही वहां के दुकानदारों को कोई विशेष लाभ हुआ है। थीम रोड यानी कटोरा ताल रोड पर अच्छी वाली सड़कों को फुटपाथों को तोड़कर उखाड़ कर डक्ट बनाकर नई सडक डाली गई। अभी कुछ दिन पहले बारिश हुई तो डक्ट में पानी गया ही नहीं। ये तो सड़कों पर ही रहा तो फिर, खर्च किए गए करोड़ों रुपए व्यर्थ ही बर्बाद हो गये।

यह सब काम तो पहले भी होते रहे हैं और नगर निगम इन कार्यों को बखूबी करवाता भी रहा है। और मेरे ख्याल से जब शहर विकास से संबंधित कार्य अकेले नगर निगम के जिम्मे थे, तब ज्यादा बेहतर तरीके से यह कार्य हो रहे थे। लेकिन स्मार्ट सिटी के आने के बाद कार्यों का स्तर एक दूसरे पर टालम-टोली के चलते लगातार गिरता ही जा रहा है। स्मार्ट सिटी द्वारा कराए जा रहे कार्यों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ बड़े लोगों को खुश करने के लिए सिर्फ उन्हीं के क्षेत्रों में विकास कार्य किये जा रहे हैं जहां इन वीआईपीस का मूवमेंट रहता है रहता है । शहर के बाकी के क्षेत्र से, लोगों की जरूरतों,समस्याओं आदि को स्मार्ट सिटी नजर अंदाज करते हुए काम कर रही है।

इसी प्रकार चौराहों की छतरियों उनके आसपास के पुराने फुटपाथों को तोड़ना, पुरानी टाईलस को या लाल पत्थर को हटाना उसके स्थान पर नई टाईलज्स लगाना या सफेद पत्थर लगाना। पलकों की ग्रिल या रेलिंग हटाना और दूसरी लगाना।  पहले साइकिल ट्रैक को बनाना फिर उसे तोड़कर फुटपाथ में बदलना‌। स्मार्ट सिटी के पास क्या सिर्फ काम रह गया है। इतना ही नहीं पाल्यूशन मोनीटरिंग मशीन,वाटर एटीएम, शहर के बड़े चौराहे पर एलइडी डिस्पले बोर्ड, ट्रैफिक सिग्नल आदि कितने बढ़िया ढंग से कम कर रहे हैं यह किसी से छुपा नहीं है। तो फिर ऐसी स्मार्ट सिटी का क्या फायदा। 

शहर का विकास नगर निगम और स्मार्ट सिटी आपस में मर्ज होकर केवल नगर निगम के रूप में कार्य करें तो शहर का विकास ज्यादा बेहतर तरीके से किया जा सकता है। क्योंकि नगर निगम में विकास कार्यों के लिए जनप्रतिनिधियों की जवाब देही तय रहती है। जनप्रतिनिधियों को यह पता होता है कि किस क्षेत्र में किस प्रकार के विकास कार्य की जरूरत है कौन सा कार्य जरूरी है और कौन सा गैर जरूरी। उसी हिसाब से विकास कार्यों का रोड मैप बनाया जाता है। जबकि स्मार्ट सिटी में केवल अधिकारी हैं जिन्हें जमीनी वास्तविकता का ठीक से पता नहीं होता की कौन से कार्य जरूरी है कौन से गैर जरूरी। जब इस बात को ध्यान में रखकर कार्य किए जायेंगे तो पैसे की बर्बादी रुकेगी। पैसे की फिजूल खर्ची रुकेगी पैसा सही तरीके से इस्तेमाल होगा तो पैसों की कमी भी,विकास कार्यों के आड़े नहीं आएगी।

G News 24 : अच्छी थी पगडंडी अपनी,सड़कों पर तो जाम बहुत है !

 फुर्र हो गई फुर्सत अब तो.सबके पास काम बहुत है...

अच्छी थी पगडंडी अपनी,सड़कों पर तो जाम बहुत है !



                            अच्छी थी पगडंडी अपनी।

                            सड़कों पर तो जाम बहुत है।।

फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।

सबके पास काम बहुत है।।

                                नहीं जरूरत बूढ़ों की अब।

                                हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।

उजड़ गए सब बाग बगीचे।

दो गमलों में शान बहुत है।।

                            मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।

                            कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।

पीते हैं जब चाय तब कहीं।

कहते हैं आराम बहुत है।।

                            बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।

                            फोनों पर पैगाम बहुत है।।

आदी हैं ए.सी. के इतने।

कहते बाहर घाम बहुत है।।

                                झुके-झुके स्कूली बच्चे।

                                बस्तों में सामान बहुत है।।

 सुविधाओं का ढेर लगा है।

पर इंसान परेशान बहुत है...!!!

G News 24 : संदिग्ध रूप से घूमने वाले प्रवासी बेंडर्स और भिखारियों पर अंकुश जरूरी है !

 शहर में बढ़ती ही जा रही है इनकी तादात ...

संदिग्ध रूप से घूमने वाले प्रवासी बेंडर्स और भिखारियों पर अंकुश जरूरी है !

ग्वालियर। ग्वालियर शहर के सड़कों चौराहों पर भिखारियों और शहर के हर गली मोहल्ले में अवैध रूप से घूमने वाले प्रवासी बेंडर्स की तादात बढ़ती ही जा रही है। ये कहीं शहर के लिए खतरे की घंटी तो नहीं है। संदिग्ध रूप से घूमने वाले प्रवासी बेंडर्स और भिखारियों पर अंकुश जरूरी है !ये सुबह-सुबह ही हर गली मोहल्ले में निकल पड़ते हैं और हमें सुनाई देने लगती है। गेहूं बेच लो, चावल बेच लो, जवार बेच लो, बाल बेच लो, चैन लगवा लो, कैंची धार लगा लो,बच्चों के कपड़े खरीद लो कंबल ले लो, आदि तमाम तरह की आवाज लगाने वाले ये अनजान वेंडर्स हर गली मोहल्ले में घूमते दिखाई दे जाते हैं। उनकी वेशभूषा और इनकी चाल ढाल को देखकर ऐसा लगता है कि यह वेंडर्स ना होते हुए कोई रैकी करने वाले जासूस हो। 

इनकी तादाद कोरोना कल के बाद से एकदम शहर में बढ़ गई है जहां पुरुष गली मोहल्ले में दिखाई देते हैं तो वहीं महिलाएं पार्कों में चौराहों की लाल बत्ती पर छोटे-छोटे बच्चों के साथ डॉट पेन बेचने या हाथों में कपड़ा लेकर गाड़ियों की सफाई करने का नाटक करते हुए भीख मांगने का काम करते हैं। कभी-कभी तो ये लोग भीख मांगने के लिए लोगों के हाथ या कोई महिला पीछे बैठी है तो उसके कपड़े पकड़ कर के भीख  मांगते हैं । मजबूरनवाहन चालक को इन्हें कुछ ना कुछ देना पड़ता है।

 कुछ लोग इन्हें इसे पीछा छुड़ाने के लिए पैसा देते हैं तो कुछ लोग उनकी गोदी में मासूम बच्चों को देखकर दया दिखाते हुए पैसा देते हैं।और जब इन्हें दूर हटने के लिए कहो तो ये उल्टा झगड़ने के लिए भी तैयार रहती हैं। लेकिन लेकिन इन पैसा देने वाले लोग पैसा देते समय यह भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके ग्वालियर में भिखारी कल्चर को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं। 

जिसे वे दान दे रहे हैं या जिसकी कुछ आप मदद कर रहे हैं पहले उसके बारे में यह तो जानने का प्रयास तो करें कि कि वे मदद कर रहे हैं वह कहां का है, कहां से आया है, क्या करता है, क्यों ग्वालियर में रुका हुआ है ? क्योंकि इसी प्रकार की अनदेखी का नतीजा है की आज जितने भी हमारे बॉर्डर के प्रदेश हैं वहां बांग्लादेशी रोहिंग्या या महामारी घुसपैठियों की तादाद एकदम से बढ़ गई है और जब वहां शक्ति होने लगी तो यह पूरे देश में फैलने लगे हैं। 

अपना नया आशियाना तलाश रहे। जब इन्हें शेल्टर मिल जाता है तो यह अनैतिक गतिविधियों को अंजाम देने से भी नहीं हिचकिचाते हैं जिस प्रकार की अभी कुछ दिन पहले ही हरियाणा के नूंह में और और अभी हाल ही में उत्तराखंड के अंदर जिस प्रकार का बवाल इन लोगों ने काटा और इनकी वजह से तमाम जान गई देश व प्रदेश की संपत्ति का नुकसान हुआ, सैकड़ो वाहन और 2 पुलिस थाने फूंक दिए गए। ऐसे लोगों के लिए ग्वालियर का आश्रय स्थल बनता जा रहा है। और इनका एपिक सेंटर है ट्रांसपोर्ट नगर, फूल बाग चौराहा, पडाव चौराहा, गोला का मंदिर और मेला ग्राउंड। जहां यह भीख मांगने का काम करते हैं। 

हद तो तब हो जाती है जब ये शहर के बीचो-बीच फूल बाग मैदान के पास नगर निगम जनसंपर्क ऑफिस के सामने अपनी झुग्गियां बनाकर रहने लगते हैं और रह भी रहे हैं। सड़कों के किनारे बनी पानी और फ्लेक्स से बनी इनकी ये झुग्गियां क्या प्रशासनिक अधिकारियों, नगर निगम के मदाखत को और पुलिस प्रशासन को  दिखाई नहीं देती है। और यदि दिखाई देती हैं तो क्या इनके बारे में इन विभागों को जानकारी एकत्रित नहीं करना चाहिए और सड़कों से इन्हें हटाना नहीं चाहिए। यह आए हैं उन्हें वापस भेजा जाए। क्योंकि कल को शहर में हरियाणा उत्तराखंड जैसा अगर कुछ हुआ। शहर की शांति व्यवस्था के साथ किसी भी प्रकार की कोई खिलवाड़ हुई तो यह जवाबदारी पुलिस प्रशासन की स्थानीय प्रशासन की और नगर निगम की होगी। जिस प्रकार से शहर में अचानक से क्राइम बड़ा है आशंका होती है कि कहीं ना कहीं उसके लिए ऐसे लोग ही जिम्मेदार हैं। इसलिए समय रहते जिम्मेदार विभागों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और इन पर अंकुश लगाना चाहिए-रामवीर यादव (रवि)


G News 24 : योगी, अमित शाह या नितिन गडकरी इनमे से कोई भी हो सकता है अगला पीएम !

मोदी की जगह उनकी कमान संभालने के लिए सबसे उपयुक्त ??? 

 योगी, अमित शाह या नितिन गडकरी इनमे से कोई भी हो सकता है अगला पीएम !

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा पहले ही कर चुकी है. वहीं, पीएम मोदी भी कई मौकों पर अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर दावा कर चुके हैं. हाल में राज्यसभा में पीएम मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार का तीसरा कार्यकाल दूर नहीं है. उन्होंने यह भी कहा था, ''कुछ लोग इसे ‘मोदी 3.0’ कहते हैं. लेकिन मोदी का जब तीसरा कार्यकाल ख़त्म होगा तब उनकी जगह कोन प्रधानमंत्री बनेगा ये अभी यक्ष प्रश्न ही है लेकिन लोगों का कहना है कि नरेंद्र मोदी बेहद लोकप्रिय और राजनीति में काफी ऊंचा कद रखने वाले माने जाते हैं. उनकी कमान संभालने के लिए सबसे उपयुक्त नेता मिलना इतना आसान नहीं है। 

बीजेपी को 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनावों ओर 2019 के आम चुनाव में पीएम की लोकप्रियता का फायदा बीजेपी को लगातार हुआ है. वर्तमान राजनीति में उनका कद काफी ऊंचा माना जाता है. अब एक सर्वे में बताया गया कि पीएम मोदी की जगह बीजेपी का कौन सा नेता उनकी कमान संभालने के लिए सबसे ठीक है.

एक सर्वे में प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल का अनुमान लगाया गया है. इस सर्वे के मुताबिक, इसमें शामिल सबसे ज्यादा 29 फीसदी लोगों ने यह भी कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पीएम मोदी का उत्तराधिकारी बनने के लिए सबसे उपयुक्त हैं.  25 फीसदी लोगों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिया और 16 फीसदी लोगों ने कहा कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पीएम मोदी की जगह कमान संभालने के लिए सबसे उपुयक्त हैं. ये बात फरवरी 2024 आयी एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार सभी लोकसभा सीटों पर 35,801 लोगों से ली गई राय पर सामने आई है .

17वीं लोकसभा का कार्यकाल 16 जून तक है. अप्रैल या मई में लोकसभा चुनाव कराया जा सकता है. चुनाव आयोग जल्द ही इसकी घोषणा कर सकता है. बीजेपी लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने का दावा कर रही है, साथ चार सौ प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर भी चल रही है.

G News 24 : दंगें और दंगाइयों के समर्थन में बोलने वालों को सभी नेशनल चैनल करें बेन !

 देश में छुपे हैं कितने गद्दार भाईजान !

दंगें और दंगाइयों के समर्थन में बोलने वालों को सभी नेशनल चैनल करें बेन !

भारत देश में अल्पसंख्यक तो कई और तमाम समूह भी है। लेकिन देश में जहां भी दंगा होता है, पत्थर बाजी होती है, तोड़फोड़ होती है, आगजनी की घटनाएं होती है, एवं ब्लास्ट की घटनाएं होती हैं उनमें देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के शामिल होने का खुलासा होता हैं ! ऐसा क्यों ? जहां भी दंगा होता है ये ही क्यों शामिल होते हैं। कभी कोई जैन,सिख,ईसाई को इस प्रकार देश में अराजकता फैलते तो नहीं देखा है। फिर ये लोग किस मानसिकता के चलते इस तरह के कार्य करते है।  

मैं आज यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि सभी मुस्लिम लोग ऐसे नहीं है ना ही इस प्रकार की गतिविधियों में संलगन होते हैं। इस प्रकार की गतिविधियों में वही लोग संलग्न होते हैं जो आवारा,अनपढ़ हैं नशेड़ी होते हैं। और कट्टरता वाली  मानसिकता के शिकार हैं। ऐसे लोगों को भड़काने का काम कुछ तथाकथित इस्लामिक  स्कॉलर्स, रिसर्चर,कुछ कट्टर मुल्ले मौलवी और राजनीतिक लोग करते हैं। 

ये तथाकथित लोग अपने आपको समाज का सबसे बड़ा हितैसी बताने  प्रयास करते हैं। जबकि ये मुस्लिम्स के सबसे बड़े दुश्मन हैं। क्योंकि ऐसे लोगों ने ही पूरी दुनिया में आज मुस्लिमों को बदनाम करवा दिया है। ये लोग जो सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए इन अनपढ़ और गरीब मुस्लिमों को भड़का कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते हैं।   अपनी दुकान चलाते हैं। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। लेकिन ये अपनी तकरीरों और भड़काऊ भाषडों से लोगों को भ्रमित करते है। ये दंगाई इनके बहकाबे में आकर ये कृत्य तो कर देते हैं इसके बाद जो होता है। वो सिर्फ दंगाइयों और इनके परिजनों को भुगतना पड़ता है और ये भड़काऊ भाईजान ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सर से सींग। इसलिए इन दंगा फ़ैलाने वालों को भी ऐसे भाईजनों के बहकावे में आने से बचना चाहिए। 

ऐसे लोगों की बात को दूर तक पहुंचाने में हमारे देश की नेशनल मीडिया और tv चैनल भी बहुत बड़ी भूमिका इन दिनों निभा रहे हैं। जो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए ऐसे लोगों को अपने चैनल पर बारी-बारी से डिबेट के लिए शामिल करते हैं।डिबेट के दौरान  कुछ गिने चुने स्वार्थी देशद्रोही भाईजान, हिंदू मुस्लिम के बीच कभी ना भरने देने वाली खाई को और चौड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले ये लोग इन चैनलों पर सिर्फ और सिर्फ अपने दुकान चलाने और राजनीतिक रोटियां सीखने के लिए अपने आप को समाज का अगवा बताने का प्रयास करते हैं और मुस्लिमों को भड़काते हैं।

 टीवी चैनलों विक्टिम कार्ड खेलते हैं। अधिकारों और संविधान की दुहाई देते हैं।  जबकि संविधान का सबसे ज्यादा ये ही लोग मज़ाक बनाते हैं। ये सिर्फ और सिर्फ अधिकारों की बात करते हैं और देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य भूल जाते है। जब इन्हें क़ानून इन्हें इनकी ड्यूटी याद दिलाता है। तो ये विक्टिम कार्ड खेलने लगते हैं मुस्लिम होने के नाम पर सिपैथी लेने का प्रयास करने लगते हैं।  हमारी नेशनल मीडिया इनके इस प्रोपेगंडा को समझकर भी नासमझ बनी हुई है। ये नेशनल मीडिया का उपयोग देश  का माहौल बिगाड़ने वाले ऐसे लोगों को डिबेट में बुलाकर कहीं न कहीं इनकी इस मुहिम का समर्थन करती दिखाई देती है। 

जब भी कहीं आग जनि, तोड़फोड़, दंगा, विदेश में भी मुस्लिमों के साथ या मुस्लिमों के द्वारा कोई घटाना या दुर्घटना होती है तब भी अपने गाल  बजाने टीवी चैनल पर आ आते। ये बार-बार संविधान और उस से मिले अधिकारों की दुहाई देते हैं अरे भैया संविधान में अधिकारों बात तभी होती जब हम अपने कर्तव्य पूरे करें। संविधान ने अधिकार हमें और आप सभी को बराबर दिए हैं। जबाबदेही भी तय की है। तो कर्तव्य सिर्फ हम निभाएं और आपको सिर्फ अधिकार चाहिए तो जनाव ऐसा नहीं चलने वाला है। आपको अधिकार चाहिए तो आप अपनी ड्यूटी ठीक से करो कर्तव्य निभाओ जब आप कर्तव्य ही नहीं निभाओगे अधिकार कहां से मिलेंगे। पहले देश के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा तो रखो। 

क्या कभी बहू समयक समाज इस प्रकार की गतिविधियों में इतने बड़े पैमाने पर देश में तबाही मचाई है। मेरी नजर में तो शायद कभी  नहीं। लेकिन आप तो जहां देखो वहां आप ही आप हो। और फिर भी नेशनल चेनल पर बैठकर के देश के खिलाफ बोलने  सरकार को, बहुसंख्यक समाज को गाली देना आपकी फितरत बन गई है। ओवैसी तौकीर रजा अतीक उर्रहमान जैसे तमाम लोगों पर शासन को एनएसए के तहत कार्रवाई करना चाहिए।ये लोग सार्वजानिक रूप से जनसभाओं, टीवी चैनल्स पर दंगे कराने के लिए लोगों को भड़काने,हत्या करने के लिए उकसाने का काम करते है। इसलिए सबसे पहले इनका इलाज करना जरूरी है। 

जो भी दंगाइयों के बचाव में टीवी चैनलों पर डिबेट में आता है इन सभी पर दंगे के लिए प्रोत्साहित करने  दंगा फैलाने, वालों के खिलाफ भी सरकार को एनएसए के तहत कार्रवाई और जहां भी जो भी नुकसान हो उसकी भरपाई करनी चाहिए। ऐसे लोगों पर पूरी तरह नेशनल मीडिया पर बोलने से प्रतिबंधित लगना चाहिए। ऐसे लोगों को कहीं भी किसी भी प्रकार की आम सभा सा जनसभा करने की अनुमति भी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जहां समाज को तोड़ने की बात है। 

G News 24 : झूठ बोलना और पूरे कॉन्फिडेंट के साथ बोलना भी एक हुनर है !

 बस, झूठ बोलने वाले को अपने हुनर के प्रति सीरियस और  समर्पित होना चाहिए !

झूठ बोलना और पूरे कॉन्फिडेंट के साथ बोलना भी एक हुनर है !

झूठ बोलने वाला ये हथियार अत्यंत प्राचीन है।महाभारत से ले कर 2023 तक कई बार झूठ बोलने की कला का  सफलतापूर्वक प्रयोग होता आया है। झूठ बोलना भी एक कला है। बस इसका  इस्तेमाल करने वाला कलाकार अपने हुनर के प्रति सीरियस और  समर्पित होना चाहिए।  "कौन सी बात कहां,कैसे कही जाती है,ये सलीक़ा हो तो हर बात  सुनी जाती है। निश्चित रूप से झूठ बोलने के लिए भी सलीक़े की दरकार तो होती ही है।

अश्वत्थामा,हों या काला धन वापसी सब इसी कला के सफलतापूर्वक प्रयोग माने जाते हैं। फ़र्क़ इतना है कि,कुछ नेक काज के लिए बोले जाते हैं,कुछ अपना उल्लू सीधा करने के लिए। ये कला भी, "डिमांड एंड सप्लाई" के सिद्धांत पर चलती है। यदि लोगों को कड़वे सच की जगह,मीठे झूठ से राहत मिलती है,तो इस हुनर का भविष्य उज्जवल होना ही है। इसी एक हुनर से रेलवे स्टेशन से संसद तक का सफर आसानी से तय किया जा सकता है।

प्रेमी युगल के रिश्ते भी इसी एक कला के भरोसे चलते हैं। अगर लाई डिटेक्टर की इजाज़त हो तो ये सात जन्मों वाले रिश्ते सात दिन न टिकें। प्रेमी की हैसियत के मुताबिक़ बात रिचार्ज से ले कर सोने की चेन तक पहुंच जाती है। प्रेम की निशानी का जो सवाल है। पति-पत्नी भी समय2 पर इस कला का प्रदर्शन कर लाभान्वित होते रहते हैं। 

एक बार एक व्यक्ति की पत्नी मायके गई हुई थी। पति देव आज़ाद परिंदे जैसे नाचते फिर रहे थे। अचानक एक दिन पत्नी ने फोन किया, पड़ोसन का फोन आया था,तुम्हारी तबियत ख़राब है। नहीं कोई ख़ास नहीं बस ऐसे ही सर्दी-जुख़ाम हो गया था,अब ठीक है। पत्नी ने फिर सवाल कर लिया,अकेले कैसा लग रहा है.? पति ने कहा तुम्हारी, और बेटे की बहुत याद आ रही है। बस यहीं चूक हो गई। पत्नी बोली कल ही ट्रेन में बैठती हूं। पति अपने आप को कोसने लगा,कि काश सच बोल दिया होता कि,ज़िंदगी बड़े सुकून से गुज़र रही है,तो ये दुःखदायी ख़बर न सुनना पड़ती। 

कभी-कभी  इस हुनर नुक़सान भी उठाना पड़ता है, यानी कि इसमें जोख़िम भी बहुत है !

हामरी आदत है कि,पहले हम सुर्घटना का इंतेज़ार करते हैं,फिर उसका उपाय। कारवां गुज़र गया,ग़ुबार देखते रहे। जब विस्फोट हो गया,लाशें बिछ गईं, तब याद आया कि,आस-पास की मौत की फैक्ट्रियों की जांच की जाए। पता नहीं आज कल एसडीएम लोग इतने मुलायम चारा क्यों बने हुए हैं। कहीं कुछ हुआ नहीं कि,एसडीएम साहब या तो सस्पेंड,या तबादला। यहां भी कलेक्टर/एसपी पर गाज गिरी। 

लायसेंस देने से लेकर अग्रवाल की "राजनीतिक शरणगाह"पर ज़ुबान खुलना तो मुमकिन नहीं,और कार्रवाई के नाम पर पब्लिक को तो कुछ न कुछ दिखाना है,यानी कुर्बानी निश्चित है,पब्लिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि,किसकी दी जाती है। सुना है अग्रवाल साहब ऐसे ही एक केस में 10 साल की सज़ा पा चुके हैं,और ज़मानत पर चल रहे हैं,उसके बाद भी ये दिलेरी ! तो आख़िर इस फ़िल्म के निर्माता/निर्देशक कौन हैं.?,उन पर प्रशासन की कृपा की कोई ख़ास वजह? पटेल जी ने सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया। अरे सरकार पिछले कई वर्षों से आपका ही राज-पाट चला आ रहा है,तो आपके रहते ये कैसे हो गया.?,वैसे कांग्रेसियों के लिए इसमें भी राहत की बात है,कि कम से कम हामरी इतनी हैसियत तो अभी भी बाक़ी है कि,किसी के आरोप के काम आ जाते हैं।

G News 24 : बेशर्म नेता, कानून एवं उसकी एजेंसियों और संविधान का उड़ा रहे हैं मजाक !

 नेता  पद और पावर  के लिए कुछ भी करने से नहीं चूक रहे हैं...

बेशर्म नेता, कानून एवं उसकी एजेंसियों और संविधान का उड़ा रहे हैं मजाक !

ग्वालियर। हमारे देश में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है कि चोर चोर मौसेरे भाई यहां चोर चोर शब्द कुछ भ्रष्ट दूर और मक्कार नेताओं के लिए जो अपने आप को समाज से भी कहते हैं जब यह अपने आप को समाजसेवी कहते हैं तो ऐसा लगता है कि समाज सेवी शब्द की व्याख्या ही नेताओं की वजह से बदल गई है। मुझे यह कहते हुए कटाई गुरेज नहीं है की पार्टी कोई भी हो इस हमाम में लगभग ये सभी नंगे हैं। सत्ता पाने के लिए यह कितना नीचे गिर सकते हैं देश का कानून का संविधान का अपमान करने में इन्हें कोई झिझक नहीं है।

वैसे तो सभी पार्टियां अपनी-अपनी विचारधारा और सिद्धांतों का ढिंढोरा पीटती हैं और जनता को भ्रमित करते हुए या यूं कहें कि उसे मूर्ख बनाकर जब सत्ता में बैठ जाती हैं तो फिर यह अपनी मनमर्जी पर उत्तर आतीं है। यह धूर्त मक्कार नेता पहले तो भ्रष्टाचार करते हैं और जब भ्रष्टाचार की कलई खुलने लगते हैं तो फिर एक दूसरे पर बेमतलब के इल्जाम और आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं करते हैं। देश में इन दिनों ऐसे ही तमाशे चल रहे है।

ये मक्कार नेता जब जनता के सामने होते हैं तो अपने आप को बड़ा ही पाक-साफ, ईमानदार बताने का प्रयास करते हैं और जनता भी इनकी मक्कारी में फंसकर इन्हें सट्टा की चाबी सौंप देती है, लेकिन जब इनकी पोल खुलती है उनकी बेईमानी की पोल खुलती है तो जनता अपने आप को ठगा सा महसूस करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाती है। उधर ये मक्कार नेता उन आरोपों को सिरे से नकारने का प्रयास करते हैं और कानून से खिलवाड़ करने,जांच एजेंटीयों पर सवाल उठाने बिल्कुल भी नहीं चूकते हैं। यह देखकर तो ऐसा लगता है कि का मानो इन्हें यह सब करने का खुला लाइसेंस मिला हुआ है।

अभी वर्तमान में एक ताजा मामला बड़ा ही सुर्खियों में बना हुआ है वह है, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं का। यह वही अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने कभी अन्ना आंदोलन के दौरान देश को भ्रष्टाचार मुक्त होने का सपना दिखाया था। और यही सपना दिखाकर इन्होंने अपनी एक राजनीतिक पार्टी खड़ी की। जनता ने ये समझ कर दिल्ली की सत्ता इन्हें सौंप दी यह लोग दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त करके एक आदर्श राज्य बनाएंगे। किसे पता था कि यह देश की सबसे भ्रष्टतम सरकारों में से एक होने वाली है। यह हम इस यूं ही नहीं कह रहे हैं ये हम सब के सामने है कि यह देश के इतिहास में शायद पहले पार्टी है जिसके सत्ता में रहने के बावजूद सबसे ज्यादा मंत्री और विधायक आज जेल में है। 

इतना ही नहीं एक बहुत बड़े भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल जाने वाले हैं। इससे बचने के लिए ये भागे-भागे फिर रहे हैं। यही कारण है कि ये किसी भी तरह से ईडी और क्राइम ब्रांच के सामने जाने से बच रहे हैं। वैसे तो अरविंद केजरीवाल दावा करते हैं कि उनसे ही ज्यादा ईमानदार देश में कोई नहीं है। देश की जनता उनसे जानना चाह रही है कि अगर वे इतने ही ईमानदार हैं तो सच का सामना करने से क्यों भाग रहे हैं ? क्यों देश की जिम्मेदार एजेंटीयों का मजाक बना रखा है ?  5-5 सम्मन जारी होने के बाद भी आप क्यों नहीं प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों के सामने पेश हो रहे हैं ? क्यों नहीं उनके सवालों के जवाब दे रहे हैं ? क्राइम ब्रांच भी आपके द्वारा लगाए गए जनता पार्टी के ऊपर इल्जामों की जांच करने के लिए आपसे पूछताछ करने आती है तो आप उसके सामने भी नहीं आते हैं ।

अधिकारियों को सम्मन/नोटिस देने के लिए आपके दरवाजे पर 5-5 घंटे खड़ा रहना पड़ता है इसके बावजूद भी आपके द्वारा सम्मन /नोटिस नहीं लिया जाता है अधिकारी बेइज्जत होकर वापस लौट जाते हैं । ये सब करके आखिर आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? क्या आप एक नया ट्रेंड चालू नहीं करने जा रहे हैं कि कानून के लूप पोल का फायदा उठाकर राजनीतिक लोग कैसे जांच एजेंसियों को या जिम्मेदार एजेंसियों को परेशान कर सकते हैं ? वैकेंसियों का यह संविधान का किस प्रकार से मजाक उड़ाना क्या देश हित में है ? क्योंकि एक चुनाव हुआ नेता जनता का प्रतिनिधि होता है और जब उनका ये प्रतिनिधि ही देश की जांच एजेंसियों और संविधान का सम्मान नहीं करेगा तो फिर जानता कैसे इन एजेंसियों और देश के संविधान का सम्मान कैसे करेगी ? 

सवाल इन एजेंसियों पर भी उठते हैं की क्या अगर केजरीवाल या हेमंत सोरेन जैसे व्यक्ति चुने हुए प्रतिनिधि ना होते और एक आमजन होते तब भी एजेंसियां उन्हें इतने मौके देती ? उन्हें यह मौका बिल्कुल नहीं मिलता क्योंकि एक आम आदमी का यदि एक सम्मन चूक जाता है तो उसे तत्काल बलपूर्वक हिरासत में ले लिया जाता है। 

कानून की नजर में अगर सभी समान हैं तो फिर आम और खास के लिए न्यायिक प्रक्रिया में यह अंतर क्यों ? आमजन को तो आप बिल्कुल मोहलत नहीं देंगे और अगर खास है तो एजेंसियों का मजाक बनने देंगे। क्यों नहीं सुप्रीम कोर्ट इस पर स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई पूरी करने के आदेश देता है ? आम आदमी के लिए कोर्ट की कार्रवाई ठीक समय 5:00 बजे बंद हो जाती है लेकिन अगर खास है तो कोर्ट रात के 12:00 बजे 2:00 बजे 3:00 बजे भी खुल जाती है यह भेदभाव क्यों ? विश्व संगति का बदलाव भी जरूरी है नियम कायदे सभी के लिए समान होने चाहिए। 

अगर इतने पर भी सुप्रीम कोर्ट मौन है तो फिर इससे तो यही सिद्ध होता है कि आप खास हैं इसलिए आपको देश के संविधान का उसके लिए काम करने वाली एजेंसियों का खुला लाइसेंस मिल जाता है-रामवीर यादव

G News 24 : कांग्रेस का लोग ऐसे ही साथ छोड़ते रहे तो आगे का सफर मुश्किल है !

 मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मनोबल बचाने की चुनौती...

कांग्रेस का लोग ऐसे ही साथ छोड़ते रहे तो आगे का सफर मुश्किल है !

ग्वालियर। पं.बंगाल की मुख्यमंत्री  और टीएमसी की अध्यक्ष ममता बनर्जी  द्वारा कांग्रेस पर की गई टिप्पणी कड़वा सत्य है कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , राजस्थान  में लोकसभा चुनाव जीत कर दिखाए। मध्यप्रदेश में देखें तो यहां आम कांग्रेसियों का मनोबल गिरा हुआ है ! आये दिन कांग्रेसी भाजपा में शामिल हो रहे हैं। जो भगदड़ जैसे हाल  विधानसभा चुनाव के समय भाजपा में थे, अब कांग्रेस में नजर आ रहे हैं।  विधानसभा चुनाव में भाजपा की बम्पर जीत और अब राममंदिर माहौल ने भाजपा  का नारा 'अब की बार 400  पार का अकड़ा आसान  लगता है ! ऐसे प्रतिकूल माहौल में कांग्रेस को यूपी-एमपी में सशक्त उम्मीदवार मिलने मुश्किल हो गये हैं।

अभी हाल ही में मुरैना महापौर और कांग्रेस नेत्री शारदा सोलंकी अपने पति कांग्रेस नेता राजेन्द्र सोलंकी के साथ केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से दिल्ली में मिली हैं। इधर सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक अन्य महापौर के परिवार ने भी भाजपा प्रदेश संगठन के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि उनके परिवार के सदस्य को मुरैना से लोकसभा टिकट मिल जाता है तो महापौर भाजपा में शामिल हो जाएंगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भी मायूसी सी है। उत्साह नजर नहीं आ रहा है। जबकि पिछले बार की भारत जोड़ो यात्रा ने  कुछ समय के लिए कांग्रेसमय माहौल कर दिया था। 

मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय  सिंह पार्टी हाईकमान के यहां कमजोर पड़ने से भी जिलों के कांग्रेसियों विशेष रूप से  ग्वालियर चम्बल संभाग के पार्टी कार्यकर्ताओं  में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आशंकाएं  उठ रही हैं । वे चर्चा कर रहे हैं कि नया  नेतृत्व जीतू पटवारी , उमंग सिंघार  जैसे नेताओं से उनके घनिष्ट संबंध नहीं है। ये नेता उन्हें जानते भी नहीं हैं। ऐसे में यदि कांग्रेस नेतृत्व ने यदि लोकसभा चुनाव के पहले अपने छोटे-बड़े  नेताओं को साधा नहीं, उन्हें एकजुट नहीं किया और  उनके भीतर  की आशंकाओं का समाधान नहीं किया तो कांग्रेस का नुक्सान होना तय है-रामवीर यादव 

G News 24 : संवैधानिक पद नहीं,फिर भी देश में हैं रिकॉर्ड 26 डिप्टी सीएम !

 कहीं एक कहीं दो और आंध्र प्रदेश तो इससे भी काफी आगे है. वहां पांच डिप्टी सीएम हैं...

संवैधानिक पद नहीं,फिर भी देश में हैं रिकॉर्ड 26 डिप्टी सीएम !

देश में राजनेताओं की राजनैतिक सुख भोगने लालसा का स्तर कितना विकराल होता जा रहा है इसका ही कारण है कि सभी नेता बड़े से बड़े पद को पाना चाहते है। वैसे तो सभी पार्टियों के नेता स्वयं को एक साधारण कार्यकर्ता बताते हैं लेकिन कोई भी सिर्फ कार्यकर्ता बने रहना नहीं चाहता है. उसे तो पॉवर वाली पोजीशन ही चाहिए उसकी इसी भूख और आत्मसंतुष्टि के लिए और केवल सत्ता में बने रहने के लिए ये राजनैतिक पार्टियां भी संविधान को दर-किनार करते हुए राज्यों में कहीं एक ,कहीं दो -दो और एक राज्य में तो 5 डिप्टी सीएम बना चुकीं है। लेकिन जनता मूक दर्शक बनी हुई है। उसे इसका विरोध करना चाहिए क्योंकि इन असंवैधानिक नियुक्तियों के कारण राज्यों पर अतिरिक्त खर्च का बोझा बढ़ता ही जा रहा है और इसकी भरपाई आखिरकार जनता पर मनमाने टैक्स बड़ा कर ही की जाती है। इसलिए ऐसी व्यवस्थाओं का विरोध करें। 

इस समय सात राज्यों में रिकॉर्ड 26 डिप्टी सीएम पद पर हैं. दिलचस्प यह है कि इस पोस्ट के लिए कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. यह राजनीति में सहयोगियों को संतुष्ट करने या कहें कि शांत कराने और समूह या गठबंधन को एकजुट रखने के राजनीतिक टूल की तरह उभरकर सामने आया है. अभी का ताज़ा घटनाक्रम तो सभी को पता होना चाहिए बिहार में पहले नीतीश कुमार का इस्तीफा और पार्टी बदलकर दुबारा मुख्यमंत्री बनना साथ में दो डिप्टी सीएम की भी नियुक्ति होना. जी हां, बिहार को सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा के रूप में दो डिप्टी सीएम मिले हैं. इसके साथ ही देश में डिप्टी सीएम का रिकॉर्ड भी बन गया है

वैसे, उप मुख्यमंत्री भी मंत्री के रूप में ही शपथ लेते हैं, लेकिन वे पद के क्रम में उच्च दर्जा रखते हैं. समायोजन और राजनीतिक प्रबंधन के अलावा विशेषज्ञ इसे सामाजिक आंदोलनों के बाद एक तरह की जागरूकता मानते हैं, जो विविधता को दर्शाता है. 

आंध्र प्रदेश इस से  भी काफी आगे है वहां पांच डिप्टी सीएम हैं !

इस लिस्ट में आंध्र प्रदेश काफी आगे है. वहां पांच डिप्टी सीएम हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मेघालय, नगालैंड में दो-दो उप मुख्यमंत्री हैं. हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल, तेलंगाना और अरुणाचल प्रदेश में एक-एक उपमुख्यमंत्री हैं. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक JDU के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि वैसे यह एक विरोधाभास है लेकिन संवैधानिक वैधता हमेशा एक आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा, 'ये समायोजन और प्रबंधन का दौर है. यह हमारे समाज और इसकी विविधता को भी दिखाता है. पहले लोग इतने जागरूक नहीं थे, लेकिन सामाजिक न्याय आंदोलन ने एक जागरूकता पैदा की है और अब हर कोई अपना प्रतिनिधित्व चाहता है.

पहले डिप्टी पीएम कौन थे !

उप- प्रधानमंत्री पद के लिए भी कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि भारत में आजादी के बाद से ऐसे सात उदाहरण मौजूद हैं. सबसे पहले सरदार वल्लभभाई पटेल थे. मोराजी देसाई (चौथे प्रधानमंत्री) भी दूसरे उप प्रधानमंत्री थे. दिलचस्प बात यह है कि देवीलाल ने 1989-1991 के दौरान दो प्रधानमंत्रियों के डिप्टी के तौर पर काम किया लेकिन उन्होंने शपथ मंत्री के रूप में नहीं बल्कि 'उप प्रधानमंत्री' के रूप में काम करने की ली थी. JNU में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले अमिताभ सिंह ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहा कि डिप्टी होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन अब इसे मुख्यधारा में लाया गया है, खासकर भाजपा द्वारा. 26 उप-मुख्यमंत्रियों में से 13 भाजपा के, दो भाजपा सहयोगियों के, पांच वाईएसआर कांग्रेस के और तीन कांग्रेस के हैं -रामवीर यादव 

G News 24 : नीतीश कुमार को चाहे जैसे भी हो सत्ता चाहिए ही चाहिए !

 भारतीय राजनीति के गिरगिटराज नीतीश

नीतीश कुमार को चाहे जैसे भी हो सत्ता चाहिए ही चाहिए !

राजनीति में अधिकांश नेता समय-समय पर गिरगिट की तरह अपना रंग बदलते हैं ,लेकिन कुछ नेताओं को रंग बदलने में महारत  हासिल  है। बिहार  के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस युग के सबसे बड़े गिरगिट है।  उन्होंने रंग बदलने में असल गिरगिट को भी पीछे छोड़ दिया है ,इसलिए आप अपनी सुविधा के लिए ‘ गिरगिटराज ‘ भी कह सकते हैं।  

मेरे शब्दकोश में नीतीश के लिए कोई दूसरी उपमा  है ही नहीं !

आयगानी 01  मार्च  को 73  साल के होने जा रहे नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में एक-दो मर्तबा नहीं बल्कि पूरे आठ बार शपथ ली और अब उनका मन फिर विचलित है ।  वे नौवीं बार शपथ लेने के लिए अपने पद से इस्तीफा देने का मन बना चुके हैं। बिहार में दल और गठबंधन बदलने में नीतीश कुमार से पहले राम विलास पासवान का नाम हुआ करता था। पासवान राजनीति का मौसम भांपकर रंग बदलते थे किन्तु नीतीश कुमार ने पासवान के कीर्तिमान को भी भंग कर दिया। नीतीश कुमार को अपने फैसलों के बारे में शायद खुद भी पता नहीं होता। मजे की बात ये है कि वे लगातार अविश्वसनीय होने के बाद भी धर्मधुरंधर भाजपा के लिए भी अंत समय में विश्सनीय हो जाते हैं और धर्म निरपेक्ष कांग्रेस और राजद के लिए भी।

इन दिनों जब पूरा विपक्ष देश में गैर भाजपा वाद की राजनीति  के लिए एकजुट होने में लगा था तब नीतीशकुमार ने गठबंधन के साथ चलते-चलते अचानक अपना रास्ता बदल लिया  है।  वे अचानक भाजपा के गठबंधन एनडीए की और झुक गए है। पिछले दो साल से वे जिस राजद के साथ मिलकर’  चाचा-भतीजे ‘ की सरकार चला रहे थे  उसी राजद में उन्हें परिवारवाद सताने लगा है।  उन्हें अचानक पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की याद आ गयी ह।  ठाकुर को  जैसे ही भाजपा की केंद्र सरकार ने 24  जनवरी को ‘ भारत रत्न ‘ सम्मान देने की घोषणा की ,नीतीश बाबाबू का भाजपा से पुराना प्रेम उमड़ने लगा।

निश्चित ही रंग और पाला बदलकर मरे हुए जमीर के स्वामी नीतीश कुमार नौवीं बार भी बिहार के मुख्यमंत्री बन जायेंगे ,लेकिन नौवीं बार पद और गोपनीयता की शपथ लेते वक्त उनके चेहरे से जो काइयाँपन और निर्लज्जता झलकेगी उसे देखने के लिए कम से कम मै तो आतुर हूँ। क्योंकि ऐसा दुर्लभ क्षण मुमकिन है कि मेरे जीवन में दोबारा न आये। मेरी दृष्टि में नीतीश बाबू भारतीय नराजनीति में निर्लज्जता की सर्वोच्च प्रतिमान हो चुके हैं। वे जनादेश के साथ खिलवाड़ करने वाले सबसे बड़े और सिद्धहस्त खिलाड़ी बन चुके हैं। उनका किरीतिमान अब शायद ही कोई दूसरा नेता तोड़ पाए। कल के बच्चे जब भारतीय राजनीति का इतिहास पढ़ेंगे तो नीतीश  बाबू का नाम एक ‘ गाली ‘ की तरह लिया जाएगा।

नीतीश बाबू जयप्रकाशनारायण की ‘ सम्पूर्ण क्रांति ‘ का उत्पाद है।  उनके साथ ही अनेक लोग थे जो इसी आंदोलन के जरिये राजनीति में आकर शीर्ष तकपहुंचे ।  लालू यादव ,रामविलास पासवान ,शरद यादव सब उसी आंदोलन से बाहर निकले ,लेकिन सबने समय के साथ अलग-अलग रस्ते से सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने का करिश्मा कर दिखाया। लालू जी भ्र्ष्टाचार और परिवारवाद की मिसाल बने ।  रामविलास पासवान और शरद यादव ने दलबदल के कीर्तिमान बनाये और नीतीश कुमार  ने इन दोनों  को भी पीछे छोड़ दिय।  नितीश के ऊपर लालू प्रसाद यादव की तरह भ्र्ष्टाचार और परिवारवाद के आरोप  नहीं लगे ।  उलटे उन्हें बिहार के कायाकल्प के लिए सुशासन बाबू कहा गया ,लेकिन नीतीश ने सुशासन करने के लिए राजनीति की तमाम मर्यादाएं और आचरण संहिताएं   बलाये तक रख दी।

लोकसभा चुनाव  से पहले इंडिया गठबंधन को लंगड़ा करने वालों में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के बाद नीतीश बाबू तीसरे नेता है। वे रणजीति में अपने हमउम्र प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह अप्रत्याशित फैसले करने में माहिर  है।  कल तक वे धर्मनिरपेक्षता का ध्वज उठाकर चल रहे थे। पिछले साल राम नवमी के जुलूस पर  पत्थरबाजी और कई हिंदुओं के मरने तथा घायल होने की कई घटनाओं को नजर अंदाज करते हुए उसी वक्त इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। इसके लिए हिंदुओं ने उनकी काफी आलोचना भी की , यहां तक कि उनकी तुलना रोम के नीरो से भी की गई। भाजपा ने भी उनपर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया था लेकिन आज फिर नीतीश बाबू भाजपा के लिए ‘ मिशन 400  पार ‘ को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।

भारतीय लोकतंत्र में इस समय धर्मान्धता और धर्मनिरपेक्षता के बीच संघर्ष है ।  संघर्ष क्या एक तरह की ‘ महाभारत ‘चल रही  है ।  एक पाले में भाजपा और उसके सहयोगदल हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा की साम्प्रदायिक तथा संकीर्ण  राजनीति से घृणा करने वाले दल। लेकिन अब भाजपा विरोधी दलों में बिखराव हो रहा है। सबसे पहले बसपा  ने कांग्रेस और उसके गठबंधन से दूरी  बना । फिर आप ने धोखा दिया ,फिर ममता बनर्जी के सुर बिगड़े और अब नीतीश बाबू गैर-भाजपा वाद के इस अभियान में आखरी कील ठोंक  रहे हैं। नीतीश  बाबू मौजूदा राजनीती के सबसे बड़े खलनायक बनने जा रहे हैं ,किन्तु उन्हें इसकी  कोई चिंता  नहीं है क्योंकि वे सत्ता प्रतिष्ठान के बगलगीर बनकर खड़े हैं। हमारे गांव  में इस तरह के सांग  को केर -बेर  का संग या  सांप -नेवले   की मित्रता  कहा जाता  है।

गिरगिटराज नीतीश बाबू के निर्णय से विपक्षी एकता को भारी  नुक्सान तो होगा ही लेकिन सामाजिक न्याय  के उस  अभियान को भी धक्का   लगेगा  जो कभी  बिहार में कर्पूरी  ठाकुर ने शुरू  किया  था। नितीश बाबू के निर्णय से भारतीय राजनीति में पहले से मौजूद  विश्वास  का संकट  और गहरा  होगा। लोग नेताओं पर भरोसा  करने से पहले सौ  बार सोचेंगे । फिर भी देश भी  चलेगा  और राजनीति भी। लेकिन नीतीश कुमार भुला  दिए  जायेंगे ,या फिर याद किये  जायेंगे तो उपहास के साथ। नीतीश बाबू को उनकी राजनीति के लिए मै शुभकामनाएं देने की स्थिति में नहीं हूँ।  मै भी उनके उन  तमाम मित्रों की तरह निराश हूँ जो नितीश में साम्प्रदायिकता  के खिलाफ   एक आग   देखने की गलती  कर चुके हैं-राकेश अचल

G News 24 : सभी देशवाशियों को गणतंत्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

 ग्वालियर न्यूज़ 24 ( जी.न्यूज़ 24 ) परिवार की तरफ से ...

सभी देशवाशियों को गणतंत्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं 



G News 24 : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है देश

 आज है 23 जनवरी नेताजी 'सुभाष चंद्र बोस' की जयंती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है देश

महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे भारतीय क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ कर भारतीय समुदाय को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। कई वर्षों के निर्वासन के बाद, उन्होंने भारत लौटने और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करने का फैसला किया। उनका गायब होना आज भी एक रहस्य बना हुआ है और उनके साथ क्या हो सकता था, इसके बारे में कई निश्चित धारणा नहीं हैं। कुछ लोगों का मानना ​​है कि विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, जबकि अन्य का मानना ​​है कि वह बच गये  थे और उन्होंने पहचान छुपा कर रहना जारी रखा होगा। हम जितना अधिक उत्तर खोजते हैं, उतने ही अधिक प्रश्न हमारे पास उठते हैं।

वह एक बहादुर नेता थे जिन्होंने अपने राष्ट्र के लिए लड़ाई लड़ी और उनकी विरासत को हमेशा याद किया जाएगा। भले ही वह कई साल पहले गायब हो गए हों, लेकिन उनकी कहानी आज भी दुनिया भर के लोगों को राष्ट्र भक्ति का संदेश देती है। आज नेताजी की 127वीं जयंती है। यह क्षेत्रीय सार्वजनिक अवकाश 23 जनवरी को कई उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन का प्रतीक है, जिन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में देखा जाता है।

एक सम्मानित उपाधि है नेताजी  इसीलिए सुभाष चंद्र बोस को नेताजी कहा जाता है !

नेताजी एक सम्मानित उपाधि है जिसका अर्थ है “सम्मानित नेता”। 1942 में, आजाद हिंद फौज के भारतीय सैनिकों द्वारा जर्मनी में उन्हें ‘नेताजी’ की उपाधि दी

G News 24 : जो शहीद हुए थे राम मंदिर आंदोलन में याद रखो उनकी भी कुर्बानी !

 ए मेरे वतन के लोगों जरा कोठारी बंधु समेत अन्य को भी याद करो ...

जो शहीद हुए थे राम मंदिर आंदोलन में याद रखो उनकी भी कुर्बानी !

अयोध्या। अयोध्या। स्वतंत्रता के पश्चात सबसे बड़ा आंदोलन राम मंदिर के लिए आरंभ हुआ। इस आंदोलन में 2 नवंबर 1990 का दिन इतिहास का एक अध्याय बन गया। इस दिन विवादित ढांचे पर भगवा फहराने वाले दो भाई दिगंबर अखाड़े से हनुमानगढ़ी की ओर जाते समय लाल कोठी के पास पुलिस की गोली का शिकार हो गए। यह दोनों कोठारी बंधु थे, उन्होंने मौके पर ही दम तोड़ दिया था।

  • राम मंदिर आंदोलन में कोठारी बंधु अप्रतिम और सर्वोच्च बलिदान से सदा-सदा के लिए अमर हो गए। वर्ष 1990 में कोलकाता निवासी सगे भाई 22 वर्षीय राम कोठारी व 20 साल के शरद कोठारी ने भागीदारी का निर्णय लिया था।
  • उसी वर्ष आठ दिसंबर को उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी का विवाह था। उस समय परिजनों ने कहा था कि राम और शरद में से कोई एक आंदोलन में जाए और दूसरा विवाह की तैयारियां देखे।
  • राम नाम में रमे दोनों भाइयों ने अयोध्या आने का निर्णय लिया और विवादित ढांचे पर सबसे पहले 30 अक्टूबर को भगवा ध्वज फहराया। दो नवंबर 1990 को हुए गोलीकांड में दोनों भाई बलिदान हो गए। उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी कहती हैं कि राम मंदिर का निर्माण मेरे दोनों भाइयों को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है।
  • बाल्यावस्था से राम में रमे पूरा बाजार ब्लाक के दामोदरपुर गांव निवासी कुलदीप पांडेय उन चुनिंदा लोगों में हैं, जो 30 अक्टूबर 1990 को विवादित ढांचे पर चढ़े थे। कोठारी बंधुओं के साथ उन्होंने विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहराया था।
  • उस वक्त कुलदीप मात्र 17 वर्ष थे और विहिप के दिग्गज नेता दिवंगत अशोक सिंघल के नेतृत्व में कारसेवा करने गए थे। अब उनकी आयु करीब 50 वर्ष है, लेकिन कारसेवा की चर्चा करते समय उनके चेहरे की चमक युवा कुलदीप की भांति हो जाती है।
  • इसके बाद छह दिसंबर 1992 को उन्होंने फायर ब्रांड नेता रहे विनय कटियार के नेतृत्व में कारसेवा की थी और उसी वर्ष विवादित ढांचा भी ढह गया था।
  • कोठारी बंधुओं के निधन की बात करते समय उनका गला रूँध जाता है। कहते हैं, कोठारी बंधुओं का योगदान कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। कुलदीप को दिग्गज नेता अशोक सिंघल ने गुलाब बाड़ी मैदान पर आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित भी किया था।

G News 24 : मोदी युग में राम-रीति से हो रहा है भारत का नवनिर्माण : विष्णुदत्त शर्मा

 संघ ने देश की चेतना को जागृत रखते हुए मंदिर निर्माण के संकल्प को हर नागरिक का संकल्प बना दिया

मोदी युग में राम-रीति से हो रहा है भारत का नवनिर्माण : विष्णुदत्त शर्मा 

बचपन से ही घर के बड़े-बुजुर्गों से प्रभु श्रीराम लला की कीर्ति, शौर्य और प्रभुता की बातें सुनता रहता था। युवा अवस्था के प्रारंभ में बताया गया कि आक्रांताओं ने अयोध्या में आक्रमण करके भगवान श्रीराम जन्मभूमि स्थान पर बने मंदिर को बर्बरतापूर्वक तोड़कर मस्जिद का विवादित ढांचा बनाया गया था। यह बात सुनने के बाद से ही मन उद्वलित रहने लगा कि हमारे आराध्य और रोम-रोम में बसने वाले भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर हुआ आक्रमण सनातन पर और हमारी आस्था पर आक्रमण था। इसके बाद से ही राष्ट्रीयता की विचारधारा से प्रेरित होकर कॉलेज में पहुंचते ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

अध्ययन के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा पूरी तरह से समझा। उसके उपरांत वर्ष 1992 में एबीवीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल होने कानपुर पहुंचा तो मुझे भी कारसेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वर्ष 1992 में ही 6 दिसंबर को कार सेवकों द्वारा श्रीराम जन्मस्थान पर बने विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। उन दिनों राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं को यह सलाह दी जाती थी कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहां ऐसे सांप्रदायिक व अनावश्यक मुद्दों का कोई स्थान नहीं है। स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए राम मंदिर आंदोलन एक सांप्रदायिक मुद्दे से अधिक और कुछ न था।

युवा अवस्था में यह विचार मेरे मन मस्तिष्क में कौंधता रहता था कि जब भारत, भगवान श्रीराम की भूमि है तो यहां भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर आक्रांताओं द्वारा मंदिर तोड़कर बनाए गए विवादित ढांचे के स्थान पर रामलला के लिए भव्य मंदिर निर्माण की परिकल्पना सांप्रदायिक कैसे हो सकती है ? तत्समय एक बड़ा प्रभावशाली एवं विशिष्ट वर्ग भी सेकुलरिज्म की चादर में लिपटे हुए इन्हीं कुतर्कों को धार देता रहता था। ऐसी स्थिति में कभी-कभी लगता था कि अयोध्या में भव्य श्रीरामलला मंदिर का निर्माण एक दिवास्वप्न ही है, परंतु यह भारत का सौभाग्य है कि देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा एक ऐसा राष्ट्र निष्ठ संगठन है, जिसने श्रीरामलला के मंदिर निर्माण की आस कभी नहीं त्यागी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश में यह भरोसा जगाये रखा कि एक दिन राम मंदिर अवश्य बनेगा।

राम जन्मभूमि का चरणबद्ध आंदोलन और विश्वास बनाए रखने के लिए रचे गए नारे इस प्रतिबद्धता के साक्षी रहे हैं। संघ ने देश की चेतना को जागृत रखते हुए श्रीराम मंदिर निर्माण के संकल्प को हर नागरिक का संकल्प बना दिया। संघ से प्रेरणा लेने वाले अनेक संगठनों ने उस चेतना को प्रखर बनाये रखने में अपना गिलहरी रूपी योगदान देने के लिए कृतसंकल्पित रहे। जनसंघ के समय से ही श्रीराम मंदिर का निर्माण अतिमहत्वपूर्ण मुद्दा था और भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस से ही यह प्राथमिकता के शिखर पर पहुंच गया। फलस्वरूप आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है और भगवान श्रीराम अब सनातनियों द्वारा निर्मित भव्य -दिव्य मंदिर में विराजने वाले हैं। वास्तव में किसी देश की चेतना ही उसके भविष्य मार्ग को सुनिश्चित करती है। विशेषकर भारत के संदर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उसकी अस्मिता पर जब-जब हमले हुए तो उसने अपनी चेतना को जीवंत रखा। 

कवि इकबाल ने कहा था कि-

  • यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से 
  • अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
  • कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
  • सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।

हजार साल तक बर्बर हमलों के बावजूद हमारे पुरखों ने देश की चेतना को जागृत रखा। हम बाह्य युद्ध हार गये, लेकिन मन का युद्ध जीतते रहे। दुर्भाग्य से 1947 के बाद स्वतंत्र भारत में ऐसी राजनीतिक धारा केंद्र में रही, जिसने देश के मन को हराने के कुत्सित प्रयास किए। उसने आम हिन्दू जनमानस को सदा इसके लिए तैयार किया कि वह अपने मूल्यों को छोड़ दे। अटल सरकार और विशेषकर 2014 में राजनीतिक धारा का केंद्र बदला तभी हमारे भविष्य की राह उज्ज्वल हुई। विश्व में भारत अपनी प्राचीन सनातन पहचान के साथ नये सिरे से उभरने लगा और एक नया भारत आकार लेने लगा।

2014 से पहले अयोध्या में श्रीराम मंदिर की वकालत करते हुए हम सब यह कल्पना भी नहीं कर पाते थे कि इसके बनने के समय भारत की स्थिति क्या होगी? यह मुद्दा हिन्दू अस्मिता के प्रश्न से जुड़ा था, लेकिन अब मंदिर निर्मित होते-होते यह स्पष्ट हो गया है कि यह केवल अस्मिता का विषय ही नहीं, यह भारत के भविष्य और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने का विषय था। आज यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर नहीं बन रहा है, इसके साथ-साथ एक नया भारत भी बन रहा है जो विश्व का नेतृत्व करने के लिए संकल्पित है।

यह नया भारत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में बहुलता, विविधता और समावेशिकता का सम्मान करने वाला एकमात्र देश है। यह भारत अपनी पुरातन सांस्कृतिक पहचान को आधुनिक कलेवर में भी पोषित और संर्वधित करने की क्षमता रखता है। यह भारत अपनी धरोहर को वापस पाने के लिए सदियों तक प्रतीक्षा कर सकता है और अहिंसा के रास्ते पर चलकर उसे प्राप्त भी कर सकता है। यह नया भारत युद्ध एवं परमाणु बम के उपयोग के बिना ही अपनी विधि-व्यवस्था के माध्यम से सबसे पुरानी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखता है। उसे कोई बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं है। यह नया भारत स्वदेशी चंद्रयान का सफल परीक्षण कर सकता है तो यह अपने आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का पुनः निर्माण कर सदियों की बर्बर गुलामी के चिह्न को भी मिटा सकता है।

प्रश्न यह है कि भारत सदियों से दिव्य शक्तियों और असीम क्षमताओं वाला देश रहा है तो फिर इसकी अपनी महिमा, गरिमा क्यां धुमिल हो गई थी? इसका एक ही उत्तर है, देश की चैतन्यता पर प्रहार। देश की चेतना ऐसी बना दी गई थी कि राम मंदिर की बात करना सांप्रदायिक और मुस्लिम तुष्टीकरण करना सेकुलरिज्म था। भारत का गौरव महिमा गान पिछड़ापन था और विदेशों का गुणगान करना बुद्धिजीविता थी। अपने संविधान पर अविश्वास करते हुए, अपने ही मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र की विदेशी मध्यस्तता से हल कराने की कोशिश की जाती थी। इन सब बातों पर राष्ट्रवादियों के अलावा शेष समाज मौन ही रहता था, क्योंकि हमारी चेतना का स्तर इतना गिरा दिया गया था कि हम इन सब मुद्दों के प्रति उदासीन रहने के अभ्यस्त हो गए थे।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आज भारत के लोगों में राष्ट्रबोध के साथ सनातन के प्रति सकारात्मक बदलाव आया है। हमारी स्व-चेतना का स्तर शिखर की ओर अग्रसर है। भाजपा सहित अनेक राष्ट्रवादी संगठनों के प्रयासों से राष्ट्रीयता का सर्वांग जागरण हुआ है। भारतीय जनमानस अपनी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों, अपने मूल्यों एवं अपनी मान्यताओं के प्रति इतना अधिक सजग हो गया है कि उसके मुद्दों को लटकाने के लिए अब अदालतें भी तैयार नहीं है। 

निःसंदेह, भारत की इस चैतन्यता का केंद्र बिंदु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्वकाल हैं। साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की जनता में जो विश्वास जगाया है, वह अतुलनीय और अकथनीय है। उनके नेतृत्व में भारत की क्षमता, शक्ति, छवि और नियति सब कुछ परिवर्तित हुई है। जब नेतृत्व स्वयं अपने आचरण से देश की संस्कृति, आध्यात्म, मूल्यों, परंपराओं और धरोहरों के प्रति अगाध प्रेम और प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है तो जनता की चेतना का जागरण होना स्वाभाविक है। डरा हुआ और तुष्टीकरण से शासन चलाने वाला अक्षम नेतृत्व देश की चेतना को कमजोर ही करता है। सबका साथ, सबका विश्वास का संकल्प लेकर मजबूत कदमों के साथ आगे बढ़ने वाला नेतृत्व राष्ट्र को परम-वैभव की ओर उन्मुख करता है। यही राम की रीति-नीति भी है। आज जब विश्व भर में अशांति है, एक देश दूसरे देश का दमन कर रहा है, तब भारत ऐतिहासिक नवनिर्माण कर रहा है और संकल्पित, विकसित और अखण्ड भारत की दिशा में आगे बढ़ रहा है-

विष्णुदत्त शर्मा, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद

G News 24 : वो पत्रकार ही है जो आपके लिए सच लिखें,अन्याय के खिलाफ़ लिखें,सत्ता से सवाल पूछता है

 लेकिन आप कितना सोचते है उसके बारें में ...

 वो पत्रकार ही है जो आपके लिए सच लिखें,अन्याय के खिलाफ़ लिखें,सत्ता से सवाल पूछता है

आप पत्रकारों से उम्मीद करते हैं कि वो सच लिखें, अन्याय के खिलाफ़ लिखें, सत्ता से  सवाल पूछें, गुंडे अपराधियों का काला चिट्ठा खोल के रख दें और लोकतंत्र ज़िंदाबाद रहे। लेकिन क्या कभी आप भी उसके बारे में सोचते हैं। क्या उसकी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों,जरूरतों का ख्याल मात्र भी आता है आपके जेहन में। यदि नहीं तो ज़रा सोचिये कि ...

  •  पत्रकारों के घर का हाल ! 
  • उनके खर्चे कैसे चलते हैं !
  • कभी पूछिए  उनके बच्चों के स्कूल के बारे में !
  • कभी मिलिए उनके बच्चों से और पूछिए उनके कितने शौक वे पूरे कर पाते हैं !
  • कभी पूछिए की अगर कोई खबर ज़रा सी भी इधर उधर लिख जाएं और कोई नेता, विभाग, सरकार या कोई रसूखदार  व्यक्ति मांग लें स्पष्टीकरण तो कितने मीडिया हाउस अपने पत्रकारों का साथ दे पाते हैं !
  • कितने पत्रकारों के वाहन हैं !
  • कितने पत्रकार दो पहिया वाहनों से चल रहे हैं ! 
  • कितने पत्रकारों के पास एक अच्छा घर हैं !
  • कितने  पत्रकारों  के पास अपना और अपने परिजनों का इलाज़ कराने के लिए के पास जमा पूंजी है !
  • प्रिंट मीडिया के पत्रकारों का रूटीन पूछिएगा कभी, दिन भर फील्ड और शाम को ऑफिस आकर खबर लिखते लिखते घर पहुंचते पहुंचते बजते हैं रात के 11, 12, 1... सोचिए कितना समय मिलता होगा उनके पास अपने बच्चों, परिवार , बीवी मां बाप के लिए समय !
  • आपको लगता होगा कि  पत्रकारों के बहुत जलवे होते हैं ? ऐसा नहीं  है.
  • कभी पूछिए की अगर पत्रकार को जान से मारने कि धमकी मिलती है तो प्रशासन उसे कितनी सुरक्षा दे पाता है !
  • कभी पूछिए की अगर कोई पत्रकार दुर्घटना का शिकार हो जाता है और नौकरी लायक नहीं बचता तो उसका मीडिया हाउस या वो लोग जो उससे सत्य खबरों की उम्मीद करते हैं वो कितने काम आते हैं ! 
  • अगर किसी पत्रकार की हत्या हो जाती है तो कितना एक्टिव होता है शासन प्रशासन !
  • दंगे हों, आग लग जाए, भूकंप आ जाएं, गोलीबारी हो रही हो, घटना दुर्घटना हो जाएं सब जगह उसे पहुंच कर न्यूज कवरेज करनी होती है ! 
  • कोविड जैसी महामारी में भी पत्रकार ख़ासकर फोटो जर्नलिस्ट अपनी जान पर खेल खेल कर न्यूज कवर कर रहे थे.. सोचिएगा उस समय उनके परिजनों पर क्या गुजरी होगी !
  • गिने चुने पत्रकारों की ही मौज है बाकी ज़्यादातर अभी भी संघर्ष में ही जी रहे हैं...
  • जबकि फिल्ड में सभी  पत्रकार बेहतरीन काम कर रहे हैं  जूझ रहे हैं एक एक एक खबर के  लिए वो न सिर्फ बधाई के पात्र हैं। 

G News 24 :सनातन दुहाई या खीज़ ! एक ओबीसी पीएम द्वारा की जा रही प्राण प्रतिष्ठा इनसे देखी नहीं जा रही !

 कोई कारण नहीं इनके तो दिमाग भरा है ऊंच-नीच और जातिवाद का दंश तभी तो...

सनातन दुहाई  या खीज़ ! एक ओबीसी पीएम द्वारा की जा रही प्राण प्रतिष्ठा इनसे देखी नहीं जा रही  

अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है. देश में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शंकराचार्यों के शामिल नहीं होने का मुद्दा भी चल रहा है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का कहना है कि राम मंदिर उद्घाटन में शास्त्रीय विधा का पालन नहीं किया जा रहा है. पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने फिर से सनातन धर्म के नियमों के उल्लंघन की बात कही है. इसके साथ उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता इसलिए उनसे टकराने की गलती ना की जाए.

एमपी तक की रिपोर्ट के अनुसार, शंकराचार्य ने कहा कि व्यासपीठ के साथ जो टकराता है, चारों खाने चूर-चूर हो जाता है. स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, 'मैंने पहले कहा कि हिमालय पर जो प्रहार करता है उसकी मुट्ठी टूट जाती है. हम लोगों से टकराना उचित नहीं है. अरबों एटम बम को दृष्टि मात्र से नष्ट करने की क्षमता हम लोगों में है. हम चुनाव की प्रक्रिया से इस पद पर नहीं प्रतिष्ठित हैं. जिनकी गद्दी है उनके द्वारा प्रेरित होकर हम प्रतिष्ठित हैं इसलिए कोई हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता.'

स्वामी निश्चलानंद ने कहा, 'शासकों पर शासन करने का पद शंकराचार्यों का है'

शंकराचार्य ने आगे कहा, 'अगर कोई इस गद्दी के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश करेगा तो कितना भी बलवान हो सुरक्षित नहीं रह सकेगा. जनता को मैं भड़काता नहीं, लेकिन हमारी वाणी का अनुगमन जनता करती है. लोकमत हमारे साथ है, शास्त्र मत भी हमारे साथ है, साधु मत भी हमारे साथ है तो हमने संकेत किया कि सब तरह से हम बलवान हैं दुर्बल हमें कोई ना समझे.' असली और नकली शंकराचार्य के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपाल नकली नहीं तो इनसे घटिया पद शंकराचार्य का है क्या. उन्होंने आगे कहा कि शासकों  पर शासन करने का पद हम लोगों का है.

पीएम मोदी और सीएम योगी को लेकर क्या बोले शंकराचार्य

शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा, 'जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से मेरे परिचित हैं. पीएम पद की शपथ लेने से पहले भी वह मेरे पास आए थे मुझसे कहा था कि ऐसा आशीर्वाद दो कि कम से कम भूल कर सकूं और अब वह इतनी बड़ी भूल करने जा रहे हैं.' 

शंकराचार्य ने कहा, राम मंदिर उद्घाटन शास्त्रीय विधा से नहीं हो रहा

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, 'रामजी शास्त्रीय विधा से प्रतिषिठित नहीं हो रहे हैं इसलिए राम मंदिर उद्घाटन में मेरा जाना उचित नहीं है. आमंत्रण आया कि आप एक व्यक्ति के साथ उद्घाटन में आ सकते हैं. हम आमंत्रण से नहीं कार्यक्रम से सहमत नहीं हैं.' उन्होंने कहा, 'प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुहूर्त का ध्यान रखना चाहिए. कौन मूर्ति को स्पर्श करे, कौन ना रामलला की प्राण प्रतिष्ठा  एक ओबीसी पीएम द्वारा जा रही प्राण प्रतिष्ठा इनसे देखी नहीं जा रही  ! तभी तो ये सनातनकरे. कौन प्रतिष्ठा करे, कौन प्रतिष्ठा ना करे. स्कंद पुराण में लिखा है, देवी-देवताओं की जो मूर्तियां होती हैं, जिसको श्रीमद्भागवत में अरसा विग्रह कहा गया है. उसमें देवता के तेज प्रतिष्ठित तब होते हैं जब विधि-विधान से प्रतिष्ठा हो. यहां में कहना चाहता हूं कि सनातन के अपमान की दुहाई देकर ये अपनी खीज़ निकाल रहे हैं क्योंकि इनके दिमाग में तो अभी भी वही वर्षो पुरानी-ऊंच -नीच और जातिवादी सोच बैठी है जिसका कारण ये है कि ये स्वयं को सनातन का या मंदिर जैसी सार्वजनिक संस्थाओं का अपने आपको मालिक समझते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि  ये 2024 का भारत है। क्योंकि सनातन की पहचान भी तो ये देशवाशी हैं लेकिन इन जैसे ही लोगों की सोच व व्यवहार के  कारण समाज का विघटन होता रहा है। प्लीज़ इसे अन्यथा न लें। 

'विधिवत प्रतिष्ठा ना हो तो मूर्ति में भूत-प्रेत, पिशाच प्रतिष्ठित हो जाते हैं'

साथ ही साथ विधिवत प्रतिष्ठा हो जाए और आरती या पूजा में विधि का पालन ना किया जाए तो देवी-देवता का तेज तिरोहित हो जाता है तो डाकनी, शाकनी, भूत-प्रेत, पिशाच उस प्रतिमा में प्रतिष्ठित होकर पूरे क्षेत्र को तहस-नहस कर देते हैं. प्राण प्रतिष्ठा, मूर्ति प्रतिष्ठा खिलवाड़ नहीं है. इसमें दर्शन, व्यवहार और विज्ञान तीनों का एकत्व है. व्यापक अग्नि को घर्षण के द्वारा एक जगह व्यक्त कर लिया जाता है. वह दाह प्रकाशक अग्नि तत्व होता है. इसी प्रकार व्यापक परमात्मा को मानसिक, तांत्रिक और यांत्रिक विधा से प्रतिमा में अरसा विग्रह में अभिव्यक्त करने की विधा दर्शन, व्यवहार और विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. उसका अनुपालन उसी तरह किया जाएगा तो तेज का प्रकट हो जाएगा, नहीं तो विस्फोटक हो जाएगा.' उन्होंने कहा कि दो साल बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही प्राण प्रतिष्ठा करते तो मैं प्रश्न उठाता क्योंकि शास्त्रीय विधा से मूर्ति का स्पर्श और प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए.

G News 24 : 'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए':स्वामी विवेकानंद

 जब एक वेश्या से हार गए स्वामी विवेकानंद और आंखों से बहने लगे आंसू...

'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए':स्वामी विवेकानंद

हिन्दुस्तान के एक ऐसे संन्यासी रहे स्वामी विवेकानंद समाज को दी थी एक बहुत बड़ी सीख उन्होंने कहा था कि  'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए', 'यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं।' गुलाम भारत में उन्होंने ये बातें अपने प्रवचनों में कही थी। उनकी इन बातों पर देश के लाखों युवा फिदा हो गए थे। बाद में तो स्वामी की बातों का अमेरिका तक कायल हो गया।  12 जनवरी का दिन स्वामी विवेकानंद के नाम पर समर्पित है और इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। बेहद कम उम्र में देश के युवाओं को आजाद भारत का सपना दिखाने वाले और अपने ज्ञान का पूरी दुनिया में लोहा मनवाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट के एक कायस्थ परिवार में विश्वनाथ दत्त के घर में जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) को हिंदू धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले विवेकानंद का जिक्र जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका में दिए गए यादगार भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका बजा दिया था।

वेश्या के मोहल्ले में था विवेकानंद का घर

विवेकानंद हिन्दुस्तान के एक ऐसे संन्यासी रहे हैं, जिनके संदेश आज भी लोगों को उनका अनुसरण करने को मजबूर कर देते हैं और उनके अनुयायी देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में नजर आते हैं और एक ऐसा संन्यासी जिनका एक वक्तव्य पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी होता था। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी एक घटना शायद आप नहीं जानते होंगे। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया का दिल जीतने वाले वही स्वामी विवेकानंद एक बार एक वेश्या के आगे हार गए थे। एक वाकया यह भी है कि स्वामी विवेकानंद का घर एक वेश्या मोहल्ले में था जिसके कारण विवेकानंद दो मील का चक्कर लगाकर घर पहुंचते थे।

स्वामीजी के जीवन से जुड़ा अद्भुत वाकया

बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका जाने से पहले जयपुर के महाराजा के यहां मेहमान बने थे। कुछ दिन वहां रहने के बाद जब स्वामीजी के विदा लेने का समय आया तो राजा ने उनके लिए एक स्वागत समारोह रखा। उस समारोह के लिए उसने बनारस से एक प्रसिद्ध वेश्या को बुलाया। जैसे ही वेश्या विवेकानंदजी के कमरे के बाहर पहुंची उन्होंने अपने आपको कमरे में बंद कर लिया। इतने में वेश्या ने गाना गाना शुरू किया, फिर उसने एक संन्यासी गीत गाया। गीत का अर्थ था- 'मुझे मालूम है कि मैं तुम्‍हारे योग्‍य नहीं, तो भी तुम तो जरा ज्‍यादा करूणामय हो सकते थे। मैं राह की धूल सही, यह मालूम मुझे। लेकिन तुम्‍हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्‍मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं कुछ नहीं हूं। मैं अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्‍मा हो। तो क्‍यों मुझसे भयभीत हो तुम?'

वेश्या के भजन से विवेकानंद की आंखों में आए आंसू

वेश्या जब भजन गा रही थी तो उस समय उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। विवेकानंद ने अपने कमरे इस गीत को सुना और उसकी स्थिति का अनुभव किया। उस वेश्या के भजन सुनकर स्वामी विवेकानंद बाहर से अंदर आ गए। उस समय वह एक वेश्या से हार गए थे। उन्होंने वेश्या के पास जाकर उससे कहा कि अब तक जो उनके मन में डर था वह उनके मन में बसी वासना का डर था जिसे उन्होंने अपने मन से बहार निकाल दिया है और इसके लिए प्रेरणा उन्हें उस वेश्या से ही मिली है। उन्होंने उस वेश्या को पवित्र आत्मा कहा, जिसने उन्हें एक नया ज्ञान दिया।