G News 24 : झूठ बोलना और पूरे कॉन्फिडेंट के साथ बोलना भी एक हुनर है !

 बस, झूठ बोलने वाले को अपने हुनर के प्रति सीरियस और  समर्पित होना चाहिए !

झूठ बोलना और पूरे कॉन्फिडेंट के साथ बोलना भी एक हुनर है !

झूठ बोलने वाला ये हथियार अत्यंत प्राचीन है।महाभारत से ले कर 2023 तक कई बार झूठ बोलने की कला का  सफलतापूर्वक प्रयोग होता आया है। झूठ बोलना भी एक कला है। बस इसका  इस्तेमाल करने वाला कलाकार अपने हुनर के प्रति सीरियस और  समर्पित होना चाहिए।  "कौन सी बात कहां,कैसे कही जाती है,ये सलीक़ा हो तो हर बात  सुनी जाती है। निश्चित रूप से झूठ बोलने के लिए भी सलीक़े की दरकार तो होती ही है।

अश्वत्थामा,हों या काला धन वापसी सब इसी कला के सफलतापूर्वक प्रयोग माने जाते हैं। फ़र्क़ इतना है कि,कुछ नेक काज के लिए बोले जाते हैं,कुछ अपना उल्लू सीधा करने के लिए। ये कला भी, "डिमांड एंड सप्लाई" के सिद्धांत पर चलती है। यदि लोगों को कड़वे सच की जगह,मीठे झूठ से राहत मिलती है,तो इस हुनर का भविष्य उज्जवल होना ही है। इसी एक हुनर से रेलवे स्टेशन से संसद तक का सफर आसानी से तय किया जा सकता है।

प्रेमी युगल के रिश्ते भी इसी एक कला के भरोसे चलते हैं। अगर लाई डिटेक्टर की इजाज़त हो तो ये सात जन्मों वाले रिश्ते सात दिन न टिकें। प्रेमी की हैसियत के मुताबिक़ बात रिचार्ज से ले कर सोने की चेन तक पहुंच जाती है। प्रेम की निशानी का जो सवाल है। पति-पत्नी भी समय2 पर इस कला का प्रदर्शन कर लाभान्वित होते रहते हैं। 

एक बार एक व्यक्ति की पत्नी मायके गई हुई थी। पति देव आज़ाद परिंदे जैसे नाचते फिर रहे थे। अचानक एक दिन पत्नी ने फोन किया, पड़ोसन का फोन आया था,तुम्हारी तबियत ख़राब है। नहीं कोई ख़ास नहीं बस ऐसे ही सर्दी-जुख़ाम हो गया था,अब ठीक है। पत्नी ने फिर सवाल कर लिया,अकेले कैसा लग रहा है.? पति ने कहा तुम्हारी, और बेटे की बहुत याद आ रही है। बस यहीं चूक हो गई। पत्नी बोली कल ही ट्रेन में बैठती हूं। पति अपने आप को कोसने लगा,कि काश सच बोल दिया होता कि,ज़िंदगी बड़े सुकून से गुज़र रही है,तो ये दुःखदायी ख़बर न सुनना पड़ती। 

कभी-कभी  इस हुनर नुक़सान भी उठाना पड़ता है, यानी कि इसमें जोख़िम भी बहुत है !

हामरी आदत है कि,पहले हम सुर्घटना का इंतेज़ार करते हैं,फिर उसका उपाय। कारवां गुज़र गया,ग़ुबार देखते रहे। जब विस्फोट हो गया,लाशें बिछ गईं, तब याद आया कि,आस-पास की मौत की फैक्ट्रियों की जांच की जाए। पता नहीं आज कल एसडीएम लोग इतने मुलायम चारा क्यों बने हुए हैं। कहीं कुछ हुआ नहीं कि,एसडीएम साहब या तो सस्पेंड,या तबादला। यहां भी कलेक्टर/एसपी पर गाज गिरी। 

लायसेंस देने से लेकर अग्रवाल की "राजनीतिक शरणगाह"पर ज़ुबान खुलना तो मुमकिन नहीं,और कार्रवाई के नाम पर पब्लिक को तो कुछ न कुछ दिखाना है,यानी कुर्बानी निश्चित है,पब्लिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि,किसकी दी जाती है। सुना है अग्रवाल साहब ऐसे ही एक केस में 10 साल की सज़ा पा चुके हैं,और ज़मानत पर चल रहे हैं,उसके बाद भी ये दिलेरी ! तो आख़िर इस फ़िल्म के निर्माता/निर्देशक कौन हैं.?,उन पर प्रशासन की कृपा की कोई ख़ास वजह? पटेल जी ने सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया। अरे सरकार पिछले कई वर्षों से आपका ही राज-पाट चला आ रहा है,तो आपके रहते ये कैसे हो गया.?,वैसे कांग्रेसियों के लिए इसमें भी राहत की बात है,कि कम से कम हामरी इतनी हैसियत तो अभी भी बाक़ी है कि,किसी के आरोप के काम आ जाते हैं।

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