G News 24 : आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती !

 आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन...

आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती !

  • मैंने एनर्जी के लिये गन्ने के रस से लेकर बोर्नविटा तक का सफर तय किया है,
  • माचिस की डब्बी वाले फोन से स्मार्टफोन तक का सफर तय किया है.. 
  • मैंने वो समय भी देखा है, जब तरबूज बहुत ही बड़ा और गोलाकार होता था पर अब लंबा और छोटा हो गया.. 
  • मैंने चाचा चौधरी से लेकर, सपना चौधरी तक का सफर तय किया है.. 
  • मैंने बालों में सरसों के तेल से लेकर, Hair gel तक का सफर तय किया है.. 
  • मैंने होली का हुड़दंग 15 दिन पहले से ही होली मनाने से, आज होली के दिन,और अब पानी बचाने एवं पर्यावण के नाम पर बेरंग होली भी बेरंग सी होली तक का सफर .. 
  • चूल्हे की रोटी में लगी राख़ का भी स्वाद लिया है.. 
  • मैंने १ ₹ की आइसक्रीम से १५० ₹ एलफेंसो के एक स्कूप का सफर तय किया है.. 
  • मैंने दूरदर्शन से लेकर 500 निजी चैनल तक का सफर तय किया है.. 
  • मैंने सप्ताह में सिर्फ रविवार को आने वाली एक मूवी से, आज हर वक्त आने वाली 50 मूवी तक का सफर तय किया.. 
  • मैंने खट्टे मीठे बेरों से लेकर कीवी तक का सफर तय किया है.. 
  • मैंने 50 पैसे घंटा किराये पर मिलने वाली छोटी साइकिल से, आज कार का सफर तय किया है.. 
  •  मैंने संतरे की गोली से,  किंडर जॉय तक का सफर तय किया है.. 
  • आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन, मैं देख रहा हु,
  • आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती.. 
  • मैंने ब्लैक एंड व्हाइट समय में रंगीन और बहुत अमीर बचपन जिया है... 

G News 24 : 20 बरस से इंतजार करने वाले रह गए और 10 वाले पा गए प्रमोशन !

 पुलिस विभाग में प्रमोशन, सीएम को रखा अंधेरे में ...

 20 बरस से इंतजार करने वाले रह गए और 10 वाले पा गए प्रमोशन !

मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद 1 हजार से ज्यादा पुलिस वालों की तरक्की हुई। इस तरक्की से वे प्रमोटी पुलिस वाले दुःखी है, जो नीचे से पसीना बहाकर ऊपर तक आये थे। एसआई के प्रमोशन में गृह विभाग ने सिपाही से एसआई बने पुलिस वालों का नाम ही नही जोड़ा। जबकि विभागीय नियम है कि किसी भी प्रमोशन में प्रमोटी व डायरेक्ट भर्ती वालो को बराबर का हक मिलता हैं। कई एसआई के रिटायरमेंट में गिनती के दिन भी नही बचे। यानी नए सीएम डॉ यादव के कहने के बाद भी इंतजार खत्म नही हुआ। अब सीएम से ही इन सबको आस हैं। 

ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। हर मोर्चे पर मुस्तेद रहे। बस क्या, फिर प्रमोशन मिल गया। सुनी वर्दी पर तीन लाल फीते लग गए। आरक्षक से प्रधान आरक्षक हो गए। डिपार्टमेंट ने ध्यान रखा तो नोकरी और जिम्मेदारी से बढ़ती गईं। न दिन देखा न रात। न सर्दी-न देखी बरसात। होली-दिवाली भी सड़क पर मन गई। परिवार कई कई बार इंतजार करता रहा गया लेकिन कर्तव्य पथ न छोड़ा। घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार, समाज से ताने-उलाहने सुने-झेले लेकिन ड्यूटी के प्रति जज्बा कम नही हुआ। परिणाम वर्दी पर एक सितारे के रूप में सामने आया और प्रधान आरक्षक, सहायक सब-इंस्पेक्टर बन गए। घर मे खुशियों का ठिकाना न रहा। घर का आरक्षक, सितारे टँगते ही सितारे से चमकने लगा। 

 इस सबमें जीवन के 20-25 से ज्यादा बरस खर्च हो गए। नोकरी की मुस्तेदी ने एक से दो सितारे वर्दी पर टांग दिए। यानी सहायक सब इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर हो गए। बस इंस्पेक्टर से एक कदम दूर। यानी थाना प्रभारी से एक सीढ़ी दूर। साथ ही नोकरी का कार्यकाल भी तेजी से समाप्ति की तरफ बढ़ने लगा। लगा कि डिपार्टमेंट जल्द ही अंतिम सीडी को भी पार करवा देगा और तीसरा सितारा वर्दी पर आ जायेगा। लेकिन हाय री किस्मत! आँखे पथरा गई लेकिन इंतजार खत्म नही हुआ। तरक्की की बाट जोहते जोहते कई पथराई आंखे सेवानिवृत्ति की कगार पर आ गई। कगार ही नही, कई तो इंतजार करते ही रिटायरमेंट को प्राप्त हो गए लेकिन प्रमोशन नही मिला। 

बूढ़े माँ-बाप बेटे को थाना प्रभारी बनते देखने की आस लिए परलोक सिधार गए। पत्नी बच्चे भी उस इंतजार का हिस्सा बने जो बेमतलब का था, अगर वक्त रहते डिपार्टमेंट तरक्की की फ़ाइल पर हस्ताक्षर कर देता। बरसो बरस बाद जगी थी आस। ये आस नए सीएम डॉ मोहन यादव की संवेदनशीलता से उस वक्त जगी थी जब उन्होंने स्वतः संज्ञान लेकर पुलिस महकमे में बरसों से अटके प्रमोशन की विसंगतियों को दूर करने का संकल्प लिया। ये संकल्प भी पुलिस वालों की मौजूदगी वाले कार्यक्रम में लिया। लेकिन गृह विभाग ने नए मुख्यमंत्री की पवित्र मंशा को ही धता बता दिया। प्रमोशन तो किये लेकिन उसमें तय विभागीय नियम कायदों को ताक में रख दिया गया। यहां तक कि सीएम को अंधेरे में रखते हुए ये प्रमोशन किये गए। अब नए सीएम डॉ यादव को कौन बताए कि इस प्रमोशन में वे असली हकदार तो हाथ मलते ही रह गए जिन्हें 30-30 बरस से इस प्रमोशन का इंतजार था। 

 मुख्यमंत्री के निर्देश के महज 15 दिन में अब डिपार्टमेंट ने प्रमोशन तो किये लेकिन वे पथराई आंखों के हिस्से में फिर इंतजार ही आया जिनके प्रमोशन के लिए मुख्यमंत्री चिंतित थे क्योकि ये सेवानिवृत्ति की कगार तक आ गए थे। 370 पदों पर 298 सब इंस्पेक्टर प्रमोट तो हुए लेकिन इस प्रमोशन में सिपाही से एसआई बना एक भी नही। इस वर्ग में अब गहरी नाराजगी और क्षोभ पैदा कर दिया है। सिपाही से एसआई बने पुलिस वालों का कहना है कि प्रमोशन उन्हें मिल गया जो डायरेक्ट एसआई से भर्ती हुए थे। ऐसे लोगो को महज 10 बरस में प्रमोशन मिल गया और वे 2 से 3 सितारा होकर टीआई बन गए। 30 बरस से इंतजार करने वाले फिर खड़े रह गए। जबकि नए मुख्यमंत्री डॉ यादव की प्रमोशन की मंशा ऐसे ही पुलिस वालों के लिए थी जो बरसो से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। 

गृह विभाग ने ताजा प्रमोशन में वे नियम कायदे भी दरकिनार कर दिए जिनका प्रमोशन में पालन अनिवार्य है। इस नियम के तहत प्रमोशन में फिफ्टी फिफ्टी का फार्मूला अपनाया जाता हैं। यानी कुल प्रमोशन का आधा उनका जो डायरेक्ट पोस्ट पर आते है और आधा हिस्सा उनका जो प्रमोशन पा कर यहां तक का मुकाम पाते हैं। इस लिहाज से पुलिस विभाग में हुए ताजा प्रमोशन में 50 प्रतिशत प्रमोशन, प्रमोटी पुलिसकर्मियो का होना था। लेकिन पुलिस महकमे ने डायरेक्ट सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर तैनात हुए अमले का प्रमोशन कर दिया। इनके प्रमोशन से कही कोई गुरेज नही लेकिन ये क्या कि नियमो को दरकिनार कर सिर्फ डायरेक्ट पोस्ट वालो को ही तरक्की दी गई। जबकि अभी 72 पद और रिक्त है लेकिन एक भी प्रमोटी एसआई को इंस्पेक्टर नही बनाया गया। उसकी जगह उन 298 पुलिस वालों को इंस्पेक्टर बना दिया गया जो डायरेक्ट सब इंस्पेक्टर पद पर पदस्थ हुए थे।

G.NEWS 24 : राम मंदिर के खिलाफ षडयंत्र है ट्रांसपोर्ट हड़ताल !

प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ में आसुरी शक्तियों ने हड्डी डालना शुरू कर दिया है...

राम मंदिर के खिलाफ षडयंत्र है ट्रांसपोर्ट हड़ताल !

राम मंदिर के खिलाफ षडयंत्र है ट्रांसपोर्ट हड़ताल, मैंने आपसे पहले ही कहा था सावधान रहने की और षडयंत्र समझने की आवश्यकता है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ में आसुरी शक्तियों ने हड्डी डालना शुरू कर दिया है। अब इसी से जुड़ी ट्रांसपोर्ट हड़ताल की "हड्डी प्लानिंग" को समझिए - 

  1. ट्रांसपोटर्स हड़ताल करेंगे तो आम जनता को हर वस्तु की तंगी होगी। पेट्रोल पंप पर लाइन लगेगी आदि इत्यादि। जनता परेशान होगी। यानी राम मंदिर की खुशियों में खलल पड़ेगा।
  2. इस देश की ट्रांसपोर्ट यूनियन पर किनका कब्ज़ा है? ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन के दौरान देश में अराजकता फैला रहे थे। सबसे ज़्यादा ट्रांसपोर्ट के व्यपार से कौन जुड़ा है? 
  3. देखिएगा, इस आंदोलन को सबसे ज़्यादा हवा कौन देंगे, वही दल जिनके रामद्रोही होने का पुराना रिकॉर्ड है। 
  4. अब पूरा टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर की मजबूरी बताएगा। लेकिन वो ये नहीं बताएंगे कि सड़क पर वाहन चलाने वाले हम और आप जैसे 95% लोग हैं। नया कानून सब पर लागू होगा, फिर सिर्फ 5% को ही क्यों भड़काया जा रहा है ?
  5. ये टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर्स का रोना बतायेगा, लेकिन ये उन लोगों का दर्द नहीं बाटेंगे जिनके अपने ट्रकों के पहिये के नीचे रौंदे गए हैं। 
  6. नए कानून करीब 10 दिन पहले पास हुए। हड़ताल अब क्यों ? राम मंदिर का डर इन असुर शक्तियों को भयभीत कर रहा है।
  7. आप खुद सोचिए, जब आप हाइवे पर वाहन चलाते हैं तो क्या ये ट्रक सबसे ज़्यादा कानून नहीं तोड़ते ? अपने अनुभव के आधार पर सोचिए। क्या इन पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए ?

जान लीजिए, ये सब राम मंदिर के खिलाफ देश विरोधी और सनातन के दुश्मनों का षड्यंत्र है। अब आप वही गलती मत करना, जो आपने CAA विरोधी आंदोलन, किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन में की थी।

G News 24 : आप सभी को न्यू इअर 2024 की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

अंग्रेजी कलेंडर वाली हैप्पी न्यू इअर 2024 में सभी का स्वागत एवं धन्यवाद !

आप सभी को न्यू इअर 2024 की बहुत-बहुत शुभकामनाएं 

  धन्यवाद उन सबका

         जिन्होंने मुझे प्यार किया.

    उन्होंने मेरा हृदय विशाल किया.

                                                                 धन्यवाद उन सबका

        जिन्होंने मेरी चिंता की.

    उन्होंने अनुभव कराया कि वे 

         वास्तव में मेरा ध्यान रखते हैं.

  धन्यवाद उन्हें

      जिन्होंने ... मेरा साथ छोड़ा.

     उन्होंने मुझे एहसास कराया कि

    हमेशा के लिए कुछ भी नहीं होता.

  धन्यवाद उन्हें 

        जो मेरी जिंदगी में आये.

           उन्होंने मुझे वैसा बनाया 

              जैसा आज मैं हूँ.

  धन्यवाद उनका  

       जिन्होंने ... मुझसे नफरत की.

         उन्होंने मेरा आत्मबल बढ़ाया.

  धन्यवाद उनका 

         जिन्होंने बुरे वक्त में 

          मेरा साथ छोड़ दिया.

           उन्होंने अपने और पराये की

               पहचान करवाई.

 धन्यवाद उन सबका

      जिन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया.

       उन्होंने मुझे परिस्थितियों से 

             लड़ना सिखाया.

       आप सभी का मेरी जिंदगी में 

       कहीं न कहीं बने रहने के लिए 

           🙏  धन्यवाद  🙏


    वर्ष 2023 के सारे अनुभव,

     वर्ष 2024 में आपके लिए

    मार्गदर्शन का कार्य करें, और

      ये वर्ष आप सभी के लिए

              मंगलमय हो.

रवि यादव- चीफ़ एडिटर, ग्वालियर न्यूज़ 24 ( जी.न्यूज़ 24 )

G News 24 : मुसाफिरों के साथ ऊपर छत-नीचे फर्स में टनों-माल रोज ढो रही हैं बसें !

 ट्रांसपोर्ट माफ़िया द्वारा जिम्मेदार अधिकारीयों ने मिलकर बसों को ट्रक बना दिया है !

 मुसाफिरों के साथ ऊपर छत-नीचे फर्स में टनों-माल रोज ढो रही हैं बसें !

हेलमेट न पहनने,सीट बेल्ट न लगाने पर पुलिस तुरंत चालानी कार्यवाही कर देती है।  ऑटो रिक्शा वालो को वर्दी पहनाने औऱ नगर सेवा वालो को ओवरलोडिंग रोकने के भाषण देती पुलिस भी देखी होगी न? फिर इस पुलिस को अपने बगल से टनों माल लादकर गुज़र रही ट्रेवल्स की बसें क्यो नजर नही आती ? परिवहन महकमे औऱ वाणिज्यकर वालो की दृष्टि भी बाधित हो गई है क्या ? कलेक्टर, कमिश्नर के पास भी इसका जवाब है क्या कि ये बसें, ट्रक बनकर क्यो औऱ किसके आदेश से बेख़ौफ़ दौड़ रही हैं? कैसे ट्रेवल्स कम्पनियों ने माल बुकिंग के माल गोदाम खोल रखे हैं? हंस ट्रेवल्स को बीच शहर में बस अड्डा औऱ ट्रांसपोर्ट गोदाम संचालित करने की अनुमति क्या नगर निगम से जारी हुई है या जिला प्रशासन से? इंदौर को ये जवाब जिम्मेदारों से मांगना ही चाहिए सिर्फ हम ही क्यो नियम कायदों के लिए सताए जाते हैं? 

बसें यात्रियों को लाने ले जाने के लिए होती हैं या माल ढोने के लिये? बस क्या ट्रक का काम कर सकती हैं? तो फिर इस प्रदेश में किसके आदेश से बसें, ट्रक बनी हुई हैं? जी हां ट्रक। उसी ट्रक में सवार हो शान से वे लोग सफर कर रहे है, जो "सो कॉल्ड" बहुत पढ़े लिखें हैं या जमानेभर के समझदार हैं। स्लीपर क्लास का सुसज्जित अपना केबिन देखकर खुश होकर सफर करने वालो को पता है कि वे उस बस में सफर कर रहे है जिसमे ट्रक जैसा टनों माल लदा हुआ हैं, जो जानलेवा साबित हो सकता हैं। अंदर केबिन में लेटने औऱ कान में ईयर फोन लगाने के बाद उनको पता है कि बाहर से बस कैसे "झोल" खाती चल रही हैं। 

आप हम सब इन बसों को हिचकोले खाते चलते देखते है न? कारण है उसका यू हिचकोले खाते चलने का। क्योकि बस का डिज़ाइन मुसाफिरों के हिसाब से होता है। वैसे ही चेसिस पर बस तैयार होती हैं। लेकिन अब उसी बस के चेसिस को ट्रक बना दिया गया हैं। मुसाफिरों का वजन तो रत्तीभर भी नही, बस में जो माल लादा जा रहा है वो क्विंटलों-टनों में हैं। टैक्स बस का। कमाई ट्रांसपोर्ट की। असली ट्रांसपोर्ट वालो से पूछिए वे बताएंगे कि ट्रेवक्स के नाम पर चल रही ये बसे क्या क्या कारस्तानियां कर रही हैं। बगेर ड्यूटी स्टाम्प के किस प्रकार ये बसे तस्करी में लिप्त हैं, इसकी जानकारी उन सब महकमो को भी है जिनके जिम्मे टैक्स चोरी रोकने का कामकाज है।

बगेर बिल, टैक्स, ड्यूटी के माल की तस्करी का साधन भी ये बसें बनी हुई हैं। हाल ही में इंदौर में दो पुलिस वाले सस्पेंड किये गए। उन पर क्या आरोप था? ये ही था कि इन्होंने एक ट्रेवल्स की बस रुकवाई। बस से एक पार्सल जब्त क़िया। ड्राइवर कंडक्टर ने उसमे मिठाई होना बताया। बाद में ख़ुलासा हुआ उस पार्सल में 14 लाख थे। वो भी अवैध हवाला कारोबार के। हवाला की ऐसी ही मोटी रकम को इधर से उधर करने में ये बसे ही काम आ रही हैं। बसों में जा रहा सामान की जांच कौन कर रहा हैं? ये देश और प्रदेश की सुरक्षा के लिए भी बेहद चिंता का विषय हैं। याद है न मुम्बई हमले में अवैध हथियार ऐसे ही अवैध परिवहन कर पाकिस्तान से मुंबई में आये थे।  ऐसे ही पान मसाला, सुपारी, नकली मावा से लेकर सोने चांदी की तस्करी भी ये बसें कर रही हैं। बेलगाम, बेख़ौफ़। क्योकि अधिकांश बसों के पीछे कोई न कोई नेताजी खड़े हैं, या अड़े हैं। इन बस वालो ने बड़े बड़े माल गोदाम बना रखे हैं और वो भी सरेराह। हंस ट्रेवक्स का माल गोदाम तो ऐसी जगह है जहां से हर बड़े अफसरों का नियमित गुजरना होता हैं। अवैध रूप से बने इस माल गोदाम पर एक नजर तो डालिये? लिफ्ट तक लगी है बसों पर माल लदाई के लिए। 

हैरत की बात तो ये है कि जो बसे, बस से ट्रक बना दी गई है, उसमे सफर करने वाला तबका पढ़ा लिखा और समझदार कहा जाता हैं। महंगी टिकट देकर ये तबका अपनी जान का सौदा कर रहा है लेकिन सफर शान से कर रहा है। इन बसों में सफर करने वालो में नेता से लेकर अफसरों तक की जमात शामिल हैं। ये महंगा टिकट लेकर जिस बस को " सर्वसुविधायुक्त" मानकर सोते सोते आ-जा रहें हैं, वो बस तो साक्षात सड़क पर "लाक्षागृह"" बनकर दौड़ रही हैं। छत पर तो टनों माल लाद ही रही हैं, बस के फर्श को भी गोदाम बना रखा हैं। बस का बेसमेंट कहने को यात्री लगेज के नाम से जँचाया जाता है लेकिन उसमें भी अवैध रूप से बिना टेक्स ड्यूटी का माल ढोया जा रहा है। पड़े लिखे ये नासमझ जोखिमभरा सफर कर अपनी शान बगार रहे है कि हम तो फलाने ट्रेवल्स की बस से लेटे लेटे आराम से आ गए। ये तबका बात बात में देश दुनिया की समस्या पर ट्वीट-रीट्वीट करता हैं लेकिन अपनी सीट के नीचे पसरी अराजकता उसको नजर नही आती। अगर यात्री इस मामले में जागरूक हो जाये तो मज़ाक है बस वाला आपसे 2 हजार वसूलने के बाद भी आपको "ट्रक' में सफर करवा सके ?

G News 24 : श्री राम मंदिर के फेवर में दिए 441 साक्ष्यों में से 437 को कर लिया था कोर्ट ने स्वीकार !

 जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी जन्म से नेत्रहीन है फिर भी लिख डाली 230 किताबें ...

श्री राम मंदिर के फेवर में दिए 441 साक्ष्यों में से 437 को कर लिया था  कोर्ट ने स्वीकार !

आज 75 वर्ष के हो चुके महान गुरुदेव जन्म से अंधे हैं। स्कूल में हर कक्षा में उन्हें 99% से कम अंक नहीं मिले। उन्होंने 230 किताबें लिखी हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि श्री राम जन्मभूमि मामले में उन्होंने हाई कोर्ट में 441 साक्ष्य देकर यह साबित किया कि भगवान श्री राम का जन्म यहीं हुआ था। उनके द्वारा दिये गये 441 साक्ष्यों में से 437 को न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। उस दिव्य पुरुष का नाम है जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य। 300 वकीलों से भरी अदालत में विरोधी वकील ने गुरुदेव को चुप कराने और बेचैन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनसे पूछा गया था कि क्या रामचरित मानस में रामजन्मभूमि का कोई जिक्र है? 

तब गुरुदेव रामभद्राचार्यजी ने संत तुलसीदास की चौपाई सुनाई जिसमें श्री रामजन्मभूमि का उल्लेख है। इसके बाद वकील ने पूछा कि वेदों में क्या प्रमाण है कि श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था? जवाब में श्री रामभद्राचार्यजी ने कहा कि इसका प्रमाण अथर्ववेद के दूसरे मंत्र दशम कांड के 31वें अनुवाद में मिलता है। यह सुनकर न्यायाधीश की पीठ ने, जो एक मुस्लिम न्यायाधीश था, कहा, “सर, आप एक दिव्य आत्मा हैं।” जब सोनिया गांधी ने अदालत में हलफनामा दायर किया कि राम का जन्म नहीं हुआ था, तो श्री राम भद्राचार्यजी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा, "आपके गुरु ग्रंथ साहिब में राम का नाम 5600 बार उल्लेखित है।

" ये सारी बातें श्री रामभद्राचार्यजी ने मशहूर टीवी चैनल के पत्रकार सुधीर चौधरी को दिए एक इंटरव्यू में बताई हैं. इस नेत्रविहीन संत महात्मा को इतनी सारी जानकारी कैसे हो गई, यह एक आम आदमी की समझ से परे है। वास्तव में वे कोई दैवीय शक्ति धारण करने वाले अवतार हैं। उन्हें नेत्रहीन कहना भी उचित नहीं है। क्योंकि एक बार प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि "मैं आपके दर्शन की व्यवस्था कर सकती हूं।" तब इस संत महात्मा ने उत्तर दिया, "मैं दुनिया नहीं देखना चाहता।" वह इंटरव्यू में आगे कहते हैं कि मैं अंधा नहीं हूं. मैंने अंधे होने की रियायत कभी नहीं ली। मैं भगवान श्री राम को बहुत करीब से देखता हूं।' ऐसी पवित्र, अद्भुत प्रतिक्रिया को नमन है, ऐसै संतो की वजह से ही सनातन हमारी संस्कृति और अस्तित्व टीका हुआ है ऐसै कई संत है  उनका हंमेशा मान रखे। 

G News 24 : संसद में विपक्ष की ड्रामेबाजी एक सुनियोजित स्क्रिप्टेड ड्रामा है !

 आपको क्या लगता है यह जो... 

संसद में विपक्ष की ड्रामेबाजी एक सुनियोजित स्क्रिप्टेड ड्रामा है !

इस शीतकालीन सत्र में संसद के अंदर भारतीय जनता पार्टी  देश हित में बहुत ही जरूरी कॉमन सिविल कोड बिल लाने वाली थी और वफ्फबोर्ड को भंग करने वाली थी। इन बिलों से देश के करोड़ों हिन्दुओं को मजबूती मिलने के साथ साथ देश की सुरक्षा को भी मजबूत बनाने की अहम थे। लेकिन विपक्ष की विपक्ष की एक सुनियोजित स्क्रिप्टेड ड्रामेबाजी के कारण ये बिल पटल पर नहीं आ सके। सूत्रों की माने तो ये एक सुनियोजित षडयंत्र किया गया जिससे इस पूरे सत्र में केवल हंगामा में जाए और कोई भी बिल पास ना हो पाए। 

ऐसा लगता है कि विपक्ष संसद में उपद्रव करने वाले लड़कों के साथ खड़ा है। तभी तो उनके पक्ष खड़ा नजर आ रहा है उन्हें बेरोजगार बताकर जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि लड़के बेरोजगार थे और बेरोजगारी की वजह से यह सब करने की कोशिश कर रहे थे . लेकिन मेरा मानना है कि यह केवल जांच को दिशाहीन करने का एकमात्र प्रयास है ऐसा लगता है कि ये सभी किसी न किसी पार्टी के एजेंट हैं और कहीं ना कहीं से इनको भारी मात्रा में पैसा उपलब्ध कराया गया है और इन लोगों को संसद के अंदर वह गैस किट पहुंचाने में जरूर किसी न किसी सांसद की मुख्य भूमिका है इसकी भी जांच होनी चाहिए। 

मैं तो यही कहूंगा कि यह पूरे का पूरा षड्यंत्र है सरकार के खिलाफ की सरकार की सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं है ऐसा मैसेज जाए जनता में विदेश में इसीलिए जानबूझकर के संसद के हमले की वार्षिक दिवस पर इस घटना को अंजाम दिया गया। इस घटना की जांच हर एंगल से की जाने की जरूरत है। 

जरा इन बातों पर भी गौर करें-

  • एक षड्यंत्र के तहत ही सारे के सारे किरदार हिंदू चुने गए जिससे कि हिंदुओं के ऊपर भी इल्जाम लगाया जा सके। 
  • यह लोग भाजपा की भारी विजय को भी उसकी खबर मीडिया में ना चले और वह डाइवर्ट हो जाए। 
  • केजरीवाल के पार्टी वालों का घोटाला घोटाले की बात ना हो लोग उल जलूल बातों में उलझे रहे। 
  • धारा 370 पर भारी विजय की चर्चा ना हो आज याद बहुत सारे अच्छे विषयों पर बात ना हो सके। 
  • हिन्दू हितैषी और हिंदुत्ववादी सरकार को बदनाम करने का पूरा-पूरा प्रयास किया गया है। 

G News 24 : शहर को यूनेस्को ने दिया सिटी ऑफ मयूजिक का तमगा

 शतायु होती संगीत परम्परा वाले ...

शहर को यूनेस्को ने दिया सिटी ऑफ मयूजिक का तमगा 

ग्वालियर। ग्वालियर की शिराओं में संगीत बहता  है। इसी शहर ने संगीत की साधना से जिसे सम्राट बनाया उसे तानसेन के नाम से दुनिया जानती है । उन्हीं संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर इस वर्ष भी 24  दिसंबर को पांच दिवसीय महफ़िल सजने वाली है। आयोजन की ये संगीत परम्परा शतायु होने जा रही है। राजनीति के भवंर में फंसे  देश में ऐसे समारोहों की चर्चा कम ही हो पाती है ऐसे  समारोह आज भी राज्याश्रय   के मोहताज हैं। समाज इन्हें आत्मनिर्भर नहीं बना पाया है ।  तानसेन की भव्यता साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है ।  इसका स्वरूप भी लगातार बदल रहा है ।  पहली बार तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर ग्वालियर शहर के 15  स्थानों पर संगीत सभाएं आयोजित की गयी । इन सभाओं में ग्वालियर घराने के साथ ही दुसरे शास्त्रीय गायकों-वादकों ने अपनी कलाओं का शानदार प्रदर्शन किया।ये समारोह संगीत प्रेमियों के साथ ही पर्यटकों   के लिए भी एक बड़ा आकर्षण है।

तानसेन कैसे तत्कालीन मुग़ल सम्राट  अकबर के दरबार के नवरत्न बने ,इसे लेकर अनेक किस्से है। लेकिन हकीकत ये है कि  तानसेन थे  और संगीत   की दुनिया में उन्होंने अपनी साधना से एक अलग मुकाम बनाया था। तानसेन को लेकर किवदंतियाँ ज्यादा है ,प्रमाण कम। तानसेन ब्राम्हण थे या बघेल ये विवाद है ।  कोई उन्हें मकरंद बघेल की संतान मानता है तो कोई मकरंद पांडे की । लेकिन एक मान्यता अविवादित है कि वे ग्वालियर से 45  किमी दूर बसे गांव बेहट के बेटे थे। किस्सा है कि वे बचपन में स्पष्ट बोल नहीं पाते थे किन्तु एक शिवालय में नियमित साधना से उन्हें स्वर सिद्ध हुए और वे गाने लगे। उनकी तानों से शिवालय टेढ़ा हो गया। ये शिवालय आज भी है ,लेकिन मुझे इसके टेढ़े होने की वजह संगीत नहीं वो वटवृक्ष लगता है जो विशालकाय है।

तानसेन पंद्रहवीं  सदी के अंत और सोलहवीं सदी के बीच जन्मे और उस दौर में ग्वालियर में तोमर शासकों का राज था । राजा मानसिंह तोमर संगीत के अनन्य साधक थे । उनके शासन काल में संगीत को खूब संरक्षण  मिला और इसका लाभ तानसेन और उनके समकालीन बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे अनेक संगीतज्ञों को मिला। ऐसी लोक मान्यता है कि  राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी उनकी देखरेख में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के बाद  तानसेन एक श्रेष्ठ गुरु की तलाश में  वृन्दावन चले गये और वहां उन्होनें स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत में निष्णात होने कि बाद  की ख्याति में चार चाँद लग गए ।  उन्हें  तानसेन शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ ने अपने आश्रय में ले लिया। दौलत खान के बाद तानसेन बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए।

मुग़ल सम्राट अकबर ने उनके गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुला लिया और अपने नवरत्नों में स्थान दिया। तानसेन कि जीवन का ये सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है। तानसेन कि संगीत की विशेषताओं से जुड़े असंख्य किस्से हैं। कालांतर में उनके जीवन पर फ़िल्में  भी बनाई गयीं । लेकिन जो हकीकत है वो ये है कि तानसेन की समाधि ग्वालियर  कि हजीरा क्षेत्र में बनी हुई है । मोहम्मद गौस कि मकबरे कि निकट स्थित तानसेन की समाधि पर राजतंत्र कि समय से स्थानीय वैश्याएं उर्स मनाती थीं । जिसे बाद में सिंधिया शासकों ने राज सहायता देकर सालाना संगीत समारोह में बदल दिया। सरकारी और निजी आंकड़ों में अन्यत्र होने कि बावजूद इस आयोजन का ये 99  वां साल है।

 समारोह में शामिल होने और संगीत के साथ स्वरलहरियों का आनंद लेने सैकड़ों लोग अपना तमाम कामकाज छोड़कर कड़ाके की ठंड में ठिठुरते हुए इस समारोह में एक श्रोता की हैसियत से शामिल होते हैं। इस समारोह  में पिछले सौ साल में पैदा  हुए देश कि सभी मूर्धन्य संगीतज्ञों ने  अपनी हाजरी दी है ,फिर चाहे वे पंडित रविशंकर हों,गंगू बाई हंगल हों, मल्लिकार्जुन मंसूर हों ,शहनाई सम्राट उस्ताद  बिस्मिल्लाह खान हों। पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित हों या पंडित भीमसेन जोशी हों या डागर बंधु ,हों उस्ताद अमजद अली  खान हों या असगरी बाई हों और कोई। हर संगीतज्ञ तानसेन की समाधि पर सजदा करना अपना सौभाग्य मानता आया है। मैंने यहां शाम से शुरू होने वाली संगीत सभाओं को ब्रम्ह मुहूर्त तक चलते देखा है ।  इस समारोह में संगीत की नयी पौध से लेकर वटवृक्ष तक शामिल होते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से सरकार के संस्कृति विभाग में इस पारंरिक समारोह को वैश्विक संगीत समारोह बनाने की कोशिश की है । इसमें तमाम विदेशी संगीतज्ञों को शामिल किया है । इसका विरोध  भी हुआ और समर्थन भी मिला। कुल मिलकर तानसेन और संगीत शास्त्रीय संगीत कि पर्याय बने हुए है।  ध्रुपद कि प्रतीक हैं। पहले तानसेन कि नाम से कोई सम्मान नहीं दिया जाता था लेकिन 1977  में तानसेन कि नाम पर पांच हजार रूपये का अलंकरण देना शुरू किया गया जो आज पांच लाख तक का हो गया है ।  अब तानसेन अलंकरण कि अलावा संगीत के  क्षेत्र में ही नहीं बल्कि नाटक के क्षेत्र में काम करने वाली संस्स्थाओं को भी सम्मानित किया जाता है।

यदि आपकी संगीत  में रूचि है तो आपको एक बार तानसेन समारोह में अवश्य शामिल होना चाहिए । ग्वालियर तक आने कि लिए दिल्ली से वायुयान,रेलें उपलब्ध है।  शहर में धर्मशालाओं से लेकर पांच सितारा होटल हैं। आप ग्वालियर आएं तो सर्दी से बचने कि उपाय अवश्य  करके आएं। तानसेन समारोह कि बहाने आप ग्वालियर दुर्ग,रानी लक्ष्मी बाई की समाधि ,जय विलास संग्रहालय, बटेश्वर  और मितावली के शताब्दियों पुराने मंदिरों की श्रृंखला भी देख सकते हैं। तानसेन की जन्मस्थली बेहट में होने वाली ग्राम्यांचल की संगीत  सभा का आनंद  भी ले   सकते हैं ,वो भी निशुल्क ,बस एक अदद वाहन आपके पास होना चाहिए।

G News 24 : राज्य वार विधायकों को मिलने वाली सैलरी और भत्ते में काफी अंतर है !

 तेलंगाना के विधायकों को सबसे ज्यादा और त्रिपुरा के विधायकों को  सैलरी मिलती है... 

राज्य वार विधायकों को मिलने वाली सैलरी और भत्ते में काफी अंतर है !

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब कई लोगों के मन में यह सवाल उठने लगे है कि आखिर एक मुख्यमंत्री और एक विधायक को कितनी सैलरी मिलती है। सैलरी के अलावा उन्हें किन किन सुविधाओं और भत्तों का लाभ दिया जाता है। और  अगर कोई सांसद विधायक का चुनाव लड़े तो उसे कितनी सैलरी मिलेगी ? तो आईए जानते है कि एक विधायक को कितनी सैलरी मिलती है…

प्राप्त जानकारी के अनुसार के वर्तमान में देश में एक विधायक को भत्तों समेत 1.50 लाख से 2 लाख के आसपास सैलरी मिलती है। इसमें अलग अलग राज्यों के हिसाब से विधायकों को सैलरी मिलती है।वेतन के अलावा विधायकों को कई तरह के भत्ते और सुविधाएं भी मिलती है जैसे आवास, दैनिक भत्ता, यात्रा भत्ता, रेल और राज्य सरकारी बस की यात्रा में विशेष सुविधा और प्राथमिकता, वाहन भत्ता, निजी सचिव का प्रावधान, चिकित्सकीय सुविधाएं आदि।

राज्य वार किस विधायक को कितनी सैलरी !

अगर विधायकों की सैलरी के बारें में चर्चा की जाए तो सबसे ज्यादा सैलरी तेलंगाना के विधायकों को मिलती है।यहां एक एमएलए की सैलरी वैसे तो महज 20 हजार रुपये ही है, लेकिन निर्वाचन भत्ते के तौर पर यहां के एक विधायक को करीब महीने में 2,30,000 रुपये मिलते हैं। इसके बाद नंबर मध्य प्रदेश के विधायकों का आता है, जिनका मासिक वेतन करीब 2.10 लाख है। जिसमें बेसिक सैलरी 30 हजार, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 35 हजार रुपये और अन्य भत्तों में चिकित्सा, कंप्यूटर ऑपरेटर, यात्रा भत्ता मिलते हैं। जिससे एमएलए का मासिक वेतन कुल मिलाकर 2.10 लाख तक हो जाता है। 

राज्य के मुख्यमंत्री को  सभी भत्ते मिलाकर लगभग दो लाख रुपए सैलरी के रुप में दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में विधायक की बेसिक सैलरी 20 हजार रुपये महीने है,इसके साथ ही निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, टेलीफोन भत्ता, अर्दली भत्ता, दैनिक भत्ता और चिकित्सकीय भत्ते मिलाकर उसे महीने के कुल 1.10 लाख रुपये तक मिलते हैं। राजस्थान में विधायक की सैलरी हर महीने करीब 1.25 लाख रुपये है, इसमें उसे 40 हजार रुपये बेसिक सैलरी मिलती है। इसके अलावा अन्य भत्तों में निर्वाचन क्षेत्रभत्ता ,दैनिक भत्ता, टेलिफोन भत्ता, रेल और सड़क यातायात में सुविधाएं, चिकित्सा सुविधाएं भी शामिल हैं। मिजोरम में विधायकों की सैलरी कुल 47 हजार रुपये महीना है तो त्रिपुरा में विधायकों को मासिक वेतन 34 हजार रुपये प्रति माह मिलता है।

सांसद से विधायक बने नेताओं की सैलरी पर असर !

सभी सांसदों को भत्ते और पेंशन (संशोधन) अधिनियम, 2010 के अनुसार हर महीने 1 लाख रुपए सैलरी दी जाती है। इसके अलावा संसद के सदस्य को कई तरह के भत्ते और लाभ भी मिलते हैं। इन सांसदों को हर महीने 70 हजार रुपए निर्वाचन क्षेत्र भत्ता  के तौर पर और 60 हजार ऑफिस के खर्चे के लिए सांसदों दिए जाते हैं। संसद सत्र के समय हर दिन दो हजार रुपये का भत्ता अलग मिलता है। अगर कोई सांसद , विधायक बनता है तो उसे संसद सदस्‍य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम की धारा 8क के हिसाब से रेल यात्रा फ्री रहती है, वही केंद्र सरकार की स्‍वास्‍थ्‍य योजना के तहत पूर्व सांसदों को भी वर्तमान संसद की तरह सुविधाएं मिलती रहती है। ये सुविधाएं अलग-अलग राज्यों में अलग अलग होती है। वही सासंद के विधायक बनने पर सैलरी में भी अंतर आ जाता है।

नोट : ये जानकारी विभिन्न माध्यमों से जुटाई गई है, इसमें फेरबदल भी हो सकता है। यह आंकड़े अनुमान के तौर पर दर्शाए गए है।

G News 24 : जो सबकी समस्याएं उठाता है उसकी समस्या पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं

 उसकी सेवाएं तो सब चाहते हैं लेकिन ...

जो सबकी समस्याएं उठाता है उसकी समस्या पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं 

आप पत्रकारों से उम्मीद करते हैं कि वो सच लिखें,अन्याय के खिलाफ लड़ें, सत्ता से सवाल पूछें, गुंडे अपराधियों का काला चिट्ठा खोल के रख दें आदि। उसकी सेवाएं तो सब चाहते हैं लेकिन जो सबकी समस्याएं उठाता है उसकी समस्या पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं है।

  • 1. लेकिन पत्रकारों से कभी पूछिए उनकी सैलरी क्या है ?
  • 2. कभी पूछिए पत्रकारों के घर का हाल क्या खर्च कैसे चलता है? 
  • 3. कभी पूछिए उनके खर्चे कैसे चलते हैं ?
  • 4. कभी पूछिए उनके बच्चों के स्कूल की पढाई कैसे होती है? 
  • 5.कभी मिलिए उनके परिवार,बच्चों से और पूछिए उनके कितने शौक पूरे कर पाते है?
  • 6.कभी पूछिए की अगर कोई खबर ज़रा सी भी इधर उधर लिख जाएं और कोई नेता, विभाग, सरकार या कोई रसूखदार व्यक्ति मांग लें स्पष्टीकरण तो कितने मीडिया हाउस अपने पत्रकारों का साथ दे पाते हैं?
  • 7. कितने पत्रकारों के पास चार पहिया वाहन हैं ? 
  • 8. कितने पत्रकार दो पहिया वाहनों से चल रहे हैं ? 
  • 9. कितने पत्रकारों के पास बड़े बड़े घर हैं?
  • 10. अपना और अपनों का इलाज़ कराने के लिए कितने  पत्रकारों के पास जमा पूंजी है ?
  • 11. प्रिंट मीडिया के पत्रकारों का रूटीन पूछिएगा कभी, दिन भर फील्ड और शाम को ऑफिस आकर खबर लिखते लिखते घर पहुंचते पहुंचते बजते हैं रात के 09, 10, 11... सोचिए कितना समय मिलता होगा उनके पास अपने बच्चों, परिवार, पत्नी,मां बाप के लिए समय?
  • 12. आपको लगता होगा कि  पत्रकारों के बहुत जलवे होते हैं--? ऐसा नहीं है।
  • 13. कभी पूछिए की अगर पत्रकार को जान से मारने कि धमकी मिलती है तो प्रशासन उसे कितनी सुरक्षा दे पाता है?
  • 14. कभी पूछिए की अगर कोई पत्रकार दुर्घटना का शिकार हो जाता है और नौकरी लायक नहीं बचता तो उसका मीडिया हाउस या वो लोग जो उससे सत्य खबरों की उम्मीद करते हैं वो कितने काम आते हैं।
  • 15. और अगर किसी पत्रकार की हत्या हो जाती है तो कितना एक्टिव होता है शासन प्रशासन और कानून पुलिस ?
  • 16. दंगे हों,आग लग जाए, भूकंप आ जाएं, गोलीबारी हो रही हो, घटना दुर्घटना हो जाएं सब जगह उसे पहुंच कर न्यूज कवरेज करनी होती है।
  • 17. कोविड जैसी महामारी में भी पत्रकार अपनी जान पर खेलकर न्यूज कवर कर रहे थे.. सोंचिएगा।
  • 18.गिने चुने पत्रकारों की ही मौज है बाकी ज़्यादातर अभी भी संघर्ष में ही जी रहे हैं।

अगर किसी पत्रकार के पास अच्छा फोन, घड़ी,कपड़े, गाड़ी दिख जाए तो उसके लिए लोग कहने लगते हैं कि  'दलाली से बहुत पैसा कमा रहा है। क्यों भाई क्या उसे हक नहीं है अच्छे कपडे, फोन घर गाड़ी इस्तेमाल करने का,ऐसे में जो पत्रकार बेहतरीन काम कर रहे हैं और जूझ रहे हैं एक एक एक खबर के लिए वो न सिर्फ बधाई के पात्र हैं। एक बार विचार अवश्य करें आपसे निवेदन पत्रकारों का साथ दें तभी हम लोग लोक तंत्र को मजबूत बना सकते हैं।

G News 24 : आधुनिक युग के विधुर और चाणक्य का कॉम्बो हैं मोदी !

 नरेंद्र मोदी कोई सामान्य राजनेता नहीं हैं !

आधुनिक युग के विधुर और चाणक्य का कॉम्बो हैं मोदी  !

गाँधी जी ने अहिंसा की आड़ में अपने चहेते मुसलमानों को एक अलग देश दे दिया ! मुसलमानों के हाथों लाखों हिंदू मारे गये।  हमारी हिन्दू बहनों के साथ अनगिनत दुष्कर्म और बलात्कार किये गये !

सैकड़ों मंदिरों में कुरान पढ़ी गई.  लेकिन गांधी ने हिंदुओं के लिए कुछ नहीं किया.  भगवत गीता किसी मस्जिद में नहीं पढ़ाई गई. कांग्रेस के वोट बैंक की रक्षा के लिए तीन करोड़ मुसलमानों को भारत से पलायन करने से रोका गया।

75 साल बाद असली चाणक्य आया है.  वह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के आधे रास्ते पर पहुंच गए हैं।'  मुसलमानों का विश्वास जीतने की आड़ में वह भारत में मुसलमानों पर उल्लेखनीय तेजी से राजनीतिक शिकंजा कस रहा है।

आपको लगता है कि मोदी इस बात से अनजान हैं कि मुसलमान कैसे वोट करते हैं !  वह गणनाएँ हममें से अधिकांश से बेहतर जानते  है।  वह जानते हैं कि 25 अक्टूबर 1951 से कांग्रेस ने यह कैसे किया है। वे अभी भी मुस्लिम वोट बैंक को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।  वह उन्हें खेलने दे रहा है।*एल

  • मोदी ने गांधी-गांधी का नारा लगाया लेकिन मूर्ति सरदार पटेल की बनवा दी !
  • मोदी ने गांधी, गांधी का नारा लगाया और सुभाष चंद्र बोस की वीरता का गुणगान करके और उस दिग्गज के नाम पर एक संग्रहालय बनाकर स्वतंत्रता दिवस मनाया।
  • मोदी ने गांधी-गांधी का जाप किया और धारा 370 ख़त्म कर जम्मू-कश्मीर से राजनीतिक इस्लामीकरण को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया।
  • मोदीजी ने गांधी-गांधी का जाप किया लेकिन 2 अक्टूबर को लाल बहादुर शास्त्री को महत्व देकर नई पीढ़ी को जागृत कर दिया।
  • बाकी सब कुछ उनकी सर्वोत्तम योजना के अनुसार चल रहा है।  मोदी एक मिशन पर हैं;  उसे निराश मत करो। यह राजनीतिक संन्यासी हमारी और बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों की समझ से परे है। 
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के उनके प्रयास को कोई नहीं रोक सकता। अभी उसे किसी की सलाह की जरूरत नहीं;  उसे आपके वोट चाहिए।* वह जानता है कि बाकी काम कैसे करना है।  हम 1000 साल से सो रहे हैं, इसीलिए मैकाले की शिक्षा प्रणाली का अंधापन और 70 साल की कांग्रेस की टुकड़ों पर पलने की आदत।  यकीन मानिए अगर 60 फीसदी हिंदू भी जाग गए तो यह तय है कि अगले 30 साल के भीतर भविष्य में हिंदुओं के लिए एक बेहतर दुनिया होगी।

G News 24 : कलयुग में अब "ईवीएम की ही सरकार" है !

 ईवीएम के मायाजाल में छिपा संघ और जनता का विरोध...

 कलयुग में अब "ईवीएम की ही सरकार" है !

भाजपा की जीत के पीछे कुछ अनसुलझे सवाल और रहस्य जनता के मन में छाए हुए हैं, जहां वर्तमान विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत से जहां मीडिया, जनता और स्वयं बीजेपी के जमीनी नेता भी आश्चर्यचकित है, आखिर कैसे ये चमत्कार हो गया...?

ईवीएम की आड़ में भाजपा संघ की मेहनत का ढिंढोरा पीट रही है जबकि संघ ने मप्र, राजस्थान छत्तीसगढ़ सहित भाजपा नेताओ का विरोध किया, देवास में भी हिंदुत्व की छवि लिए कांग्रेस के युवा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी का खुलकर समर्थन किया। जबकि देवास सांसद ने परदे के पीछे प्रदीप की सहायता जगजाहिर है।

भाजपा के  कुछ नेताओं की  हार की पटकथा संघ ने लिखी !

सूत्रों का कहना है कि हिदुत्व के असली मुद्दों से भाजपा भाग रही, जिसके विपरीत आज प्रदेश में भाजपा का भ्रष्टाचार और कानून अव्यवस्था का बोल बाला है। इस बार सभी पूर्व रुझानों में कांग्रेस की सरकार बनती नजर आ रही थी, संघ और अपने नेताओ की गुटबाज़ी से भाजपा परेशान थी। संघ से नाराज स्वयं सेवकों ने भी भाजपा के खिलाफ दमदारी से प्रचार किया।

अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि मोदी और शाह ने जमाया ईवीएम का मायाजाल !

भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि सारा मामला ईवीएम में सेट है, किसको जिताना है किसको हराना है इसकी पटकथा दिल्ली में लिखी गई, शिवराज के चेहरे को जनता ने नकारा अब 2024 के पहले फिर हार का तमगा मोदी अपने माथे पर नही लेना चाहते थे, इसीलिए गोदी मीडिया को साथ लेकर रचा ईवीएम का मायाजाल।

कांग्रेस की तेलंगाना में जीत दिखावा !

तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनी या यूं कहे की ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की क्योंकि कि एक जीत के पीछे 3 राज्यों में की गई बदमाशी भी जायज़ लगे। एक राज्य गंवाने की शर्त पर 3 बड़े हिंदी भाषी राज्य भाजपा ने हथिया लिए। अब तेलंगाना की जीत पर कांग्रेसियों के मुंह पर ताले भी लग गए और कोई ईवीएम के मायाजाल की बात नही कहेगा।

2024 की लड़ाई आसान नहीं

कुछ लोगों का मनना है कि भारत में मीडिया और जनता मजबूत होते एक नए राहुल गांधी की ओर आकर्षित हो रही है ! इसी का डर मोदी और भाजपा को सता रहा है रोज नई इवेंट के सहारे मोदी अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने की जुगत में थे लेकिन लगातार उनका ग्राफ गिरता जा रहा था, इसलिए ईवीएम का स्वांग रचा गया।

कांग्रेस से सवाल 

सवाल– जीतू पटवारी को क्यों हराया......?

जवाब– कांग्रेस के सक्रिय नेता बोलने में माहिर

सवाल– कमलेश्वर पटेल को क्यों हराया गया....?

जवाब–लगातार कांग्रेस पार्टी में सक्रियता और ऊपर तक पहुंच

सवाल– नीलांशु को क्यों हराया....?

जवाब– आरएसएस के गढ़ में लगातार कांग्रेस सक्रियता विंध्य क्षेत्र में राष्ट्रीय स्थिर का नेता होना

भाजपा से सवाल 

सवाल - नरोत्तम को क्यों हराया....?

जवाब - क्योंकि वे खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार मानने लगे थे, उनकी कार्यशैली से भाजपा और संघ नाराज था इसलिए हार के लिए सेट थी ईवीएम

सवाल - इमरती देवी को क्यों हराया..?

सिंधिया समर्थकों में कई नेताओं को हराने के लिए सेट थी ईवीएम जिसकी पूरी जानकारी सिंधिया को भी थी, दरअसल उनके कई नेता खुद सिंधिया की गले की फांस बन गए थे इमरती सहित कई और हारे नेताओ के आने से भाजपा और सिंधिया की छवि टूट रही थी l इसलिए हार के लिए सेट थी ईवीएम।

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं खिलाफ मोर्चाबंदी 

2024 के मोदी मिशन में कमलनाथ सरकार रोड़ा थी, कांग्रेस के 2 और राज्यों में जहां कांग्रेस की सरकार थी यानी छत्तीसगढ़ और राजस्थान। दोनो राज्यों में कांग्रेस ने बेहतर काम किया जनता का बढ़ता रुझान देख दोनो राज्यों की कहानी ईवीएम ने लिखी। 3 राज्यों में अप्रत्याशित नतीजे निश्चित तौर पर किसी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहे हैं। दिग्गज कांग्रेस नेताओ को ईवीएम ने हराया, जबकि भाजपा के कई नेता भारी विरोध के बावजूद जीते। नतीजे के बाद जनता बस यही बोल रही है हमने तो कांग्रेस को वोट दिया...लेकिन हमारे साथ फिर धोखा हुआ... 

जितेन्द्र सिंह

G News 24 : एक ’लाड़ली’’ माॅ बोलने से माॅ सुनने तक का सफर !

 माॅ - बेटी के जीवन का एक संघर्ष ...

एक ’लाड़ली’’ माॅ बोलने से माॅ सुनने तक का सफर !

हमारी संस्कृति हमें महिलाओं की इज्जत करना सिखाती है हमारी पढ़ाई भी स्त्रियों का सम्मान करना सिखाती है। अगर आंकड़ों की बात करें तो हमारे देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये देश में अनेक कानून और योजनाए बनायी गयी लेकिन प्रश्न यह है, कि हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार हुआ है। महिलाओं का संघर्ष माॅ की कोख से ही शुरू हो जाता है। माॅ नौ महीने तक पल-पल अपने खून अपनी आत्मा से अपने भीतर पलते जीवन को सीचती है और जैसे ही पता चलता है, कि आने वाला बच्चा लड़का नहीं लड़की है तभी से उसके जीवन का संघर्ष शुरू हो जाता है। एक संघर्ष बेटी के जीवन का और दूसरा संघर्ष उस माॅ का जो उस बेटी को धरती पर लेकर के आयी है। उसकी मनोदशा को कौन समझ पाता है कि माॅ बनने की खुशी बेटी के आने की खुशी क्या है। 

हमारी संस्कृति में कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन हमारे देश की एक ये भी सच्चाई है, कि कुछ घरों में कन्या का जन्त माथे पर चिंता की लकीरें खीचती है होठों पर मुस्कुराहट नहीं। महिलायें पुरूष दोनों ही समाज के एक समान अंग हैं, लेकिन महिलाओं के जीवन में बहुत संघर्ष होता है। पुरूष तो टूट जाते हैं कुछ नशा करने लगते हैं तो कुछ आत्महत्या कर लेते हैं पर औरत जब संघर्ष करने पर आती हैं तो उसको कोई बाधा नहीं रोक पाती।

महिलाओं की भूमिका - महिलाओं को जीवन में अनेक रूपों मंे देखा जाता है कभी वह माॅ की भूमिका निभाती हैं तो कभी बहन की, कभी बेटी की, कभी पत्नी की और कभी बहु की बहुत सारे रूपों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। माॅ बच्चों की जिंदगी का वो भाग है जिसके बिना एक परिवार और बच्चें अधूरे है क्योंकि अगर माॅ नहीं होती तो हमारा इस संसार मंे जन्म कैसे होता और माॅ वह होती है हर सुख-दुख मेें अपने बच्चों के साथ खड़ी होती है। घर में बेटी जन्म लेती है तो समझा जाता है, कि घर में लक्ष्मी आयी हो। उस घर में बेटी के आगमन से खुशियां आ जाती है और फिर वह बेटी अपने घर-घर के साथ-साथ अपने देश का नाम रोशन करती है। वह अपने भाई को जरूरत पड़ने पर सदैव सहायता करती है और बहन का फर्ज निभाती है। बेटी जब शादी कर बहु बन के जब अपने घर को छोड़कर ससुराल जाती है तो उस घर में सबसे अनजान होते हुये भी उस घर को अपना घर समझती है और अपने पति तथा परिवार को सुखी रखकर के घर को स्वर्ग बनाने की हमेशा केशिश करती रहती है। यही बहु एक दिन किसी की सास बनती है और अपने अनुभव से परिवार में एकता बनाये रखती है।  

महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण-हमारे समाज में महिलाओं को इज्जत और सम्मान प्राप्त नहीं हो पाता है माॅ का सम्मान नहीं किया जाता है और मुसीबत समझ के वृद्धाआश्रम में छोड़ दिया जाता है, बहन को पराई समझते हैं, बहु को पैर की जूती और बेटी को एक मुसीबत। ऐसा कब तक चलेगा हम महिलाओं को सम्मान और इज्जत कब देंगे हमारी युवा पीढ़ी को यह समझना होगा और हमारे बुजुर्गों को भी समझना होगा कि महिलाओं की हमारी जिंदगी में क्या महत्तवा है। आज कल ऐसी घटनायें बहुत तेजी से बढ़ रही है जिनमें किसी लड़की के ऊपर तेजाब फेक दिया या कभी बलात्कार की खबरे सुनायी देती है जैसे कभी छोटी से बच्ची के साथ कभी जवान लड़की के साथ और कभी बूढ़ी महिला के साथ। देश के नागरिक कब समझेंगे, कि उनके परिवार पर क्या बीतेगी या उस बच्ची पर क्या बीतेगी वह इस समाज में किसे और कैसे मुॅह दिखायेगी। हम सभी को अब समझना होगा कि हमारी जिंदगी में उनकी क्या अहमियत है उनको पूर्ण सम्मान कैसे दें। हमारी और आप सबकी आवाज ही एक दिन महिलाओं को सर उठा के जीने का सम्मान दिला सकती है तभी हम एक विकसित राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं।

आत्मनिर्भर होती महिलायें-सम्पूर्ण विश्व में 8 मार्च को मनाया जाने वाला महिला दिवस एवं महिला सप्ताह केवल कुछ महिलाओं और कुछ कार्यक्रमों के आयोजन के साथ हर साल मनाया जाता है, लेकिन इस प्रकार के आयोजनों का खोखलापन तब तक दूर नहीं होगा जब तक देश की उस आखिरी महिला के सम्मान उसके स्वाभिमान की रक्षा के लिये उसे किसी कानून, सरकार, समाज या पुरूष की आवश्यकता नहीं रहेगी। अर्थात वह सही मायनों में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जायेगी। आज हमारे समाज में यह अत्यंत दुर्भाग्य विषय है, कि कुछ महिलाओं ने स्वयं अपनी आजादी के अर्थ को केवल कुछ भी पहनने से लेकर देर रात तक कही भी कभी भी कैसे भी घूमने-फिरने की आजादी तक सीमित कर दिया है। काश हम सब ये समझ पाये कि खाने-पीने, पहनने या फिर न पहनने की आजादी तो एक जानवर के पास भी होती है। लेकिन आजादी वो है जो खुलकर सोच पाने की आजादी हो वो सोच जो उसे उसके परिवार और समाज को आगे लेकर जाये।  

महिलाओं का योगदान-हम सभी के जीवन में महिलाओं का योगदान सदैव श्रेष्ठ रहा है। जन्म से लेकर के मृत्यु तक उनके द्वारा हर एक रिश्ते के लिये जिस तरह से अपनी जिम्मेदारी को निभाया जाता है उसके लिये कोेई भी शब्द नहीं बना है। उनके जीवन में संघर्ष हर वक्त बना रहता है। अपनी भावनाओं को कुर्वान कर अपनों के लिये जीने की जो क्षमता उनके अंदर होती है उसकी कल्पना करना भी संभव नहीं है। इसलिये हम सभी का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य बन जाता है कि हम उनकी भावनाओं का सम्मान करें तथा उनकों इज्जत देने के साथ-साथ उनके सपनों को पूरा करने में सहायोग प्रदान करें ताकि वे अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर सकें। कोविड की बजह से अनेक ऐसे परिवार हैं जिनमें परिवार के मुखिया का साया सिर से उठ गया हैं ऐसे में घर की महिलाओं के द्वारा जिस तरह से परिवार चलाने के लिये मजदूरी, सब्जी का ठेला लगाकर सब्जी बेचना आदि ऐसे कार्य है जो किये गये। उनके द्वारा जो संधर्ष किया गया वह अदभुत है। कोविड के समय उन्होंने यह साबित किया कि देश में माॅ बेटी से बढ़कर और कोई योद्धा नहीं है।

नारी सम्मान- इस पृथ्वी पर ऐसा कोई जीव नहीं जिसका संघर्ष जीवन से पहले यानि जन्म लेने से पहले ही आरंभ हो जाता है या ऐसा कहा जाये कि जन्म के लिये संघर्ष शुरू हो जाता है। इससे अधिक और क्या कहना है हम सभी जानते हैं, कि नारी ने अपना वर्चस्क कायम कर विश्व में तो क्या अंतरिक्ष में भी अंकित कर दिया है। भविष्य में भी उम्मीद की जा सकती है कि नारी के द्वारा देश निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता रहेगा। माना पुरूष बलशाली है पर जीतती हमेशा नारी ही है। जैसे सांवरिया के छप्पन भोग पर सिर्फ एक तुलसी भारी है। इस प्रकार हमने देखा है, कि नारी जीवन तो जन्म के पहले से लेकर मृत्यु तक चुनौतियों से ही भरा हुआ है। इस स्थिति में हम सब उनकी भावनाओं को ध्यान में रखकर उनको सम्मान, इज्जत व साथ दें ताकि वे भयमुक्त होकर अपने सपनों का संसार बना सके l

-कृष्णकांत शर्मा 

G News 24 : मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री ले सकते हैं शपथ !

 मप्र को मिल सकती है पहली महिला स्पीकर...

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री ले सकते हैं शपथ !

मध्यप्रदेश में प्रचचंड बहुमत मिलने के बाद नई सरकार गठन को लेकर भाजपा के भीतर कवायद शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान के हो पद पर बने रहने की संभावनाओं के बीच दो बड़ी खबरें मिल रही हैं। पहली यह कि मप्र को पहली बार महिला विधानसभा अध्यक्ष ( स्पीकर) मिल सकता है। सांसद रहीं सम्पतिया उइके, वरिष्ठ विधायक अर्चना चिटनीस के नाम सबसे ऊपर बताए जा रहे हैं। मप्र के संसदीय इतिहास में कोई महिला विधानसभा अध्यक्ष नहीं रहीं है। हालांकि 2003 और 2009 में जमुना देवी चार चार दिन के लिए सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पोकर) रहीं है।

सूत्रों के अनुसार 2024 को ध्यान में रखकर तय किए गए सीएम, राजस्थान में जहां वसुंधरा राजे सीएम की रेस में सबसे आगे मानी जा रही हैं. पार्टी एक बार फिर वसुंधरा राजे को मौका दे सकती है.  वहीं, मध्य प्रदेश में सीएम के लिए शिवराज सिंह चौहान पहली पसंद माने जा रहे हैं और उनको फिर मौका देने की तैयारी है. वहीं, बीजेपी छत्तीसगढ़ में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को मुख्यमंत्री बना सकती है. सूत्रों के अनुसार, सभी नामों पर फैसला हो चुका है, लेकिन आधिकारिक ऐलान अभी बाकी है.

दूसरी बड़ी खबर यह है कि मुख्यमंत्री के साथ यूपी की तर्ज पर दो उपमुख्यमंत्री बनाये जा सकते हैं। दिल्ली में इस पर चर्चा शुरू हो गई है। जहां तक मप्र में नेतृत्व परिवर्तन का प्रश्न है तो पहले ही पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का एलान कर गृहमंत्री अमित शाह इसके संकेत दे चुके है। हालाकि इस बात की भी संभावनाएं हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए शिवराज को ही बनाए रखा जाएगा। फिर भी यदि नए चेहरे पर दिल्ली शीर्ष नेतृत्व ने मन बनाया भी तो नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय ज्योतिरादित्य सिंधिया या प्रहलाद पटेल में से कोई हो सकता है ! 

भाजपा तीन राज्यों में मिले महाविजय अभियान को मई में प्रस्वचित लोकसभा चुनाव तक बरकरार रखने की तैयारी में जुट गई है। ऐतिहासिक 163 जीतने के बाद भाजपा संगठन का आत्मविश्वास हिमालयी हो गया है। अतः वह नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय भी कर सकता है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री शाह अपने निर्णयों में कई बार सबको चौंकाया है, अतः मप्र को लेकर ऐसा निर्णय हो तो अचरज्ञ नहीं होगा। मुख्यमंत्री पद के लिए शपथग्रहण इस्सरी सप्ताह 7-10 दिसम्बर तक संभव है। ज्यादा संभव है कि विधानसभा उपाध्यक्ष का पद भी भाजपा अपने पास हो रखेगी।

मंत्रिमंडल गठन की पहली किस्त में 25-28 मंत्री बनाए जा सकते हैं। नए चेहरों को ज्यादा जगह दी जाएगी जिससे वे फील्ड में पूरी क्षमता और शक्ति के साथ काम करें। वर्तमान सरकार के सीनियर मंत्रियों तथा कई बार मंत्री रहे विधायकों को आराम भी दिया जा सकता है। इनमें गोपाल भार्गव, बिसाहूलाल सिंह, मौजूदा सरकार के एक दर्जन मंत्री चुनाव हार गए हैं इसलिए नए चेहरों के लिए रास्ता खुल गया है। विधायक का चुनाव लड़ने बाले पांच सांसदों राच उदयप्रताप सिंह, रीती पाठक का को मंत्री बनाया जाना लगभग तय है। वहीं जबलपुर सांसद राकेश सिंह के अलावा गोपाल भार्गव, जगदीश देवड़ा, जयंत मलैया को स्पीकर बनाए जाने की चर्चा है।

नारी शक्ति की दिखेगी झलक

नवा मंत्रिमंडल कैसा होगा और उसमें किसे जगह मिलेगी इनदी अटकलों के बीच कड़ा जा रहा है कि हाईकमान इस बार महिलाओं को जहदा अहमियत मिलेगी। 5-8 महिलाएं हो सकती है।

पहली किस्त में 22-26 मंत्री 3 सांसदों का मंत्री बनना तय !

नए मंत्रिमंडल में मालवा-निमाह और महाकोशत क्षेत्र को सबसे अधिक तवज्जो दी जा सकती है क्योंकि मालवा- निमाह में भाजपा की पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 19 सीटें ज्यादा मिती हैं। यहां से 6-8 मंत्री आ सकते है। महाकौशल और बुंदेलखंड में 6-6 मंत्री हो सकते है। ग्वालियर चम्बल से 4 विधायक, विंध्य से 5-6 मंत्री हो सकते है। नर्मदपुरम से 2, मध्य क्षेत्र से 4 मंत्री बनाए जा सकते हैं।

मंत्रिमंडल के लिए क्षेत्रवार संभावित नाम

  1. ग्वालियर-चम्बल-प्रद्युम्न सिंह तोमर, नारायण सिंह कुशवाह, राकेश शुक्ला
  2. मालवा-निमाड़ तुलसी सिलावट, रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, अर्चना चिटनीस, उषा ठाकुर, निर्मला भूरिया, ओमप्रकाश सकलेचा, मोहन यादव, हरदीप सिंह ढंग, जगदीश देवडा, विजय शाह।
  3. विध्य क्षेत्र राजेन्द्र शुक्ला, रीती पाठक, मनीषा सिंह प्रदीप पटेल, मीना सिंह, कुवंर सिंह टेकाम ।
  4. माह कौशल से प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, प्रदीप जयसवाल गुरु, समातिया ऊईके, ओमप्रकाश धुर्वे, सद उदयप्रलप सिंह, संजय पाठक।
  5. बुदेलखंड- भूपेन्द्र सिंह, गोविन्द राजपूत, प्रदीप तारिया, हरिशंकर खटीक, बृजेन्द्र प्रल्प सिंह ललिता यादव, शैलेन्द्र जैन।
  6.  नर्मदापुरम - हेमन्त खंडेलवाल। 7.
  7. मध्य क्षेत्र विश्वास सारंग, सुरेन्द्र पटवा, कृष्णा गौर रामेश्वर शर्मा, विष्णु खत्री, प्रभुराम चौधरी।

G News 24 : जहाँ विज्ञान डगमगाता है, वहीं से आस्था की शुरूआत होती है

 ये बात बड़े बड़े वैज्ञानिक ओर अर्नाल्ड डिक्स जैसे लोग भी समझते है ...

जहाँ विज्ञान डगमगाता है, वहीं से आस्था की शुरूआत होती है 

जहाँ विज्ञान डगमगाता है। वहीं से आस्था की शुरूआत होती है। विज्ञान और धर्म विपरीत नहीं बल्कि पूरक है।  ये बात बड़े बड़े वैज्ञानिक ओर अर्नाल्ड डिक्स जैसे लोग तो समझते है लेकिन भारत मे ही कुछ अध-कचरे वामी नही समझते। विदेशी टनल एक्सपर्ट अर्नाल्ड डिक्स जितने बार भी टनल के अंदर गए और बाहर निकले, उतनी बार पास वापस स्थापित पूजा स्थल के आगे घुटनों पर बैठकर हाथ जोड़े और आंख बंद करके अरदास किया।

इन्हीं अमेरिकी एक्सपर्ट ने आते ही टनल के मुहाने से हटाए गए पूजा स्थल को वापस रखवाया था। कहा था कि हिमालय ने गुस्सा दिखाया है। उन्होंने मजदूरों को बंधक बनाया है। अब हिमालय ही जब चाहेगा, तब उनको छोड़ेगा। हुआ भी ऐसा ही। अमेरिकी मशीन आगर भी पहली बार किसी मिशन पर टूट गया और दरवाजे तक पहुंचकर भी सारे एक्सपर्ट लाचार हो गए थे।

अमेरिकी टनल विशेषज्ञ ने कहा था कि उन्होंने मां काली से एक डील की है। शायद अब वे उस आध्यात्म अनुभव को साझा करेंगे। आज भी अर्नाल्ड उस छोटे से चबूतरे वाले मंदिर के में देवी, भोलेनाथ और बाबा बौखनाथ की पूजा की और बहुत देर तक वहीं बैठे रहे।

 सबसे अजूबा तब हुआ, जब इसी पूजा स्थल के पीछे चट्टान पर पानी की धारा निकल गई। और उससे बाबा भोलेनाथ की आकृति सी बन गई। मौसम अचानक साफ हो गया। जबकि बारिश का अनुमान मौसम विभाग ने बता रखा था। उसे देखकर अर्नाल्ड ने कहा कि आज हिमालय और यहां के बाबा भोलेनाथ  खुशखबरी देने वाले हैं। एक दूसरे धर्म के प्रख्यात इंजीनियर द्वारा हिंदू धर्म की मान्यताओं को इस स्तर तक समझना और इज्जत देना काफी कुछ कह जाता है।

आप चाहे मोदी के समर्थक हो या मोदी के विरोधी, लेकिन आपको यह स्वीकार करना पड़ेगा, कि इस तरह का बचाव कार्य अभूतपूर्व है।  प्रधानमंत्री कार्यालय के पांच लोग 15 दिनों तक दिन रात घटनास्थल पर ही थे वहीं कंटेनर में रहते थे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हर रोज तीन-चार घंटे के लिए मौजूद रहते थे जनरल बीके सिंह नितिन गडकरी और कई अन्य मंत्री वहां अक्सर जाते थे और बचाव कार्य की समीक्षा करते थे। 

वायु सेना का विशेष विमान हैदराबाद भेज कर आगर मशीन मंगाई गई स्लोवेनिया  से विशेष विमान से दुनिया के सबसे बड़े बचाव विशेषज्ञ को बुलाया गया  .. एक खास तरह का प्लाज्मा कटर मनाने के लिए पहले टीम को हैदराबाद भेजा गया फिर विमान को अमेरिका भेजा गया वहां से खास तरह का प्लाज्मा कटर लाया गया। 

चार मशीन और रोबोट और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार स्विट्जरलैंड से विशेष विमान से मंगाए गए। घटनास्थल पर हेलीपैड और एक काम चलाउ रनवे भी बना दिया गया था। दुर्घटना स्थल पर अभिलंब ऑक्सीजन जनरेटर प्लांट लगा दिया गया। आप दिल पर हाथ रख कर सोचिए कि क्या कभी इतिहास में इस रेस्कयू  ऑपरेशन के पहले आपने इतना त्वरित ढंग से और इसकी ऑपरेशन सुना है। 

G.NEWS 24 : लक्ष्मी मौसी के स्वागत का उत्साह

धनतेरस पर विशेष...

लक्ष्मी मौसी के स्वागत का उत्साह

देश के पांच राज्यों में भले ही विधानसभा चुनाव का बुखार है लेकिन इन पांच राज्यों के साथ पूरे देश में सरस्वती की बहन यानि हमारी लक्ष्मी मौसी के आगमन की उत्सुकता के साथ ही उनके स्वागत की तैयारियों की धूम है। इस धूम में तंगी, बीमारी, महंगाई, भ्र्ष्टाचार और बेरोजगार जैसे ज्वलंत मुद्दों का कोई जिक्र नहीं है ।  किसी को आने वाले तीन दिनों तक इनकी फ़िक्र भी नहीं है। राजा हो रंक सबके सब सरस्वती मौसी के स्वागत कोई तैयारी पूरे उत्साह से कर रहे हैं। महाराष्ट्र वालों ने तो वसु  बारस  मानकर पांच दिन पहले से ही इस त्यौहार का श्रीगणेश कर दिया है। बाकी लोग धनतेरस  के साथ ये आगाज कर रहे हैं। दीपावली सचमुच एक बड़ा प्रकाश पर्व है। इसकी वजह से भारत के घर-घर में स्वच्छता अभियान चलता है। इतना कूड़ा करकट घरों से निकलता है की कभी-कभी तो कचरा ढोने और हटाने वाले स्थानीय निकाय भी हार मान जाते हैं। 

हमारे देश में वैसे भी कचरे की कोई कमी नहीं है। भारत में हर साल कितना कचरा निकलता है ये कोई नहीं जानता,लेकिन जो आंकड़े हैं वे कटे हैं की भारत में सालन 277  अरब किलो कचरा निकलता है। यानि हर व्यक्ति कम से कम एक साल में 205  किलो कचरे का विसर्जन करता है। इस कचरे में 34 लाख टन  कचरा अकेले प्लास्टिक का होता है और इसमें से भी कुल 30  फीसदी कचरा ही रीसाइकल हो पाता है। मजे की बात ये है कि  इस कचरे के बाद भी भारत में हर साल लक्ष्म मैया भी आतीं है। उनके आगमन पर देश में घर-घर रोशनी की जाती है। लिपाई -पुताई होती है। सब कुछ नया-नया करने के प्रयास होते हैं। लसखमी मैया की कृपा से भारत की इकॉनमी यानि अर्थव्यवस्था भले ही अभी तक पांच ट्रिलियन की न बन पायी हो ,लेकिन हमारी कोशिश जारी है। देश में पहली बार धनतेरस की तर्ज पर किताबें छापने और बेचने वाले ' किताब तेरस ' का आयोजन  कर रहे हैं।

 दअरसल भारत में धन तेरस पर कुछ न कुछ खरीदने की रीत है। जिसे जिस चीज की जरूरत होती है ,वो चीज खरीदता है। आदमी खरीदना तो चाँद-तारे भी है लेकिन उसकी जेब उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती। हमने बचपन में देखा है की हमारे घर में धनतेरस के दिन धातु का कोई न कोई बर्तन खरीदा जाता था। सबसे सस्ती चीज होती थी कटोरी,ग्लास,चमचा या पूजा के लिए तांम्बे के छोटे-छोटे बर्तन। आजकल धनतेरस पर बर्तनों के साथ ही और दूसरी तमाम चीजें खरीदी जातीं हैं। जिनके पास लक्ष्मी माँ की कृपा है वे बर्तनों के बजाय सोना-चांदी  से भी मंहगा डायमंड  यानि हीरे से बनी चीजें खरीदते हैं। अब धनतेरस पर इलेक्ट्रानिक उपकरण , रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले मंहगे उपकर। साड़ियां,कपडे,सजावट का सामान प्रमुखता और प्रचुरता से खरीदा जाता है। लेकिन मै देखता हूँ कि  चीनी सामान  की उपलब्धता के बावजूद आज भी मिटटी के दिए ,शक़्कर के बताशे और रंगीन खिलोने तथा चावल के पापकार्न यानि खीलें  ,कपास, लक्ष्मी जी का पन्ना, आज भी बिक रहा है। 

इस त्यौहार के मौके पर पुलिस और स्थानीय प्रशासन मिलजुलकर अपने गांव,शहर में फुटपाथ और सड़कें तक बेच देते हैं ताकि गरीब आदमी भी अपना कारोबार कर कमा-खा सके। हमारी देश में खरीद-फरोख्त के लिए ज्योतिषी और पंडित बाकायदा मुहूर्त निकालते है।  वे ये भी बताते हैं कि  किस राशि के जातक को धनतेरस के दिन क्या खरीदना चाहिए और क्या नहीं ? मुझे लगता है कि  ज्योतिषियों की भी बाजार से सांठगांठ है ,अन्यथा ये ज्योतिषी और उनके पंचांग दीपोत्स्व  पर पुष्य नक्षत्र की खोज न करते और कर भी लेते तो उस दिन मंहगा सामान खरीदने की सिफारिश बिक्लुल न करते। लेकिन ऐसा धड़ल्ले से हो रहा है। 

अखबार ज्योतिषियों के खरीद-फरोख्त मुहूर्तों का प्रचार करने के लिए भौंपू बने हुए हैं। भारत  के इस प्रमुख त्यौहारी सीजन में किसी की सेहत सुधरे या न सुधरे लेकिन हमारे अखबारों की सेहत और सूरत दोनों बदल जाती है। आजकल एक ही दिन में तीन-तीन अखबार आ रहे है।  इनकी कीमत भी ग्राहकों से वसूल की जाती है और इन अख़बारों में आधे से ज्यादा पन्नों में केवल कुछ  ज्वेलरों  बिल्डरों के विज्ञापन होते हैं। इस असल ज्योतिषयों ने सुझाव दिया है कि  धनतेरस पर  खरीदी करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्यों की ऐसा नहीं करने पर आप के द्वारा की जाने वाली खरीददारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

ज्योतिषी कहते हैं की धनतेरस पर आपको नुकीली और धारदार वस्तुएं.धनतेरस को नुकीली जैसे सूजी, पिन और धारदार जैसे कैंची, चाकू, छिलनी, इत्यादि नहीं खरीदना चाहिए मान्यता है इससे घर में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है धनतेरस के दिन कांच से बनी वस्तुओं को नहीं खरीदना चाहिए कांच में राहु का स्थान यानी राहु से संबंधित है इस लिए इसकी खरीदी शुभ नहीं होती. अब सवाल ये है कि  जनता देवताओं की फ़िक्र करे या अपनी जरूरतों की ? ज्योतिषी कहते हैं कि धनतेरस में लोहे की खरीदी करने से धन के देवता कुबेर रूष्ट हो जाते हैं इसलिए लोहे से निर्मित वस्तुओं की खरीदी से परहेज़ करना चाहिए। वे कहते हैं कि धनतेरस को प्लास्टिक की वस्तुओं की खरीददारी से बचें इस दिन किसी धातु की खरीदी ही करें अन्यथा धनतेरस की खरीददारी का कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा.ज्योतिषियों का सुझाव है कि धनतेरस के एक दिन पहले ही तेल या घर खरीद लें क्यों की धनतेरस को तेल और घी की खरीदी को अशुभ माना गया है. 

ज्योतिषी लगता है अपना पंचांग जनता कि लिए नहीं बल्कि व्यापारियों कि लिए बनाते है। वे कहते हैं  कि  धनतेरस को सोना, चांदी के आभूषण, सिक्के खरीदने चाहिए भूल कर भी आर्टिफिशियल आभूषण नहीं खरीदें यह अशुभ होता है.पंडित जी धनतेरस पर आपको   कांस्य, पीतल, तांबा, चांदी आदि के बर्तन खरीदने की सलाह देते हैं साथ ही चेतावनी भी देते हैं कि  आप  स्टील के बर्तन खरीदी से बचें और एल्युमुनियम, लोहे से निर्मित बर्तन भूल कर नहीं ले। पंडितों का मश्विरा होता है कि  बाजार से बर्तन खरीददारी के बाद घर के अंदर खाली बर्तन नहीं लाएं उसमें अंदर कुछ भर के लाएं जैसे अनाज या कोई अन्य खाद्य वस्तु। मेरा चूंकि खरीद-फरोख्त करते समय ज्योतिषियों से अधिक विश्वास अपनी जेब पर होता है इसलिए मै अपनी जेब की सुनता हूँ ,पंडित की नही। आपकी आप जाने। मेरी और से आप सभी को धनतेरस की शुभकामनाएं।

- राकेश अचल

G News 24 : विकृत बगावती लड़ाई में छिपी है सत्ता की मलाई !

 चुनाव में विरोध और बग़ावत के मामलों में भी दोनों दलों में कड़ी टक्कर हो रही है...

विकृत बगावती लड़ाई में छिपी है सत्ता की मलाई !

ग्वालियर। चुनाव में विरोध और बग़ावत के मामलों में भी दोनों दलों में कड़ी टक्कर हो रही है। दोनों दलों में बगावती सायरन चुनावी विस्फोट के संकेत कर रहे हैं। दोनों दलों के सुरक्षा कवच धराशायी हो गए से लगते हैं। अनुशासन, सिद्धांत और विचारधारा एक अदद टिकट के लिए अपनी इज्जत बचाने मारे-मारे फिर रहे हैं। बाप-बेटों की राजनीति ने सुरक्षा सिस्टम की चूले हिला दी हैं। चुनाव में मुख्य प्रतिद्वंद्वियों के बीच बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों का भविष्य भितरघात की भेंट चढ़ गया है। 

असंतुष्ट न तो किसी भी बात को सुनने को तैयार दिख रहे हैं और ना ही उनको मनाने वाले नेताओं में आस्था और विश्वास का नैतिक अधिकार दिख रहा है। लोकतंत्र के भाग्य विधाता बनने के लिए लिप्सा, लालच और लालसा आम लोगों की इन धारणाओं को बल दे रही है कि राजनीति सबसे बिकाऊ और कमाऊ धंधा है। एक बार जिन्हे इसकी लत लग गई फिर वह दल, विचारधारा तो क्या परिवार और जीवंत रिश्ते भी कुर्बान करने को तैयार हो जाते हैं। 

इस चुनाव में पहली बार होशंगाबाद में दो सगे भाई मैदान में हैं। सागर में जेठ और बहु आमने -सामने हैं। देवतलाब में चाचा और भतीजे मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इसमें भी ख़ुशी ये है कि जीते कोई भी विधायकी तो परिवार में ही रहेगी। रिश्तेदार, परिवार, सगे, संबंधियों के नजरिये से देखा जाये तो न मालूम कितने प्रत्याशी चुनावी मैदान में दोनों दलों ने उतारे हैं। 

विधानसभा प्रत्याशियों में तो उम्र की कोई सीमा ही नहीं हैं। चुनाव ही जातिवाद की जड़ों को मजबूती प्रदान करते हैं। महिला और ओबीसी की भागीदारी की बातें किसी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी हैं। जिस ढंग से टिकट दिए और बदले गए वह भी पार्टियों में संगठन और सुरक्षा सिस्टम की पोल खोल रहा है। 

मध्यप्रदेश में पिछले जनादेश के बाद बगावत के उपरांत हो रहे इस आम चुनाव में बग़ावत की बहार दिखाई पड़ रही है। किसी दल में ज्यादा या कम बग़ावत आंकना बहुत कठिन है। प्रदेश का कोई अंचल ऐसा नहीं जहां बग़ावत की बमबारी न हो रही हो। ग्वालियर-चंबल में जहां कांग्रेस अपने लिए बड़ी संभावनाओं की आशा कर रही थी वहां टिकट वितरण में गड़बड़ी के कारण विकट स्थिति निर्मित हो गई है। 

इस अंचल में बढ़त देखने वाली कांग्रेस के सामने अपनी पुरानी उपलब्धि दोहराना भी अब तो चुनौती लग रही है। शिवपुरी से वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट नहीं मिलना और केपी सिंह की पिछोर सीट बदलने के पीछे किसकी राजनीति काम कर रही है इस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कांग्रेस के जानकार सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो दोनों दलों में कई सीटों पर एक दूसरे के तालमेल को खोजा जा सकता है। 

वीरेंद्र रघुवंशी को कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के पीछे क्या सिंधिया परिवार की कोई राजनीति काम कर रही है? चुनाव के दौरान इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप सामने आ सकते हैं। सरकार बदलने के बाद उपचुनाव में पराजित जिन प्रत्याशियों की ओर से टिकट न मिलने पर विरोध दिखाई दे रहा है उसे नैतिकता की दृष्टि से ठीक नहीं कहा जा सकता। कई ऐसे प्रत्याशियों को मौका मिला है जिन्हें पिछले चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था। 

लहरविहीन और मुद्दाविहीन इस चुनाव में प्रत्याशी के चेहरे पर काफी फैसले हो सकते हैं। असंतोष और भितरघात की संभावनाएं कई सीटों पर चुनावी नतीजों में उलटफेर कर सकती हैं। जो राजनीतिक दल अगले एक सप्ताह में अपने असंतोष को नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त कर लेगा, उसका चुनावी भविष्य उज्जवल हो सकेगा। प्रचार और चुनावी प्रबंधन में बीजेपी आगे दिखाई पड़ रही हैं। कांग्रेस में असंतोष मैनेजमेंट की कार्रवाई को प्रभावी भूमिका निभानी होगी।

एमपी की पॉलिटिक्स क्या उत्तर भारत के दूसरे राज्यों की तर्ज पर अशांति की तरफ बढ़ रही है? राजनीतिक दलों की भूमिका क्या स्वार्थी राजनीति को बढ़ावा दे रही है? एमपी का यह चुनाव भविष्य के मध्यप्रदेश का आधार निर्धारित करेगा। राजनीतिक मूल्यों के प्रति स्पष्टता और राज्य के प्रति प्रतिबद्धता ही राज्य का आत्म विश्वास बढ़ाएगी। हमारे लीडर्स को केवल अपनी वाह-वाही नहीं बल्कि कमजोरियों पर भी बात करनी चाहिए। 

राज्य तभी आगे बढ़ेगा जब राजनीति पर भरोसा बढ़ेगा। भरोसा तभी मजबूत होगा जब इस पर बात करते समय राजनीति शीशे की तरह साफ़ होगी। सत्ता की मलाई अगर लड़ाई का आधार है तो फिर बगावत और भितरघात राजनीतिक जीवन की मज़बूरी बनी ही रहेगी।

G.NEWS 24 : यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा और इन्होंने अपनी "सोच दूषित" नहीं की

चार हज़ार (4000) साल से यहूदियों ने अपने धर्म को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा है !

यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा और इन्होंने अपनी "सोच दूषित" नहीं की

यहूदियों ने अपने धर्म को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा, क्योंकि उनका धर्म ही उनकी "नस्ल" है। आप सिर्फ़ जन्म से यहूदी हो सकते हैं, यहूदी धर्म कभी भीड़ का धर्म नहीं रहा और इन्होंने अपनी "सोच दूषित" नहीं की। यहूदियों के भीतर ये आत्मविश्वास कहां से आया, ये बताना तो संभव नहीं है मगर स्वयं को सौभाग्यपूर्ण और उन्नत नस्ल बताने का ये दावा उनका कभी "झूठा" साबित नहीं हुआ है। 200 से अधिक विज्ञान का नोबेल जीतने वाली ये मुट्ठी भर लोगों की कौम उन्नत सोच और बेहतर नस्ल का दावा ऐसे ही नहीं करती है। गूगल से लेकर फेसबुक तक बनाने वाले यहूदी अगर आज न होते तो शायद दुनिया वैसी न होती जैसी अभी है। 

यहूदी वैज्ञानिक आइंस्टीन की वजह से ही आज के एटम बॉम से लेकर राकेट और सुदूर अंतरिक्ष का सफर हमारे लिए संभव हो पाया है.. इसलिए जो कौम आपको इतनी ऊंचाई तक पहुंचा सकती है वो हिंसक क्रूर और बेवकूफ़ नस्लों को  काबू में करने का हुनर भी जानती है। आतंकवाद से दुनिया अभी तक जिस तरह से निपट रही थी वो नाकाफ़ी था.. इसलिए प्रकृति किसी न किसी को खड़ा ही करेगी जो अगुवाई करेगा और तमाम नस्लों को आजादी दिलाएगा.. 

हमास जो कर रहा है वो भी ज़रूरी है क्योंकि वो ये अगर नहीं करेगा तो सारी दुनिया ऐसे ही सोती रहेगी और ये "नासूर" समूची पृथ्वी को लील लेगा.. हमास यहूदियों और बाकी लोगों को भड़काए, ये ज़रूरी है.. क्योंकि अब "फाइनल काउंटडाउन" का समय है। प्रकृति ने एक मुट्ठी बराबर देश को ऐसे नहीं "बेलगाम" नस्लों के पास जगह दी है.. प्रकृति के नियम बड़े "क्रूर" हैं!

G.NEWS 24 : कांग्रेस की वर्तमान राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व हुआ कमजोर !

जब से सतीश सिकरवार विधायक बने और शोभा  सिकरवार महापौर बनीं हैं तभी से...

कांग्रेस की वर्तमान राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व  हुआ कमजोर !

ग्वालियर। ग्वालियर कांग्रेस की राजनीति में अशोक सिंह का वर्चस्व हुआ करता था । 1 साल पहले तक तो उनके बारे में धारणा थी कि वह किसी को टिकट दिलवा भी सकते हैं और अपने लिए भी आसानी से ले सकते हैं । लेकिन वर्तमान समय में कांग्रेस की विधानसभा प्रत्याशियों की सूची में उनका कहीं नाम नहीं है । सूत्रों की माने तो वे ग्वालियर ग्रामीण और पोहरी से  प्रयासरत थे । पार्टी ने दोनों ही स्थान पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं । यह भी सुनने में आ रहा है कि अशोक सिंह अब लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं । वहीं दूसरी और कांग्रेस से अपुष्ट खबरें कई बार आ चुकी हैं कि तीन बार चुनाव हार चुके पार्टी नेताओं को इस बार टिकट नहीं मिलेगा । 

हालांकि यह स्पष्ट  नहीं है कि यह फार्मूला लोकसभा चुनाव के लिए है या विधानसभा चुनाव के लिए ! एक समय था जब अशोक सिंह के गांधी रोड बंगले पर ग्वालियर कांग्रेस के छोटे-बड़े नेताओं की भीड़ हुआ करती थी ।  जब से सिंधिया जी भाजपा में आए ,जब से सतीश सिकरवार कांग्रेस  विधायक बने और जब से शोभा  सिकरवार कांग्रेस की पहली बार ग्वालियर महापौर बनीं , अशोक सिंह का ग्वालियर कांग्रेस की राजनीति से दबदबा कम होता गया । अब तो कहा जाता है कि सतीश सिकरवार ही  ग्वालियर कांग्रेस हो गए हैं। ग्वालियर शहर कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा भी  सतीश के साथ ही दिखते हैं। हालांकि अपने समर्थक प्रभुदयाल जोहरे को ग्वालियर ग्रामीण अध्यक्ष बनाने में अशोक सिंह सफल हो गए थे। 

अशोक सिंह वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष हैं। प्रदेश कांग्रेस के कमलनाथ , दिग्विजय सिंह , अरुण यादव , कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह राहुल और केन्द्र में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक अशोक सिंह का अच्छा खासा प्रभाव है लेकिन उनका यह प्रभाव ग्वालियर अंचल की वर्तमान राजनीति में दिखाई नहीं देता है। अशोक सिंह की कांग्रेस में कितनी चलती थी , इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जब कमलनाथ सरकार बनते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की असहमति के बावजूद उनको मध्यप्रदेश एपेक्स बैंक का प्रशासक बनाकर केबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया था। 

तभी से सिंधिया खेमे में अशोक सिंह खटकने लगे थे और बाद में सबने देखा कि सिंधिया के भाजपा में आते ही सिंधिया ने सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान अशोक सिंह को पहुंचाया था। अशोक सिंह भी सिंधिया के प्रति अपने भाषणों में आक्रामक कभी  नहीं रहे। इसलिए भी उनकी जनाधार वाली राजनीति धीरे-धीरे कम होती गई। अब देखना यह है कि ३ बार लोकसभा चुनाव हार चुके अशोक सिंह को अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी मौका देती है या नहीं ये आनेवाला वक्त ही तय  करेगा। 

G News 24 :केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपनी विधानसभा दिमनी में पुत्रों के भरोसे छोड़ा चुनाव प्रचार !

 टिकट मिलने के बाद से अब तक नहीं गए दिमनी !

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपनी विधानसभा दिमनी में पुत्रों के भरोसे छोड़ा चुनाव प्रचार !

ग्वालियर।  मध्य प्रदेश में आचार संहिता लगने के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारियां अपनी गति पकड़ रही है।भारतीय जनता पार्टी ने तीन सूचियाँ प्रत्याशियों की जारी कर दी है ।इन सूचियों में सांसद और केंद्रीय मंत्रियों के नाम विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए शामिल हैं।केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मुरैना की दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे। तोमर का टिकट फ़ाइनल हुए दो सप्ताह से भी ज़्यादा बीत चुके हैं, लेकिन वह अभी तक अपनी विधानसभा में एक भी बार नहीं गए हैं। मुरैना के राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है।इधर केन्द्रीय मंत्री तोमर के पुत्रों ने दिमनी विधानसभा में चुनाव प्रचार करना शुरू कर दिया है।इससे यह अटकलें लगायी जा रही है कि नरेन्द्र सिंह तोमर टिकट मिलने से प्रसन्न नहीं है। मुरैना के एक राजनैतिक विश्लेषक बताते हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर अपने बड़े पुत्र को टिकट दिलाना चाहते थे और वह आश्वस्त रहे कि वह बेटे को टिकट दिलाने में क़ामयाब हो जाएंगे पर ऐसा संभव नहीं हुआ ।भाजपा आलाकमान ने केंद्रीय मंत्री को ही मुरैना की सभी छह सीटों के जीतने का टारगेट देकर उन्हें भी मैदान में उतार दिया। इस बात से वह संतुष्ट नहीं है ऐसा लोगों का कहना है ।

बता दें कि दिमनी कांग्रेस का गढ़ है। वर्ष 2008 में आखिरी बार भाजपा को यहां से जीत मिली थी। इसके बाद से वह जीत के लिए हाथ-पैर मार रही है। चूँकि मुरैना क्षत्रीय बाहुल्य क्षेत्र है। ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर को कांग्रेस के अभेद किले में भेजकर सभी  सभी को हैरानी प्रकट करने का मौक़ा दे दिया है।भारतीय जनता पार्टी का वरिष्ठ नेतृत्व आश्वस्त है कि नरेन्द्र सिंह तोमर के प्रभाव से वह कांग्रेस की इस अवैध क़िले को तोड़कर रख देगी। मुरैना और दिमनी विधानसभा क्षेत्र के लोगों ने बताया कि नरेन्द्र सिंह तोमर दिमनी में शिवमंगल सिंह तोमर और गिर्राज दंडौतिया को टिकट दिलाते थे । यह दोनों भी तोमर के ख़ास समर्थक हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का सूची में नाम आने से पहले यह दोनों नेता भी टिकट मिलने को लेकर आश्वस्त थे और तैयारियां भी शुरू कर चुके थे लेकिन अपने नेता को टिकट मिलने के बाद इनके चुनाव लड़ने के मंसूबे पर पानी फिर गया है। अब भारी मन से ये नरेंद्र सिंह तोमर का चुनाव प्रचार और सहयोग करेंगे,  लेकिन असल में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाला समय ही बताएगा।इनमें गिर्राज 2018 में जीते थे और उप चुनाव में हार गए थे।

 प्रतिहार गुर्जर विवाद से भी पड़ेगा चुनावों पर असर उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से ग्वालियर अंचल में गुर्जर प्रतिहार विवाद देखा जा रहा है।इसको लेकर कई बार क्षत्रीय और गुर्जर समाज आपस में भिड़ चुके हैं।मामला न्यायालय के समक्ष है। लेकिन अब तक ऐसा कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आ सका। इससे एक समाज काफ़ी आक्रोशित बताया जा रहा है।ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को नाराज समाज के वोट मिलेंगे इस पर संशय के बादल हैं। बता दें कि पूर्व के लोकसभा चुनाव में हरियाणा के रहने वाले पूर्व विधायक करतार सिंह भड़ाना को मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी घोषित किया था।इस सीट पर पहले बसपा से डॉ रामलखन कुशवाहा के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन  जिम्मेदारी करतार सिंह भड़ाना को दे दी गई।इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। भड़ाना को गुर्जर समाज ने भर -भरकर वोट दिये।लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर ने बाज़ी मारी। वे एक लाख से ज़्यादा वोटों से लोकसभा चुनाव जीते थे।पर उनकी जीत में गुर्जर समुदाय के वोटों का प्रतिशत बहुत ही कम था।गुर्जर प्रतिहार विवाद के कारण गुर्जरों के वोट भाजपा को मिलेंगे इस पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है।