G News 24 :9 साल में भी नहीं बन पाया ग्वालियर शहर स्मार्ट !

नगर निगम और स्मार्ट सिटी के बीच फंस गया है शहर का विकास...

9 साल में भी नहीं बन पाया ग्वालियर शहर स्मार्ट !

ग्वालियर। ग्वालियर को स्मार्ट सिटी में शामिल हुए लगभग 9 वर्ष का समय व्यतीत होने को है लेकिन अभी तक ग्वालियर स्मार्ट सिटी नहीं बन पाया है यह एक कड़वी सच्चाई है और इस सच्चाई से हर एक व्यक्ति वाकिफ है। देश का करोड़ों रुपया स्मार्ट सिटी का सुनहरा सपना दिखाकर पानी की तरह बहाया जा रहा है। लेकिन फिर भी पिछले 9 वर्षों में शहर की यातायात व्यवस्था अभी भी बे-पटरी है। 

आज भी सड़कों पर ट्रैफिक के कारण जाम है धुआं है धूल है। केई स्थान पर गैर तकनीक के सड़कों पर डिवाइडर लोगों को रॉन्ग साइड चलने पर मजबूर करते हैं क्योंकि जहां कट होना चाहिए वहां कट नहीं दिए गए जहां कट नहीं होना चाहिए वहां कट दिए गए हैं इस वजह से भी यातायात बाधित हो रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति दयनीय है। विक्रम-ऑटो चालक यात्रियों से मनमाना किराया वसूलते हैं। कोई देखने वाला नहीं है। प्रदेश की सबसे बड़ी गौशाला यहां आदर्श गौशाला होने के बावजूद सड़कों पर आवारा जानवरों का जमावड़ा है। 

अमृत योजना का घोटाला सभी के सामने है तीन मंजिल ऊपर पानी पहुंचाने की दावा करने वाली आवृत्ति योजना तीन मंजिल तो छोड़िए एक मंजिल पर भी पानी नहीं पहुंच पाई है और कहीं-कहीं तो अमृत-1 के तहत डाली गई पानी की लाइनों का मिलन में लाइन से हुआ ही नहीं है जिससे लोगों को पानी की सप्लाई भी नहीं मिल रही है। पहले का किडनी क्रियान्वन ठीक से हुआ नहीं और अब अमृत-2 ले आए। अमृतवाण की जितनी भी लाइन डाली गई जब भी उनकी टेस्टिंग होती है या पानी प्रेशर के साथ सप्लाई होता है तो उन का बूम करके फट जाना एक प्रश्न चिन्ह लगता है। इससे सड़के भी खराब हो रही है। और सरकार का पैसा भी बर्बाद जा रहा है।

स्ट्रीट लाइटों की बात की जाए तो अधिकतर समय अधिकतर क्षेत्र की लाइट खराब ही दिखाई देती हैं जब उनकी सुधरवाने की बात की जाती है तो नगर निगम और स्मार्ट सिटी एक दूसरे पर मामले को टालते हैं। स्वर्णरेखा की बात की जाए तो इसे लेकर तो हाई कोर्ट भी बहुत कुछ कह सका है कह चुका है इसलिए हम इस पर बात नहीं करेंगे।

अब बात की जाए स्मार्ट सिटी द्वारा किए गए कार्यों की तो स्मार्ट सिटी ने अभी तक जो एकमात्र कार्य किया है वह है महाराज बड़े की बिल्डिंगों का कायाकल्प और सड़क खोदकर बनाया गया फुटपाथ लेकिन इससे भी ना तो ग्वालियर की पब्लिक को ना ही वहां के दुकानदारों को कोई विशेष लाभ हुआ है। थीम रोड यानी कटोरा ताल रोड पर अच्छी वाली सड़कों को फुटपाथों को तोड़कर उखाड़ कर डक्ट बनाकर नई सडक डाली गई। अभी कुछ दिन पहले बारिश हुई तो डक्ट में पानी गया ही नहीं। ये तो सड़कों पर ही रहा तो फिर, खर्च किए गए करोड़ों रुपए व्यर्थ ही बर्बाद हो गये।

यह सब काम तो पहले भी होते रहे हैं और नगर निगम इन कार्यों को बखूबी करवाता भी रहा है। और मेरे ख्याल से जब शहर विकास से संबंधित कार्य अकेले नगर निगम के जिम्मे थे, तब ज्यादा बेहतर तरीके से यह कार्य हो रहे थे। लेकिन स्मार्ट सिटी के आने के बाद कार्यों का स्तर एक दूसरे पर टालम-टोली के चलते लगातार गिरता ही जा रहा है। स्मार्ट सिटी द्वारा कराए जा रहे कार्यों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ बड़े लोगों को खुश करने के लिए सिर्फ उन्हीं के क्षेत्रों में विकास कार्य किये जा रहे हैं जहां इन वीआईपीस का मूवमेंट रहता है रहता है । शहर के बाकी के क्षेत्र से, लोगों की जरूरतों,समस्याओं आदि को स्मार्ट सिटी नजर अंदाज करते हुए काम कर रही है।

इसी प्रकार चौराहों की छतरियों उनके आसपास के पुराने फुटपाथों को तोड़ना, पुरानी टाईलस को या लाल पत्थर को हटाना उसके स्थान पर नई टाईलज्स लगाना या सफेद पत्थर लगाना। पलकों की ग्रिल या रेलिंग हटाना और दूसरी लगाना।  पहले साइकिल ट्रैक को बनाना फिर उसे तोड़कर फुटपाथ में बदलना‌। स्मार्ट सिटी के पास क्या सिर्फ काम रह गया है। इतना ही नहीं पाल्यूशन मोनीटरिंग मशीन,वाटर एटीएम, शहर के बड़े चौराहे पर एलइडी डिस्पले बोर्ड, ट्रैफिक सिग्नल आदि कितने बढ़िया ढंग से कम कर रहे हैं यह किसी से छुपा नहीं है। तो फिर ऐसी स्मार्ट सिटी का क्या फायदा। 

शहर का विकास नगर निगम और स्मार्ट सिटी आपस में मर्ज होकर केवल नगर निगम के रूप में कार्य करें तो शहर का विकास ज्यादा बेहतर तरीके से किया जा सकता है। क्योंकि नगर निगम में विकास कार्यों के लिए जनप्रतिनिधियों की जवाब देही तय रहती है। जनप्रतिनिधियों को यह पता होता है कि किस क्षेत्र में किस प्रकार के विकास कार्य की जरूरत है कौन सा कार्य जरूरी है और कौन सा गैर जरूरी। उसी हिसाब से विकास कार्यों का रोड मैप बनाया जाता है। जबकि स्मार्ट सिटी में केवल अधिकारी हैं जिन्हें जमीनी वास्तविकता का ठीक से पता नहीं होता की कौन से कार्य जरूरी है कौन से गैर जरूरी। जब इस बात को ध्यान में रखकर कार्य किए जायेंगे तो पैसे की बर्बादी रुकेगी। पैसे की फिजूल खर्ची रुकेगी पैसा सही तरीके से इस्तेमाल होगा तो पैसों की कमी भी,विकास कार्यों के आड़े नहीं आएगी।

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