'डेथ रेलवे',ट्रैक पर आज भी दौड़ती है ट्रेन...
एक ऐसा रेलवे ट्रैक जिसे बनाने में चली गईं 1.20 लाख लोगों की जान,उसे 'डेथ रेलवे'कहा जाता है !
दुनिया में किसी की भी देश की तरक्की का रास्ता उसके ट्रांसपोर्टेशन पर निर्भर करता है. जिस देश का परिवहन जितना अच्छा होगा उसकी तरक्की उतनी तेजी से होगी है. इसलिए हर देश अपने देश में रेल लाइनों को बिछाने पर सबसे ज्यादा जोड़ देते हैं.चाहे पहाड़ हो या रेगिस्तान, समंदर हो या जंगल...ट्रेन कोने-कोने से गुजरती है, लेकिन जिस रेलवे लाइन की बात आज हम कर रहे हैं, उसकी कहानी आपके रोंगटे खड़ी कर देंगी. इसकी कहानी इसकी भयानक है कि इसे डेथ रेलवे का नाम दे दिया गया .
डेथ रेलवे की दर्दनाक कहानी
थाईलैंड और बर्मा को जोड़ने वाली रेलवे रूट को 'डेथ रेलवे' का नाम दिया गया. 415 किलोमीटर लंबे इस रेलवे ट्रैक को बनाने में 1.20 लाख लोगों की जान चली गई. ये रूट इतना खतरनाक है कि यहां काम करने वाले आधे लोग भी अपने घर वापस लौट नहीं पाए. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान साल 1942 में जापान ने थाईलैंड और बर्मा को जोड़ने के लिए इस रेलवे लाइन को बनाने का फैसला किया था.
थाइलैंड और बर्मा तक जरूरी सामान पहुंचाने के लिए बनाया था डेथ रेलवे
दरअसल समुद्री मार्ग से थाइलैंड और बर्मा तक जरूरी सामान पहुंचाने के लिए जहाजों को 3200 किलोमीटर का समुद्री सफर करना पड़ता था, जो बेहद खरतनाक और खर्चीला था. इंस खर्च को कम करने के लिए जापाने ने थाइलैंड के बैंकॉक से बर्मा के रंगून तक रेलवे लाइन बिछाने का फैसला किया. इस रेलवे लाइन को बनाना आसान नहीं था, क्योंकि रास्ते में खतरनाक जंगल, पहाड़ी, नदी-नाले थे. जापान हर हाल में इस रेल लाइन को बनाना चाहता था. साल 1942 में इस रेलवे लाइन को बनाने का काम शुरू कर दिया गया.
कैदियों ने बनाया रेलवे लाइन
जापान ने इसके लिए कैदियों का इस्तेमाल किया. थाईलैंड, चीन, इंडोनेशिया, बर्मा, मलेशिया और सिंगापुर समेत कई देशों कैदियों को काम पर लगाया गया. 2.40 लाख कैदियों को रेलवे के काम पर लगाया गया. जापान से सैनिक कैदियों के साथ जानवरों जौसा व्यवहार करते थे. जापानी सेना उनसे रात-दिन काम करवाते थे. हैजा, मलेरिया, पेचिश, भुखमरी और थकान ने मजदूरों की जिंदगी लील ली. 17 अक्टूबर 1943 को बनकर तैयार हो गया.
मारे गए आधे लोग
इस रेलवे लाइन को बनाने में 2.40 लाख कैदियों को लगाया गया, लेकिन आधे लोग भी वापस नहीं लौटे. कोई जापानी सेना के जुल्म से तो हादसे से मर गया. जापान के दुश्मनों ने इस रेलवे लाइन के निर्माण में बाधा डालने को कई बार हमले किए. जिससे बड़ी संख्या में मजदूर मारे गए. काम पर लगे लोगों में से आधे लोग यानी 1.20 लाख लोग मौत के मुंह में समा गए.
आज भी दौड़ती है ट्रेन
इस डेथ रेलवे को देखने के लिए आज भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. वर्तमान में इस रेलवे रूट के कंचनबुरी के उत्तर में नाम टोक तक रेल रूट पर ट्रेनें दौड़ती हैं . वहीं कुछ किलोमीटर का रुट बंद है, लेकिन इस रेलवे लाइन ने लोगों रेल निर्माण के काले अध्याय की खुलासा कर दिया. जिसे बनाने में क्रूरता की हदें पार की गई.
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