एक ही व्यक्ति को बार-बार मरा हुआ बताकर...
नियम का गलत फायदा उठाकर झूठी मौतों को बनाया कमाई का ज़रिया !
सिवनी जिले की केवलारी तहसील में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। यहां कुछ लोगों को झूठे तरीके से सांप के काटने जैसी घटनाएं बताकर मृत घोषित कर दिया गया, ताकि सरकार से मिलने वाला 4 लाख रुपये का मुआवजा फर्जी तरीके से लिया जा सके। कोष और लेखा विभाग के संयुक्त निदेशक रोहित कौशल ने बताया कि जांच में सामने आया है कि अगर किसी की मौत सांप काटने या नदी में डूबने से होती है, तो सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है। इसी नियम का गलत फायदा उठाकर कई फर्जी मौतों के दस्तावेज तैयार किए गए और कोषालय से पैसे निकाल लिए गए। यह सब एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया।
जांच अधिकारियों के मुताबिक, यह फर्जीवाड़ा साल 2019 से 2022 के बीच किया गया है। इस दौरान 47 अलग-अलग लोगों के बैंक खातों में करीब 11 करोड़ रुपये का मुआवजा जमा कराया गया। ये रकम गलत तरीके से सांप के काटने या हादसों से हुई नकली मौतों के नाम पर ली गई। मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के मलारी गांव के संत कुमार बघेल को सरकारी रिकॉर्ड में मरा हुआ दिखाया गया है, जबकि वे जिंदा हैं। संत कुमार बताते हैं कि उन्होंने खुद ये सुना कि उनके नाम पर लाखों रुपये का मुआवजा लिया गया है, जबकि उन्हें इसका कुछ नहीं मिला।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि ऐसे झूठे मामलों की कड़ी जांच हो और दोषियों को सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई इस तरह की धोखाधड़ी न कर सके। उनके चाचा ने भी कहा कि कोई सर्पदंश (सांप का काटना) नहीं हुआ है और संत कुमार आज भी 75 साल की उम्र में जीवित हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां एक ही व्यक्ति को बार-बार मरा हुआ बताकर फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाए गए और सरकार से मुआवजा लिया गया। जैसे कि द्वारका बाई नाम की महिला के नाम पर 28 बार मुआवजा लिया गया, जबकि गांव के लोगों और सरपंच के मुताबिक इस नाम की कोई महिला गांव में कभी रही ही नहीं।
श्रीराम नाम के व्यक्ति के नाम पर भी फर्जी तरीके से मौत दिखाई गई, जबकि जामुनपानी गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव में इस नाम का कोई नहीं रहता। इसी तरह सुकतारा गांव में एक व्यक्ति विष्णु प्रसाद के नाम पर भी मुआवजा लिया गया, जबकि गांव वालों ने बताया कि ऐसे नाम का कोई व्यक्ति वहां कभी नहीं रहा। इन घटनाओं से साफ है कि फर्जी नाम और झूठी मौतों के आधार पर करोड़ों का मुआवजा लिया गया। अब सवाल ये है कि सरकारी रिकॉर्ड में इतनी बड़ी गड़बड़ी आखिर कैसे हुई और इसमें किन अधिकारियों की मिलीभगत थी?
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