G News 24 : भारत ने पाकिस्‍तान में गिराए बम,गोले और मिसाइल गिराकर मचाई तबाही !

 असर दिखा चीन -अमेरिका पर, हिल गईं अरबों डॉलर की कंपनियां...

भारत ने पाकिस्‍तान में गिराए बम,गोले और मिसाइल गिराकर मचाई तबाही !

पहलगांव का बदला भारत ने ऑपरेशन सिन्दूर चलाकर पाकिस्‍तान में गिराए बम,गोले और मिसाइल गिराकर भारी तबाही  मचाई मचा दी थी ! भारत ने जिस तरह से स्वदेशी हथियारों से चीन और अमेरिका के जेट और पकिस्तान के एअर डिफेंस सिस्टम को बे-दम कर दिया था ,इसका सीधा असर दिखा चीन -अमेरिका पर, इनकी हथियार बनाने वाली अरबों डॉलर की कंपनियां हिल गईं। एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है कि अमेरिकी डिफेंस फील्ड में बदलाव करने में सालों और कभी-कभी दशक लग जाते हैं, जिसकी एक वजह ये भी है कि उनके हथियारों की लागत बहुत ज्यादा है.

ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों में पूरी दुनिया ने भारत की बढ़ती सैन्य ताकत को देखा है. पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना ने जिस तरह सटीक कार्रवाई कर उन्हें तबाह कर दिया, ये देखकर सैन्य हथियार बनाने वाली अमेरिका की बड़ी-बड़ी कपंनियों के पसीन छूट गए हैं. अमेरिकी एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को देखते हुए अमेरिका को तत्काल रक्षा सुधार की जरूरत है. 

Small Wars Journal में जॉन स्पेंसर और विनसेंट वॉयला ने मेक इन इंडिया का जिक्र करते हुए लिखा कि साल 2014 में डिफेंस सेक्टर में घरेलू उत्पाद बनाने और आत्मनिर्भरता लाने के लिए यह कदम उठाया गया और 10 साल बाद ऑपरेशन सिंदूर में यह प्रयास रंग लाया और पूरी दुनिया उसकी साक्षी है.

भारत सैन्य क्षेत्र में तेजी से नवाचार कर रहा है, युद्ध के लिए नई टेक्नोलॉजी के साथ आधुनिक हथियारों का निर्माण कर रहा है, जिनकी लागत भी कम है और ज्यादा से ज्यादा हथियार देश में बनाने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि अमेरिका धीमी और कोल्ड वॉर की पुरानी रूपरेखा में फंसा हुआ है. भारतीय और अमेरिकी हथियारों की लागत में भी बहुत अंतर है. भारतीय पिनाका रॉकेट की कीमत 56 हजार डॉलर से भी कम है, जबकि अमेरिकी GMLRS मिसाइल की लागत 1,48,000 डॉलर है. इसी तरह भारत के आकाशतीर मिसाइल डिफेंस सिस्टम की कीमत अमेरिका के पेट्रियोट या NASAMS प्लेटफॉर्म के एक अंश के बराबर है.  

1,982 करोड़ रुपये में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ आकाशतीर डिफेंस सिस्टम बनाने के लिए डील हुई थी, जबकि अमेरिका के NASAMS डिफेंस सिस्टम की कीमत 3,842 करोड़ रुपये है. अमेरिकी डिफेंस इंटस्ट्री की सबसे बड़ी कंपनियों में लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नोर्थरोप ग्रूमैन, रेथॉन टेक्नोलॉजी और जनरल डायनेमिक्स हैं. SIPRI के अनुसार दुनिया की 20 सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियमों में से 9 अमेरिकी हैं. 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका की अधिग्रहण प्रक्रिया काफी धीमी है. यहां अक्सर सैन्य क्षेत्र में बदलाव करने में सालों लग जाते हैं और कई बार तो दशकों में जाकर आधुनिकीकरण किया जाता है. अमेरिकी हथियारों में आने वाली उच्च लागत भी इसकी बड़ी वजह है, जो आधुनिकीकरण में बाधा उत्पन्न करती हैं. F-35 इसका सटीक उदाहरण है, जिसकी लागत 1.7 ट्रिलियन डॉलर है और इसकी खराब प्रदर्शन के लिए कई बार आलोचना भी हो चुकी है. यूएस एयरफोर्स के सेक्रेटरी फ्रैंक केंडल भी स्वीकार कर चुके हैं कि F-35 प्रोग्राम बड़ी भूल थी, जिसे दोबारा दोहराया नहीं जाएगा.

Reactions

Post a Comment

0 Comments