G News 24 : दिसंबर का ये सप्ताह शोक साथ -शौर्य की अनुभूति भी करता है !

 गुरु साहब का पूरा परिवार 6 पूस से 13 पूस...

दिसंबर का ये सप्ताह शोक साथ -शौर्य  की अनुभूति भी करता है !

  • पूस का 13वां दिन नवाब वजीर खां ने फिर पूछा,बोलो इस्लाम कबूल करते हो ? 
  • 6 साल के छोटे साहिबजादे, फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा….  
  • अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर, कभी नहीं मरेंगे न ?

 वजीर खां अवाक रह गया….

 उसके मुँह से जवाब न फूटा, तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि, जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है , तो अपने धर्म धर्म की खातिर क्यों न मरें ?  दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार, में चिनवाने का आदेश हुआ...

दीवार चिनी जाने लगी । जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह_सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय साहिबजादे जोरावर_सिंह रोने लगे तो  साहिबजादे फ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है ? जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर देश, धर्म के लिए बलिदान तू पहले हो रहा है .

21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक,इन्हीं 7 दिनों में गुरुगोविंद सिंह जी का पूरा परिवार बलिदान हो गया था। उसी रात माता गूजरी  ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए। 

एक सप्ताह के भीतर ही धर्म के लिए राष्ट्र के लिए गुरु साहब का पूरा परिवार बलिदान हो गया । दोनों बड़े साहिबजादों, साहिबजादे अजीत_सिंह और साहिबजादे जुझार सिंह जी का बलिदान दिवस! और स्पष्ट कर दूँ...पहले पंजाब में इस हफ्ते सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गूजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात दोनों छोटे साहिबजादों के साथ नवाब वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को  दोनो बच्चे बलिदान हो गये थे।  27 तारीख को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे।

हम भारतीयों ने गुरु गोविंद सिंह जी के बलिदान को  400 साल पुराने इतिहास अपने जेहन में सदा रखना चाहिए। ये कभी नहीं भूलना नहीं चाहिए उन सभी ज्ञात-अज्ञात महावीर-बलिदानियों को जिनके कारण आज सनातन संस्कृति बची हुई है,…

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