शरद पूर्णिमा पर होता हैं टेसू और झेंझी विवाह का विवाह

 लुप्त होने की कगार पर है एक प्राचीन परम्परा ...

शरद पूर्णिमा पर होता हैं टेसू और झेंझी विवाह का विवाह


आधुनिकता की दोड़ और जिंदगी की भागम-भाग में एक प्राचीन परम्परा लुप्त होने की कगार पर है l इन्ही पुरानी परम्परा में से एक किसी जमाने में अपने अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी विवाह की परंपरा को आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। 

इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो पता चलता है कि किसी समय में इस प्रेम कहानी को परवान चढ़ने से पहले ही मिटा दिया गया था। लेकिन उनके सच्चे प्रेम की उस तस्वीर की झलक आज भी यदाकदा देखने को मिल ही जाती है। शहर के लोग तो इसे लगभग पूरी तरह भूल ही चुके हैं। लेकिन गांवों में कुछ हद तक यह परंपरा अभी भी जीवित है।जहां आज भी टेसू-झेंझी का विवाह बच्चों व युवाओं द्वारा रीति-रिवाज व पूरे उत्साह के साथ कराया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि अपनी प्राचीन परंपरा को सहेजने में गांव आज भी शहरों से कई गुना आगे हैं। 

अड़ता रहा टेसू, नाचती रही झेंझी : - 'टेसू गया टेसन से पानी पिया बेसन से...', 'नाच मेरी झिंझरिया...' आदि गीतों को गाकर उछलती-कूदती बच्चों की टोली आपने जरूर देखी होगी। हाथों में पुतला और तेल का दीपक लिए यह टोली घर-घर जाकर चंदे के लिए पैसे मांगती है। कोई इन्हें अपने द्वार से खाली हाथ ही लौटा देता है, तो कहीं ये गाने गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। मकसद सिर्फ एक होता है, चंदे के पैसे इकट्ठे कर टेसू-झेंझी के विवाह को धूमधाम से करना।

छोटी-छोटी बालिकाएं भी अपने मोहल्ला-पड़ोस में झेंझी रानी को नचाकर बड़े-बुजुर्गों से पैसे ले लेती हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बच्चों की ये टोलियां बहुत ही कम दिखाई देती हैं। ऐसे होता है विवाह :- टेसू-झेंझी नामक यह खेल बच्चों द्वारा नवमी से पूर्णमासी तक खेला जाता है। इससे पहले 16 दिन तक बालिकाएं गोबर से चांद-तरैयां व सांझी माता बनाकर सांझी खेलती हैं। वहीं नवमी को सुअटा (नोहट्टा) की प्रतिमा बनाकर टेसू-झेंझी के विवाह की तैयारियों में लग जाती हैं। पूर्णमासी की रात को टेसू-झेंझी का विवाह पूरे उत्साह के साथ बच्चों द्वारा किया जाता है। वहीं मोहल्ले की महिलाएं व बड़े-बुजुर्ग भी इस उत्सव में भाग लेते हैं। 

प्रेम के प्रतीक इस विवाह में प्रेमी जोड़े के विरह को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार लड़के थाली-चम्मच बजाकर टेसू का विवाह करते है लेकिन अब पुराने रीति रिवाज लोग भूलते चले जा रहे हैं इसका असर मिट्टी के टेशू बनाने वाले कुम्हारो पर भी पड़ा है उन्होंने बताया कि आज से करीब कुछ साल पहले लोग बड़े ही धूमधाम से टेशू की मूर्ति ले जाकर बड़े उत्साह के साथ उसकी शादी करा देते थे लेकिन अब कोई टेसू खरीदने भी नहीं आ रहा,जिससे हमारे व्यापार पर काफी असर पड़ा है

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