भाजपा के लिए 70 सीटों पर मुश्किल भरी है राहें ...
चुनावी तैयारियों को लेकर भाजपा में रणनीति बनाने का काम तेज !
मध्यप्रदेश। प्रदेश में अभी भले ही विधानसभा चुनाव में13 माह का समय बचा हुआ है, लेकिन भाजपा में चुनावी तैयारियों को लेकर रणनीति बनाने का काम तेज हो गया है। पार्टी के रणनीतिकार मिशन 2023 के लिए सबसे बड़ी कमजोर कड़ी श्रीमंत समर्थक और अन्य दलों से आए नेताओं को मानकर चल रहे हैं। दरअसल यह वे नेता हैं, जो अगले चुनाव के समय टिकट के लिए मजबूत दावेदार बने हुए हैं। इसकी वजह से माना जा रहा है कि उनके इलाकों में उनका भाजपा नेताओं से संघर्ष होना तय है। दरअसल इन दलबदलुओं को टिकट दिए जाने से पुराने मूल भाजपा कार्यकर्ताओं का हक मारा जाएगा, जिसकी वजह से उनकी नाराजगी चरम पर रहने की संभावना है। यही नहीं कुछ विस की सीटें ऐसी हैं, जहां पर भाजपा विधायक तीन हजार या फिर उससे कम अंतर पर जीते थे, और पार्टी सर्वे में जिन विधायकों की स्थिति उनके इलाकों में अच्छी नहीं पायी गई है, अगर पार्टी उनका टिकट काटकर दूसरे नेता पर भरोसा जताएगी तो भी इसी तरह की स्थिति बनना तय मानी जा रही है।
दरअसल सिंधिया समर्थक जो 25 विधायक करीब दो साल पहले भाजपा में शामिल हुए थे, उन्हें उपचुनाव में भाजपा ने टिकट दिया था, जिनमें से सिंधिया समर्थक करीब आधा दर्जन नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा था। यही नहीं इसके बाद दमोह से कांग्रेस विधायक राहुल लोधी भी पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। यह सीट भाजपा के पूर्व मंत्री जयंत मलैया की परंपरागत सीट है। ऐसे में सिंधिया समर्थकों के अलावा बाद में अलग-अलग रूप से भाजपा में शामिल होने वाले वर्तमान और पूर्व विधायकों की भी टिकट की दावेदारी बनी हुई है। इनमें से कई सीटें तो ऐसी हैं, जिन पर भाजपा प्रत्याशियों को बदले हुए राजनैतिक समीकरणों के अलावा अन्य कारणों से हार का सामना करना पड़ा था। उपचुनाव में पार्टी ने उनकी जगह दलबदल कर भाजपाई बनने वाले नेताओं पर ही दांव लगाया था।
उस समय भी कई सीटों पर विरोध की स्थिति बनी थी, लेकिन पार्टी की सरकार बनने की कीमत पर यह विरोध शांत हो गया था, लेकिन विधानसभा के आम चुनाव में स्थिति इससे अलग रहने वाली है। यही वजह है कि अभी से इसे भाजपा के लिए सबसे कमजोर कड़ी माना जा रहा है। भाजपा में कांग्रेस के ही नहीं बल्कि कई अन्य दलों के विधायक भी अब शामिल हो चुके हैं, जबकि कई ऐसे प्रभावशाली नेता भी अब भगवा रंग में रंग चुके हैं जो या तो पूर्व में विधायक रह चुके हैं या फिर अपने इलाकों में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। इस वजह से उनकी भी टिकट की दावेदारी बनी हुई है। ऐसे में भाजपा संगठन को अपने मूल कार्यकर्ताओं और दावेदारों की इच्छाओं की अनदेखी करनी पड़ेगी। यही अनदेखी आगामी विस चुनाव में पार्टी में संषर्ष की सिथति की वजह बनने की संभावना है।
ऐसे में मूल रुप से भाजपाई नेताओं व कार्यकर्ताओं को एक बार फिर से अपनी इच्छाओं को बलिदान करना होगा। दरअसल श्रीमंत समर्थक सभी विधायकों व पूर्व विधायकों का टिकट मिलना अभी से तय माना जा रहा है। इनमें वे पूर्व विधायक भी शामिल रहने वाले हैं, जो उपचुनाव में पराजित हो चुके हैं। जिन 25 सीटों पर श्रीमंत समर्थकों को टिकट मिलना तय माना जा रहा है, वहां पर पूर्व में भाजपा प्रत्याशी जीत दर्ज करते रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए करीब 70 सीटों पर प्रत्याशी चयन करने से लेकर संघर्ष टालने की बड़ी चुनौती रहने वाली है। इनमें दूसरे दलों से आए विधायकों के अलावा तीन हजार से भी कम अंतर से जीत दर्ज करने वाली सीटें शामिल हैं।
उपचुनाव में श्रीमंत समर्थक तीन मंत्री चुनाव हार गए थे। इनमें डबरा विधानसभा सीट से इमरती देवी, सुमावली विधानसभा सीट से ऐदल सिंह कंषाना और दिमनी से गिर्राज डंडौतिया को हार मिली। इसके अलावा उन पूर्व विधायकों को लेकर भी उहापोह की स्थिति है, जो उपचुनाव में पराजित हो चुके हैं। इनमें मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंषाना, जसमंत जाटव, नारायण सिंह पंवार और रणवीर जाटव के नाम शामिल है।
सिंधिया समर्थक इन नेताओं के टिकट पक्के
अगले साल होने वाले विस चुनाव में भाजपा की ओर से जिन सिंधिया समर्थकों के टिकट पक्के माने जा रहे हैं ,उनमें गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसौदिया के अलावा विधायक हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिरराज दंडौतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मनोज चौधरी, नारायण सिंह पटेल, सूबेदार सिंह राजौधा आदि के नाम शामिल हैं।
बीते विधानसभा चुनाव के अलावा उपचुनाव में कई सीटों पर बेहद रोचक करीबी मुकाबला रहा है
10 सीटें रहीं जिन पर हार-जीत का अंतर 1,000 से भी कम रहा, इनमें भी 8 सीटों पर अंतर 800 से कम रहा है। इन 10 सीटों में से 7 कांग्रेस ने जीतीं और 3 भाजपा ने। इनमें 7 सीटें भाजपा ने 1,000 से भी कम अंतर से हारीं, अगर ये सीटें वह जीत लेती तो उसी समय बहुमत से सरकार बना लेती। इसी तरह 3 सीटें कांग्रेस ने हारीं। यही नहीं 5,000 से कम अंतर वाली 46 सीटें रहीं। इसी तरह से 16 सीटों पर अंतर 1,300 से कम रहा, इनमें 2,000 से कम अंतर वाली सीटें जोड़ दें तो संख्या 18 हो जाती हैं। वहीं, मानक 3,000 से कम अंतर करें तो संख्या 30 हो जाती है। कांग्रेस जिन तीन सीटों पर 1,000 या कहें कि 800 से कम मतों से हारी है, वे जौरा, बीना और कोलारस हैं। जौरा में उसे 511 मतों से हार मिली, बीना में 632 मतों से और कोलारस में 720 मतों से उसने चुनाव हारा। भाजपा जिन 7 सीटों पर 1,000 से भी कम मतों से हारी उनमें ग्वालियर दक्षिण 121 मतों से, सुवासरा 350, जबलपुर उत्तर 578, राजनगर 732, दमोह 798, ब्यावरा 826 और राजपुर 932 मतों से भाजपा ने हारी। वहीं, इंदौर-5 1,133 मतों से, चांदला 1,177 मतों से और नागौद सीट 1,234 मतों से भाजपा जीती। भाजपा कुल 8 सीटें 2,000 से कम अंतर से जीती है। उसने कांग्रेस से (जौरा, बीना, कोलारस, इंदौर-5, चंदला और नागौद) और 2 बसपा से (देवतालाब 1080 मतों से एवं ग्वालियर ग्रामीण 1517 मतों से) जीती हैं। इसी तरह से भाजपा मंधाता 1236, नेपानगर 1264 मतों से हार गई। इस तरह कुल 9 सीटें 1300 से कम मतों से हारीं। गुन्नौर सीट भी वह 1984 मतों से हारी। वहीं, दो दिग्गज कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन (932) और भाजपा के पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया (1133) अपनी सीट बचाने में भी कामयाब रहे हैं। बाला बच्चन राजपुर से तो हर्डिया इंदौर-5 से जीतने में सफल रहे।











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