रानी घाटी गो-शाला पर मनाया गया स्वामी लक्ष्मणानंद बलिदान दिवस

हिन्दू जागरण के अग्रदूत : स्वामी लक्ष्मणानंद 23 अगस्त बलिदान दिवस है

रानी घाटी गो-शाला पर मनाया गया  स्वामी लक्ष्मणानंद बलिदान दिवस 


स्वामी लक्ष्मणानंदजी का  सामाजिक  एवं गौ रक्षा के लिए जनजागृति में अमूल्य योगदान --स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज नशे व शराबियों के अड्डे से मुक्त करा कर संतो की साधना स्थली बना श्री राम जानकी मंदिर ,रानी घाटी गौशाला आश्रम स्वामी लक्ष्मणानंदजी महाराज को समर्पित एक दिवसीय कार्यक्रम में श्री राम जानकी मंदिर ,रानी घाटी गो-शाला पर हुआ बलिदान दिवस कार्यक्रम में स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज ने अपने भावभीनी श्रद्धांजलि में कहा कि स्वामी लक्ष्मण आनंद जी ने भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के माध्यम से नशाबंदी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध एवं गौ रक्षा के लिए जन जागरण का कार्य किया जो भारतवर्ष के लिए एक श्रेष्ठ उदाहरण है उन्होंने अपने उद्गार में कहा कि उड़ीसा में हिन्दू जागरण के अग्रदूत : स्वामी लक्ष्मणानंद 23 अगस्त बलिदान दिवस है।

कंधमाल उड़ीसा का वनवासी बहुल पिछड़ा क्षेत्र है। पूरे देश की तरह वहां भी 23 अगस्त, 2008 को जन्माष्टमी पर्व मनाया जा रहा था। रात में लगभग 30-40 क्रूर चर्चवादियों ने फुलबनी जिले के तुमुडिबंध से तीन कि.मी दूर स्थित जलेसपट्टा कन्याश्रम में हमला बोल दिया। 84 वर्षीय देवतातुल्य स्वामी लक्ष्मणानंद उस समय शौचालय में थे। हत्यारों ने दरवाजा तोड़कर पहले उन्हें गोली मारी और फिर कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े कर दिये।

 (कंधमाल) में सड़क से 20 कि.मी. दूर घने जंगलों के बीच चकापाद में अपना आश्रम बनाया और जनसेवा में जुट गये। इससे वे ईसाई मिशनरियों की आंख की किरकिरी बन गये। स्वामी जी ने भजन मंडलियों के माध्यम से अपने कार्य को बढ़ाया। उन्होंने 1,000 से भी अधिक गांवों में भागवत घर (टुंगी) स्थापित कर श्रीमद्भागवत की स्थापना की। उन्होंने हजारों कि.मी पदयात्रा कर वनवासियों में हिन्दुत्व की अलख जगाई। उड़ीसा के राजा गजपति एवं पुरी के शंकराचार्य ने स्वामी जी की विद्वत्ता को देखकर उन्हें 'वेदांत केसरी' की उपाधि दी थी।

जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में हर वर्ष लाखों भक्त पुरी जाते हैं; पर निर्धनता के कारण वनवासी प्रायः इससे वंचित ही रहते थे। स्वामी जी ने 1986 में जगन्नाथ रथ का प्रारूप बनवाकर उस पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं रखवाईं। इसके बाद उसे वनवासी गांवों में ले गये। वनवासी भगवान को अपने घर आया देख रथ के आगे नाचने लगे। जो लोग मिशन के चंगुल में फंस चुके थे, वे भी उत्साहित हो उठे। जब चर्च वालों ने आपत्ति की, तो उन्होंने अपने गले में पड़े क्रॉस फेंक दिये। तीन माह तक चली रथ यात्रा के दौरान हजारों लोग हिन्दू धर्म में लौट आये। उन्होंने नशे और सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति हेतु जनजागरण भी किया। इस प्रकार मिशनरियों के 50 साल के षड्यन्त्र पर स्वामी जी ने झाड़ू फेर दिया।

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