अंतिम व्यक्ति को सम्मान दिलाना न्यायपालिका की भी जिम्मेदारी : न्यायमूर्ति बी.के.दुबे

अदालत की अवमानना पर अधिकारियों को मिले सजा…

अंतिम व्यक्ति को सम्मान दिलाना न्यायपालिका की भी जिम्मेदारी : न्यायमूर्ति बी.के.दुबे 

ग्वालियर। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की संयुक्त जिम्मेदारी है कि हमारे समाज का अंतिम व्यक्ति भी सम्मान पूर्वक जीवन बिता सके। यह विचार हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.के. दुबे ने मानस भवन में रविवार को आयोजित समाधान संस्था के संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि काफी तरक्की के बावजूद समाज में असमानता है और ये पीड़ादायक है, इसके लिए समाज को जिम्मेदारी निभानी होगी। न्यायपालिका, शासन, समाज के अधिकार और कर्तव्यों की समीक्षा विषय पर रखे गए इस संवाद कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कामकाज की भाषा हिंदी हो। उन्होंने कहा कि अदालत की अवमानना के मामलों में उच्च अधिकारियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। 

उन्होंने परिवार में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जाने और इससे अच्छे समाज का निर्माण होने का भी उल्लेख किया। इस कार्यक्रम में सेवानिवृत्त न्यायाधीश एच. यू अहमद ने अंग्रेजों के वक्त के कानूनों में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम इन कानूनों को भारतीय समाज के दिल, दिमाग और भावना से जोड़ें। उन्होंने दफा 323 का उदाहरण देते हुए बताया कि साधारण चोट के मामले में चाहे अजनबी आपस में झगड़ा करके चोट पहुंचाएं या फिर कोई नालायक बेटा अपने पिता अथवा गुरु का अपमान कर उसे चोट पहुंचाए, दोनों ही मामलों में सजा एक सी है। राज्य बार काउंसिल के वरिष्ठ पदाधिकारी प्रेम सिंह भदौरिया ने कहा कि सिर्फ अधिकार ही नहीं कर्तव्यों पर भी गम्भीरता से अमल होना चाहिए। वहीं हाईकोर्ट बार एसोसियेशन के सचिव दिलीप अवस्थी ने कहा कि अधिकारों के हनन के हजारों मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं परंतु मेरे लंबे अनुभव में मैंने कर्तव्यों के उल्लंघन का कोई मामला दर्ज होता नहीं देखा। उन्होंने आगे कहा कि कानूनों में जब तक परंतुक लगा रहेगा तब तक गुनहगारों के बचने के रास्ते खुले रहेंगे। 

संवाद में उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र श्रीवास्तव ने संविधान में वर्णित 11 कर्तव्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कर्तव्यों का उल्लेख तो है परंतु उल्लंघन पर  सीधी कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है,जबकि समरसता बिगाड़ने का काम समाज और दल दोनों लगातार कर रहे हैं। माजसेवी महेश मुदगल ने कहा कि समाजसेवियों के कार्यों की भी समीक्षा होनी चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ पत्रकर अजय तिवारी ने कई उदाहरणों के जरिए बताया कि संवैधानिक संस्थाएं कैसे कमजोर हो रही हैं। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका का सम्मान नहीं कर रही है। कार्यक्रम में पूर्व अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रतन वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस संवाद का संचालन अमर सिंह माहौर ने किया एवं आभार अधिवक्ता रामाधार चौबे ने व्यक्त किया।

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