गुरुजनों की पूजा का दिन है गुरुपूर्णिमा

मुझे हर दाढ़ी-मूंछ वाले गुरु में गुरु घंटाल छिपा दिखाई देता है...

गुरुजनों की पूजा का दिन है गुरुपूर्णिमा

सनातन संस्कृति में और कुछ श्रेष्ठ हो या न हो लेकिन सबकी पूजा का विधान सर्वश्रेष्ठ है। हम कांकर-पाथर के साथ पेड़-पौधे,सांप नदी,समंदर ही नहीं अपने माता-पिता और गुरु तक की पूजा करते हैं और इसके लिए बाकायदा तिथियां तय की गयी है। गुरुजनों की पूजा के लिए भी आषाढ़ माह की पूर्णमासी का दिन तय है। इस पूर्णिमा को ' गुरुपूर्णिमा ' कहा जाता है। अब सवाल ये है कि हम कौन से गुरू को पूजते हैं ? उस गुरु को जिसने हमें ककहरा सिखाया या उस गुरु को जिसने हमारे कान में कोई गुरुमंत्र फूँका। गुरुपूर्णिमा ' महाभारत 'के रचनाकार वेद व्यास का जन्मदिन भी है ,आज से गुरुजन चातुर्मास भी आरम्भ करते हैं और चार महीने एक ही ठिकाने पर रमकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यानि आपके पास गुरुपूर्णिमा मनाने के अनेक बहाने हैं। 

दुनिया में हर किसी का कोई न कोई गुरु होता है। माता-पिता और प्रकृति तो आद्यगुरु हैं ही। स्कूल का गुरु अलग ,आध्यात्म का गुरु अलग और व्यावसायिक गुरु अलग। आप जिसे पूजना चाहें उसे पूजें। मरजी है आपकी। हमारे यहां गुरु को गोविंद से बड़ा माना गया है ,इसलिए जब गुरु और गोविंद एक साथ सन्मुख हों तो गुरु की ही चरण बंदना की जाती है क्योंकि गोविंद से गुरु ही परिचय करता है। गुरुपूर्णिमा गुरुओं का शिष्यों से वार्षिक कर वसूली का भी दिन है। नाना प्रकार के गुरु ,नाना प्रकार के शिष्यों से आज के दिन गुरु-दक्षिणा के रूप में मन-माफिक चीजें मांग लेते हैं। जो सीधे-सादे होते हैं वे फल-फूल और वस्त्रों के साथ अलप दक्षिणा में ही तृप्त हो जाते हैं। आजकल भारत में गुरुओं का रूप बदल गया है। अब हमारे यहां हर विधा के गुरु हैं। 

जरूरी नहीं की आजकल के गुरु पहले के गुरुओं की तरह गेरुआ ही पहनते हैं। जरूरी ही नहीं है की उनके नख-शिख बढ़े हों। आज के गुरु मार्डन ही नहीं अल्ट्रा मार्डन है। वे जींस पहनते हैं। बाड़ी-बिल्डिंग करते हैं। नाचते हैं,गाते हैं। नेवैद्य की जगह कुछ भी भच्छ-अभच्छ खाते हैं। अब योगा सीखने वाले गुरु अलग। खानपान की शिक्षा देने वाले गुरु अलग हैं। अब गुरु केवल आश्रमों में नहीं बल्कि गली-गली डगर-डगर में मिल जाते हैं। उन्हें पहचानने के लिए केवल आपको दिव्यदृष्टि चाहिए। मेरे गुरु तो लंकेश थे। मुझे ककहरा से लेकर अंकों का ज्ञान तक उन्होंने ही कराया। लेकिन वे अब पूजा के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

मेरा कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं है ,क्योंकि मैंने किसी को अपना गुरु बनाया ही नहीं। मुझे हर दाढ़ी-मूंछ वाले गुरु में गुरु घंटाल छिपा दिखाई देता है। लोग कहते हैं कि गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता,लेकिन मै ऐसा नहीं मानता क्योंकि अब ज्ञान गूगल बाबा मुफ्त में बांटते फिरते हैं। आजकल गूगल खंगालो और मन चीता पा लो। गूगल अपनी पूजा करने या दक्षिणा देने की जिद भी नहीं करता। यानि गूगल निस्पृह गुरु है। हमारे देश में गुरु ही नहीं महा गुरु भी बहुतायत में है। इन्हीं में से जो अद्वितीय होते हैं वे महागुरु बन जाते हैं। आजकल तो बात यहीं तक सीमित नहीं है। आजकल गुरुओं के बीच विश्व  गुरु बनने की होड़ मची हुई है। 

विश्व गुरु बनने के लिए लोग देश तक को दांव पर लगाने में नहीं  हिचकते। हिचकना भी नहीं चाहिए। विश्व  गुरु बनने का नशा एक बार सर चढ़ जाये तो ताउम्र नहीं उतरता। वैसे हम यानि हमारा देश तो शुरू से विश्व गुरु है। हमारे पास ज्ञान का अकूत भंडार है। हम दोनों हाथों से उसे उलीचें तो भी सदियों तक समाप्त होने वाला नहीं है हमारा ज्ञानकोष। गुरु बनने से पहले व्यक्ति को किसी न किसी का चेला बनना पड़ता है और चेला यानि शिष्य यानि विद्यार्थी बनने के पांच लक्षण होते हैं। जैसे आपके पास काक चेष्टा हो ,बगुले जैसा ध्यान लगाने की क्षमता ,कुत्ते जैसी सजग नींद लेने का गुण,कम खाने वाला,और घर का त्याग करने वाला ही भविष्य में एक अच्छा छात्र और बाद में गुरु बन सकता है। 

विश्व गुरु बनने के लिए आज हमारे नेतृत्व के पास ये सभी गन हैं। इसीलिए हमारा नेतृत्व पूरी गंभीरता से विश्व गुरु बनने की दिशा में प्रयास करता है। इन दिनों देश की जनता और सरकार के बीच गुरु और शिष्य का रिश्ता बन गया है या बना दिया गया है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु की हर बात को सत्य माने और उनके किये गए कार्यों पर प्रश्न न उठाये। आप देख ही रहे होंगे की शिष्य बनी जनता सरकार की हर बात को सत्य मानती है और कोई सवाल नहीं करती। सरकार चाहे रसोई गैस के दाम बढ़ा दे या छाछ पर जीएटी लगा दे। कोई कुछ नहीं कहता। मै जीएसटी को सीतारामी गुरुदक्षिणा कहता हूँ। आखिर हमारी वित्त मंत्री भी तो हमारी गुरु हैं। उन्होंने पूरे देश को मंहगाई के साथ रहना सिखाया है।

हर शिष्य अपने गुरु के प्रति शृद्धावत होता है। जेब कतरे का भी गुरु होता है ,और डकैत का भी। बैंक का पैसा लेकर भागने वालों का भी गुरु होता है और फुटपाथ पर भिक्षटन करने वाले का भी। आप बिना गुरु के मार्गदर्शन के कुछ हासिल कर ही नहीं सकते। हर नेता का भी गुरु होता है ,लेकिन एक दिन ऐसा आता है की गुरु केवल गुड़ रहा जाता है और चेला शक़्कर हो जाता है। इसीलिए किसी भी गुरु को गुरुमंत्र देने में खासी सावधानी बरतना चाहिए। गुरु हो या गुरु घंटाल इनके चुनाव में सदैव सतर्कता बरतना चाहिए अन्यथा पछताना पड़ता है। श्रीलंका वाले पछता रहे हैं। भारत वाले कतार में हैं। गुरु के चुनाव में ज़रा सी सावधानी न बरती तो दुर्घटना घटना तय समझिये। 

गुरु -शिष्य के रिश्ते हमेशा एक से नहीं रहते,जब चेला शक़्कर हो जाता है तो वो अपने गुरु को मार्गदर्शक मंडल में शामिल करा देता है। मार्गदर्शक मंडल राजनीति का घूरा है। और घूरे के दिन कब फिरेंगे ये कोई नहीं जनता। यहां तक की गुरु को भी पता नहीं होता इस बारे में कुछ भी, बहरहाल मै गुरुपूर्णिमा पर सभी गुरुओं का अभिनंदन करता हूँ,कामना करता हूँ कि वे अच्छे गुरु बने रहें ,गुरु घंटाल न बनें। विश्व गुरु भले बन जाएँ भगवान करे  कि। किसी गुरु को कभी जेल यात्रा न करना पड़े  विश्व गुरु बनने के लिए न जाने कितने ठठकर्म करना पड़ते हैं। फिलहाल दुनिया में विश्वगुरु की कुर्सीखाली है ,इसलिए जो भी इस होड़ में शामिल हैं उनके प्रति मेरी शुभकामनाएं हैं। जय गुरुदेव। 

- राकेश अचल

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