जंगल में चुनाव…

निष्कर्ष पर पहुंचे !

जंगल में चुनाव…

सियासी  जंग  जंगल  मे  छिड़ी थी। 

जंगल की जनता चुनाव पे अडी थी।।

हर बार एक ही राजा नही बनाऐगे। 

जानवरो के भी  चुनाव करवाएगे।।

फैसला मतगणना के बाद होगा। 

राजा के पद पर कौन पदासीन होगा।।

निष्पक्षता पूर्वक चुनाव करवाऐगे। 

नामांकन फार्म शिक्षितो के ही भरवाऐगे।।

खर्चे का ब्योरा गिरगिट बताएगे। 

मत गिनती बिल्ली से करवाऐगे।।

सत्ता की दावेदारी सब कर रहे थे। 

शेर की दहाड से मन मे डर रहे थे।।

गधे घोडो से तेज भाग रहे थे ।

अक्लमंद होने की तैयारी कर रहे थे।।

चूहे अपनी बहादुरी बताते थे। 

ज्यादा जनसंख्या पे इतराते थे।।

उल्लू मंत्री बनने की जुगाड मे था। 

भीड मे पीछे पेड की आड मे था।।

चतुराई सियार भी  कर रहे थे। 

नामांकन की साजिश रच रहे थे।।

झींगुर प्रचार का झुनझुना बजा रहा था। 

आलसी भालू अवसर की तलाश मे था।।

पर्चा हाथी भी भरने जाएगा। 

बडी विपदा कौन रोक पाएगा।।

सूची मे सांप जरा पिछड़े थे। 

आस्तीन मे रहेगे जिद पे अडे थे।।

कछुए पर प्रधानी का जुनून था। 

आधार उसका लिंक है सकून था।।

चर्चाऐ शेर चुपचाप सुन रहा था। 

सत्ता जाने का भय अब सता रहा था।।

विरासत पल मे छिन जाएगी। 

पीढ़ियां भूख से बिलख मर जाएगी।।

शेर के दिमाग मे युक्ति कुलमुलाई। 

शराब भर गाड़ी जंगल मे उतरवाई।।

शाम पार्टी है सभी घर आएगे। 

मुफ्त दारू संग मुर्गा भी खाएगे।।

मुफ्त की लीला रंग ला रही थी। 

शेर को निर्विरोध राजा बना रही थी।।

फ्री की फ्रेम मे शेर फिर जड दिया। 

पांच वर्ष का दर्द दारू संग पी लिया।।

मुफ्त की व्यवस्था को आज भी ढो रहा है। 

मुफ्त की गरीबी से गरीब आज भी रो रहा है।।

भूपेंद्र "भोजराज "भार्गव

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