श्रीलंका में मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन जारी

भारत समेत IMF से वित्तीय मदद जुटाने का प्रयास…

श्रीलंका में मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन जारी

श्रीलंका में जैसे-जैसे आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, मौजूदा सरकार के प्रति जनता का गुस्सा और विरोध बढ़ता जा रहा है। श्रीलंका में 12 से 70 साल के तमाम लोग सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। खास बात ये है कि आर्थिक संकट ने लोगों को भी एक कर दिया है। विरोध-प्रदर्शन में अब सिंहली, तमिल और मुस्लिम सभी एकजुट हो गये हैं। लोगों के हाथों में अंग्रेजी, तमिल और सिंहली भाषा के पोस्टर हैं, जिन पर लिखा है - 'Go Gota Go'। प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे लोगों ने बताया कि लंबे समय तक राजनेताओं ने तमिल, सिंहली और मुस्लिमों को बांटकर रखा। अब श्रीलंकाई एकजुट हो रहे हैं। कोलंबो में राष्ट्रपति सचिवालय के नजदीक गाले फेस ग्रीन में विरोध प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों प्रदर्शनकारी, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंगा राजपक्षे का इस्तीफा मांग रहे हैं। ये प्रदर्शन 9 अप्रैल से चल रहा है और लगातार गंभीर होता जा रहा है। 

श्रीलंका के लोगों को दूध, चावल, रसोई गैस, बिजली और दवाओं जैसी बुनियादी चीजों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। मुद्रास्फीति की दरें रिकॉर्ड तोड़ अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं और विदेशी मुद्रा की गंभीर कमी के कारण जरूरी वस्तुओं के आयात में भारी कमी आई है। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि श्रीलंका के दिवालिया होने में सरकार की गलत नीतियां सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। विदेशी मुद्रा की कमी, ईंधन और बढ़ती महंगाई के चलते पैदा हुए आर्थिक संकट ने श्रीलंका के लोगों को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है। श्रीलंका में अलग-अलग मदों में अलग-अलग टैक्स व्यवस्था लागू थी। इसके तहत आवश्यक वस्तुओं पर कम टैक्स और ऊंची आय वालों पर 30 फीसदी तक का टैक्स लगता था। लेकिन लोक-लुभावन वादों को पूरा करने के लिए सरकार ने टैक्स दरें घटाकर आधी कर दीं। केवल 15 फीसदी का टैक्स लेने से सरकार को प्रति वर्ष 60 हजार करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ। 

वहीं, आय के लिए पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यव्यवस्था को कोविड-19 महामारी ने भारी नुकसान पहुंचाया। इन सबकी वजह से पिछले दो वर्षों में श्रीलंका के विदेशी भंडार में दो-तिहाई से अधिक की गिरावट आई। श्रीलंका अब द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारों के माध्यम से ब्रिजिंग वित्त को सुरक्षित करने के प्रयास में जुटा है। इसके लिए वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहा है। श्रीलंका ने इसके लिए भारत से भी मदद मांगी है। वैसे, एशियन क्लियरिंग यूनियन में भोजन, ईंधन, दवा, मुद्रा विनिमय और भुगतान के स्थगन के लिए लाइन-ऑफ-क्रेडिट के रूप में भारत पहले ही श्रीलंका को 2.4 बिलियन अमरीकी डालर की सहायता प्रदान कर चुका है। इस बीच श्रीलंका का एक प्रतिनिधिमंडल IMF से बातचीत के लिए पहुंच चुका है, लेकिन इस प्रक्रिया को चालू होने में लगभग चार महीने लगने की संभावना है।

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