नींबू की अभिलाषा

नींबू की अभिलाषा 

चाह नहीं, मैं मिर्ची के संग, 

धागे में गूंथा जाऊं॥

चाह नहीं दुकान में टंगकर, 

ग्राहकों को खींच लाऊं॥

चाह नहीं, मैं पानी मिश्री संग

मिल, शिकंजी कहलाऊं॥

चाह नहीं, मैं सर्फ में डाल कर, 

कपड़े साफ़ ही करवाऊं॥

चाह नहीं, गन्ना संग पिसूं

और रस में इठलाऊं॥

मुझे तोड़ लेना ऐे माली,

उस ठेले पर देना फेंक॥

पोहा खाने को सवेरे  ,

जिस पर टूटे वीर अनेक॥

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