कश्मीर से घर, जमीन, सेवफल के बगीचे छोड़कर भागे अनिल भट्ट ने सुनाई अपनी दर्दभरी कहानी

भोपाल में आकर बसे कश्मी0र पंडित परिवार का छलका दर्द…

कश्मीर से घर, जमीन, सेवफल के बगीचे छोड़कर भागे अनिल भट्ट ने सुनाई अपनी दर्दभरी कहानी

भोपाल। 'मुझे आज भी वह दिन याद है, जब पड़ोसी मुसलमान हमें मार डालने पर उतारू थे। मैं तब 20 साल का नौजवान था हम कश्मीर घाटी के बारामूला जिले के बुरन पटन गांव में रहते थे तीन मंजिला शानदार घर था, सेवफल का बगीचा था, एक पूरा पहाड़ था जिस पर हमारे खेत थे, मवेशी चरते थे जिंदगी बहुत खुशहाल थी और हम मानो स्वर्ग में रहते थे। मगर फिर वो रात आई, जिसने एक झटके में जिंदगी को नर्क बना दिया। हमें हमारे ही पड़ोसी मुसलमानों ने कहा- 'तुम अपना घर, खेत, जमीन छोड़कर भाग जाओ, हम यहां पाकिस्तान बनाएंगे।

अंतहीन दर्द से लबरेज यह कहानी सुनाते-सुनाते भोपाल के कोलार क्षेत्र के दानिश कुंज में रह रहे कश्मीरी पंडित अनिल भट्ट की आंखें गीली हो गईं। वे बताते हैं- 'हमारे गांव में 400 मुस्लिम परिवार और छह कश्मीरी पंडित परिवार थे हमारे खेत में वे काम करते, हमसे पैसा उधार लेते सबकुछ ठीक था। लेकिन दिसंबर 1989 में अचानक तेजी से सबकुछ बदलने लगा। हमें रोज किसी कश्मीरी पंडित को पीटने, मारने की घटनाएं सुनाई देने लगीं जनवरी (1990) तक तो हालात बद से बदतर हो गए। अंतत: 19 जनवरी को तड़के हमें सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा।

गांव में सबसे अमीर थे, अब दूध बेच रहे

भट्ट परिवार गांव में सबसे अमीर था और आज ये भोपाल में घर-घर दूध बांटकर जिंदगी चला रहे हैं तीन हजार वर्गफीट का घर, इतना ही बड़ा आंगन, सेवफल के बाग, सब्जी के लहलहाते खेत, बादाम, चेरी के पेड़ छोड़ आए, जिन पर मुस्लिमों ने कब्जा कर लिया।

जिसे हम बैल देते थे, उसी ने मुझे मारने आतंकी बुलाए

पिता चुन्नी लाल भट्ट बताते हैं- मैं जब दिल्ली से गांव लौटा तो पूरा मामला समझने के बाद मैंने भी तय किया कि यहां से जाना पड़ेगा। हम अपने पड़ोसी मुस्लिम परिवार को खेत जोतने के लिए अपना बैल देते थे। मैंने उससे पूछा कि अब इन बैलों का क्या करना है? वह बोला, शाम को मेरे घर आओ, बैठकर बात करते हैं। मैं उसके घर गया तो वह घर पर नहीं था। पौन घंटा इंतजार के बाद मैं जाने लगा तो उसके घर वाले मुझ पर रुकने का दबाव बनाने लगे। मैं खतरे को भांप कर तेजी से निकल गया। रास्ते में कुछ लोग मिले, उन्होंने धीमे से मुझे बताया कि तुम्हें मारने के लिए आतंकवादियों को बुलावा भेजा है। तुरंत भागो यहां से मैंने वह दिन जैसे-तैसे निकाला और बचे हुए दो पंडित परिवारों के साथ ट्रक में बैठकर जम्मू पहुंच गया।

घड़ी पर समय बदल लो, अब यह इलाका पाकिस्तान है

अनिल भट्ट बताते हैं- 'दिसंबर 1989 की बात है। मैं बस से कहीं जा रहा था। बस में रोजाना बजने वाले गानों के बजाय अचानक रेडियो से गोलियों की आवाजें आने लगीं। फिर रेडियो पर ही घोषणा हुई कि 'कश्मीरी पंडित भागो यहां से भागो या मरो। मैं घबरा गया। पास में बैठे मुस्लिम लड़के ने मेरी कलाई पर बंधी घड़ी देख कहा- 'इसका वक्त आधा घंटा पीछे करो। अब यह पाकिस्तान है यहां पर अब पाकिस्तान का समय ही घड़ी पर लगेगा। यह पहला वाकया था, जब मुझे लगा कि जल्द ही सबकुछ खत्म हो जाएगा।

अखबार में लिखा था- 'जवान बेटों को पहले मारेंगे

अनिल सुनाते हैं- 'कश्मीर में अलसफा नामक उर्दू अखबार छपता था। जनवरी 1990 में एक दिन उसमें छपा - 'कश्मीरी पंडितों के जवान बेटों को सबसे पहले मारेंगे। फिर 16 जनवरी की सुबह हमारे घर के बाहर उर्दू में लिखा पोस्टर लगा था - 'दो दिन के अंदर भागो, वरना जिंदा नहीं बचोगे। पिता दिल्ली में नौकरी कर रहे भाई के पास गए थे। ताऊजी- ताईजी ने कहा कि सामान समेटो, 19 की सुबह हमें भागना पड़ेगा। मैं रोने लगा कि पिताजी घर में नहीं हैं, कैसे जाएं? ताऊजी ने समझाया कि घर में मां-बहन (उमाश्री भट्ट-छाया भट्ट) हैं। यहां कुछ भी हो सकता है। फिर हम ट्रक में बैठकर 19 जनवरी को मुंह अंधेरे में निकल गए।

जिसे मेरे पिता ने पढ़ाया था, उसी ने कहा भाग जाओ यहां से

'12-13 जनवरी की बात है। मैं मामा के साथ जा रहा था तभी जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) के आतंकियों ने जीप अड़ाकर हमें रोका और गाड़ी में बैठाकर ले गए। उनके पास बंदूकें थीं। जहां ले गए, वहां ढेर सारे मुस्लिम थे उनमें से एक था आसन डार उसने पूछा, तेरे पिता का नाम क्या है। मैंने बताया चुन्नी।लाल भट्ट। डार बोला 'अच्छा तू मास्टर का बेटा है। मुझे उन्होंने पढ़ाया है, इसलिए छोड़ रहा हूं उनको बोल दे कि यहां से भाग जाएं।

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