जब भगवान को मंदिर छोड़कर समुद्र तट पर आना पड़ा…

भक्त शिरोमणि मां कर्मा देवी की जीवन गाथा

जब भगवान को मंदिर छोड़कर समुद्र तट पर आना पड़ा…

बंधुओं साहू समाज की आराध्य देवी मां कर्मा देवी की जीवन गाथा की जानकारी समाज के अनेक बंधुओं को नहीं है। अतः मै आप समस्त बंधुओं को प्राप्त जानकारी के अनुसार मां कर्मा देवी की जीवन की संक्षिप्त गाथा से आपको अवगत कराने का प्रयास कर रहा हूं। जगन्नाथ पुरी का मंदिर चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था मंदिर से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति गायब, चारों दिशाओं में लोग मूर्ति की खोज में भागने लगे। सभी को इस बात का आश्चर्य था कि आखिर क्या हुआ मूर्ति कैसे गायब हो गई। सभी एक दूसरे से पूछ रहे थे क्या हो गया मंदिर के पुजारी भक्तगण  सभी मूर्ति की खोज में निकल पड़े तभी  मंदिर में भक्तों ने बताया कुछ देर पहले एक बुढ़िया मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने आई थी उसे पुजारी जी ने  धक्का देकर मंदिर की सीढ़ियों से नीचे गिरा दिया था वे रो-रो कर भगवान को याद कर रही थी तथा कह रही थी प्रभु जब दर्शन ही नहीं देना था तो मुझे यहां बुलाया ही क्यों?  

यह कहते हुए मैं बुढिया वेहोश  हो  गई तथा पुजारी जी ने उसे बेहोशी की हालत में ही समुद्र के किनारे फिकवा  दिया। हो ना हो उसी के बाद भगवान की मूर्ति गायब हुई है। बस इतना सुनना था कि सारे लोग समुद्र किनारे जाने लगे वहां पहले से ही भारी भीड़ जमा थी भगवान श्री कृष्ण साक्षात रुप में मां कर्मा को दर्शन दे रहे थे तथा उनकी पोटली से मां कर्मा द्वारा लाई गई खिचड़ी को स्वाद लेकर खा रहे थे। मंदिर के पुजारी जैसे ही समुद्र किनारे पहुंचे उन्होंने मां कर्मा को भगवान की मूर्ति से अलग करने की कोशिश की तभी भविष्यवाणी हुई खबरदार किसी ने इसे हाथ भी लगाया यह मेरी भक्त कर्मा है जो जगन्नाथपुरी में मेरे दर्शन करने आई थी लेकिन तुम लोगों ने उसे धक्के देकर मंदिर से भगा दिया। 

इस कारण मुझे दर्शन देने  यहां समुद्र तट पर आना पड़ा उपस्थित जनसमुदाय मां कर्मा की भगवान श्री कृष्ण की भक्ति एवं भगवान का उन पर अगाध स्नेह  देखकर नतमस्तक हो गए। आज भी जगन्नाथपुरी में मां कर्मा की खिचड़ी का भोग सबसे पहले भगवान जगन्नाथ स्वामी को लगाया जाता है। मां कर्मा देवी जिनके नाम पर साहू समाज नतमस्तक हो जाता है एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन किए साहू समाज को मां कर्मा ने स्वाभिमान पूर्वक जीना सिखाया। नरवर राज्य में जहां मां कर्मा की ससुराल थी वहां के राजा ने साहू समाज पर वहां के पाखंडियों के षड्यंत्र के तहत बहुत अत्यचार किए। 

षड्यंत्र के तहत राजा के हाथी को खुजली का रोग बताया गया तथा राजा को सलाह दी गई यदि राज्य के सभी तैलकार प्रतिदिन एक कुंड में तेल डालें जब कुंड भर जाएगा तो उस कुंड में हाथी को स्नान कराया जाए तो उसका रोग दूर हो सकता है काम ऐसा था जिसका पूर्ण होना संभव ही नहीं था यह तो बस  कर्मा देवी की भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से ईर्श्या रखने वाले  पाखंडियो के षड्यंत्र का एक हिस्सा था तथा मां कर्मा के साथ-साथ पूरी समाज को प्रताड़ित करने की योजना थी। जब मां कर्मा देवी को इस बात का पता चला उन्होंने उस राजा के अत्याचार के विरुद्ध समाज को संगठित किया तथा अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई उस राजा के आदेश से समाज को परिवार सहित भूखे  मरने की नौबत आ गई लेकिन मां कर्मा ने उस विपत्ति के समय भगवान श्री कृष्ण को याद किया और कहा प्रभु आज मेरे कारण समाज के भोले भाले नागरिकों को यह दिन देखना पड़ रहा है प्रभु इनकी मदद करो आज आपकी भक्त कर्मा पहली बार अपनी समाज के लिए कुछ मांग रही है।  

कर्मा देवी की करुण पुकार सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने रातों-रात ऐसी महिमा फैलाई कि उस समस्या से समाज को मुक्ति मिल गई रातों-रात कुंड तेल से भर गया पूरे नगर में इस चमत्कार की चर्चा होने लगी बस इसके बाद कर्मा देवी ने समाज सहित उस राज्य को छोड़ दिया तथा झांसी आकर रहने लगे।मां कर्मा के पिता राम साह झांसी जनपद के  एक सम्मानित व्यक्ति थे ईश्वर की कृपा से उनके पास सुख समृद्धि की कमी नहीं थी बस कमी थी तो एक संतान की बस इसी कामना में अपनी दिनचर्या के साथ साथ ईश्वर भक्ति में लीन देते थे तथा दीनों के प्रति दयावान थे भगवान की  अगाध भक्ति तथा धर्म कर्म का फल  उन्हें मिला  तथा चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी 1073 को  एक कन्या का जन्म उनके यहां हुआ क्योंकि कन्या  उनके सत्कर्मों के कारण हुई थी  इसी कारण  उनके पिता ने उनका नाम कर्मा रखा। 

पिता से ही विरासत में उन्हें भगवत भक्ति मिली तथा कुछ ही दिनों में कर्मा देवी की कृष्ण भक्ति की चर्चा आसपास के क्षेत्रों में होने लगी समय के साथ-साथ उम्र भी बढ़ने लगी उनके पिता को उनके विवाह की चिंता होने लगी उन्होंने नरवर राज्य के प्रसिद्ध तैल कार के यहां अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। विवाह के बाद भी कर्मा देवी की दिनचर्या नहीं बदली नित्य कर्म के साथ-साथ कृष्ण भक्ति के लीन रहती थी जबकि उनके पति आमोद प्रमोद में अपना जीवन व्यतीत करते थे तथा कर्मा देवी को उनकी भक्ति पर ताने देते थे कि तुम इतनी भगवान की भक्ति करती हो कभी भगवान ने तुम्हें दर्शन भी दिए हैं। मां कर्मा देवी बड़े ही सहज भाव से कहती थी एक न एक दिन भगवान मुझे दर्शन अवश्य देंगे इसी श्रद्धा के साथ वह भगवान भक्ति में लीन रहती थी एक बार उनके पति ने उनके सामने से भगवान की मूर्ति हटा दी। 

तब मां कर्मा पूजा में लीन थीं उनकी आंखें खोलने पर जब उन्होंने सामने से मूर्ति गायब देखी तो मूर्छित होकर गिर पड़ी कर्मा देवी के पति को अपने कृत्य पर बड़ी ग्लानि हुई मां कर्मा देवी की अगाध भक्ति से अभिभूत होकर उस दिन से वह भी कर्मा देवी की भागवत भक्ति के प्रति नतमस्तक हो गये तथा उनकी भी जीवन शैली में भारी बदलाव आ गया वह सारे आमोद प्रमोद त्याग कर ईश्वर भक्ति में समय व्यतीत करने लगे। भगवान जी अपने भक्तों की कैसी कैसी परीक्षा लेते हैं कुछ ही समय बाद उनके पति का निधन हो गया तथा कर्मा देवी पर दुःख का पहाड़ टूट गया पति के वियोग में मां कर्मा टूट सी गई कुछ दिनों के बाद भगवान को याद करते करते नींद लग गई सपने में भगवान ने कर्मा देवी से कहा भक्त मां कर्मा तुम जगन्नाथपुरी में आओ मैं तुम्हें वही साक्षात दर्शन दूंगा।

बस श्री कृष्ण के दर्शन की  मतवाली मां कर्मा दिन रात की चिंता किए बगैर जगन्नाथपुरी की ओर चल दी  भूखी प्यासी मां कर्मा जब वहां पहुंची तो उन्हें यह व्यथा भी सहना  पड़ी कि पंडितों ने उन्हें मंदिर से उठवाकर  समुद्र किनारे फेंक दिया। मां कर्मा ने समाज को सत्कर्मों पर चलने की राह बताई किसी भी अत्याचार को सहन ना करते हुए उसका डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा दी। मां कर्मा जिनका जीवन पूर्ण संघर्ष मे  गुजरा तथा इसके बाद भी उन्होंने प्रभु की आराधना में कोई कमी नहीं की भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन कर जगन्नाथपुरी में भगवान को खिचड़ी का भोग  लगाकर स्वर्ग धाम को सुधार गईं। मां कर्मा की जयंती पर साहू समाज उनका पूर्ण श्रद्धा के साथ नमन करते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेता है आज भी जगन्नाथपुरी में मां कर्मा देवी की खिचड़ी का भोग सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण को लगाया जाता है  जय मां कर्मा देवी।

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