बस एक ही इच्छा बची है…

खुदा ना खास्ता अगर कल चीन और पाकिस्तान से जंग हो गई, तो

बस एक ही इच्छा बची है…

 

आज यूक्रेन मे डाक्टरी पढने गये छात्र-छात्राओ के माता-पिता लोगो को वामपंथी संगठनो की छत्र छाया मे सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करता हुआ देख लूँ तो गंगा नहा लूँ। कंधार प्लेन हाईजैक के समय, यात्रियो के रिश्तेदारो ने जैसी नौटंकी रची थी, वैसा ही कुछ इस बार भी होना माँगता। हो सकता है कि आप मुझे मूर्ख समझे, मगर ऐसी परिस्थिति मे यदि मेरा बेटा भी यूक्रेन मे डाॅक्टरी पढने गया होता, तो मै उससे कहता कि...

देख बेटे, भारत तेरी मातृभूमि है। मगर तू फिलहाल यूक्रेन के भोजन और संसाधनो का प्रयोग कर रहा है। इस देश पर मुसीबत पडते ही, तू भाग कहाँ रहा है ???

यदि संभव हो तो उठा हथियार और उस देश की रक्षा के लिए खडा हो जा, जिसकी बदौलत तूने डाॅक्टर बनने का सपना पाला था। अगर हथियार नही उठा सकता, तो भी नागरिको, सिविल डिफेंस, और यूक्रेन की सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासो मे उनकी मदद कर। यूक्रेन के लोगो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर।

आज जब उन लोगो मुसीबत पडी है, तो तू पीठ दिखाकर भाग जायेगा, और कल फिर से बेशर्मो की तरह उनके मेडिकल काॅलेज, उनके संस्थानो और संसाधनो का दोहन करने कौन सा मुँह लेकर जायेगा बे ???

विपरीत परिस्थितियो मे हम भारतीय अपने बच्चो के संघर्ष करना क्यों नही सिखाते ?? उन्हे बचकर भागने, पलायन करने की सीख क्यों देते है ???

ये मत सोचो कि वो जंग की हालात मे केवल यूक्रेन से भाग रहे है। खुदा ना खास्ता अगर कल चीन और पाकिस्तान से जंग हो गई, तो ये चूजे टाईप जोकर, ऐसे ही भारत को भी छोडकर भागेंगें।

तब इनका तर्क होगा कि हम तो पढे -लिखे, क्वालीफाईड डाॅक्टर है, नेताओ और फौज की शुरू की गई जंग से हमारा क्या लेना देना। क्योकि पलायनवादी प्रवृति इनकी नसो मे जम चुकी है। कल अगर POK को हासिल करने के लिए अगर मोदी जंग छेड देता है, तो इन 40 हजार पेरेन्ट्स मे से कितने लोग ऐसे होंगें जो अपने बेटो का विजय तिलक करके जंग मे भेजेंगें ????

एक भी नही, जी हाँ एक भी नही। क्योंकि ये साले उन Parasites यानि परजीवी कीडो की तरह है, जो कभी एक होस्ट, तो कभी दूसरे होस्ट को खाकर, उसका खून चूसकर जिंदा रहते है। जब एक होस्ट मर जाता है तो उसे छोडकर दूसरे के शरीर पर डेरा जमा लेते है।

मै तुमसे पूछता हूँ, यूक्रेन से वीडियो बना बनाकर भेज रहे चूजो, दो दिन से छाती पीट रहे हो , कि टिकट महंगा हो गया, ऐंबेसी मदद नही कर रही। हाय हाय मर गये, फंस गये। ब्ला ब्ला, ब्ला .....

एक भी ऐसा बंदा सामने नही आया, जो ये कहे कि इतने दिनो से इस देश का नमक खाया है, यहाँ के इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधनो को भोगा है, मम्मी पापा आप चिंता मत करना, हमारा भी कुछ फर्ज है इस देश के लिए। हम मुसीबत मे पीछ दिखाकर नही भागेंगें। जितना बन पडेगा वो सब करेंगें। हम इस देश की रक्षा के लिए लडेंगें।

सुनो बे चूजो, मोदी बैठा है, वो देर सबेर तुम सबको निकाल लेगा वहाँ से। मगर तुम्हारी मानसिकता, केवल खुद के बारे मे ही सोचने, संस्कारो, और सभ्यता की पोल खुल गई है। यूक्रेन के दम पर डाॅक्टर बनने चले थे, आज उसी के मुँह पर सू सू करके निकल भागना चाहते हो। तुम्हारा भारत मे रहकर भारत के लिए भी यही ऐटीट्यूड रहता है। गरीब किसान का बच्चा, सरहदो पर खून बहाता रहता है, ताकि तुम्हारी मौज मस्ती और ऐशो आराम मे कोई कमी ना आये। और तुम केवल मुफ्त की चरने और देश को गाली देने के लिए ही जन्म लेते हो।

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