मानस भवन की मुक्ति का समय

राम चरित मानस का पाठ सुनने के बजाय सेल देखने के लिए विवश…

मानस भवन की मुक्ति का समय

 

चार दशक पहले प्रदेश में रामनामी सरकार नहीं थी लेकिन उसने प्रदेश के तमाम बड़े शहरों में मानस भवनों का निर्माण कराया था। हमारे शहर ग्वालियर में भी एक मानस भवन बना और नगर निगम को इसके संचालन का जिम्मा सौपा गया ,लेकिन नगर निगम ने इस मानस भवन को कब एक निजी संस्था को सौप दिया बहुत  कम लोग जानते हैं। अब यही संस्था इस मानस भवन पर कुंडली मारकर सिर्फ बैठ गयी है बल्कि इस संस्था  ने मानस भवन को बाजार में तब्दील कर दिया है। मानस भवन में लगी गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिमा यहां राम चरित मानस का पाठ सुनने के बजाय चड्डी-बनियान की सेल देखने के लिए विवश है।

 मुझे याद है कि इस मानस भवन को जब जिला कलेक्टर ने नगर निगम को सौंपा था उस समय प्रशासक पुष्प कुमार दीक्षित थे और उन्होंने मानस भवन के संचालन का दायित्व जन कल्याण अधिकारी  जगदीश दीक्षित को दिया था बाद में महापौर डॉ धर्मवीर ने भी इसी व्यवस्स्था को जारी रखा। मानस भवन नगर निगम की जमीन   पर बनाया गया है और इसे राम चरित मानस जन्मशदी समिति को इस शर्त पर दिया गया था कि इसमें  कोई व्यावसायिक गतिविधि संचालित नहीं की जाएगी। शर्त ये भी थी कि यदि समिति शर्तों का उल्लंघन करेगी तो नगर निगम समिति से मानस भवन वापस ले लेगा। 

यानि मानस भवन का स्वामित्व आज भी नगर निगम का है और समिति को सिर्फ इसके संचालन का दायित्व दिया गया है। दुर्भाग्य ये है कि पिछले चार दशक से इस मानस भवन का इस्तेमाल रामचरित मानस के अलावा अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के बजाय केवल और केवल व्यावसायिक गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। यहां नियमित कपड़ों,जूतों की सेल और क्राफ्ट बाजार सजे रहते हैं। शादी-विवाह होते हैं सो अलग। साहित्यिक,सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए केवल एक कक्ष  भर रह गया है। 

वर्ष 2004  में तत्कालीन पार्षद द्वारिका प्रसाद बघेले ने ये मामला नगर निगम परिषद की बैठक में उठाकर मानस भवन का संचालन समिति के हाथ से वापस लेने की मांग की थी  समिति के मुखिया कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष डॉ रघुनाथ दिगंबर पापरीकर थे। बघेल के प्रस्ताव पर परिषद ने मानस भवन का संचालन समिति से वापस लेने का ठहराव भी कर लिया लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। मानस भवन निर्माण केलिए  शासन ने 1975  में जब नगर निगम की कोई 25  हजार फीट जमीन आवांटन का आदेश दिया था उसमें भी साफ लिखा था की इस स्थान का कोई व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

आवंटन की शर्त ये भी थी कि यदि नियमों का उललंघन किया जययययेगा तो नगर निगम बिना किसी मुआवजे के मानस भवन का अधिग्रहण कर लेगा लेकिन आज तक नगर निगम आँखें बंद किये बैठी  हुयी है। बीते चार दशक में कितने ही प्रशासक आये,कितने ही महापौर बने लेकिन किसी ने मानस भवन को व्यावसायिक इस्तेमाल करने वाली समिति से वापस लेने का साहस नहीं दिखाया। समिति के मुखिया डॉ रघुनाथ दिगंबर पापरीकर के निधन के बाद इसमें सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ नेता घुस गए ,उन्होंने मानस भवन को अपने नियंत्रण में ले लिया। 

वे भी इस स्थान का इस्तेमाल जूतों,कपड़ों की सेल लगाने के लिए कर रहे हैं। समिति का तुर्रा ये है कि मानस  भवन के संचालन के लिए सरकार से तो कोई मदद मिलती नहीं है ऐसे में वे यहां सेल लगाए,शादियां कराएं तो क्या करें ? लेकिन ये मजबूरी केवल ग्वालियर की ही समिति को है। प्रदेश के दूसरे शहरों के मानस भवनों में ऐसा कदापि नहीं हो रहा। नगर की अनेक संस्थाएं मानस भवन के दुरूपयोग का मामला बार-बार जिला प्रशासन और नगर निगल में संज्ञान में लाइन किन्तु बिना रीढ़ के अफसर अक्सर राजनीतिक दबाब में मानस भवन की मुक्ति का साहस नहीं जुटा पा रहे।

इस समय भी मानस भवन जिन लोगों के चंगुल में है उनमें से अनेक तो आपराधिक मामलों में आरोपी तक हैं। समिति का काम येन-केन मानस भवन से आमदनी करने का है। समिति ने कुछ लोगों को उपकृत करने के लिए एक वातानुकूलित कक्ष बना रखा है जो यदाकदा निशुल्क इस्तेमाल के लिए दिया जाता है। समिति  ने सार्वजनिक जन सुविधाकेंद्र को भी मानस भवन में मिला लिया है। पिछले चार दशक में मानस भवन के जरिये समिति ने कितना कमाया और कितना खर्च किया इसका हिसाब भी कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सारा काम कागजी  जरूरतों के लिए ही किया जा रहा है।  

समिति के अधिकांश कर्ताधर्ता सत्तारूढ़ दल के नेताओं के मुंह लगे हैं इसलिए उनके तमाम कारनामों पर हर समय पर्दा पड़ा रहता है। ये कभी किसी समाज के ठेकदार बन जाते हैं तो कभी किसी के। इस समय प्रदेश में रामनामी सरकार है ,नगर निगम पर भी प्रशासक बैठे हैं ऐसे में मानस भवन को मुक्त करने में कोई बाधा नहीं है ,लेकिन सवाल ये है कि पहल कौन करे ? गोस्वामी तुलसीदास  या मर्यादा पुरुषोत्तम   राम जी तो इसकी मुक्ति के लिए आने वाले नहीं हैं। पता चला है कि शहर के कुछ जागरूक नागरिक मानस  भवन की मुक्ति के लिए आंदोलन की रूपरेखा बना रहे हैं।

- राकेश  अचल

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