जग हंसाई कराने वाली मशीन

जैसे अक्सर किस्मत धोखा देती है, उसी तरह मशीन ने भी दिया धोखा…

जग हंसाई कराने वाली मशीन

 

किसी को अनुमान भी नहीं था की एक मशीन एक महान नेता की जग हंसाई की वजह बन सकती है, लेकिन मशीन तो मशीन है, कभी भी धोखा दे सकती है। हमारे प्रधानमंत्री जी के साथ जैसे अक्सर किस्मत धोखा देती है, उसी तरह मशीन ने भी धोखा दे दिया, और धोखा भी तब दिया जब वे दावोस सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। हमारे देश के विपक्षी नेता इस मशीनी गलती को लेकर अब मोदी जी की खिल्ली उड़ा रहे हैं, लेकिन ये सही बात नहीं है। दुनिया में नेताओं ने जब बिना तैयारी के बोलना बंद किया तब वैज्ञानिकों को एक मशीन का ईजाद करना पड़ा और उसका नाम रखा टेलीप्रॉम्प्टर। इस मशीन का नाम भी अच्छा है और काम भी, लेकिन मशीन तो मशीन है, जबाब दे सकती है। सो उसने दिया। अब इसमें  हंसने की क्या बात है ?अब नेता देश की अठारह से बीस घंटे सेवा करते हैं तो उन्हें भाषण तैयार करने की फुरसत नहीं मिलती, इसलिए मजबूरी में बेचारों को टेलीप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल करना पड़ता है। सब करते हैं, कोई अकेले मोदी जी तो नहीं करते।

अब आप उनका मुकाबला महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी बाजपेयी से करें तो बेकार है। जब मशीने नहीं थीं तो नेता बोलते थे, खूब बोलते थे, घण्टों बोलते थे। संसद में बोलते थे, सड़कों पर बोलते थे, सम्मेलनों में बोलते थे और मजाल है कि जुबान फिसल जाये। जब मशीनें नहीं थीं तब नेताओं कि भाषण धीर-गंभीर  ही नहीं बल्कि लच्छेदार भी होते थे। दरअसल मशीने बनाई तो गयीं थीं अभिनेताओं कि लिए लेकिन बाद में इसे नेताओं और टीवी चैनल वालों ने हथिया लिया। टेलीप्रॉम्प्टर  उतना ही पुराना है जितना की हमारे मोदी जी। दोनों की उम्र में दो साल का फर्क है। मोदी जी का अवतरण 1950  में हुआ और टेलीप्रॉम्प्टर का जन्म 1952 में हुआ। टेलीप्रॉम्प्टर ईजाद करने वाले अमेरिका कि फ्रेड बर्टन ने कल्पना भी नहीं की होगी की उसका ये अविष्कार  भविष्य में दुनिया कि सबसे बड़े लोकतंत्र की जग हंसाई  कराएगा।

शुरू में ये मशीन 30  डालर प्रति घंटे किराये पर मिलती थी इसलिए भारत कि नेता इसका इस्तेमाल नहीं कर पाए। हमारी इकानामी तब इस लायक नहीं थी। हम नए-नए आजाद जो  हुए थे। लेकिन जब ये मशीन उन्नत और सस्ती हुई तो दुनिया कि तमाम नेताओं ने इसे खरीदकर अपने लिए मांगा लिया। नेताओं में सबसे पहले 1952  में अमेरिका कि तत्कालीन राष्ट्रपति हार्बर्ट हूवर ने शिकागो में रिपब्लिक नेशनल कांफ्रेंस में इसका इस्तेमाल किया था लेकिन अब ये मशीन काशी के गंगातट तक पर इस्तेमाल की जाती है। समय बदला तो ये मशीन भी बदली, अब इसका नाम आटोक्यू हो गया है और अब ये केवल मोदी जी कि लिए ही नहीं बल्कि आम आदमी कि लिए बाजार में उपलब्ध है। एक मशीन की नाकामी को लेकर मोदी जी का मजाक बनाने वालों पर मुझे गुस्सा आता है और मोदी जी कि प्रति मेरी सद्भावना है लोग मोदी जी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो मशीन की आड़ में उनकी क्लास ले रहे हैं, जबकि मोदी जी तो क्लास लेने में भरोसा ही नहीं करते।

वे तो प्रेस कांफ्रेंस तक नहीं करते। उनका अखंड विश्वास तो टेलीप्रॉम्प्टर पर था, लेकिन अब वो भी खंडित हो गया है। कहते हैं कि मोदी जी अपने आपसे से ज्यादा अपने टेलीप्रॉम्प्टर पर भरोसा करते थे। इस पर लिखे शब्द उनके बड़े काम आते थे। जो वे याद करके नहीं बोल सकते उसे ये मशीन बड़ी आसानी से बुलवा देती थी। मोदी जी को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की तरह भले ही दर्जनों भाषाएँ आतीं हों किन्तु वे इस मशीन कि जरिये देश -दुनिया की किसी भी भाषा में बोल सकते थे। बोलते हैं। जिस राज्य में जाते हैं उस राज्य की  भाषा में बोलते हैं, ये बात अलग है कि  बंगाली उनकी बंगाली नहीं समझ पाते, या बिहारी उनकी टेलीप्रॉम्प्टर वाली बिहारी को  असली बिहारी नहीं मानते। भारत में टेलीप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल करने वाले मोदी जी प्रमुख नेता हैं। उनके पूर्ववर्ती नेताओं ने भी इसका इस्तेमाल किया लेकिन इस मशीन ने दूसरे नेताओं को कभी धोखा नहीं दिया और दिया भी हो तो नेताओं ने खुद को सम्हाल कर इस धोखे को धोखा दे दिया, उन्हें मोदी जी की तरह रुकना नहीं पड़ा। अमेरिका कि तत्कालीन राष्ट्रपति बराक  ओबामा को तो उनके देश कि लोग ' स्क्रिप्टेड प्रेजिडेंट ' ही कहते थे।

लेकिन उन्होंने कभी इसका बुरा नहीं माना। मानना भी नहीं चाहिए। जो है सो है। मोदी जी ने 2019  में इसका पहली बार इसका इस्तेमाल किया और इसके ऐसे मुरीद हुए की खुद भाषण देना भूल गए, अन्यथा 2014  में देश-दुनिया ने मोदी जी कि भाषण सुने ही होंगे। वे कितना एक्सटेम्पोर [बिना तैयारी कि] बोलते थे।टेलीप्रॉम्प्टर की दगाबाजी पर  कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र  मोदी पर तंज कसा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि इतना झूठ टेलीप्रॉम्प्टर भी नहीं झेल पाया।अब राहुल को क्या पता कि  कौन, किसे नहीं झेल पाया ? हो सकता है कि मशीन और मोदी जी कि बीच अदावत कई दिनों से पनप रही हो, या ये भी हो सकता है किसी राजनीतिक प्रतिद्वंदी ने जानबूझकर मोदी जी की मशीन खराब करा दी हो। कायदे से इस घटना पर तंज करने के बजाय राहुल गांधी को मामले की जांच संसद की संयुक्त समिति से कराने की मांग करना चाहिए थी, लेकिन भाजपा जानती है कि  वे ठहरे पप्पू, तंज से कम या ज्यादा कुछ और कर ही नहीं सकते।

कुल जमा मामला मशीन से जुड़ा है, इसे मोदी जी से जोड़ने की नाकाम और नापाक कोशिश की जा रही है। मोदी जी को आइना दिखने कि लिए एक से बढ़कर एक मुद्दे हैं, राहुल बाबा को उनका इस्तेमाल करना चाहिए, कहाँ टेलीप्रॉम्प्टर के पीछे बिना हाथ धोये पड़े हैं ?टेलीप्रॉम्प्टर सचमुच एक प्रॉम्ट मशीन है, उसने अब तक किसी को जानबूझकर धोखा नहीं दिया, जो हुआ वो एक्सीडेंटल है, आकस्मिक है इसलिए मशीन के साथ ही मोदी जी को भी माफ़ कर देना चाहिए। दुनिया में अभी ऐसा कोई टेलीप्रॉम्प्टर नहीं बना है जो किसी की सरकार बना या बिगाड़ सके। लोकतंत्र में इंसान से ज्यादा मशीन की इज्जत है, न होती तो क्या आज हम ईवीएम से चुनाव करा रहे होते ? ईवीएम भी तो टेलीप्रॉम्प्टर की सगी बहन है।

- राकेश अचल

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