मानवता सबसे बड़ा धर्म है, सदभावना की जरूरत घर-घर में है : मुनिश्री

जिस तरह तीन खंड के अधिपति नारायण श्री कृष्ण ने…

मानवता सबसे बड़ा धर्म है, सदभावना की जरूरत घर-घर में है : मुनिश्री


ग्वालियर। मानव जीवन को चलाने के लिए धर्म और धन दोनों की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति दिन-रात धन कमाने की सोचता रहता है लेकिन धर्म करने के लिए कुछ ही समय निकाल पाता है। मानवता को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है। आज पारिवारिक बिखराव की वजह आपसी सद्बभवना का अभाव है। जो व्यक्ति के जीवन में सबसे आवश्यक है। यह विचार वात्सल्य सरोवर राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने रविवार को नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर मुनिश्री विजयेश सागर महाराज, मुनिश्री विनिबोध सागर महाराज ऐलक विनियोग सागर महाराज मोजूद थे। मुनिश्री ने सरल शब्दों में धर्म का को समझाते हुए कहा कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है। सद्भावना के अभाव में परिवार में बिखराव होता जा रहा है।

बेटी के लिए ऐसे घर में रिश्ता ढूंढा जाता है जहां लड़का अकेला और सर्विस वाला हो। सास बहू को बेटी कहती तो है लेकिन मानती नहीं है। वही बेटी सास को मां कहती तो है लेकिन मानती नहीं है। सास बहू, पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी के बीच में दोस्त के जैसा रिश्ता होना चाहिए। जब तक रिश्तो में दोस्ती का अभाव होगा तब तक वैमनस्यता रहेगी। जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि धर्मसभा का शुभारंभ ब्राह्मचारिणी प्रियंका दीदी ने मंगल चरण कर किया। मुनिराजों के जल से पादप्रच्छलन   जिनवाणी शास्त्र सिंघई विमल पूजा जैन परिवार ने आशीर्वाद के साथ भेंट किए। इस मौके मुनिश्री के चरणों मे समिति के निर्मल पाटनी, विनय कासलीवाल, अनिल जैन, अध्यक्ष योगेश बोहरा, सचिव आशीष जैन, संजीव जैन, पंकज बाकलीवाल, संजय जैन, अतुल टोंग्या, मिखिल जैन, सहित समाजजनो ने श्रीफल भेंट कर आर्शीवाद लिया।

मुनिश्री के मंगल प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9-30  बजे से ऑल लाइन होते है। मुनिश्री ने कहा की दोस्ती मैं अमीर गरीब का भेद नहीं देखना चाहिए। जिस तरह तीन खंड के अधिपति नारायण श्री कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा के प्रति जो सद्भावना दिखाई थी वेसी सद्भावना की जरूरत सभी के जीवन में जरूरी है। मुनिश्री ने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर भगवान बनने, मोक्ष जाने के गुण मौजूद हैं। ना जाने पिछले कितने जीवन में यह आत्मा जन्म लेकर अमीर गरीब, जीव जंतु, बनती रही है। स्वर्ग-नर्क, निगोद में जाती रही है। जन्म जन्मांतर के भटकाव से मुक्ति का एकमात्र मार्ग मानव जीवन में धर्म के जरिए अर्जित किया जा सकता है। अतः मनुष्य जन्म में धर्म मार्ग के जरिए मुक्ति की राह पकड़ने के इस दुर्लभ अवसर को हाथ से नहीं जाने दे। इसी में हम सब का प्राणी मात्र का कल्याण है।

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