हबीब की हरकत से देश शर्मसार...

राहक के सर पर थूकने का अधिकार नहीं

हबीब की हरकत से देश शर्मसार...

 

नाई जाति सूचक नहीं बल्कि विशेषग्यता को इंगित करने वाला शब्द है ,ठीक वैसे ही जैसे पंडित। यानि ये शब्द जाति का नहीं बल्कि काम का बोध करता है। नाई कोई भी हो सकता है ,इसमें जाति,वर्ण,वर्ग,लिंग कुछ भी  आड़े नहीं आता। अमेरिका में तो मुझे अक्सर महिला नाइयों से बाल काटवाना पड़ते थे। एक नाई तो जावेद हबीब की तरह खानदानी मिला। उसके बाबा ने हमारे महानायक राजकपूर के बाल रूस में काटे थे। केशकर्तन का काम कोई भी दक्ष व्यक्ति या महिला कर सकती है लेकिन बाल काटते समय उसे अपने ग्राहक के सर पर थूकने का अधिकार नहीं है। यदि कोई ऐसा करता है तो सिर्फ ये घटिया अपराध है बल्कि एक विशेष कलाजगत का अपमान भी है। इसलिए ऐसा करने वाले के खिलाफ प्रभावी और दंडात्मक कार्रवाई होना चाहिए। हाल ही में देश के चर्चित नाई जावेद हबीब ने  अपनी एक महिला ग्राहक के केश काटते हुए उसके सिर पर पानी लगाने के बजाय थूक दिया। जावेद  ने ये काम पिनक में किया या जानबूझकर कहना कठिन है लेकिन उसके इस घटिया कृत्य से दुनिया भर के नाइयों को घोर विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ा।  

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मे 58  साल के जावेद हबीब को इस मामले में उत्तरदायित्व के साथ काम करना चाहिए था ,लेकिन उसने ऐसा कर केश कर्तन के काम में लगे एक विशाल क्षेत्र को बदनाम किया ,और खुद अपने पांवों पर भी कुल्हाड़ी मार ली। जाबेद हबीब खानदानी नाई हैं। उनके बाबा यानि पितामह नजीर अहमद लार्ड माउन्ट बेटन और देश के प्रथम प्रधनमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आधिकारिक नाई  थे। जावेद  के पिता हबीब अहमद ने राष्ट्रपति भवन में आधिकारिक नाई के रूप में काम किया। खानदानी नाई होने के नाते जावेद हबीब को जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में पढ़ने का मौक़ा मिला। बन्दा फ्रेंच साहित्य का स्नातक और विवि की क्रिकेट टीम का कैप्टन था लेकिन अपने पिता की सलाह पर उसने अपने खानदानी पेशे में दक्षता हासिल करने के लिए केश कतरन   सीखने वाले प्रसिद्ध मॉरिस स्कूल में दाखिला ले लिया। मै आपको ये सब इसलिए बता रहा हूँ ताकि आप जान सकें की जावेद हबीब को कहीं भी घटिया हरकतें करने की शिक्षा नहीं दी गयी। जावेद ने गुरु-शिष्य परम्परा के तहत अपने पिता की देखरेख में 1984  में अपना पहला सेलून खोला।

  हनत की और बाद में अपना स्वतंत्र सेलून खोल लिया। अपनी कलात्मकता के बल पर हबीब रातों-रात लोकप्रिय हुआ और सनसिल्क ,यूनिलीवर  समेत अनेक उत्पादों का ब्रांड एम्बेस्डर भी बना। अपनी योग्यता के बूते बंदा मिस इंडिया प्रतियोगिता का आधिकारिक हिस्सेदार बना और उसने लगातार 410  घंटे बाल काटकर लिम्का बुक के लिए कीर्तिमान भी बनाया। बहरहाल जब पूरे देश और दुनिया के अनेक देशों में उसके सेलून खुल गए तो उसे राजनीति में दिलचस्पी जाएगी और 2019  में उसने धूम-धड़ाके के साथ भाजपा की सदस्य्ता ले ली। भाजपा का उल्लेख मै इसलिए नहीं कर रहा की आप कोई गलत अर्थ निकालें। यानि भाजपा में भी उसे सर में थूकने की शिक्षा शायद नहीं दी गयी। अच्छी बात ये है कि जावेद ने भाजपा में शामिल होने के बावजूद अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ा नहीं। लेकिन अहंकार के भूत ने उसका सर पकड़ लिया और वो अजीबोगरीब हरकतें करने लगा। उसने पहली बार एक नयी हरकत की अन्यथा उनकी हरकतों की लम्बी फेहरिश्त है। अब हबीब का पूरा धंधा ही गफलत में है। उनकी अपनी पार्टी से लेकर महिला आयोग तक जावेद हबीब के पीछे पड़ गयी है। जावेद मियाँ ने आनन-फानन में अपने कुकृत्य के लिए सार्वजनिक माफी भी मांग ली लेकिन अब बात आगे बढ़ गयी है।  

जावेद को अपने किये की  सजा भुगतना पड़ सकती है ,लेकिन जिस तरह से इंदौर के भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय ने जावेद के सैलूनों को बंद करने की चेतावनी दी है ,मै उसके खिलाफ हूँ। क्योंकि जावेद के सैलूनों में सैकड़ों लोग काम करते हैं उनका इसमें कोई दोष नहीं है। यदि उन्हें बंद कराया गया तो कितने घरों के चूल्हे जलना  बंद हो जायेंगे। जावेद  को पता नहीं कि उसने अपना कितना बड़ा नुक्सान कर लिया है ? मुझे तो लग रहा था कि आने वाले दिनों में जावेद को भाजपा राज्यसभा भेजने वाली थी,लेकिन अब शायद ऐसा हो। जावेद की प्रतिभा पर किसी को कोई शक नहीं हो सकता लेकिन उसके व्यवहार में आये इस घटियापन से उसके असंख्य   प्रशंसक भी हैरान हैं। मै या मेरे परिवार का कोई सदस्य तो आजतक जावेद के सैलूनों में गए नहीं ,क्योंकि हमारे हैसियत इस लायक नहीं है किन्तु जो जाते रहे हैं वे भी अब सोचने लगे हैं की जाएँ या जाएँ ?क्या पता कब जावेद उसके सिर में पानी की जगह कुछ और लगा दे। भारत में जावेद और हबीब नाम के अनेक महान कलाकारों से मेरा परिचय रहा है लेकिन जावेद हबीब से मै कभी नहीं मिला और मुझे अफ़सोस के साथ संतोष है कि जो हुआ सो अच्छा ही हुआ।  

जावेद नाम के एक शख्स हमारे शहर में जन्में और आजकल मुंबई में बैठकर फिल्मों की पटकथाएं लिखकर झंडे फहरा रहे हैं।  पहले उनकी जोड़ी सलीम साहेब  के साथ थी। एक हबीब साहब तनवीर हुआ करते थे ,रंगमंच के राजा,एक हबीब पेंटर  हुआ करते थे मशहूर कब्बाल ,लेकिन इस जावेद हबीब ने जावेद और हबीब दोनों शब्दों की ऐसी-तैसी कर दी। जावेद का मतलब अजर-अमर होता है। हबीब का मतलब सबका प्रिय   होता है। लेकिन हमारे राष्ट्रीय नाई ने इन दोनों शब्दों का अर्थ ही मिटटी में मिला दिया। जावेद हबीब की एक हरकत ने सिर्फ एक बार फिर हिन्दू -मुसलमान विवाद खड़ा कर दिया है बल्कि उसने अपनी चार दशक की उपलब्धियों पर भी पानी फेर लिया है। अपने खानदानी पेशे की प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया है। इरफ़ान की बेवकूफी की शिकार पूजा भले ही एक बार उसे माफ़ कर दे किन्तु ये देश शायद ही उसे माफ़ करे और  मुमकिन है कि उसे भी मूर्धन्य पेंटर मकबूल फ़िदा  हुसैन की तरह अब भारत छोड़कर किसी अन्य देश में अपने सेलून  खोलना पड़ें। वैसे जावेद को एक बार सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए ,ये न्याय का प्रकृतिक सिद्धांत भी कहता है।

- राकेश अचल

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