गालियों और गोलियों से नहीं मरा करते गांधी

लोकतंत्र बना इस तमाशे का मूकदर्शक !

गालियों और गोलियों से नहीं मरा करते गांधी

 

वर्ष 2021 महात्मा गांधी के लिए चुनौतियों भरा रहा ,1948  में गोलियों से मारे जा चुके गांधी को अब गालियों से मारने की नाकाम कोशिश की जा रही है। समापन के साथ जो वर्ष कोरोना जैसी वबा के लिए याद किया जाना था उसकी पीठ पर महात्मा गांधी पर गालियों की बौछार करने वाले तथाकथित भगवाधारियों के विकृत और भयावह चेहरे छपे हुए हैं। महात्मा गांधी पता नहीं किस हाड़-मांस के बने हुए हैं कि गोली से मरते हैं और गाली से। वे ताली और थाली से भी सुरक्षित हैं। गांधी भी नहीं मरते तो गौड़से भी कहाँ मर रहे हैं। वे नए-नए अवतारों में सामने आकर गांधी पर वार कर रहे हैं और दुर्भाग्य ये है कि सत्ता का समर्थन   पाकर गौड़से के वंशजों का कुनवा लगातार बढ़ रहा है। एक गोड़से थकता नहीं है कि दूसरा गौड़से सामने जाता है। गोड़से और गांधी के बीच का ये संग्राम अनंत है। लोकतंत्र इस तमाशे का मूकदर्शक बना हुआ है। ललाट पर बड़ा सा बैंदा लगाए गोड़से की अनुकृति जब महात्मा गांधी को गालियां दे रहा था तब उसके भीतर से अनेक गोड़से झाँक रहे थे। नए गोड़से की गालियों पर तालियां बजाने वाले लोग किसी धर्म संसद का हिस्सा थे ,जाहिर है कि वे धर्मभीरु ही होंगे। आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस धर्म संसद में विश्व के  सबसे लोकप्रिय किरदार को गालियां दी जा रहीं हों और तालियां बजाई जा रही हों उस धर्म संसद का स्वरूप कैसा होगा ? उसे धर्म संसद कहा जाना धर्म और संसद का अपमान है। देश का दुर्भाग्य ये है कि परिवर्तन की लालसा में देश ने गलती से ऐसे लोगों के हाथों में सत्ता दे दी जो जन्म-जन्मांतर से गोड़से के आराधक हैं।

उसके मंदिर बना रहे हैं,उसे इतिहास पुरुष बना रहे हैं और जब ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है तो उनके पेट में पीर होने लगती है। ऐसे नराधमों की गिरफ्तारी पर आहत लोग जब 'प्रोटोकॉल' के उल्लंघन की बात करते   हैं तो हंसी भी आती है और तरस भी। कभी-कभी लगता है कि गोड़से,गोली और गाली के समर्थकों को हमारे शैक्षणिक संस्थान 'डाक्टर आफ फिलासफी' की उपाधि आखिर कैसे दे देते हैं ? सरकारें उन्हें अपने काबीना में शामिल कैसे कर लेती हैं ? फिर लगता है कि जब सारे कुएं में ही भांग घुल चुकी हो तो ऐसे सवाल करने का कोई अर्थ है ही नहीं। गांधी और उनकी विचारधार से आतंकित भीड़ को मै पाकिस्तान भेजने का मश्विरा कभी नहीं दूंगा,मै चाहूंगा कि ऐसे लोगों को खुली छूट दे दी जाये गालियां देने की। आने वाले दिनों में जनता खुद ऐसे लोगों से निबट लेगी ,क्योंकि जनता  गांधी की ऋणी है। जनता को पता है कि इस देश को गांधी ने क्या-क्या दिया  और उससे क्या-क्या लाभ हुआ है ? जो लोग गांधी पर गालियां बरसा रहे हैं उनके पास विचारधारा के नाम पर शून्य के अलावा कुछ है ही नहीं। यदि होता तो फिर उनके पास गालियां होतीं। विचारधारा शून्य लोगों के पास स्वच्छता अभियान के लिए एक प्रतीक चिन्ह तक नहीं है उसके लिए भी झक मारकर उन्हें गांधी का ही चश्मा इस्तेमाल करना पड़ता है।

गांधी ने देश और दुनिया को हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा का पाठ पढ़ाया ,गांधी ने देश दुनिया को गाली और गोली के बजाय गीता और मानस का पाठ पढ़ाया है। गांधी ने कभी भी त्रिपुण्ड लगाकर देश को आकर्षित या चमत्कृत करने का प्रयास नहीं किया। दिन में पांच बार की नमाज की तरह कपडे नहीं बदले। गांधी सादा जीवन ,उच्च विचार के प्रतीक थे। उनका अनुशरण करना गोली और गाली के समर्थकों के लिए बहुत टेढ़ी खीर है। गांधी केवल गांधी हैं और उनकी आंधी को बीती सदी में कोई रोक पाया था इस सदी में कोई रोक पायेगा। गांधी को मारने के लिए आप चाहे जितनी गोलियां और गालियां बना लें ,कम ही पड़ेंगी। गांधी को गालियां देने वाले कालीचरण महाराज के बाद अब जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर विवादित बयान दिया है। यति नरसिंहानंद ने गांधी को गंदगी बताया। उन्होंने हरिद्वार से एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि हमने तय किया था कि गांधी के बारे में नहीं बोलेंगे, लेकिन आज मजबूरी है। यति नरसिंहानंद गाजियाबाद के डासना देवी मंदिर के महंत हैं। 6 दिसंबर को उन्होंने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी का धर्मांतरण कराया था। साथ ही रिजवी को नया नाम जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी दिया था।मुझे हैरानी है कि जूना अखाड़ा ऐसे लोगों को बर्दाश्त कैसे करता है ? गांधी की आंधी में तिनके की तरह उड़ रहे लोग मुझसे सवाल करते हैं कि- क्या महत्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना कोई संवैधानिक प्रावधान है ?

मैंने कहा-' बिलकुल नहीं है,आप चाहें तो सपने में भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मत कहिये ,लेकिन जान लीजिये कि इस देश में राम को बेचना भी कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। गांधी पक्के रामभक्त थे,उन्होंने कभी राम को नहीं बेचा,कभी राम के लिए मंदिर बनाने की बात कहकर किसी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगे। राम को मानने वाले गांधी भी इस युग में मर्यादा पुरुष थे। ये आपके ऊपर है कि आप उन्हें राष्ट्रपिता माने या माने। इससे गांधी की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है ,हाँ गांधी का विरोध करते-करते आपकी सेहत जरूर खराब हो सकती है ' देश को साम्प्रदायिकता की आग में झौंकने को आतुर लोग गांधी को 'हौआ' मानते हैं ,और उनके लिए 'हौआ' हैं भी गांधी। क्योंकि यदि गांधी और उनका विचार होता तो गोडसे,गोली और गाली वाले लोग अब तक देश की गंगा-जमुनी तहजीब का धुंआं उड़ा चुके होते। देश को गर्व है कि उसके पास गाँधी का विचार है। गांधी किसी पार्टी ,जाति या सम्प्रदाय के नहीं बल्कि इस देश की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे बिना अमृतपान किये ही अजर,अमर हैं। उन्हें मारने के लिए गोडसे की पूरी प्रजाति कम पड़ेगी। ये देश अंतत: गांधीमार्ग पर ही चलकर सुखी और समृद्ध होगा। जो लोग ऐसा नहीं मानते वे हमेशा विचलित रहेंगे। भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। सभी प्रिय पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

- राकेश अचल

 

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