क्यों नहीं है पत्रकारों के बीच एकता…

कुछ पत्रकार अन्य पत्रकारों को नहीं समझते अपने बराबर का सहयोगी !

ग्वालियर में पत्रकारिता से जुड़े लोगों में से चंद पत्रकार जो स्वयं को अन्य पत्रकारों से श्रेष्ठ समझते हैं हालांकि उनकी श्रेष्ठता की वास्तविकता अन्य पत्रकारों से छुपी नहीं है और वे स्वयं भी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि वे कितने पानी में हैं। ग्वालियर की राजनीति से जुड़े लोगों के बीच स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए उनका बिहेवियर ऐसा रहता है कि उनसे बढ़कर कोई पत्रकार शहर में नहीं है। 

यही कारण है कि अन्य पत्रकारों के साथ भेदभाव की स्थिति निर्मित होती जा रही है। ये चंद लोग किसी गैंग के रूप में किसी भी बड़े नेता, मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी से मिलकर उनकी नजरों में स्वयं की छवि व अपने बैनर को बेहतर बताते हुए अन्य बैनर एवं पत्रकारों की छवि को धूमिल करने का कार्य कर रहे हैं। ये पत्रकार इन राजनेताओं और अधिकारियों  के समक्ष यह प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं कि आमुख खबर उन्होंने अपने बैनर में प्राथमिकता के साथ दिखाई या छपवाई जबकि वास्तविकता ठीक इसके उलट होती है या खबर केवल उस राजनेता या अधिकारी को दिखाने के लिए मोबाइल में उसके सामने मोबाइल में ही प्रस्तुत की जाती है। और वाह- वाही लूटने या स्वयं की पीठ थप-थपाने का काम करते हैं। यदि आमुक अधिकारी या नेता श्रेष्ठ पत्रकारों से इन श्रेष्ठ पत्रकारों से यह पूछ लें कि यह खबर आपके चैनल पर कितने बजे कब आयेगी, किस दिन अखबार में छपेगी। तो स्थिति एकदम स्पष्ट हो जाएगी। क्योंकि जो व्यक्ति खबर प्रसारित करता है वह अपनी और अपने बैनर की पब्लिसिटी के लिए उसे सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफार्म पर भी शेयर कर ही देता है।(व्हाट्सएप को छोड़कर)

हालांकि इनमें से भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वास्तविक रूप से खबरों का का प्रसारण करते हैं। लेकिन इनकी संख्या बहुत ही कम गिनी चुनी है जो बमुश्किल दहाई को छूती है।  जिनके द्वारा प्रसारित की गई या या प्रकाशित करवाई गई खबरें सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफॉर्म्स पर भी दिखाई देती हैं। बाकी सब तो पीडीएफ और व्हाट्सएप पर ही खबरें-खबरें खेलते हैं।और इससे हटकर यदि देखा जाए तो लोकल बैनर से जुड़े हुए पत्रकार राजनेताओं व विभागों को अपने बैनर की खबरों में ज्यादा समय व स्थान देते हैं।

इतना ही नहीं चुनावों के दौरान या त्योहारों के समय जब छोटे,मझोले बैनर के पत्रकारों को मिलने वाले विज्ञापन मैं भी इन तथाकथित श्रेष्ठ पत्रकारों की वजह से नुकसान उठाना पड़ता है। क्योंकि ये लोग विज्ञापन दाताओं के बीच ऐसा मैसेज सर्कुलेट कर देते हैं की विज्ञापन देने वाला यह समझता है कि इन से बढ़कर कोई बैनर और पत्रकार नहीं है यही मुझे भरपूर सपोर्ट करेगा। और उन्हें एक मुस्त अच्छा खासा विज्ञापन उपलब्ध करा दिया जाता है जबकि लोकल व छोटे मझोले बैनर के पत्रकार इधर उधर मुंह ताकते रह जाते हैं।

इसका जीता जागता उदाहरण देखने को उस समय मिला जब दीपावली के समय जब तमाम पत्रकार इस उम्मीद में कलेक्ट्रेट के एक चर्चित विभाग, स्वास्थ्य विभाग और राजनेताओं के यहां इस उम्मीद में पहुंचे थे कि उन्हें दीपावली के शुभकामना संदेश के विज्ञापन के रूप कुछ सहयोग राशि अवश्य मिलेगी। लेकिन 95 परसेंट लोगों को इनके यहां से खाली हाथ लौटना पड़ा।

सूत्रों की माने तो ऐसा नहीं है कि इन विभागों और नेताओं ने पत्रकारों को विज्ञापन या सहयोग नहीं किया है। उन्होंने बाकायदा स्वयंभू इन तथाकथित श्रेष्ठतम पत्रकारों को सहयोग भी किया है और वह भी अच्छा-खासी रकम के रूप में। जिनके लिए कुछ विभागों ने तो इन पत्रकारों को ऑब्लाइज करने के लिए बाकायदा अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर पारितोषिक बांटा और जो नहीं पहुंचे उनके घर पर बाकायदा अपना प्रतिनिधि भेज कर इन्हें अनुग्रहित किया गया।

इन विभागों या नेताओं की नकारात्मक खबरों और गतिविधियों का जो पत्रकार या बैनर खुलासा करता है उसे ये तथाकथित श्रेष्ठ चाटुकार पत्रकार उस नेता या विभाग की नजरों में फर्जी घोषित करवाने का कार्य भी करते हैं। इनकी बातों में आकर राजनेताओं एवं विभागों के द्वारा भी पत्रकारों के बीच बैनर के आधार पर भेदभाव किया जाता है। इनके बहकावे में आने वाले अधिकारियों, विभागों और राजनेताओं की सकारात्मक खबरों के साथ साथ इनके द्वारा किए जा रहे नकारात्मक कारनामों व खबरों को भी जनमानस के सामने लाने का कार्य पत्रकारों को करना चाहिए। इस एडीटोरियल के साथ ही इसकी शुरुआत मैंने तो कर दी है आप कब कर रहे हैं ?

जबकि पत्रकार खबर लिखते समय या दिखाते समय किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करता है। पत्रकार हमेशा वही लिखता है या दिखता है जो  घटित हो रहा होता है जिसका प्रभाव समाज पर पड़ता है वही दिखाने या लिखने का प्रयास पत्रकार करता है लेकिन कुछ लोगों की चाटुकारिता वाली आदत के और इनके बहकावे में फंसे लोगों के कारण पत्रकारिता पर सवालिया निशान भी लगने लगे हैं। साथ ही जो लोग दिन-रात इस क्षेत्र में मेहनत करते हैं उनके बीच भी निराशा के भाव उत्पन्न होते हैं।

इस प्रवृत्ति के लोगों से निपटने के लिए सभी पत्रकारों के द्वारा अपनी कार्यशैली में सुधार करना नितांत आवश्यक है साथ ही पत्रकारों के बीच एकता का होना भी बहुत जरूर है। पत्रकारों को यह भी समझना होगा कि सभी एक दूसरे के सहयोगी हैं। सभी एक समान हैं कोई किसी से श्रेष्ठ या कमतर नहीं है। सभी को मिलकर साथ कार्य करना है। तभी ऐसे लोगों पर काबू पाया जा सकता है। और जो पत्रकार स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश करें उनसे सचेत रहें क्योंकि वह हमेशा आपका नुकसान ही करेंगे।

रवि यादव