देव उत्थान एकादशी आज

इस वर्ष 14 और 15 नवंबर दो दिन मनाया जा रहा है ये पर्व…

देव उत्थान एकादशी आज

सनातन धर्म की दृष्टि से अगला सप्ताह पुण्य फल देने वाला है। भगवान के विभिन्न अवतार से जुड़े 3 व्रत इस सप्ताह में आएंगे। मान्यता है कि यह व्रत करने वाले सभी प्रकार के पापों से मुक्त जाते हैं और उनकी समृद्धि के रास्ते खुल जाते हैं। देव उठान या देव प्रबोधनी एकादशी का भगवान विष्णु का शयन काल पूरा होगा और इसके बाद विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। वैकुंठ चतुर्दशी को भगवान हरिहर का मिलन होगा। वहीं कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र नदियों में नहाने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। एकादशी से पूर्णिमा तक के काल को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाता है। इस दौरान सर्वार्थ सिद्धि, अमृत और पद्मक योग भी बनेंगे।

देव प्रबोधनी एकादशी : कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को देव प्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 14 और 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। एकादशी तिथि का प्रारंभ रविवार सुबह 5.48 बजे से हो गया है और यह दूसरे दिन 6.39 बजे तक रहेगी। रविवार को एकादशी तिथि पूरे दिन रहेगी, अंचल में 14 नवंबर को सूर्योदय 6.37 बजे हो रहा है। 

अत: सोमवार को द्वाद्वशी वेधी एकादशी होने के कारण वैष्णव एवं निम्बार्क संप्रदाय के अनुयायियों के द्वारा सोमवार के दिन देव प्रबोधनी एकादशी मनाएंगे। स्मार्थ अर्थात् स्मृतियों को मानने वाले गृहस्थ लोगों के लिए देव प्रबोधनी एकादशी रविवार को मनाई जाएगी। देव प्रबोधनी एकादशी की रविवार और सोमवार को पूजा शाम शीर्षोदय लग्न मिथुन में 7.24 बजे से 9.37 बजे होगी। 

तुलसी विवाह रविवार को किया जाएगा। कार्तिक मास के देव प्रबोधनी एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक के समय का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि इसमें भीष्म पंचक का प्रारंभ भी रविवार से हो जाएगा और भीष्म पंचक की पूर्णता 19 नवंबर शुक्रवार पूर्णिमा के साथ होगी। इसी के साथ कार्तिक स्नान पूर्ण हो जाएगा। 14 नवंबर से 19 नवंबर तक विशेष शुभ पर्व एवं मुहूर्त रहेंगे।

वैकुंठ चतुर्दशी : वैकुंठ चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 17 नवंबर को सुबह 9.50 बजे से होगा तथा यह तिथि दूसरे दिन गुरुवार दोपहर 12 बजे तक रहेगी। इस दिन को हरिहर मिलन होना माना जाता है। यह व्रत कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान वैकुंठनाथ का पूजन और सवारी निकालने का उत्सव किया जाता है। कहीं-कहीं देव मंदिरों में वैकुंठ द्वार बने हुए होते हैं जो इसी दिन खोले जाते हैं तथा उसमें से भगवान की सवारी निकाली जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा : पूर्णिमा 19 नवंबर को है। यह चंद्रदेव, विष्णु और लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने की श्रेष्ठ तिथि मानी गई है। इस दिन को देव दिवाली भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन गंगा तट पर देवता दीप जलाकर स्वर्ग प्राप्ति का उत्सव मनाते हैं। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन महादेव जी ने त्रिपासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इसी दिन संध्या समय भगवान का मत्स्य अवतार हुआ था।

भीष्म पंचक : पंचक कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक रहता है। इसीलिए इसे भीष्म पंचक कहते हैं। जो स्त्रियों पूरे कार्तिक मास तक किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान नहीं कर पातीं हैं, वे 5 दिन तक यह पंचक स्नान तो करती ही हैं साथ ही स्त्री-पुरुष पांच दिन निराहार व्रत करते हैं।

तुलसी- शालिगराम विवाह 17 को : सनातन धर्म मंदिर में तुलसी शालिगराम विवाह बुधवार 17 नवंबर को आयोजित किया जा रहा है। शालिगराम की बारात मन्दिर प्रांगण में स्थित गणेश मन्दिर से चक्रधर मन्दिर पहुंचेगी।

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