फ़िल्म को सामाजिक बनाने का एक अनूठा फिल्मोत्सव

चलचित्र सबसे सशक्त माध्यम है...

फ़िल्म को सामाजिक बनाने का एक अनूठा फिल्मोत्सव

ग्वालियर। चलचित्र लोगों की मनोदशा में बदलाव कर सकता है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इस माध्यम को सिर्फ मनोरंजन के साधन के रूप में विकसित किया गया और चाहे अनचाहे इसके जरिये कुरीतियां ही प्रभावशाली ढंग से परोसी गईं और भारतीय परंपरा,संस्कृति और गौरवशाली विरासत को नजरअंदाज किया गया। सिनेमा विद्रूपताओं को समाप्त करने की जगह उनके विस्तार का माध्यम बन गया। जबकि सत्तर के दशक तक सिनेमा में भारतीयता की झलक स्पष्टतौर पर मिलती थी। अब इसे फिर पटरी पर लाने के प्रयास शुरू हुए है। इसका बीड़ा उठाया है संस्था चित्र भारती द्वारा। चित्र भारती ने विगत दिनों राज्यस्तरीय लघु फ़िल्म उत्सव का आयोजन किया। इसमें बंदिश थी कि फिल्में इन सामाजिक केटेगरी की होनी चाहिए। 3 और चार अक्टूबर को ग्वालियर के आईआईटीटीएम अर्थात भारतीय यात्रा और पर्यटन संस्थान परिसर में इसका आयोजन किया गया। इस आयोजन की खास बात ये थी कि इसमें भारतीयता झलक रही थी। फिमों से ,वातावरण से,वेशभूषा से और आयोजनों से भी। इसका प्रारम्भ गणेश वंदना से हुआ। पहले दिन उद्घाटन सत्र हुआ। इसके मुख्य अतिथि सेंसर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध निर्माता ,निर्देशक पहलाज निहलानी थे। अध्यक्षता जाने - माने सीरियल लेखक और निदेशक आकाश आदित्य लामा ने की।  इसमें तीन सभागारों में निर्णायकों ने साथ लघु फिल्में देखकर अलग - अलग केटेगरी में उन्हें उन्हें छह पुरुष्कारो के लिए चयनित किया। पहला वनमाला देवी पंवार सम्मान दिया गया शैफाली गुप्ता की फ़िल्म - दुःख- तारा को। यहां पर प्रदर्शित की गईं लघु फिल्मों में कुछ न कुछ संदेश था। 

युवाओं ने जिन विषयों को उठाकर फिल्मों का निर्माण किया वह समाज को जोडऩे वाले विषय थे। विशेषकर जिस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का अवार्ड दिया गया है उसमें कन्या भ्रूण हत्या का संदेश था। देश के प्रधानमंत्री बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश देशभर में दे रहे हैं। मुख्य अतिथि पहलाज निहलानी ने कहा कि खुशी की बात है कि जब समाज में फ़िल्म,सीरियल और वेबसीरिज के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है ऐसे में हमारे युवा इस तरह के विषय उठाकर समाज में जागरण का काम कर रहे हैं। उन्होंने फिल्म की निर्माता-निर्देशक से कहा कि इस फिल्मों को हर मंच पर दिखाएं, जिससे समाज में बेटियों के प्रति अच्छा संदेश जाए। उन्होंने कहा कि आज समाज कन्या भ्रूण हत्या जैसे कई दूषित काम हो रहे हैं। हम आइना बनकर समाज जागरण का काम करें। घर में छोटे-छोटे मुद्दे हैं, जो समाज को बिघटन की ओर ले जा रहे हैं, इन मुद्दों पर फिल्मों का निर्माण करें। फिल्मों के माध्यम से संदेश दें कि यह करना गलत है। आज की युवा पीढ़ी समाज जागरण में महती भूमिका निभा सकती है। आपको आज जो यह मंच मिला है वह आने वाले समय में आपको ख्याति दिलाएगा। इसलिए मेरा आग्रह है कि अपनी कोशिश जारी रखें, इससे पीछे नहीं हटें। 

कई फिल्मों का निर्देशन कर चुके आकाश आदित्य लामा कहते है - वेब सीरीज ने अब फ़िल्म का दायरा बढ़ा दिया है। आगे लघु फिल्मों का दौर आएगा। जिस तरफ आधा या एक मिनिट का विज्ञापन प्रभाव छोड़ता है वैसी ही फ़िल्म बनानी होगी क्योंकि अब इसका प्रसार माध्यम टाकीज या टीवी सेट ही नही जेब मे पड़ा मोबाइल भी है। इसके जरिये संस्कृति को खराब करने का खतरा भी है और इस तरह के प्रयास राष्ट्र के कर्तव्य की तरह हैं। खुशी है यह सब संजीदगी से हो रहा है। आईआईटीटीएम के निदेशक डॉ. आलोक शर्मा ने कहा कि आज सिनेमा घरों के अलावा घरों में मोबाइल, लैपटॉप आदि के माध्यम से कहीं युवाओं में फूहड़ता तो नहीं परोसी जा रही। योजना के तहत कहीं जहर तो नहीं पिलाया जा रहा। हमें इसे पहचानकर इससे लडऩा होगा। चित्र भारती काफी हद तक यह लड़ाई लड़ रही है। हमारे पास सांस्कृतिक धरोहर, विरासत, वैदिक धरोहर समुद्र के समान है। यह रचनात्मक प्रेरणा को जगाने वाला है। यदि हम इस दिशा में फिल्मों का निर्माण करेंगे तो रचनात्मकता को पंख लग जाएंगे। आयोजन में   चित्र साधना के सचिव अतुल गंगवार और फ़िल्म सिटी मुंबई के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत मिश्रा की मौजूदगी भी रही। इस प्रतियोगिता में स्क्रीनिंग के बाद विभिन्न श्रेणियों में जो  विजेता रहे उनमें वनमाला देवी सम्मान- श्रेष्ठ लघु फिल्म- दुखतारा, निर्माता-निर्देशक- शैफाली गुप्ता,श्रेष्ठ ध्वनि- नो मोर निगेटिव न्यूज- कार्तिकेय नामदेव एवं विजय गौर,श्रेष्ठ संपादन- नक्शे कदम- हेम कुशवाह,श्रेष्ठ छायांकन- कूड़ादान- राहुल शर्मा, जूरी च्वाइस अवार्ड- अनमोल रिश्ता- उमेश गोंजे श्रेष्ठ वृत्त चित्र- पाताल- गजल सिंह शामिल रही। इनके निर्माता निर्देशकों को सम्मानित किया गया। 

आयोजन समिति के संयोजक डॉ केशव पांडे कहते है - इस तरह के आयोजन का मतलब चम्बल को लेकर फिल्मकारों द्वारा बताई गई नकारात्मक छवि से अंचल को उबारना भी है। यह कि चम्बल में सिर्फ डाकू ही नही और भी बहुत कुछ है। कला,संस्कृति और पुरातत्व भी है जिन पर फिल्में बनाई जा सकतीं हैं। चित्र भारती के प्रांत सह संयोजक दिनेश चाकणकर कहते है कि ग्वालियर अंचल में यह पहला आयोजन था शुरुआत में लगा कि एंट्री बहुत कम आएंगी लेकिन वे रिस्पॉन्स देखकर दंग रह गए। साठ से ज्यादा एंट्री आईं जिसके कारण हमें स्क्रीनिंग थियेटर और निर्णायक बढ़ाना पड़े। अंचल के गुमनाम युवा फ़िल्म निर्माण में लाजबाव काम कर रहे हैं। अब्बल चुनी हुई फ़िल्म दुःखतारा का निर्देशन और कलात्मकता किसी बड़ी बजट की फ़िल्म को भी पीछे छोड़ती दिखती है। अंतिम समारोह में निर्णायक राजेन्द्र शर्मा मुंबई, राकेश सेन एवं मनोज पटेल भोपाल और सहयोगी रहे ग्रीनवुड स्कूल की निदेशक किरण भदौरिया, वीआईएसएम कॉलेज के चेयरमैन डॉ सुनील सिंह राठौर  का भी  सम्मान किया गया। अंत मे आभार प्रदर्शन संयोजक चंद्र प्रताप सिकरवार द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि अब बृहद आयोजन भोपाल में होगा।

विनीता शर्मा

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