दवाओं पर रियल MRP प्रिंट होगी तो काली कमाई भी होगी बंद !

सभी ईमानदार डॉक्टर्स से क्षमा सहित प्रार्थना...

दवाओं पर रियल MRP प्रिंट होगी तो काली कमाई भी होगी बंद !

दवाओं पर लागत मूल्य जिसमें निर्माता और विक्रेता का फिक्स लाभांश और टैक्स (GST) के सहित MRP (वास्तविक कीमत) प्रर्दशित की जाना चाहिए। जिससे केवल एक ही फिक्स रेट पर सभी जगह उन दवाओं का विक्रय किया जा जाये। जैसा कि अन्य वस्तुओं का किया जाता है। 

अभी हो क्या रहा है ? 

हार्ट अटैक " हो गया

तो ......डॉक्टर कहता है -  Streptokinase इंजेक्शन ले के आओ ... 9,000/= रु का ... इंजेक्शन की असली कीमत 700/= - 900/= रु के बीच है .., पर उसपे MRP 9,000/= का है ! आप क्या करेंगे ?

•..............टाइफाइड हो गया ... 

डॉक्टर ने लिख दिया - कुल 14 Monocef लगेंगे ! होल - सेल दाम 25/= रु है ... अस्पताल का केमिस्ट आपको 53/= रु में देता है ... आप क्या करेंगे ?

•............,,,,किडनी फेल हो गयी है .., हर तीसरे दिन Dialysis होता है .., Dialysis के बाद एक इंजेक्शन लगता है - MRP शायद 1800 रु है ! 

आप सोचते हैं की बाज़ार से होलसेल मार्किट से ले लेता हूँ ! पूरा हिन्दुस्तान आप खोज मारते हैं , कही नहीं मिलता ... क्यों ?

कम्पनी सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर को सप्लाई देती है !!


इंजेक्शन की असली कीमत 500/= है , पर डॉक्टर अपने अस्पताल में MRP पे यानि 1,800/= में देता है ... आप क्या करेंगे ??

*..........इन्फेक्शन हो गया है .., डॉक्टर ने जो Antibiotic लिखी , वो 540/= रु का एक पत्ता है .., वही Salt किसी दूसरी कम्पनी का 150/= का है और जेनेरिक 45/= रु का ... पर केमिस्ट आपको मना कर देता है .., नहीं जेनेरिक हम रखते ही नहीं , दूसरी कम्पनी की देंगे नहीं .., वही देंगे , जो डॉक्टर साहब ने लिखी है ... यानी 540/= वाली ? आप क्या करेंगे ?

• बाज़ार में Ultrasound Test 750/= रु में होता है .., चैरिटेबल डिस्पेंसरी 240/= रु में करती है ! 750/= में डॉक्टर का कमीशन 300/= रु है ! MRI में डॉक्टर का कमीशन Rs. 2,000/= से 3,000/= के बीच है !

इस प्रकार का कृत्य एक दम गलत है यह केवल गलत ही नहीं संवेदनहीन और डॉक्टरी जैसे पवित्र पेशे पर भी प्रश्नचिन लगाता है।

दवा निर्माताओं, डॉक्टर और अस्पतालों के आपसी गठबंधन से ये लूट , ये नंगा नाच , बेधड़क , बेखौफ्फ़ देश में चल रहा है और इसमें सरोकारों की सहभागिता होने का भी संशय होता है क्योंकि सरकारों की नाक के नीचे यह सब चलता हो और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगे ऐसा संभव ही नहीं है ! तो फिर क्या Pharmaceutical कम्पनियों की Lobby इतनी मज़बूत है , की उसने देश को सीधे - सीधे बंधक बना रखा है।

*10/= रु ज्यादा मांगने पर ऑटोरिक्सा वाले से, सब्जी वाले से तो चिक-चिक करने लगते हैं , लेकिन उन डॉक्टर्स का क्या करेंगे जो सरेआम सबको लूटते हैं ?

एक सोच बदलाव की . . . 

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