ये क्लियर कट स्पष्ट है कि...
नेता राजनीति में समाज सेवा नहीं धंधा करने आता है !
नेताओं को वास्तव में जब कोई घोटाला करवाना होता है तो ये राजनेता मौखिक आदेश देते हैैं। मौखिक आदेश मानने के लिए अधिकारी बाध्य नही होता है, लेकिन नही मानेगा तो मलाईदार पोस्ट से हटा दिया जाएगा। तो अधिकारी एक कैल्क्युलेटेड रिस्क लेता है। 99% केस में बच जाता है, एक प्रतिशत में फँस जाता है। लेकिन नेता उस एक प्रतिशत में भी सुरक्षित रहता है। यानी की राजनीति के बारे में यूं भी कह सकते हैं कि यह समाज सेवा नहीं धंधा है। जिस प्रकार धंधे को बचाने के लिए व्यापारी प्रयत्न करता है उसी प्रकार राजनेता अपनी राजनीति रूपी धंधे बचाए रखने के लिए तरह तरह के षड्यंत्र रचता है। सम्भवतः अनिल देशमुख पर आरोप कभी सिद्ध नही हो पाएँगे। सचिन वाजे कि बहाली भी नेताओ के मौखिक आदेश पर, लेकिन अधिकारियों के हस्ताक्षर से हुई थी। किसी नेता पर कोई आरोप सिद्ध नही हो पाएगा। मनी ट्रेल से हो सकता नेता फँसे, लेकिन किसी भी नेता को इंकम टैक्स या CBI गिरफ़्तार करेगी तो हम ही लोग सड़कों पर निकल आएँगे, पुलिस की जेल गाड़ी को घेर लेंगे, व अगले ही चुनाव में नेता को सहानुभूति में दो तिहाई से जिताएँगे।
अतिशयक्ति लगती है आपको? तो एक घटना का जरा वह समय याद किए जब इंदिरा गांधी ने लोगों को न सिर्फ जेल में डाला था, बल्कि उनकी नसबंदी भी की थी। और इंदिरा की जब गिरफ़्तारी हुई तो दिल्ली सड़कों पर थी। और उसके बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी को दो तिहाई बहुमत से जीत भी दिलवाई। कोयला घोटाले में कोयला सचिव को जेल हुई, लेकिन कोयला मंत्री? कोयला मंत्री अपने मौनी बाबा ही थे। आराम से अपना रिटायर्मेंट एंजॉय कर रहे है व नैतिकता पर ज्ञान झाड़ रहे है। जी, हम ऐसे ही है। अर्नब के लिए उसकी बिल्डिंग से भी कोई नही निकला था लेकिन लुटेरे नेता के लिए पूरा नगर सड़कों पर निकल आएगा। पोईंट ये है कि ऐसे देशद्रोही नेताओं को सजा केवल हमारा वोट दे सकता है। अगर हम उन लोगों को चुनाव में नही हराते है तो जो नौकरी देने वालों के घरों के सामने बम रखते है। उनसे वसूली करते हैं तो हमारा सर्वनाश निश्चित है।
यह मुद्दा खास ऐसे लोगों के लिए है जो इन तीन में से एक या तीनों आरोप लगाते हैं -
- (1) सरकार क्यों इन्हें अंदर कर नहीं सकती ?
- (2) सरकार में दम नहीं है, हिम्मत नहीं है
- (3) आरोप झूठे हैं, ये नेता निर्दोष हैं, एक भी आरोप साबित नहीं हो पाया तो ये निर्दोष है।
ऐसे आरोप लगानेवालों की अक्ल, इरादे और नीयत पर आप को जो समझना है वो समझ जाएँ । भारतीय पश्चिमी देशों में जाकर टॉप कंपनियो के लिए CEO ही नही बनते है, बल्कि अपनी कंपनियां भी वहीं खड़ी करते है। क्यूँकि वहाँ उनसे कोई वाजे हफ़्ता माँगने नही आता। और हमारे यहां वाजे पलता है क्यूँकि हम लुटेरे राजनीतिक खानदानो को वोट देते है। हम वो अनोखे लोग है जो लुटेरे नेताओ के बच्चों को अरबपति बनाने के लिए अपने बच्चों को बेरोज़गार रखते है। हममें से कुछ अपनी जाति के लुटेरे को वोट देते है इस आशा में कि वो भर्ती घोटाले कर हमें सरकारी नौकरी देगा। कुछ लुटेरों को हम इसलिए वोट देते है कि वो हमें मुफ़्त बिजली पानी देगा। नैतिक पतन हमारा हुआ है व इसीलिए हमारे बच्चे बेरोज़गार है। इसलिए अगर हफ़्तावसूली रोकना चाहते आप तो वोट देने जाय अवश्य, बारिश में, धूप में, चाहे स्ट्रेचर पर जाना पड़े व वोट केवल मोदी को दे, हर बार।
टिप्पणी - में आवाहन करता हूँ इस देश के हर बेरोज़गार युवा से, व योग्य वर की प्रतीक्षा कर रही हर युवती से, कि अपने माता पिता से ये अवश्य पूछे कि उन्होंने क्यूँ लुटेरे नेताओ को वोट दिया।
- रवि यादव
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