उतपाती बंदर बने लोगों की जान के दुश्मन

लक्ष्मण तलैया वासियों को आखिर कैसे मिलेगा छुटकारा...

उतपाती बंदर बने लोगों की जान के दुश्मन

यह सच है की किले की तलेटी वाला क्षेत्र एक समय काफी हरा भरा जंगली पेड़ पौधों से लथपथ क्षेत्र हुआ करता था और यह जंगली जानवरों के रहने के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान रहा होगा। लेकिन जैसे-जैसे ग्वालियर का विकास हुआ और आबादी बढ़ी तो इस क्षेत्र में भी लोगों की बसाहट होने के कारण, क्षेत्र में स्वच्छंद विचरण करने वाले बंदरों के आवास पर खतरा मंडरा आना लाजमी है। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि जानवर जंगल में ही रहे तो बेहतर है क्योंकि मानव आबादी के बीच जानवरों का रहना नामुमकिन है, इसलिए इस समय लक्ष्मण तलैया और आसपास के क्षेत्रों में बंदरों के आतंक की समस्या आम हो गई है। इन उत्पाती बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि लोग अपने घर की छतों पर जाने से भी डरने लगे हैं। 

बंदरों के कारण लोगों अपने घरों पर छतों,बालकनी पर  पेड़ पौधों के गमले सुरक्षित रहते हैं ना ही वे अपने घर की छतों पर कोई सामान रख सकते हैं ना धूप में कपड़े सुखा सकते हैं। घर से भगाए जाने पर यह बंदर अक्सर लोगों पर हमला कर देते है। लोग चोटिल हो रहे हैं इसी डर के कारण लोग डर कर इनसे दूर भागने लगते हैं यही कारण है कि इसी हड़बड़ाहट में कई लोग छतों से भी गिरकर घायल हो चुके हैैं। अभी हाल ही घटनाओं पर अगर नजर डालें तो स्थानीय निवासी आनंद व पहलवान ( डिंपू लाल जी ) के पिताजी पुरुषोत्तम भार्गव जी की उत्पाती बंदरों के कारण हुई दुर्घटना के चलते मौत हो चुकी है। रमेश दुबे जी की पत्नी के पैर में 14 टांके बंदरों की वजह से आए, राधा किशन के पिताजी का हाथ भी बंदरों के कारण दो बार टूट चुका है। 

गौरी शंकर की माताजी को भी बंदर ने काट खाया। मनोज जोहरी की मां को भी बंदर ने घायल कर दिया था। बच्चों भी इन बंदरों के शिकार हो चुके हैं। ये सब अभी हाल की घटनाएं हैं बीते समय में कई घटनाएं बंदरों के कारण हो चुकी हैं। लोगों की इस इन परेशानियों को ध्यान में रखते हुए वन विभाग नगर निगम और जिला प्रशासन को इन बंदरों की आबादी को कंट्रोल करने और इन्हें विस्थापित करने के लिए उचित कदम उठाए जाना बहुत ही जरूरी है क्योंकि यदि यही सिचुएशन रही तो यहां लोगों का रहना दूभर हो जाएगा। लक्ष्मण तलैया पर आवारा पशु खासकर गोपालको द्वारा छोड़ी गई गाय और नगर निगम द्वारा सिटी वह मुख्य बाजारों की सड़कों से से हटाए गए आवारा सांडों की आश्रय स्थल भी बनता जा रहा है।

लक्ष्मण तलैया और उसके आसपास का क्षेत्र। इन बेसहारा पशुओं का जामवडा लगतार बढ़ता ही जा रहा है। इन जानवरों के आपस मे लड्ने की वजह से तमाम राहगीर वह बच्चे इन से टकराकर या इनके टक्कर मारने से चोटिल हो चुके हैं। वैसे तो ग्वालियर की अधिकतर सड़कों पर यह पशु आवारा घूमते हुए और आपस में लड़ते हुए देखे जा सकते हैं लेकिन लक्ष्मण तलैया शब्द प्रताप आश्रम शिंदे की छावनी क्षेत्र में इनका जमावड़ा कुछ ज्यादा ही है जिससे हर समय जान जोखिम में होने का खतरा यहां के रहवासियों राहगीरों पर हर समय मंडराता रहता है। इसलिए शासन और नगर निगम अपनी जिम्मेदारी निर्वहन करते हुए क्षेत्रवासियों को आवारा जानवरों से मुक्ति दिलाएं।

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