9 माह से नहीं मिला जनगणना में तैनात कर्मियों का वेतन

मानव अधिकार हनन से जुड़े मामलों में लिया संज्ञान...

9 माह से नहीं मिला जनगणना में तैनात कर्मियों का वेतन

भोपाल। जनगणना और एनपीआर के काम के लिए प्रदेशभर में पिछले साल मार्च 2020 में 500 से अधिक कर्मचारियों को डेढ़ साल के लिए रखा गया था। इनमें तकनीकी सहायक और मल्टी टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) वर्कर्स आदि शामिल हैं, लेकिन इन्हें पिछले 9 माह से वेतन नहीं दिया गया है। जनगणना स्थगित होने पर 4 अगस्त को इनकी सेवाएं भी समाप्त कर दी गई थी, लेकिन बेरोजगार हुए इन कर्मचारियों को अप्रैल से जुलाई माह तक के वेतन का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। इस मामले में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार जैन ने मानव अधिकार हनन से जुड़े मामले में संज्ञान लेकर मुख्य सचिव, म.प्र. शासन एवं प्रमुख सचिव, म.प्र. शासन, गृह विभाग से तीन सप्ताह में प्रतिवेदन मांगा है। उल्लेखनीय है कि राज्य से लेकर जिला जनगणना कार्यालयों में एमपीकाॅन के माध्यम से 18 माह की अवधि के लिए इन्हें संविदा पर रखा गया था। तकनीकी सहायक को 20 हजार रूपए और एमटीएस वर्कर को 14 हजार रूपए प्रतिमाह वेतन पर नियुक्ति दी गई थी। चौंकाने वाली बात यह है कि इनके वेतन के लिए कैंट केंद से बजट आवंटन हो चुका है। 

इसके बावजूद राज्य का गृह विभाग जिलास्तर पर भुगतान की मंजूरी नहीं दे पाया है। तर्क यह दिया जा रहा है कि प्रदेश में जनगणना का राज्य नोडल अधिकारी का पद खाली है। राज्य के गृह सचिव ही पदेन जनगणना के राज्य के नोडल अधिकारी होते हैं, जिन्हें जिलों को जनगणना से जुडा बजट मंजूर करने का अधिकार होता है। पर यह पद खाली पड़ा है। भोपाल शहर के अशोका गार्डन के इकबाल नगर काॅलोनी निवासी 83 साल के श्री कृष्णकांत भार्गव अप्रैल 2020 में पत्नी के निधन के बाद महज एक हजार वर्गफीट के मकान के नामांतरण के लिए बीते छह महीने से नगर निगम भोपाल के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। इस मामले में आयोग ने प्रमुख सचिव, म.प्र. शासन, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, आयुक्त नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, कलेक्टर भोपाल एवं नगर निगम आयुक्त भोपाल से तीन सप्ताह में प्रतिवेदन मांगा है। मामला यूूं है कि कृष्णकांत भार्गव से पहले नगर निगम के वार्ड कार्यालय में रिश्वत की मांग की गई। भार्गव ने कहा कि वे रिश्वत तब ही देंगे, जब उन्हें काम होने की गांरटी दी जाएगी। इसके बाद वे कलेक्टर अविनाश लवानिया और निगम कमिश्नर वी. एस, चैधरी कोलसानी से व्यक्तिगत तौर पर मिले। 

कलेक्टर-निगम कमिश्नर दोनों ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनका काम जल्द ही हो जाएगा, लेकिन नीचे के मुलाजिम अपनी रिश्वत की मांग पर डटे रहे। अफसरों के कहने का भी उन पर कोई असर नही हुआ। एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र में यह खबर प्रकाशित होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निगम कमिश्नर को संबंधितों पर कार्रवाई के आदेश दिए। इस पर 25 दिवसीय कर्मचारी राहुल साहू को बर्खास्त किया गया। वार्ड प्रभारी रमीजुद्दीन को सस्पेंड कर जोनल आॅफिसर उमाकांत शर्मा को शोकाॅज नोटिस जारी किया गया। दिखावे के लिए उसी दिन भार्गव के केस की फाइल आगे बढ़ी, लेकिन निगम की राजस्व शाखा में रूक गई। यानी कलेक्टर और कमिश्नर के बाद अब मुख्यमंत्री का आदेश भी एक अदद नामांतरण के लिए बेअसर हो गया। नामांतरण भी ऐसा कि पत्नी के निधन के बाद रिकाॅर्ड में पति का नाम ही जुड़ना है। बकौल भार्गव, मुझसे सहायक आयुक्त संध्या चतुर्वेदी कहती हैं कि तुम मुख्यमंत्री के पास गए, मीडिया में गए… उससे क्या हुआ ? तुम्हारी वजह से हमारे साथी सस्पेन्ड हो गए। अब चक्कर तो काटने ही पडेंगे।

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