बिना जनसुनवाई के कोई निर्णय लिया तो करेंगे आंदोलन : MPCCI

जल व अन्य करों में वृद्घि के प्रस्ताव को खारिज करने की मांग…

बिना जनसुनवाई के कोई निर्णय लिया तो करेंगे आंदोलन : MPCCI

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह, ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर एवं ग्वालियर सांसद विवेक नारायण शेजवलकर एवं प्रमुख सचिव नगरीय विकास एवं आवास विभाग को MPCCI ने लिखा पत्र। पत्र में उल्लेख किया है कि वर्तमान में जलकर राशि को 25% लोग ही भुगतान करते हैं 75% लोगों द्बारा भुगतान नहीं किये जाने का कारण उनमें से बहुत से लोगों के ऊपर हजारों रूपये का बकाया बिल है। 

म.प्र. चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री द्बारा पूर्व में पत्र के द्बारा प्रस्ताव नगर निगम ग्वालियर को दिया गया था जिसके अंदर बिजली बिलों की तर्ज पर पानी के बकाया बिलों के लिए भी एक सरल समाधान योजना लाई जाना चाहिए जिसके अंतर्गत एकमुश्त राशि जमा करने पर पूरा सरचार्ज और मूलधन में 50% तक की राशि माफ की जाए। यह योजना लाई जाना इसलिए आवश्यक है कि बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग जो 150 रूपये जलकर चुकाना चाहते हैं लेकिन हजारों रूपये बकाया होने की वजह से वह नहीं चुका पा रहे हैं, जिससे निगम को दोहरी मार पड़ रही है यदि यह योजना लाई जाती है तो निगम को करोड़ों रूपये का राजस्व प्राप्त होगा और प्रतिमाह मिलने वाले राजस्व में भी आशातीत वृद्घि होगी इसके विपरीत यदि दरों में वृद्घि की गई तो यह उन ईमानदार उपभोक्ताओं का शोषण होगा जो प्रतिमाह ईमानदारी से यह बिल भरते हैं। 

इसी के साथ सफाई शुल्क बढाने का जो प्रस्ताव है, यह भी निगम के द्बारा आमजन के ऊपर अतिरिक्त बोझ है एक तरफ निगम ने सफाई शुल्क प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर आरोपित किया है, वहीं दूसरी तरफ संपत्ति कर के साथ लिये जाने वाले सफाई शुल्क में वृद्घि का यदि प्रस्ताव भेजा है तो यह आमजन के साथ कुठाराघात है। MPCCI ने पत्र के माध्यम से मांग की है कि इस तरह के किसी भी प्रस्तावों पर निर्णय लेने से पहले शहर के अंदर एक जनसुनवाई किया जाना बहुत आवश्यक है, जिसमें सभी वर्ग के प्रतिनिधि अपनी बात रख सके  यदि बिना जनसुनवाई करे सबका पक्ष जाने बिना आगे भी निर्णय लिया जाता है तो मजबूरन म.प्र. चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री जैसी संस्थाओं को इसका सार्वजनिक रूप से विरोध करना पड़ेगा और जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करना पड़ेगा।

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