महामारी की वैक्सीन बनाना जटिल काम है इसकी डेडलाइन निर्धारित नहीं की जा सकती

सावधानी ही बचाव…
महामारी की वैक्सीन बनाना जटिल काम है इसकी डेडलाइन निर्धारित नहीं की जा सकती

कोरोना का कहर पूरी दुनिया के साथ भारत में भी जारी है। देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ती हुई 11 लाख का शिखर पार कर चुकी है। इसकी चपेट में आकर जान गंवाने वालों की संख्या 28 हजार की रेखा पार कर चुकी है। बीमारी से निपटने के साथ ही इसे आगे से घेरने के प्रयास भी जारी हैं। कई मोर्चों पर बड़ी सफलताओं के बावजूद हकीकत यही है कि इसका चरम बिंदु अभी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। जाहिर है, हमें दिनों और हफ्तों के हिसाब से नहीं, महीनों के हिसाब से खुद को कठिनाइयों के लिए तैयार करना होगा। बड़े पैमाने पर महामारी से मुकाबले के लिए वैक्सीन या किसी कारगर दवा की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। रेम्डेसिविर नाम की दवा के मध्यम स्तरीय मामलों में कुछ हद कारगर रहने की खबर आई तो अमेरिका ने इसका सारा स्टॉक ही खरीद लिया। 

हाल यह है कि बीच-बीच में बीमारी की कोई रामबाण दवा खोज लिए जाने या वैक्सीन बना लिए जाने की खबर कहीं न कहीं से आ जाती है जो बाद में झूठ साबित होती है। कुछ दिन पहले एक भारतीय दवा कंपनी की तरफ से घोषणा कर दी गई कि उसे कोविड-19 की कारगर दवा बनाने में कामयाबी मिल गई है। बाद में पता चला, वह कथित कामयाबी मात्र 30 मरीजों पर किए गए प्रयोग का नतीजा थी। ऐसे ही एक दिन रूस से खबर आई और अगले ही दिन कट गई कि वहां कोविड-19 की वैक्सीन विकसित कर ली गई है। सबसे ताजा मामला ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी का है जिसके बारे कहा गया कि गुरुवार को कोरोना वैक्सीन को लेकर कोई अच्छी घोषणा हो सकती है, लेकिन फेज-1 ट्रायल से जुड़ी यह घोषणा अकादमिक महत्व की निकली। इस अधीरता के पीछे सबसे बड़ा दबाव आम लोगों का है जो बीमारी की कोई काट तुरंत पाना चाहते हैं। परंतु एक महामारी की वैक्सीन बनाना इतना जटिल काम है कि इसकी कोई डेडलाइन निर्धारित नहीं की जा सकती। 

सबसे पहले तो वायरस के बारे में बुनियादी समझ बनाना और वैक्सीन कैंडिडेट्स तय करना ही काफी टेढ़ा काम होता है। फिर नंबर आता है प्री-क्लिनिकल टेस्टिंग का जिसमें चूहों, बंदरों या अन्य जीवों पर प्रयोग किए जाते हैं। इसके बाद क्लिनिकल ट्रायल के तीन फेज और तीनों के तीन चरण होते हैं। पहले कुछ दर्जन लोगों पर प्रयोग होता है, फिर कुछ सौ पर और फिर कुछ हजार पर। इन सबके बाद रेग्युलेटरी मंजूरी और फिर प्रॉडक्शन के फेज होते हैं। कोरोना वायरस के मामले में चूंकि महामारी की स्थिति बनी हुई है और कई सारे ग्रुप इस काम में लगे हैं, इसलिए समय थोड़ा बच सकता है। फिर भी याद रखना जरूरी है कि अबतक की सबसे तेज वैक्सीन भी चार साल में ही बन पाई थी। साफ है कि महामारी के इस दौर का सामना हमें आधी-अधूरी दवाओं, भरपूर मनोबल और अधिकतम सावधानी से ही करना है।

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