ग्वालियर में जनमंगल महोत्सव 21 से 23 जनवरी तक...
जनमंगल महोत्सव है अशुभ से शुभ की यात्रा का नाम : प्रसन्न सागर जी महाराज
ग्वालियर। तुम धर्म के लिये काम करो,तुम्हारी कामना कामधेनु बन जायेगी । तुम धर्म के लिए हाथ बढ़ाओ तुम्हारे हाथ कल्प वृक्ष हो जायेंगे।तुम धर्म के लिए कामना करो,तुम्हारी चिंता चिंतामणी हो जायेगी। तुम धर्म के लिये मरण का वरण करो,अमर हो जाओगे।
धर्म चिंतापणी रत्न है यह केवल हमारे मनोरथ मनोकामनाओं को ही पूरा नहीं करता बल्कि जीवन मुक्ति मार्ग को प्रसस्त करता है। इसलिये धर्म का वरण करने पर सभी प्रकार की चिंताओं के मुक्ति प्राप्त होती है। आपने कहा कि मरण पर तो सभी चिंतन करते हैं जीवन पर विरले ही लोग चिंतन करते है और जीवन पर चिंतन करते हैं वे पुरस्कार पाते हैं।
आचार्यश्री ने जीवन को सुखी बनाने के तीन सूत्र पत्रकारों को बताये। उन्होंने कहा कि प्रेम,सर्वहित और विश्वास के साथ जीओ और जीने दो की भावना को लेकर जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य कभी दुखी नहीं होता है।
आपने भारत सरकार को मीडिया के माध्यम से अपना सुझाव भी रखा है कि यदी भारत सरकार भारतीय नोट पर जीओ और जीने दो जैसे सर्वजन हिताय वाले सूत्र को स्थान दे देती है तो भारत मानवता,दयालुता और समभाव के लिए पूरी दुनिया में पहला ऐसा देश होगा जो अपनी करेंसी के माध्यम से इस भावना पूरी दुनिया में अपनी मुद्रा के माध्यम से पंहुचाने का कार्य करेगा।
उक्त विचार सोमवार को महोदधि आचार्यश्री प्रसन्न सागर महाराज ने ग्वालियर में 21 जनवरी से 23 जनवरी तक होने जा रहे जनमंगल महोत्सव के विषय में पत्रकारों से चर्चा के दौरान व्यक्त किये। आपने कहा कि जनमंगल महोत्सव अशुभ से शुभ की यात्रा का नाम है,पाप से पुण्य की यात्रा,शुभ से श्रेष्ठ की यात्रा,सुख से समृद्वी की यात्रा है।
आपने बताया कि इस अनुष्ठान में मंत्र स्नान,शरीर शुद्वी एवं अनेक समस्याओं का समाधान मिलेगा। यह आयोजन 21 जनवरी से 23 जनवरी 2020 तक प्रातः8 बजे से नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला में महोदधि आचार्यश्री प्रसन्न सागर महाराज के सानिध्य में ग्वालियर में पहलीबार आयोजित होने जा रहा है। आयोजन के अंतिम दिन 23 जनवरी को तीर्थांकर भगवान आदिनाथ के मोक्षकल्याणक पर 1008 निर्वाण लड्डू समर्पित कर बनाया जायेगा।
महोदधि आचार्यश्री प्रसन्न सागर महाराज के बारे में परिचय देते हुए मनोग्य मुनि पीयूष सागर महाराज ने बताया कि आचार्यश्री एक ऐसे संत हैं जिन्होंने 30 वर्षो में 1 लाख किलोमीटर की पद यात्रा की है। 3200 सौ उपवास किये हैं। आप 67 दिनतक एकांतवास में रहे। 1 दिन में सम्मेदशिखर जी की 8 बार वंदना करने का गौरव आपने पाया है।
आपने भारत के 32 प्रांतों की यात्रा करते हुए जियो और जीने दो के संदेश को लोगों के बीच प्रसारित किया । आचार्यश्री के द्वारा गांव गाव में संस्कारों का शंखनाद किया जा रहा है।आप के द्वारा नष्ट होती नैतिकता,गुम होते आदर्श, लुप्त होती मानवसेवा और विलुप्त होती साहित्य साधना को जीवतंता प्रदान करने का कार्य किया जा रहा है।










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