अमरूद 22 की किस्म, दो किलो तक की मौसमी : कृषक प्रान सिंह

जैविक खेती के माध्यम से शुद्ध एवं पोषक तत्वों से भरपूर…

अमरूद 22 की किस्म, दो किलो तक की मौसमी : कृषक प्रान सिंह



ग्वालियर / बिलौआ l  डबरा तहसील के ग्राम बिलौआ निवासी कृषक प्रान सिंह जाटव लगभग 46 वर्षों से खेती कर रहे हैं, जबकि वर्ष 2002 से कृषि, फल, फूल, सब्जी के क्षेत्र में जैविक खेती का उपयोग कर उत्पादन ले रहे हैं। किसान प्रान सिंह का कहना है कि मानव जीवन को स्वस्थ रखना है तो समय की मांग के अनुरूप किसानों को जैविक खेती के माध्यम से शुद्ध एवं पोषक तत्वों से भरपूर कृषि उत्पादन एवं फलों का उत्पाद न लेना होगा।

प्रान सिंह द्वारा जैविक खाद, केंचुए की खाद का उपयोग कर सेव के पौधे एवं लखनऊ (ललित) अमरूद की किस्म से क्रॉस कराकर अमरूद 22 बिलौआ किस्म की खोज की है। इस अमरूद की विशेषता है कि लाल रंग होने के साथ विशेष खुशबू भी होती है। इस नई किस्म की खोज के लिए प्रान सिंह को विभिन्न स्तरों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।

प्रान सिंह ने बताया कि कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के सहयोग से वर्मी कम्पोस्ट, बायोगैस संयंत्र एवं प्याज भण्डारण हेतु गोदाम बनाए हैं। जमीन को खेती एवं फलोद्यान हेतु 18 से 21 तत्वों की आवश्यकता होती है। जिसकी पूर्ति जैविक खाद के रूप में केंचुआ खाद एवं गोबर की खाद करती है जबकि रासायनिक खाद के रूप में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास की पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की रासायनिक खाद का उपयोग करना पड़ता है। यदि सम्पूर्ण तत्वों की पूर्ति नहीं होती है तो भूमि की उर्वरा शक्ति भी कमजोर होती है।

उनके पास बंजर एवं ऊसर भूमि थी। जिस पर घास भी नहीं होती थी। लेकिन लगन एवं मेहनत और जैविक खाद का उपयोग कर एक हैक्टेयर जमीन में 35 क्विंटल सरसों का उत्पादन लिया है। गौमूत्र को विशेष प्रकार की नालियों के माध्यम से संग्रहित किया जा रहा है।

इसी प्रकार कूडे-करकट एवं बायोगैस – संयंत्र से निकलने वाले गोबर का उपयोग वर्मी कम्पोस्ट बनाने में कर रहे हैं। श्री प्रान सिंह जैविक खेती के माध्यम से गन्ना, गेहूँ, चना, मटर, अदरक, हल्दी, अंगूर, केले, मौसमी, अमरूद की फसलें ले रहे हैं। इनके द्वारा तैयार किए गए मौसमी के पेड़ों पर 2 किलो तक की मौसमी के फल लगे हैं। इन सभी फसलों से उन्हें 5 लाख का प्रतिवर्ष शुद्ध मुनाफा हो रहा है।

जैविक खेती का उपयोग कर एक आम के पेड़ से तोतापरी, लंगड़ा, दशहरी और अचार के आम ले रहे हैं। अपने फार्म हाउस पर जल ग्रहण क्षेत्र के तहत दो खेत तालाब भी बनाए हैं। इससे इनके ट्यूबबेल का जल स्तर ठीक रहता है। इन तालाबों से सिंचाई के साथ मछली पालन भी कर रहे हैं। इस कार्य में परिजनों द्वारा भी सहयोग किया जा रहा है।

प्रान सिंह का कहना है कि किसानों को समन्वित खेती करना चाहिए, जिससे फसलों की खेती के साथ फलों एवं फूलों की खेती, मधुमक्खी पालन, पशुपालन एवं मछली पालन से किसान की लागत की भरपाई हो सकेगी। उन्होंने बताया कि वे जैविक उत्पादनों को बिलौआ एवं टेकनपुर के बाजार में बेच रहे हैं। विभिन्न जिलों के कृषक भी जैविक खेती के गुर सीखने आ रहे हैं।

फसल लेने के बाद वह गेहूँ, धान एवं चना के अवशेष को वह जलाते नहीं है। बल्कि उसे खेतों में कम्पोस्ट खाद के रूप में उपयोग करते हैं। शिक्षण संस्थाओं, छात्रावासों एवं मुक्तिधामों में छायादार पौधे लगाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं में बच्चों को भी पर्यावरण के प्रति जागरूक करने हेतु समय-समय पर शिक्षा दे रहे हैं।

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