यह समय दोषारोपण का नहीं, आत्मसुधार का है...
सुरों की धरती पर शोर की शर्मनाक गूंज !
बॉलीवुड नाइट के दौरान सुप्रसिद्ध गायक कैलाश खेर के कार्यक्रम में जिस तरह अव्यवस्था और उपद्रव देखने को मिला, उसने पूरे शहर को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कार्यक्रम के दौरान बेकाबू भीड़ का बैरिकेड्स फांदकर मंच की ओर बढ़ना और कलाकार के इक्विपमेंट तक पहुंचने की कोशिश करना न केवल अनुशासनहीनता का परिचायक है, बल्कि सांस्कृतिक चेतना पर भी एक गहरी चोट है। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि कैलाश खेर को अपना गाना बीच में ही रोकना पड़ा और मंच से नाराजगी जतानी पड़ी। यह दृश्य किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंताजनक और शर्मनाक है।
कैलाश खेर जैसे कलाकार मंच पर केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना और आत्मिक अनुभव लेकर आते हैं। उनका अपमान किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस पूरे शहर का अपमान होता है, जो खुद को संगीत, संस्कृति और संस्कार की धरती कहता है। जब एक कलाकार मंच से यह कहने को मजबूर हो जाए कि “हम शो बंद कर देंगे”, तो यह हमारी सामूहिक असफलता का संकेत है। यह घटना केवल भीड़ के कुछ लोगों की गलती मानकर टाल देने योग्य नहीं है, क्योंकि इसका असर ग्वालियर की छवि पर पड़ता है।
ग्वालियर केवल ऐतिहासिक किले और भव्य स्मारकों के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि यह तानसेन की धरती है, जहां सुरों की साधना को पूजा का दर्जा प्राप्त है। इस धरती पर अशांति नहीं, बल्कि संगीत के प्रति सम्मान और मर्यादा अपेक्षित है। जब इसी भूमि पर अराजकता देखने को मिले, तो यह हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ अन्याय जैसा प्रतीत होता है। तालियां सम्मान का प्रतीक होती हैं, धक्का और शोर नहीं। उत्साह अपनी जगह सही है, लेकिन जब वही उत्साह मर्यादा तोड़ दे, तो वह गर्व नहीं, बदनामी बन जाता है।
इस घटना ने विशेष रूप से युवाओं के व्यवहार पर सवाल खड़े किए हैं। युवा शक्ति किसी भी शहर की सबसे बड़ी ताकत होती है, लेकिन वही शक्ति यदि दिशा खो दे, तो समाज की छवि को नुकसान पहुंचाती है। आज आवश्यकता है कि युवा आत्ममंथन करें और समझें कि सार्वजनिक मंचों पर उनका आचरण केवल उनका नहीं, बल्कि पूरे शहर का प्रतिनिधित्व करता है। जोश जरूरी है, लेकिन उसके साथ संस्कार और संवेदनशीलता भी उतनी ही आवश्यक है।
यह समय दोषारोपण का नहीं, आत्मसुधार का है। गलती हुई है, इसे स्वीकार करना ही सुधार की पहली सीढ़ी है। यदि इस घटना से हम सीख लेते हैं और आने वाले आयोजनों में अनुशासन, सम्मान और सांस्कृतिक गरिमा का पालन सुनिश्चित करते हैं, तभी ग्वालियर वास्तव में महान कहलाएगा। ग्वालियर को बदनाम नहीं, बल्कि उसकी पहचान के अनुरूप महान बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है।










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